नई दिल्ली: आईआईटी, आईआईएम, यूपीएन, स्टैनफोर्ड और दुनिया के अन्य टॉप यूनिवर्सिटीज से डिग्री पा चुके भारतीयों की एक नई पीढ़ी ‘कलेक्टिव फिलांथ्रोपी’ की मदद से भारतीय शिक्षा प्रणाली को नया रूप देने का प्रयास कर रही है.
दरअसल, भारत में शिक्षा देने के तरीके को बदलने के मकसद से बड़े-बड़े संस्थानों से डिग्री हासिल कर चुके ये साधन संपन्न लोग नए विश्वविद्यालय खोलने के विचार के साथ आगे आ रहे हैं. इस तरह के संस्थानों से कई अमीर भारतीयों के नाम जुड़े हैं, जो फिलहाल नामी-गिरामी कंपनियों में बड़े ओहदों पर काम कर रहे है. Zomato, Innov8, MakeMyTrip, Thermax, Biocon और Info Edge जैसी कंपनियों के सह-संस्थापकों या प्रबंधकों का नाम इस लिस्ट में लिया जा सकता है.
पिछले साल स्थापित मोहाली की प्लाक्षा यूनिवर्सिटी, भारत में ‘कलेक्टिव फिलांथ्रोपी’ की मदद से आगे आए संस्थानों की सूची में सबसे नई है. इससे पहले 2018 में आंध्र प्रदेश के श्रीसिटी में क्रीया और 2014 में हरियाणा के सोनीपत में अशोका यूनिवर्सिटी स्थापित की गई थी. हैदराबाद के इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस ने सबसे पहले 2001 में छात्रों के लिए अपने दरवाजे खोले थे.
‘कलेक्टिव फिलांथ्रोपी’ के विचार के साथ 2004 में स्थापित अशोका यूनिवर्सिटी, फिलहाल इस क्षेत्र में बाकी सबसे आगे निकल निकल चुकी है. शिक्षाविद प्रमथ राज सिन्हा ने दिप्रिंट को बताया, ‘आईएसबी के बाद, लोगों के अनुसरण के लिए कोई महत्वपूर्ण मॉडल नहीं थे. अतीत में, बिरला, टाटा और थापर ने ऐसा किया था लेकिन वे सभी व्यावसायिक घराने से जुड़े थे. आईएसबी इस मायने में एक अनूठा मॉडल था. यह ‘कलेक्टिव फिलांथ्रोपी’ के साथ आया था. फिर अशोका आया, जिसने एक मिसाल कायम की और इसके अच्छा प्रदर्शन करने के बाद, हमने और लोगों को भी आगे आते देख रहे हैं.
सिन्हा ने IIT कानपुर और पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी से डिग्री ली हुई है. वह ISB के संस्थापक डीन और अशोका विश्वविद्यालय के सह-संस्थापक रह चुके हैं. इसी तरह से प्लाक्षा यूनिवर्सिटी के संस्थापकों में से एक विनीत गुप्ता भी IIT दिल्ली से स्नातक हैं.
गुप्ता के अलावा, प्लाक्षा और अशोका के अन्य सामान्य संस्थापक में इंफो एज इंडिया लिमिटेड के सीईओ और एमडी हितेश ओबेरॉय भी शामिल हैं. वह आईआईएम बैंगलोर और आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्र रह चुके हैं. अन्य सामान्य संस्थापकों में क्लिक्स कैपिटल के अध्यक्ष प्रमोद भसीन और इंफो एज इंडिया के पूर्व सीएफओ अंबरीश रघुवंशी शामिल हैं. भसीन श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स (एसआरसीसी) और इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के पूर्व छात्र रह चुके हैं जबकि रघुवंशी जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (एक्सएलआरआई) जमशेदपुर और आईसीएआई से ग्रेजुएट हैं.
हालांकि क्रीया विशेष रूप से अपने संस्थापकों को सूचीबद्ध नहीं करती है. लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, लॉ फर्म के प्रबंध भागीदार सिरिल अमरचंद मंगलदास, सिरिल श्रॉफ और बायोकॉन की कार्यकारी अध्यक्ष किरण मजूमदार शॉ के नाम विश्वविद्यालय से जुड़े रहे हैं.
इसकी वेबसाइट पर लिखा है, ‘क्रीया एक ‘कलेक्टिव फिलांथ्रोपी’ है. इंटरवॉवन लर्निंग के अपने अनूठे शिक्षण के माध्यम से, इसे भारत में गुणवत्ता वाली, रिसर्च-ओरिएंटेड और इंडस्ट्री-रिलेवेंट उच्च शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है.’
साइट आगे बताती है, ‘इंटरवॉवन लर्निंग हमें विचारों पर काम करने, कला को विज्ञान के साथ जोड़ने, अतीत से मिली सीख को भविष्य के लिए हमारी तैयारियों से जोड़ती है.’
क्रीया के डोनर की सूची में अरबपति और थर्मैक्स की पूर्व चेयरपर्सन अनु आगा का भी नाम है, जो अशोका विश्वविद्यालय के संस्थापकों और प्रायोजकों में से एक हैं.
को-वर्किंग स्पेस इनोव8 के संस्थापक और डॉ एमजीआर रिसर्च एंड एजुकेशनल इंस्टीट्यूट के पूर्व छात्र रितेश मलिक जैसे युवा उद्यमी और आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्र, ज़ोमैटो के सह-संस्थापक पंकज चड्ढा, प्लाक्षा के संस्थापकों में शुमार हैं. जबकि फ्लिपकार्ट के सह- संस्थापक बिन्नी बंसल और MakeMyTrip के सह-संस्थापक दीप कालरा का नाम अशोका यूनिवर्सिटी के संस्थापकों से जुड़ा है. बंसल IIT दिल्ली के पूर्व छात्र हैं और कालरा ने IIM अहमदाबाद से डिग्री ली हुई है.
