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Monday, 27 January, 2025
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भारत के कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में मंदी का दौर चल रहा है, टीचर से लेकर स्टूडेंट सभी अलग हो रहे हैं

यह उथल-पुथल केवल यूपीएससी कोचिंग संस्थानों तक ही सीमित नहीं है. सैलरी नहीं मिलने और कटौती की वजह से सैकड़ों शिक्षकों के इस्तीफा देने के बाद FIITJEE ने अब 8 सेंटर बंद कर दिए हैं.

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नई दिल्ली: खतरे की घंटी तो पिछले साल ही बजनी शुरू हो गई थी. पहले, सैलरी मिलने में कुछ दिनों की देरी फिर इसमें कटौती शुरू हो गई और अब, तो नोएडा के 30-वर्षीय टीम लीडर को अभी भी अपनी नवंबर की सैलरी इंतज़ार है. वे संकटग्रस्त तकनीकी क्षेत्र में नहीं बल्कि करोल बाग और मुखर्जी नगर ‘‘एजुकेशन हब’’ माने जाने वाले फेमस यूपीएससी कोचिंग इंस्टीट्यूट में काम करते हैं.

अपने फोन पर सैलरी जमा होने की परिचित सूचना की जांच करते हुए एग्जीक्यूटिव ने कहा, “हमें सैलरी देर से मिल रही है. इसके अलावा, लोगों को 20 से 25 प्रतिशत तक की कटौती का भी सामना करना पड़ रहा है.” उन्हें अपनी अक्टूबर की सैलरी 7 दिसंबर को मिली, लेकिन उन्हें अभी भी नवंबर और दिसंबर के पैसों का इंतज़ार है.

दिल्ली के कोचिंग हब करोल बाग, मुखर्जी नगर और राजेंद्र नगर, संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की तैयारी कर रहे तीन सिविल एस्पिरेंट्स की मौत के प्रकरण से उबर नहीं पाए हैं, जो जुलाई 2024 में एक कोचिंग संस्थान की बेसमेंट लाइब्रेरी में डूब गए थे. अधिकारियों द्वारा की गई सख्ती, भीड़भाड़ वाली कक्षाओं, बुनियादी ढांचे की कमी, हाई फीस और यहां तक ​​कि ट्यूटर्स की क्वालिटी के बारे में चिंताएं माता-पिता और एस्पिरेंट्स को इन कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में एडमिशन लेने पर दोबारा सोचने को मजबूर कर रही हैं, जो कभी 3,000 करोड़ रुपये की कोचिंग इंडस्ट्री का मुख्य आधार थे.

दिप्रिंट और नोएडा स्थित कोचिंग सेंटर के कर्मचारी के बीच बातचीत का स्क्रीनशॉट | नूतन शर्मा/दिप्रिंट
दिप्रिंट और नोएडा स्थित कोचिंग सेंटर के कर्मचारी के बीच बातचीत का स्क्रीनशॉट | नूतन शर्मा/दिप्रिंट

यह उथल-पुथल यूपीएससी कोचिंग संस्थानों तक ही सीमित नहीं है. इंजीनियरिंग एस्पिरेंट्स के लिए एक टॉप कोचिंग सेंटर, FIITJEE ने सैलरी नहीं मिलने और कटौती के कारण अपने सैकड़ों टीचर्स के सामूहिक इस्तीफे के बाद अब उत्तर भारत में कम से कम आठ सेंटर्स को बंद कर दिया है. उत्तर प्रदेश के मेरठ, गाजियाबाद, लखनऊ और वाराणसी जैसे शहरों में स्थित केंद्रों के साथ-साथ भोपाल (मध्य प्रदेश), पटना (बिहार) और लक्ष्मी नगर (दिल्ली) में एक-एक सेटंर बंद हो गए हैं, जिससे स्टूडेंट्स और पैरेंट्स परेशान हैं.

पैरेंट्स ने स्थानीय पुलिस से संपर्क कर FIITJEE से रिफंड और जवाबदेही की मांग की है. हालांकि, पुलिस ने उन्हें आश्वासन दिया है कि उनकी शिकायतों का समाधान किया जाएगा, लेकिन स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है.

FIITJEE के गुड़गांव सेंटर में पढ़ाने वाले एक ट्यूटर ने कहा, “यह दिक्कत एक साल से चल रही है. पिछले साल हमें केवल 4-5 बार सैलरी मिली थी, वह भी सैलरी में कटौती के साथ. हम अभी कानूनी कार्रवाई करने पर विचार कर रहे हैं. कुछ टीचर्स अलग-अलग कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में चले गए हैं.”

