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Thursday, 20 March, 2025
होमएजुकेशनपहले रंजनी, अब बदर खान सूरी—USA में फिलिस्तीन समर्थन के कारण भारतीय छात्रों में डिपोर्टेशन का डर गहराया

पहले रंजनी, अब बदर खान सूरी—USA में फिलिस्तीन समर्थन के कारण भारतीय छात्रों में डिपोर्टेशन का डर गहराया

सोशल मीडिया पोस्ट को 'अनलाइक' करने से लेकर यात्रा करने से डरने तक, अमेरिका के कुछ प्रतिष्ठित संस्थानों में भारतीय छात्र दबाव में हैं.

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नई दिल्ली: अमेरिका में भारतीय स्कॉलर्स हाई अलर्ट पर हैं, क्योंकि जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के पोस्टडॉक्टोरल फेलो बदर खान सूरी को 19 मार्च को उनके घर के बाहर हिरासत में ले लिया गया, जब उनका स्टूडेंट वीजा रद्द कर दिया गया.

अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (डीएचएस) की प्रवक्ता ट्रिशा मैकलॉघलिन ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया कि सूरी हमास का प्रचार कर रहे थे और सोशल मीडिया पर यहूदी विरोधी भावनाएं भड़का रहे थे. उन्होंने लिखा, “सूरी के हमास के एक जाने-माने या संदिग्ध आतंकी से करीबी संबंध हैं, जो हमास का वरिष्ठ सलाहकार है.”

सिर्फ एक हफ्ते पहले, भारतीय पीएचडी छात्रा रंजनी श्रीनिवासन खुद को अप्रवासन (इमिग्रेशन) संबंधी विवादों में फंसा हुआ पाया, जब न्यूयॉर्क सिटी में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के परिसर में कथित रूप से फिलिस्तीन समर्थक विरोध प्रदर्शनों में  शामिल होने के कारण उनका स्टूडेंट वीजा रद्द कर दिया गया. जब इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) उनके दरवाजे तक पहुंचा, तो श्रीनिवासन ने स्वेच्छा से अमेरिका छोड़ने का फैसला किया—जिसे ‘सेल्फ डिपोर्टिंग’ कहा गया है.

पहली नजर में, उनका वीजा रद्द होना अजीब लग सकता है. लेकिन इसने अमेरिका में भारतीय छात्रों के बीच डर का माहौल पैदा कर दिया है. डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन ने घोषणा की थी कि वह उन अंतरराष्ट्रीय छात्रों और स्कॉलर्स के वीजा रद्द कर देगा जिन्हें हमास या 2023 के अक्टूबर में इज़राइल पर हुए हमले का समर्थक माना जाएगा. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इससे सीधे तौर पर कौन प्रभावित होगा.

और अब सूरी की गिरफ्तारी के साथ, यह खतरा और बढ़ गया है. उनकी रिहाई की याचिका में, उनके वकील ने तर्क दिया कि सूरी को उनकी पत्नी की फिलिस्तीनी विरासत के कारण दंडित किया जा रहा है, भले ही वह अमेरिकी नागरिक हैं. उन पर अपने पिता अहमद यूसुफ के माध्यम से हमास से संबंध रखने का भी आरोप है. हिंदुस्तान टाइम्स ने 2018 में रिपोर्ट किया था कि यूसुफ हमास नेतृत्व के “वरिष्ठ राजनीतिक सलाहकार” के रूप में काम कर चुके हैं.

सूरी, श्रीनिवासन और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के फिलिस्तीनी मूल के छात्र महमूद खलील के हालिया अनुभवों ने अमेरिका में वीजा की स्थिति को लेकर पहले से ही अनिश्चित माहौल में और डर भर दिया है. ये तीनों ट्रंप प्रशासन की फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों पर सख्ती के शिकार बने हैं, जहां उनकी इमिग्रेशन स्थिति को उनके खिलाफ हथियार बनाया गया है.

सूरी, श्रीनिवासन और खलील कानूनी अप्रवासियों के उदाहरण हैं—एक ने जामिया मिलिया इस्लामिया से पीएचडी की है, जो ‘दक्षिण एशिया में बहुसंख्यकवाद और अल्पसंख्यक अधिकार’ की पढ़ाई कर रहे थे; दूसरी, एक फुलब्राइट स्कॉलर जो आइवी लीग विश्वविद्यालय में स्टूडेंट वीजा पर पढ़ रही थी; और तीसरा, उसी विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन, जिसके पास ग्रीन कार्ड और स्थायी निवासी का दर्जा था—जिनकी कानूनी स्थिति ट्रंप सरकार द्वारा रद्द कर दी गई.

और अब, अमेरिका के कुछ सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ने वाले भारतीय छात्र भारी दबाव में हैं. कई अपने सोशल मीडिया पोस्ट हटा रहे हैं और गाज़ा के समर्थन में किए गए ‘लाइक’ को अनलाइक कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि उन्हें यहूदी-विरोधी (एंटी-ज़ायनिस्ट) के रूप में देखा जा सकता है. कई और छात्र चिंतित माता-पिता के कॉल्स का सामना कर रहे हैं, जो उनके राजनीतिक विचारों को लेकर परेशान हैं.