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‘चाहते हैं कि फिलांथ्रोपी आगे बढ़े’
देश के पहले लिबरल आर्ट यूनिवर्सिटी में से एक के रूप में पहचान बनाने वाले ‘अशोका’ ने इंग्लिश और क्रिएटिव राइटिंग, अर्थशास्त्र और इतिहास, राजनीति दर्शनशास्त्र और अर्थशास्त्र जैसे अन्य पाठ्यक्रमों की पेशकश करके भारत में मानविकी के अध्ययन को एक अलग दिशा दी है.
प्रमथ सिन्हा ने कहा, ‘इन संस्थानों का गवर्नेंस स्ट्रक्चर ऐसा है कि यहां कोई एक व्यक्ति अपने विचार नहीं थोप सकता है. यहां सभी लोगों को एक्सपेरिमेंट करने और कुछ अलग करने की काफी आजादी मिलती है. साथ ही ये संस्थान यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वे पहले दिन से ही सही विचारों के साथ आगे जा रहे हैं.’
KREA में छात्र ‘अपनी खुद की डिग्री डिज़ाइन कर सकते हैं’. वह अपने डिग्री कोर्स के लिए खुद से उन विषयों को चुन सकते हैं, जिन्हें वह पढ़ना चाहते हैं. यहां आपको ह्यूमैनिटीज के साथ सोशल साइंस, साइंस और लिटरेचर एंड आर्ट पढ़ने का मौका मिल जाता है.
प्लाक्षा के पाठ्यक्रम में तकनीकी विषयों और ह्यूमैनिटीज को एक साथ मिलाया गया है. यूनिवर्सिटी की तरफ से कुछ कार्यक्रम स्नातक स्तर पर बी.टेक कोर्स करने की अनुमति देते हैं, जिनमें डेटा साइंस एंड रोबोटिक्स और साइबर-फिजिकल सिस्टम शामिल हैं.
विश्वविद्यालय ने अपना पहला स्थापना दिवस मनाया 17 दिसंबर को मनाया था.
नए विश्वविद्यालयों को कलेक्टिव फिलांथ्रोपी से सशक्त बनाने पर बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के अध्यक्ष (एशिया पैसिफिक) नीरज अग्रवाल ने कहा कि व्यक्तियों के लिए एक साथ आना और इस तरह की पहल में शामिल होना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ‘राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार पर नहीं छोड़ी जा सकती है’ अग्रवाल प्लाक्षा के संस्थापक और ट्रस्टी हैं.
उन्होंने कहा, ‘हम सभी के पास व्यक्तिगत विचार हैं और उन्हें एक साथ लाना ही इसे खास बनाता है.’
अग्रवाल ने आगे कहा, ‘जब हम उच्च शिक्षा में अग्रणी बनना चाहते हैं, तो हम रिसर्च में भी सबसे आगे बना रहना चाहते हैं. हम स्वयं फिलांथ्रोपी के एक मॉडल पर अग्रणी बनना चाहते हैं, जिसका अन्य लोग भी अनुकरण करेंगे. कोई भी एक व्यक्ति या कॉर्पोरेट दुनिया को पूरी तरह से नहीं जानता है और जब हम उन सभी को एक साथ लाते हैं, तभी हम एक ताकत बनते हैं.’
प्लाक्षा के संस्थापक चांसलर एस. शंकर शास्त्री आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र रह चुके हैं और फिलहाल कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले से जुड़े हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘इंडिविडयुल फिलांथ्रोपी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आकर्षक है. यह लोगों के लिए प्रोत्साहन भी बनती है और इसे सेलिब्रेट करने की जरूरत है.
प्लाक्षा के संस्थापक कुलपति, रुद्र प्रताप सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय और इसके संस्थापक चाहते हैं कि ‘कलेक्टिव फिलोंथ्रोपी’ का विचार आगे बढ़े.
जब दिप्रिंट ने यह सवाल किया कि उन्हें शिक्षा में निवेश करने के लिए क्या प्रेरित करता है? तो कुछ संस्थापकों ने जवाब देते हुए कहा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए बदलाव लाने और उसके मल्टीप्लायर इफेक्ट, उन्हें इस ओर खींचते हैं.
सिन्हा ने कहा, ‘लोग किसी ऐसी चीज में योगदान देना चाहते हैं जो उन्हें गौरवान्वित कर सके और ऐसा करके वे देश और समाज को फायदा पहुंचा सकें. मुझे लगता है कि भविष्य में इस तरह की और भी पहल होंगी. इनमें से काफी लोग भारत में शिक्षा प्रणाली से लाभान्वित हुए हैं और वह इसे समाज को वापस देना चाहते हैं.’
इसी तर्ज पर अग्रवाल ने कहा कि शिक्षा किसी भी देश में ‘सबसे बड़ा मल्टीप्लायर’ है. ‘जो लोग यहां से (शिक्षा) निकले हुए हैं वे सबसे बड़ी समस्याओं में से एक को हल कर सकते हैं. यही कारण है जो मुझे व्यक्तिगत रूप से शिक्षा में निवेश करने के लिए प्रेरित करता है.’
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(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | अनुवाद:ऋषभ राज)
डिस्क्लेमर: किरण मजूमदार-शॉ दिप्रिंट के विशिष्ट संस्थापक-निवेशकों में से एक हैं. निवेशकों के विवरण के लिए कृपया यहां क्लिक करें.
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