नई दिल्ली: भारत में मिडिल और सेकेंडरी स्कूल स्तर पर 80 प्रतिशत से अधिक स्कूली छात्रों के लिए इम्तिहान और उनके नतीजे चिंता का कारण बनते हैं- ये ख़ुलासा राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान तथा प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) की ओर से कराए गए, अपनी तरह के पहले मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में हुआ है. सर्वे में ये भी पता चला है कि इन स्तरों पर 45 प्रतिशत छात्रों के लिए उनकी बॉडी इमेज एक बड़ी चिंता बनी हुई है.
मंगलवार को जारी किए गए सर्वे के नतीजे कक्षा 6 से12 तक के 3,79,842 छात्रों के जवाबों पर आधारित हैं. कुल प्रतिभागियों में से 1,58,581 छात्र माध्यमिक स्कूल स्तर के थे, जबकि 2,21,261 छात्र सेकेंडरी लेवल के थे. सर्वे में निजी और सरकारी दोनों तरह के स्कूली छात्रों के जवाब शामिल किए गए.
सर्वे के उद्देश्य को समझाते हुए रिपोर्ट में कहा गया, ‘मेंटल-हेल्थ और सेहत पर मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, पर्यावरण संबंधी और जीवन स्थितियों जैसे कारकों के प्रभाव को बहुत अच्छे से दर्ज किया गया है. स्कूली छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण- एक सर्वेक्षण में इनमें से कुछ कारकों से जुड़ी छात्रों की अवधारणाओं को गहराई से समझने की कोशिश की गई’.
जहां 51 प्रतिशत छात्रों ने कहा कि वो अपने निजी जीवन से संतुष्ट थे, वहीं 73 प्रतिशत छात्र अपने स्कूली जीवन से ख़ुश थे. सर्वे में ये भी पता चला कि 51 प्रतिशत छात्रों ने कहा, कि उन्हें ऑनलाइन सामग्री को समझने में मुश्किल पेश आई थी.
सर्वे के नतीजों के अनुसार, मिडिल से सेकेंडरी लेवल में शिफ्ट होने के साथ छात्रों के निजी और स्कूली जीवन के सैटीस्फै में कमी देखी गई, क्योंकि इस बदलाव में पहचान के संकट, साथियों के दबाव, बोर्ड परीक्षाओं का डर, भविष्य को लेकर अनिश्चितता, कॉलेज दाख़िले, और करियर की चिंता जैसी चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं. सर्वे में शारीरिक छवि के मामले में भी इसी तरह का रुझान देखा गया, जिसमें ऊंची कक्षाओं में पहुंचने के साथ छात्र अपने शरीर को लेकर उतने आत्मविश्वासी नहीं थे.
रिपोर्ट में उन भावनात्मक बदलावों को भी दर्ज किया गया, जिनसे छात्र महामारी के दौरान गुज़रे थे. हालांकि सबसे अधिक संख्या- 43 प्रतिशत छात्रों को मूड स्विंग की दर्ज की गई, लेकिन सर्वे के नतीजों के अनुसार, सात प्रतिशत ने ख़ुद को हुए नुक़सान की भावनाओं के बारे में भी बात की.
सर्वे में छात्रों के मेंटल हेल्त को सुधारने के तरीक़े भी सुझाए गए.
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स्वयं की धारणा और दूसरे उन्हें कैसे देखते हैं
जुलाई 2020 में कोविड-19 की पहली लहर के दौरान, शिक्षा मंत्रालय ने स्कूली छात्रों के लिए मनोदर्पण के नाम से एक मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन शुरू की थी. उसका उद्देश्य उस कठिन समय से निपटने में छात्रों की सहायता करना था, जिसका वो महामारी के दौरान स्कूल बंदी की वजह से सामना कर रहे थे. सकारात्मक प्रतिक्रिया देखते हुए मंत्रालय ने एक सर्वे कराने का फैसला किया, ताकि छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के बारे में पता लगाया जा सके.
रिपोर्ट के मुताबिक़, सर्वे में जानने की कोशिश की गई कि ख़ुद अपने बारे छात्रों की क्या आवधारणाएं हैं, और उनकी नज़र में भावनाओं, पढ़ाई, रिश्तों, साथियों, भावनाओं को संभालने, चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना करने जैसी चीज़ों के संदर्भ में दूसरे लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं’.
उसमें आगे कहा गया कि ‘सर्वे में ख़ासकर कोविड-19 के दौरान अभूतपूर्व समय में छात्रों द्वारा अनुभव की गई भावनाओं, ऑनलाइन पढ़ाई जारी रखने की कोशिशों, और छात्रों द्वारा अनुभव की गई चुनौतियों को भी कवर किया गया’.
154 पन्नों के सर्वे में, जिसमें निष्कर्षों के हर पहलू का विस्तार से वर्णन किया गया है, बच्चों की मानसिक तंदुरुस्ती सुधारने के लिए सिफारिशें की गई हैं.
बच्चों का भावनात्मक कल्याण सुनिश्चित करने में अध्यापकों की भूमिका पर बल देने के अलावा, सर्वे में मानसिक स्वास्थ्य के आंकलन और पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य के अध्ययन को शामिल करने के बारे में भी बात की गई है.
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