टॉप यूपीएससी कोचिंग इंस्टीट्यूट्स ने स्वीकार किया कि उनके यहां एडमिशन में कमी देखी जा रही है.

दृष्टि आईएएस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विवेक तिवारी ने कहा, “इंडस्ट्री में मंदी का दौर चल रहा है. सेक्टर के भीतर होने वाली अनौपचारिक चर्चाओं से पता चलता है कि इस फाइनेंशियल इयर में लगभग सभी इंस्टीट्यूट्स में एडमिशन में 40 से 50 प्रतिशत की गिरावट आई है.”

भले ही इंस्टीट्यूट को घाटा हो रहा हो, लेकिन कर्मचारियों के साथ ठीक से बातचीत होनी चाहिए. फाउंडर्स ने इस पर हमसे कभी बात नहीं की और लोग पूछने से डरते हैं क्योंकि वह को भी नौकरी से निकाल सकते हैं.

— नोएडा स्थित कोचिंग सेंटर कर्मचारी

अगस्त 2024 में दिल्ली नगर निगम (MCD) द्वारा बेसमेंट में कक्षाएं चलाने के लिए इसके सेंटर को सील करने के बाद इंस्टीट्यूट को नोएडा में शिफ्ट कर दिया गया.

तिवारी ने कहा, “हमारी प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना रहा है कि कर्मचारियों को बिना किसी कटौती या देरी के पूरी सैलरी दी जाए.”

भारत भर में अपने सात सेंटर्स के साथ दृष्टि आईएएस बाढ़ का सामना कर सकता है, लेकिन बाकी इंस्टीट्यूट, जैसे कि नोएडा टीम लीडर जिस संस्थान के लिए काम करते हैं, ने लागत में कटौती के उपाय किए हैं. इनमें सैलरी कम करने और भर्ती को रोकने से लेकर प्रोत्साहन पैकेज बदलने तक शामिल हैं.

कोचिंग इंस्टीट्यूट ने दिप्रिंट को ईमेल के ज़रिए बताया, “यूपीएससी कोचिंग इंडस्ट्री, कुल मिलाकर, वर्ष 2024 में अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रही है. हाल ही में, व्यावसायिक संचालन में कमी के कारण सैलरी मिलने में कुछ हफ्तों की अस्थायी देरी हुई है, जिसके जल्द ही ठीक होने की उम्मीद है.”


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कोई बातचीत नहीं

कोचिंग इंस्टीट्यूट में आने के आठ साल में नोएडा के एग्जीक्यूटिव ने एक लाख रुपये प्रति माह से थोड़ी ज्यादा सैलरी के साथ टीम लीडर बनने के लिए रैंक बढ़ाई है. लगातार सैलरी बढ़ना, एप्रिसिएशन और प्रमोशन इसमें शामिल थे. अब, वे अपनी अगली सैलरी तक अपने दोस्तों की मदद पर निर्भर हैं. हर महीने बिना सैलरी के नई मुश्किलें सामने आती हैं.

अपने दोस्तों से पैसों के लिए मदद मांगने वाले टेक्स्ट मैसेज को स्क्रॉल करते हुए उन्होंने कहा, “मकान मालिक को इस बात की परवाह नहीं है कि मुझे सैलरी मिली या नहीं. महीने का खर्च तो वही रहेगा.” दरअसल, उनके दोस्त भी इसी तरह की स्थिति में फंसे हैं.

उसी इंस्टीट्यूट के एक दूसरे कर्मचारी ने कहा, “हम लगभग एक साल से इन सभी चीज़ों से निपट रहे हैं और इसके बारे में पहले कोई बातचीत नहीं की गई है. मैनेजमेंट ने सैलरी में कटौती और देरी के बाद ही हमें एक ईमेल भेजा. हम शोषण महसूस करते हैं और यह बहुत बुरा है.”

कोचिंग सेंटर की प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
कोचिंग सेंटर की प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

शुरुआत में सैलरी में एक हफ्ते की देरी होती थी. हफ्ता जल्द ही 15 दिनों में बदल गया और अब महीनों तक बिना सैलरी के काम करना पड़ रहा है.