चिंतित विश्वविद्यालय प्रोफेसरों ने अपने ग्रेजुएशन छात्रों को सलाह दी है कि वे यात्रा न करें, क्योंकि उनका वीज़ा रद्द हो सकता है और उन्हें हिरासत में लिया जा सकता है. आइवी लीग विश्वविद्यालयों ने पूरे छात्र समुदाय को ईमेल भेजकर सतर्क रहने और अपने आपातकालीन संपर्कों को अपडेट करने की सलाह दी है, जिसमें कम से कम एक व्यक्ति अमेरिका में रहना चाहिए. वॉट्सऐप ग्रुप चैट, जो पहले मिलने-जुलने और आयोजनों की योजना बनाने के लिए इस्तेमाल होते थे, अब पूरी तरह से खामोश हैं. वे केवल तब सक्रिय होते हैं जब पुलिस या ICE (इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट) की उपस्थिति को लेकर दूसरों को सतर्क करने की जरूरत होती है.

“यह बस मुझे बेचैन कर देता है. कहने के लिए और कुछ नहीं है,” एक आइवी लीग पीएचडी छात्र ने कहा. उन्होंने यह भी कहा कि कोई संस्थागत सहयोग नहीं है जो वीज़ा को मनमाने तरीके से रद्द होने से बचा सके—यहां तक कि विदेश मंत्रालय (MEA) भी इस स्थिति में मदद नहीं कर सकता.

कुछ छात्र इस ओर इशारा कर रहे हैं कि अमेरिकी सरकार ने अब इमिग्रेशन की स्थिति को एक हथियार के रूप में और मजबूत कर दिया है. कई छात्र अभी भी यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि यह स्थिति कितनी गंभीर हो सकती है.

“मुझे लगता है कि एक बिंदु पर आपको अमेरिकी सरकार से सहमत होना होगा कि वीज़ा एक विशेषाधिकार (प्रिविलेज) है, न कि अधिकार (राइट), और वे इस अंतर का उपयोग अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कर रहे हैं,” नॉर्थ अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ इंडियन स्टूडेंट्स (NAAIS) के संस्थापक सुधांशु कौशिक ने दिप्रिंट से कहा. “हालांकि प्रशासन का तर्क होगा कि कई छात्र इस वीज़ा से लाभान्वित होते हैं, मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि वह अमेरिका में पढ़ने वाले इन स्टूडेंट वीज़ा धारकों के योगदान को देखे. आखिर, आप ऐसी चीज़ को हथियार क्यों बना रहे हैं जो आपकी स्थानीय से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करती है?”

कोलंबिया विश्वविद्यालय में फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों के खिलाफ प्रतिक्रिया विशेष रूप से कठोर रही है. कई प्रदर्शनकारियों की डिग्रियां रद्द कर दी गईं और कुछ छात्रों को कई वर्षों के लिए निष्कासित या निलंबित कर दिया गया. हाल ही में, ट्रंप प्रशासन ने कोलंबिया विश्वविद्यालय के अनुदान (ग्रांट्स) और अनुसंधान परियोजनाओं (रिसर्च प्रोजेक्ट्स) के लिए $400 मिलियन की फंडिंग में कटौती कर दी और अन्य विश्वविद्यालयों को भी “अवैध विरोध प्रदर्शनों” के लिए फंडिंग रोकने की धमकी दी. 19 मार्च को, पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय की भी $175 मिलियन की फंडिंग में कटौती कर दी गई.

कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ रहे एक भारतीय छात्र ने कहा, “हमारे पास कोई विकल्प नहीं है सिवाय इसके कि देखें और इंतजार करें कि आगे क्या होता है.”

सुरक्षा कवच चला गया

अमेरिका में भारतीय यूनिवर्सिटी के छात्रों के बीच डर का माहौल अनिश्चितता में जड़ें जमा चुका है. और वीज़ा इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं: ‘अमेरिकन ड्रीम’ भारतीय छात्रों को इस हद तक प्रेरित करता है कि वे ग्रेजुएशन होने के बाद वीज़ा के अवसरों को पाने के लिए लगातार प्रयास करते हैं—चाहे वह ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (OPT) के तहत अस्थायी रोजगार हो, जो छात्र वीज़ा (F-1) पर ग्रेजुएट होने के तुरंत बाद उपलब्ध होता है, या एच-1बी लॉटरी के जरिए स्थायी नौकरी पाने का मौका.

हाल ही में कुछ भारतीय छात्रों ने बताया कि उनके कार्यस्थलों पर “वर्दीधारी अधिकारी” पहचान पत्र और कार्य प्राधिकरण दस्तावेज़ों की जांच करने लगे हैं. बिना किसी स्पष्ट कारण के वीज़ा रद्द होने का डर पहले से ही मौजूद असुरक्षा को और बढ़ा रहा है.

