नई दिल्ली: पिछले हफ्ते इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) कोझिकोड के 20-वर्षीय एक स्टूडेंट ने कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव के दौरान अपने चौथे राउंड के इंटरव्यू की तैयारी थोड़ी घबराहट में रहते हुए की. वैश्विक आर्थिक प्रतिकूलताओं के कारण इस साल नौकरी के लिए मशक्कत बढ़ गई है और ऐसा लगता है कि उनके जैसे नए लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
नाम न छापने की शर्त पर एक स्टूडेंट ने कहा, “इस साल मुश्किल स्थिति है. बाज़ार में उतनी नौकरियां नहीं हैं. केवल कुछ कंसल्टेंसी और आईटी कंपनियां ही प्लेसमेंट के लिए आ रही हैं. कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव में भी देरी हो रही है. कंपनियां फ्रेशर्स को काम पर रखने में दिलचस्पी नहीं ले रही हैं.”
उन्होंने कहा, “एलुमनाई हमारा आखिरी सहारा हैं.”
पिछले हफ्ते, बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस, पिलानी (बिट्स पिलानी) तब सुर्खियों में आया जब इसका मैनेजमेंट कैंपस प्लेसमेंट में मदद मिलने की कोशिश में अपने एलुमनाई नेटवर्क के पास पहुंचा.
उन्हें लिखे पत्र में कहा गया, “वैश्विक अर्थव्यवस्था ने दशकों से इस तरह की मंदी का अनुभव नहीं किया है. प्रौद्योगिकी क्षेत्र मौलिक रूप से प्रभावित हुआ है, जनवरी 2022 से वैश्विक स्तर पर लगभग 4 लाख लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया. सर्दियों की फंडिंग के साथ इस वैश्विक अनिश्चितता का व्यापक प्रभाव पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप छोटे और बड़े व्यवसायों में समान रूप से लागत में कटौती होती है, जिससे कैंपस सहित सभी स्तरों पर नियुक्तियां प्रभावित होती हैं.”
First IIM Lucknow, now BITS Pilani asking alumni to help out with placements.
This is the first time I am seeing such groveling after 2008.
"help them tide through current crisis"
"gentle request to please keep this in mind"
"Thanking you very much in advance" pic.twitter.com/TI27X7THk6
— Ravi Handa (@ravihanda) February 22, 2024
एक महीने में किसी प्रमुख संस्थान की ओर से यह दूसरी ऐसी अपील थी. जनवरी में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (लखनऊ) ने अपने एलुमनाई के नेटवर्क से इसी तरह की अपील की थी. व्हाट्सएप के जरिए से भेजी गई अपील उसके 72 स्टूडेंट्स के इस प्लेसमेंट सीज़न में नौकरी पाने में विफल रहने के बाद आई है.”
ये ऐसे समय में हुआ है जब दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं — जापान और ब्रिटेन — मंदी में पहुंच गई हैं. पिछले कुछ समय से महसूस की जा रही इन वैश्विक प्रतिकूलताओं का प्रभाव भारत पर भी पड़ा है. दिसंबर में आईएएनएस की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की तकनीकी कंपनियों ने पिछले दो साल में 36,000 से अधिक लोगों को नौकरी से निकाल दिया.
ये छंटनी एक जैसे ग्लोबल ट्रेंड को दर्शाती हैं.
पिछले दो साल में दुनिया भर में 4,25,000 से अधिक नौकरियां गायब होने के बाद, तकनीकी अधिकारियों ने इसके लिए महामारी, अत्यधिक नियुक्ति, उच्च मुद्रास्फीति और कमजोर उपभोक्ता मांग को जिम्मेदार ठहराया.
विशेषज्ञों के अनुसार, इन वैश्विक व्यापक आर्थिक कारकों का परिणाम कम प्लेसमेंट और कम सैलरी है.
बिट्स पिलानी के हैदराबाद कैंपस में प्लेसमेंट सेल के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “इस साल कंपनियों की प्लेसमेंट में गिरावट आई है और वो कम सैलरी दे रहे हैं. इंडस्ट्री मंदी में है क्योंकि महामारी के दौरान ज़रूरत से ज्यादा लोगों को काम पर रख लिया गया और अब कंपनियों को लगता है कि अधिक लोगों को काम पर न रखना ही बेहतर है.”
अपनी ओर से संस्था ने दावा किया है कि उसके पत्र को “काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया”.