इंस्टीट्यूट द्वारा कर्मचारियों के एक चुनिंदा समूह को भेजे गए ईमेल में लिखा है, “यूपीएससी कोचिंग इंडस्ट्री और इस क्षेत्र के बाकी एजुकेशन इंस्टीट्यूट 2024 में कई अचानक सामने आई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप हमारी बात समझें, क्योंकि हम एजुकेशनल इंडस्ट्री के ठीक होने तक कोस्ट कटिंग की पहल और सैलरी और प्रोफेशनल फीस में बदलाव सहित अस्थायी उपायों को लागू कर रहे हैं.”

एक ओर तो ‘ऑफलाइन’ क्लास लेने वाले बच्चों के एडमिशन में कमी आई है कर्मचारियों ने बताया कि बाकी कार्यक्षेत्र फल-फूल रहे हैं.

नोएडा टीम के प्रमुख ने कहा, “संस्थान के लिए टेस्ट सीरीज़, मेंटरिंग और क्रैश कोर्स, आंसर राइटिंग प्रोग्राम और इंटरव्यू गाइडेंस प्रोग्राम हैं जो पैसे कमाते हैं. ये अच्छी तरह से काम कर रहे हैं.”

वह और उनके सहकर्मी अपनी कंपनी से जानकारी नहीं मिलने के बारे में चिंतित हैं.

उन्होंने कहा, “भले ही इंस्टीट्यूट घाटे में चल रहा हो, लेकिन कर्मचारियों के साथ ठीक से बातचीत होनी चाहिए. फाउंडर ने इन सभी चीज़ों के बारे में हमसे कभी बात नहीं की और लोग पूछने से डरते हैं क्योंकि वह किसी को भी नौकरी से निकाल सकते हैं.”

कोचिंग इंडस्ट्री असंगठित है, जिसमें सभी की सैलरी एक जैसी नहीं रहती है और रातों-रात ‘इंस्टीट्यूट’ खुल रहे हैं. पिछले कुछ साल से केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण भ्रामक विज्ञापन और झूठे दावे करने के लिए कई इंस्टीट्यूट्स को नोटिस जारी कर चुका है.

बेसमेंट लाइब्रेरी में एस्पिरेंट्स की मौत के बाद, दिल्ली के अधिकारी कक्षाओं और यहां तक कि लाइब्रेरी को चलाने की अनुमति देने के बारे में और अधिक सख्त हो गए हैं, लेकिन कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के लिए फीस, पढ़ाई के घंटे, टीचर्स की नियुक्ति और उनकी सैलरी को औपचारिक रूप देने के लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं बनाए गए हैं.

यूपीएससी की तैयारी भावनात्मक और मानसिक रूप से थका देने वाली होती है और दिल्ली जैसी जगहों पर लोग आपकी या आपकी कैसी भी परिस्थिति हो उसकी परवाह नहीं करते. मुझे याद है कि जब मैं अस्पताल में थी, मेरे मकान मालिक ने मुझे किराए के लिए मैसेज किया था और मुझसे कभी मेरी सेहत के बारे में नहीं पूछा

— ज्वाला देशपांडे, IAS एस्पिरेंट

ज़्यादातर मामलों में कोचिंग सेंटर और इंस्टीट्यूट एक ही व्यक्ति द्वारा चलाए जाते हैं, जो टीचिंग और नॉन-टीचिंग कर्मचारियों की फीस और सैलरी तय करता है. फिजिक्स वाला और अड्डा 24 जैसे कुछ इंस्टीट्यूट्स ने ज़्यादा कॉर्पोरेट फॉर्मेट अपनाया है, जिसमें बोर्ड द्वारा फैसले लिए जाते हैं — लेकिन यह ठीक नहीं है.

एक प्रमुख कोचिंग इंस्टीट्यूट के बोर्ड सदस्य ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “ऐसी व्यवस्थाओं में जहां सभी फैसले एक ही व्यक्ति के अधीन होते हैं, ऐसे मुद्दे उठना लाज़िमी है.”


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कुछ भी कहना ज्ल्दबाज़ी

26-वर्षीय ज्वाला देशपांडे 2023 में आईएएस अधिकारी बनने के सपने के साथ पुणे से दिल्ली आई थीं, लेकिन तीन एस्पिरेंट्स की मौत के बाद, उन्होंने घर वापस जाने का फैसला किया.

अब, वे पुणे में एक लाइब्रेरी में हैं और अपने घर के पास एक कोचिंग क्लास में जाती हैं.