कई छात्रों ने दिप्रिंट से बात करते हुए कोरोना महामारी के दौरान मचे हड़कंप और अफरा-तफरी को याद किया, जब यूनिवर्सिटी बंद होने लगे थे और हजारों छात्रों को अमेरिका छोड़ना पड़ा था. लेकिन उस समय, उन्हें सरकार और यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय छात्र कार्यालयों से मार्गदर्शन और सहयोग मिला था.

आज ऐसी कोई सुरक्षा व्यवस्था मौजूद नहीं है. और इस बीच, भारतीय छात्रों को दिए जाने वाले एफ-1 स्टूडेंट वीज़ा में भी गिरावट देखी गई है: अमेरिकी विदेश विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, जनवरी से सितंबर 2024 के बीच 64,008 भारतीय छात्रों को वीज़ा दिया गया, जबकि 2023 की इसी अवधि में यह संख्या 1,03,495 थी.

“मुझे लगता है कि यह अमेरिकी राजनीति का प्रतिबिंब है—इतना कुछ हो रहा है कि उसे समझ पाना मुश्किल हो गया है. और यह भारतीय छात्रों के लिए अमेरिका में अवसर तलाशने का दुर्भाग्यपूर्ण समय है. संख्या पहले ही हमारे खिलाफ है, हमें नहीं पता कि अब और किन कारकों को ध्यान में रखना होगा,” कोलंबिया विश्वविद्यालय के एक छात्र ने कहा. वह इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि भारतीय छात्रों की संख्या अधिक होने के कारण, सीमित वीज़ा उपलब्धता उनके लिए और मुश्किल बन रही है.

एक अन्य छात्र ने कहा कि विश्वविद्यालय परिसर एक सुरक्षित और संलग्न जगह होती है—एक “सूक्ष्म जगत” (माइक्रोकोस्म), जहां छात्र न केवल पढ़ाई करते हैं, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों के संपर्क में आकर खुद को विकसित करते हैं. “आखिर यही तो विदेश में पढ़ाई करने का कारण होता है, है ना? दुनिया से बातचीत करने और खुद को विकसित करने के लिए?”

अगर एक यूनिवर्सिटी प्रदर्शन में भाग लेना—जिससे श्रीनिवासन ने इनकार किया है—वीज़ा रद्द करने का कारण बन सकता है, तो यह केवल भारतीय छात्रों को चुप रहने और अंतरराष्ट्रीय शिक्षा के असली अनुभव से दूर रहने के लिए मजबूर करेगा, छात्र ने कहा. उन्हें पहले ही अपने माता-पिता से फोन आया है, जिन्होंने उन्हें “किसी भी परेशानी से दूर रहने और सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देने” की सलाह दी है.

NAAIS के संस्थापक सुधांशु कौशिक ने कहा, “मुझे जो सबसे ज़्यादा महसूस हो रहा है, वह यह कि यह पहले से ही तनाव में जी रहे अंतरराष्ट्रीय छात्रों के जीवन को और कठिन बना रहा है.”

कोर्स में सुधार

कुछ ही हफ्ते पहले तक, भारतीय छात्र ग्रजुएट होने के बाद वीज़ा अवसरों को लेकर चिंतित थे, खासकर H-1B वीज़ा पर बढ़ते विरोध के बीच. जनवरी में ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद से, भारतीय छात्रों का कहना है कि अमेरिका में प्रवासी-विरोधी भावनाएं तेजी से बढ़ी हैं—खासतौर पर क्योंकि भारतीयों को अक्सर “अमेरिकियों से ऊंची तनख्वाह वाली नौकरियां छीनने वाले प्रवासी” के रूप में देखा जाता है.

वीज़ा प्रक्रिया पहले से ही जटिल और कठिन है, और आव्रजन नीतियों में तेजी से हो रहे बदलाव इसे और भी उलझा रहे हैं.

फिर भी, भारतीय छात्र एहतियात बरत रहे हैं ताकि वे कैनरी मिशन जैसी सूची में शामिल होने से बच सकें. यह मिशन “उन व्यक्तियों और समूहों का दस्तावेजीकरण करता है, जो उत्तरी अमेरिकी कॉलेज परिसरों में अमेरिका, इज़राइल और यहूदियों के खिलाफ नफरत फैलाते हैं.”

एक भारतीय छात्र ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर अपने ‘लाइक्स’ और ‘बुकमार्क्स’ को खंगालकर यह सुनिश्चित किया कि कहीं उन्होंने कोई ऐसा पोस्ट लाइक तो नहीं कर दिया, जिसे भड़काऊ समझा जा सकता हो। अन्य छात्र ऐसी सतर्कतापूर्ण निगरानी रखने वाली सूचियों पर नजर बनाए हुए हैं.

“यह डरावना है, और एक गहरी असहायता का अहसास होता है,” आइवी लीग विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहे एक छात्र ने कहा. “यह विद्वतापूर्ण अध्ययन के लिए बिल्कुल भी अनुकूल माहौल नहीं है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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