बिट्स पिलानी कैंपस के ग्रुप वाइस चांसलर वी. रामगोपाल राव ने एक्स पर एक लंबी पोस्ट में कहा, “बिट्स और आईआईटी जैसे संस्थानों के लिए प्लेसमेंट के लिए एलुमनाई तक पहुंचना एक बहुत ही सामान्य बात होनी चाहिए. मैंने आईआईटी दिल्ली के निदेशक रहते हुए भी ऐसा किया था. स्टूडेंट्स के लिए प्लेसमेंट के मौकों में सुधार के लिए भी इसकी ज़रूरत है.” उन्होंने ये भी जोड़ा कि 7,400 से अधिक एलुमनाई “दुनिया भर के कॉरपोरेट्स में सीईओ और अन्य वरिष्ठ पदों पर हैं”.
A clarification on BITS Pilani Dean to our alumni seeking help for Placements.
An email from @bitspilaniindia Dean (Alumni) seeking help from alumni for placements is being blown out of proportions. It should be a very normal thing for institutions such as BITS and IITs to… pic.twitter.com/kRcjv8iVFZ
— V. Ramgopal Rao, Ph.D. (@ramgopal_rao) February 25, 2024
विशेषज्ञ प्लेसमेंट में गिरावट को वैश्विक प्रतिकूलताओं का स्वाभाविक परिणाम मानते हैं.
वित्तीय विशेषज्ञ और इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी केसीसी ग्रुप के संस्थापक शरद कोहली ने दिप्रिंट को बताया, “अमेरिका और ब्रिटेन के बाज़ारों में मंदी है, जिसका असर भारत पर भी पड़ा है. आईटी कंपनियों को उनसे कम ऑर्डर मिलते हैं, इसलिए वे कम लोगों को काम पर रख रहे हैं और कर्मचारियों की छंटनी कर रहे हैं. इसका असर आईटी कंपनियों के शेयरों पर भी पड़ा है.” उन्होंने कहा, यह “नौकरी बाज़ार में सिर्फ एक विचलन” था और ये ज्यादा समय तक नहीं रहेगा.
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि प्लेसमेंट में यह गिरावट, हालांकि, तेज़ है, लेकिन यह हमेशा के लिए नहीं है.
सार्वजनिक नीति सलाहकार और प्रौद्योगिकी लेखक प्रशांतो के रॉय ने कहा, “यह तकनीकी सेवाओं और आउटसोर्सिंग की वैश्विक मांग में महामारी के बाद धीरे-धीरे आई मंदी का प्रभाव है. आखिरकार, तकनीकी कंपनियों ने महामारी के दौरान और उसके ठीक बाद ज़रूरत से ज्यादा लोगों की नियुक्त कर लिया, लेकिन तथ्य यह है कि हमने बड़े पैमाने पर छंटनी नहीं देखी है. इसका मतलब है कि कंपनियों ने उस चीज़ के लिए लोगों को रखा, जिसकी उन्हें ज़रूरत थी और उन्होंने उस समय जो अनुमान लगाया था.”
उन्होंने कहा, कंपनियों को अंततः एहसास हुआ कि वे अनुमान वास्तविकता से मेल नहीं खाते.
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वैश्विक व्यवस्था में बदलाव
विशेषज्ञों के मुताबिक, पिछले दो वित्त वर्ष में नई प्लेसमेंट सुस्त रही हैं. एक गैर-सरकारी तकनीकी व्यापार संघ और वकालत समूह NASSCOM की वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख में भुवनेश्वर स्थित सीएसएम टेक के संस्थापक और सीईओ नानू पैनी ने कहा कि भारत की आईटी कंपनियां टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इंफोसिस और एचसीएल टेक ने पिछले साल जुलाई-सितंबर तिमाही में अपने कर्मचारियों की संख्या में गिरावट देखी है, “क्योंकि उनके नतीजे कमजोर रहे हैं”.
पिछले साल दिसंबर में छपे इस लेख में कहा गया, “पिछले दो वित्तीय वर्षों में इंफोसिस ने 83,000 से अधिक कर्मचारियों को काम पर रखा है, जबकि टीसीएस ने 120,000 से अधिक और एचसीएल ने लगभग 57,000 कर्मचारी जोड़े हैं. इसके अलावा, 2023-24 की जून-सितंबर अवधि के दौरान इंफोसिस में शुद्ध कर्मचारी संख्या में 14,470 और एचसीएल टेक में लगभग 4,800 की गिरावट देखी गई. इसी अवधि में टीसीएस के कर्मचारियों की शुद्ध कटौती 5,810 रही. एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इस वित्त वर्ष में टीसीएस, इंफोसिस और एचसीएल टेक में कर्मचारियों की संख्या 50,000 तक कम हो जाएगी क्योंकि हमास-इज़रायल संघर्ष के बाद प्रौद्योगिकी सेवाओं के लिए वैश्विक चुनौतियां बढ़ गई हैं.”
इसी तरह, नए इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की प्लेसमेंट भी खराब रही है. एक फरवरी को छपी इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, आईटी कंपनियों ने 70,000 और 80,000 नए इंजीनियरों को काम पर रखा होगा, जो “दो दशकों में सबसे कम प्लेसमेंट” होगी.