देशपांडे ने कहा, “उस घटना के बाद मेरे माता-पिता मेरे बारे में बहुत चिंतित हो गए. यह सिर्फ इंस्टीट्यूट्स की बात नहीं है, बल्कि रहने की स्थिति भी है. करोल बाग या मुखर्जी नगर में यह सब नहीं हैं.”

हर साल, माता-पिता अपने बच्चों के आईएएस के सपने को पूरा करने के लिए कर्ज़ लेते हैं और पैतृक संपत्ति और सोना बेचते हैं. दिल्ली जाने से परिवारों को लाखों रुपये का नुकसान होता है और अधिकांश को सालों तक इस दलदल में फंसना पड़ता है.

यूपीएससी की तैयारी करने वाले एस्पिरेंट्स की बढ़ती संख्या, खासकर छोटे शहरों से, ऑनलाइन कोर्स चुन रहे हैं और लोकल लाइब्रेरी और पढ़ने वाले ग्रुप्स  से जुड़ रहे हैं

देशपांडे जो अब हर महीने 18,000 रुपये तक की बचत कर रही हैं, ने कहा, “यूपीएससी की तैयारी भावनात्मक और मानसिक रूप से थका देने वाली होती है और दिल्ली जैसी जगहों पर लोग आपकी या आपकी कैसी भी परिस्थिति हो उसकी परवाह नहीं करते. मुझे याद है कि जब मैं अस्पताल में थी, मेरे मकान मालिक ने मुझे किराए के लिए मैसेज किया था और मुझसे कभी मेरी सेहत के बारे में नहीं पूछा.”

अनिश्चितता के इस माहौल में दिल्ली में अपनी ब्रांच खोलने और अपनी मौजूदगी दर्ज करने की चाहत रखने वाले कोचिंग इंस्टीट्यूट्स दोबारा सोच रहे हैं. चंडीगढ़ में पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के स्टूडेंट्स को शिक्षा देने वाला एक सुस्थापित इंस्टीट्यूट राज मल्होत्रा ​​का आईएएस ने मार्च 2024 में करोल बाग में एक ब्रांच शुरू की, लेकिन आठ महीने के भीतर ही इसने अपना दिल्ली आउटपोस्ट बंद कर दिया और चंडीगढ़ में अपना कारोबार समेट लिया.

संस्थान के मालिक राज मल्होत्रा, जिसमें लगभग 1,000 स्टूडेंट्स हैं, ने कहा, “तीन यूपीएससी एस्पिरेंट्स की मौत ने मेरे और मेरे अलावा बाकी कईं इंस्टीट्यूट्स पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है. करोल बाग में हमारे सेंटर पर विरोध प्रदर्शनों के प्रभाव और चंडीगढ़ में हमारी मजबूत उपस्थिति और प्रदर्शन को देखते हुए, हमने यहां फोकस करने का फैसला किया है.”

पिछले पांच साल में यूपीएससी की तैयारी की लागत लगातार बढ़ी है. 2019 में फाउंडेशन बैचों की फीस लगभग 1.2 लाख रुपये प्रति वर्ष थी. आज, किराया, खाना और स्टेशनरी के खर्चों को छोड़कर, यह कम से कम दो लाख रुपये सालाना है.

मल्होत्रा ​​ने कहा, “बढ़ते किराए, मुद्रास्फीति और टीचर्स की महंगी सैलरी की वजह से फीस लगभग 40 प्रतिशत तक बढ़ी है. आखिरकार, यह स्टूडेंट्स ही हैं जो इन बढ़ी हुई लागतों को वहन करते हैं.”

ऑनलाइन इन सभी चीज़ों की मौजूदगी होने की वजह से देशपांडे की तरह ज्यादातर लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या यह निवेश के लायक है भी या नहीं.

कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ने वाले एस्पिरेंट्स की प्रतीकात्मक तस्वीर | स्पेशल अरेंजमेंट
कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ने वाले एस्पिरेंट्स की प्रतीकात्मक तस्वीर | स्पेशल अरेंजमेंट

यूपीएससी की तैयारी करने वाले एस्पिरेंट्स की बढ़ती संख्या, खास तौर पर छोटे शहरों से आने वाले बच्चे ऑनलाइन कोर्स चुन रहे हैं और लोकल लाइब्रेरी और पढ़ने वाले छोटे ग्रुप्स से जुड़ रहे हैं.