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) — भारत में भविष्य निधि के विनियमन और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार सरकारी एजेंसी — के डेटा से पता चला है कि 2022 की तुलना में 2023 में 10 प्रतिशत कम औपचारिक नौकरियां पैदा हुईं.
दरअसल, यह ज़मीनी स्तर पर दिखता है. बिट्स पिलानी के मुख्य प्लेसमेंट अधिकारी बालासुब्रमण्यम गुरुमूर्ति के अनुसार, फरवरी के मध्य तक संस्थान में प्लेसमेंट्स में 18 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है.
आमतौर पर, अधिकांश तकनीकी और प्रबंधन संस्थानों में प्लेसमेंट ड्राइव दिसंबर में शुरू हो जाती है, जो ज़रूरी होने पर जनवरी तक चलती है. हालांकि, गुरुमूर्ति के अनुसार, ड्राइव के पहले चरण में 60 प्रतिशत योग्य स्टूडेंट्स को प्लेसमेंट मिलने के बाद इस साल प्लेसमेंट सीज़न को बढ़ा दिया गया है.
उन्होंने दिप्रिंट से यह भी स्वीकार किया कि इस साल के प्लेसमेंट के लिए “एक्स्ट्रा कोशिश” की ज़रूरत है.
उन्होंने कहा, “आर्थिक माहौल बदल रहा है, आज कंपनियां अपने निवेशकों की ओर से विस्तार के बजाय लाभप्रदता की ओर रुझान महसूस कर रही हैं. इसके कारण कंपनियों को मैनपावर कम करने की कोशिश करनी पड़ी, जिसके परिणामस्वरूप छंटनी, सैलरी में कटौती हुई, जो हर दिन खबरों में आ रही है.” उन्होंने कहा, 2023-24 प्लेसमेंट चक्र में चुनौतियां जारी रहने की संभावना है.
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आईआईटी, आईआईएम में कम नौकरियां
यह सिर्फ बिट्स पिलानी ही नहीं है जिसे कैंपस प्लेसमेंट के दौरान समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. आईआईटी दिल्ली के मैनेजमेंट स्टडीज़ डिपार्टमेंट के एक सूत्र के अनुसार, नौकरी की अनिश्चित स्थितियों ने मैनेजमेंट के स्टूडेंट्स के प्लेसमेंट को भी प्रभावित किया है.
उन्होंने कहा, “हमने आईटी/आईटीईएस (सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाएं) और परामर्श क्षेत्रों से आने वाली सीमित संख्या में कंपनियों को देखा. इस साल प्रति छात्र हमारे ऑफर की औसत संख्या में 16 प्रतिशत की गिरावट आई है. प्री-प्लेसमेंट ऑफर भी सामान्य से बहुत कम थे.”
बिट्स पिलानी की तरह आईआईटी में भी प्लेसमेंट सीजन बढ़ा दिया गया है.
इस बीच, आईआईएम-लखनऊ की अपने एलुमनाई से की गई अपील काम कर गई और संस्थान ने इस साल 100 प्रतिशत प्लेसमेंट दर्ज किया. प्लेसमेंट प्रभारी रामबरन के मुताबिक, इस साल प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण थी. उन्होंने कहा, “इस साल प्लेसमेंट में देरी हुई है क्योंकि कई कंपनियां प्लेसमेंट में रुचि नहीं ले रही हैं.”
विभिन्न प्लेसमेंट सेल के मुताबिक, इस साल इंटर्नशिप के मौके भी कम रहे हैं. आईआईटी दिल्ली के एक प्लेसमेंट समन्वयक ने कहा, “छात्रों के बीच अनिश्चितता का माहौल है.”
विशेषज्ञों के अनुसार, महामारी के बाद बाज़ार की गतिशीलता बदल गई है. इसका एक बड़ा कारण ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बढ़ता उपयोग है.
आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्र संघ के सचिव पंकज कपाड़िया ने कहा, “हर बार जब कोई नई तकनीक आती है, तो यह बाज़ार में हलचल मचा देती है.”
एक अन्य महत्वपूर्ण कारण कंपनियों के दृष्टिकोण में बदलाव है. विशेषज्ञों के अनुसार, कंपनियां अपने संभावित उम्मीदवारों से अधिक स्किल की मांग कर रहे हैं. पिछले महीने नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म लिंक्डइन के एक सर्वे से पता चला है कि एआई 94 प्रतिशत भारतीय कंपनियों को अपने कर्मचारियों को बेहतर स्किल देने के लिए प्रेरित कर रहा है.