दिल्ली में एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में काम करने वाले एक टीचर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “स्टूडेंट्स टेस्ट सीरीज और मेंटरशिप के लिए कोचिंग इंस्टीट्यूट में जाते हैं, लेकिन फाउंडेशन कोर्स के लिए नहीं, जिससे सबसे ज़्यादा पैसे मिलते हैं.”

दिल्ली स्थित कोचिंग इंस्टीट्यूट के मालिक ने कहा, “ऑनलाइन संसाधनों का ऑप्शन चुनने वाले स्टूडेंट्स ने ऑफलाइन कोचिंग इंस्टीट्यूट्स पर प्रभाव डाला है, लेकिन अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. हमें कम से कम एक साल इंतज़ार करना होगा. दिल्ली जैसी जगहों पर बुनियादी ढांचा और तेज़ ज़िंदगी एक कारण है जिसकी वजह से बच्चे दिल्ली नहीं आने के बारे में सोच रहे हैं.”


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कोर्स करेक्शन

इस उथल-पुथल ने उन एस्पिरेंट्स की ज़िंदगी उलट दी है, जिन्होंने अपने IAS सपने को पूरा करने के लिए कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में अंशकालिक नौकरी की है.

करोल बाग में एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में बतौर फ्रीलांस कंटेंट राइटर काम करने वाले कमलेश कुमार (29) को दो महीने से सैलरी नहीं मिली है. इस काम से उन्हें हर महीने लगभग 55,000 रुपये मिलते हैं.

कुमार जिन्होंने चार कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में फ्रीलांस और कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर नौकरी की है, ने कहा, “मैं यहां जितने पैसे कमाता हूं, उतना मैं कहीं और नहीं कमा सकता, लेकिन इसे वक्त पर मिलना एक और मुद्दा है. यह उद्योग आईटी जैसे अन्य क्षेत्रों की तरह नियमित नहीं है.”

उन्होंने कहा, “एक इंस्टीट्यूट में मुझे दो प्रोजेक्टस के लिए पैसे नहीं मिले.”

कुमार जैसे IAS एस्पिरेंट्स जो UPSC कोचिंग इंडस्ट्री के हर पहलू को समझते हैं, काम का मूल्यांकन करते हैं, कंटेंट लिखते और ट्रांसलेट करते हैं, लाइब्रेरी मैनेज करते हैं और नए एस्पिरेंट्स का मार्गदर्शन करते हैं, लेकिन काम खत्म हो रहा है और पैसे टाइम पर नहीं मिल रहे हैं.

बतौर फ्रीलांसर काम करने वाले एक युवक ने कहा, “मुझे हर दो महीने के बाद पैसे मिलते हैं, जो एक दिक्कत है क्योंकि मुझे हर महीने किराया देना पड़ता है. मुझे NEXT IAS में शामिल हुए छह महीने हो गए हैं, लेकिन वह मुझे हर महीने पैसे नहीं देते हैं.”

हालांकि, कोचिंग का दावा है कि यह फ्रीलांसरों के लिए उसकी नीति के अनुसार है.

NEXT IAS के सीईओ और संस्थापक बी सिंह ने कहा, “हमने किसी की सैलरी नहीं काटी या देरी नहीं की है. कुछ फ्रीलांसरों को हर महीने पैसे दिए जाते हैं. बाकी, जो परीक्षणों का मूल्यांकन करते हैं और कंटेंट लिखते हैं, उन्हें दो महीने के बाद पैसे दिए जाते हैं.”

सिंह के अनुसार, इंडस्ट्री में मंदी में नहीं है.

सिंह ने कहा, “कोविड के बाद, यूपीएससी इंडस्ट्री में एडमिशन की संख्या बढ़ी है, लेकिन अब स्थिति ठीक हो रही है. एडमिशन महामारी से पहले के स्तर पर लौट रहे हैं.” उन्होंने जल्दी से यह भी कहा कि नेक्स्ट आईएएस में एडमिशन में कोई कमी नहीं देखी गई है.

कोविड के बाद की तेज़ी को पूरा करने के लिए, कई कोचिंग इंस्टीट्यूट्स ने अधिक सेंटर्स, कक्षाओं और फैकल्टी में निवेश किया है.

दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट के मालिक ने कहा, “उन्होंने अधिक सैलरी वाले लोगों को काम पर रखा. कंटेंट टीमें बनाईं. अब, वह इसे मेंटेन नहीं रख पा रहे हैं.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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