आईआईटी खड़गपुर के पूर्व छात्र और अमेरिका स्थित टेक कंपनी न्यूजेन सॉफ्टवेयर के पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष अरविंद झा का मानना है कि नौकरी बाज़ार में मंदी के चार मुख्य कारण हैं.
मिथिला एंजेल नेटवर्क के संस्थापक अरविंद झा ने दिप्रिंट को बताया, “सबसे पहले, कॉरपोरेट्स ने COVID के दौरान बहुत निवेश किया और वे उस निवेश को संतुलित करने की कोशिश में जुटे हैं. दूसरा, तकनीकी कंपनियों में स्वचालन के कारण नौकरियां कम हो रही हैं. तीसरा, विशेष रूप से भारत में स्टार्ट-अप्स कर्मचारियों की छंटनी करते हैं और ज्यादा लोगों को काम पर नहीं रखते और चौथा, श्रमिकों की गुणवत्ता अभी भी कंपनियों के लिए एक बड़ी चुनौती है.” मिथिला एंजेल एक निवेशक नेटवर्क है जिसका लक्ष्य बिहार के मिथिला क्षेत्र में एक स्टार्टअप माहौल बनाना है.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह बाज़ार मंदी केवल संगठित क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है और इसने भारत के असंगठित क्षेत्र को भी प्रभावित किया है, जहां वर्तमान में भारत का 90 प्रतिशत से अधिक कार्यबल कार्यरत है.
अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने दिप्रिंट को बताया, “नोटबंदी (2016 में) और कोविड के बीच, यह सेक्टर प्रभावित हुआ और उबर नहीं सका. रिकवरी केवल संगठित क्षेत्र में देखी गई, लेकिन सरकार (अभी भी) असंगठित क्षेत्र की अनदेखी कर रही है.”
टियर-2 और टियर-3 शहरों में ‘गंभीर स्थिति’
आईआईटी और आईआईएम जैसे विशिष्ट संस्थानों के सामने आने वाली चुनौतियों के बावजूद, विशेषज्ञों के लिए सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि बाज़ार में गिरावट कम प्रसिद्ध संस्थानों को कैसे प्रभावित कर सकती है.
भारत में 3,000 से अधिक इंजीनियरिंग कॉलेज और 4,000 प्रबंधन संस्थान हैं, इनमें से कई भारत के टियर-2 और टियर-3 शहरों में हैं.
प्रशांतो रॉय के अनुसार, जबकि विशिष्ट संस्थान अपने पूर्व छात्रों के समर्थन से प्रबंधन कर सकते हैं, “यह चिंताजनक है क्योंकि यह दूसरे या तीसरे स्तर के स्कूलों में गंभीर स्थिति की ओर इशारा करता है जहां प्रभावशाली पूर्व छात्रों के नेटवर्क के सुरक्षा जाल के बिना प्लेसमेंट बहुत कम होगा.”
दरअसल, भारत के कम-ज्ञात संस्थान गहराते नौकरी संकट के प्रभावों को महसूस कर रहे हैं. नवी मुंबई के सरस्वती कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के प्लेसमेंट सेल प्रमुख सुनील जानकर के मुताबिक, इस साल प्लेसमेंट न केवल तुलनात्मक रूप से कम हैं बल्कि कंपनियां अपने चयन में भी अधिक सावधानी बरत रही हैं.
उन्होंने कहा, “इस साल जो कंपनियां आई हैं, उन्हें छात्रों से अधिक उम्मीदें हैं और उन्होंने परीक्षण के स्तर को बढ़ा दिया है. पहले, छात्रों के पास चुनने के लिए कई ऑफर लेटर होते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है.”
गुरुग्राम के द्रोणाचार्य कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में प्लेसमेंट की प्रभारी प्रोफेसर रेनू दुआ इससे सहमत हैं. उन्होंने कहा, इस साल प्लेसमेंट के लिए पात्र कॉलेज के केवल 70 प्रतिशत छात्रों को ही नौकरियां मिली हैं, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 90 प्रतिशत था.
उन्होंने कहा, “इस बार, कंपनियां थोक में प्लेसमेंट नहीं कर रही हैं. वे असाधारण स्किल की मांग कर रहे हैं.”
स्टूडेंट्स के लिए, इसका मतलब अधिक अनिश्चितता है. उदाहरण के लिए जेपी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के फाइनल ईयर के इंजीनियरिंग छात्र को कॉलेज ऑडिटोरियम में प्लेसमेंट ब्रीफिंग के दौरान कठिन बाजार स्थिति के बारे में बताया गया.
उन्होंने कहा, “यहां तक कि जो कंपनियां नियुक्ति के लिए कॉलेज में आईं, वे सेल्स कंपनियां थीं. शायद ही कोई टेक कंपनियां प्लेसमेंट के लिए आ रही हैं और जो आती भी हैं तो बहुत कम छात्रों को नौकरी देती हैं.”
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