नई दिल्ली: भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव घटाने के लिए पांच बिंदुओं पर सहमति बनने के लगभग दो सप्ताह हो गए हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि पूर्वी लद्दाख में जमीनी स्तर पर सैन्य वापसी की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है.
दोनों देशों ने छठे दौर की सैन्य कमांडर-स्तरीय वार्ता के बाद मंगलवार शाम एक संयुक्त बयान जारी किया. इसमें उन्होंने बताया कि अग्रिम मोर्चों पर और सैनिकों न भेजने, एकतरफा तौर पर जमीन हालात में कोई बदलाव न करने, और ऐसा कोई कदम उठाने से परहेज करने पर सहमति बनी है जिससे स्थिति और जटिल हो सकती हो.
भारत-चीन के बीच गतिरोध अप्रैल-मई से चल रहा है, और इस माह के शुरू में उस समय एक और अहम मोड़ आ गया जब करीब 45 वर्षों में पहली बार वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी हुई. पिछले हफ्ते संसद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से जारी बयान इस गतिरोध पर सरकार का पहला औपचारिक उच्चस्तरीय बयान था. उन्होंने कहा कि सीमा पर गतिरोध और अस्थिरता की स्थिति में भारत-चीन संबंध आगे नहीं बढ़ सकते, लेकिन साथ ही उन्होंने चीन पर आरोप लगाया कि उसने पिछले प्रोटोकॉल तोड़कर अप्रैल में एलएसी पर और सैनिकों की तैनाती के अलावा बड़ी तादात में उपकरण और गोला-बारूद पहुंचाए.
राजनाथ ने असामान्य रूप से तीखे तेवर अपनाते हुए कहा कि आम तौर पर एलएसी का कोई सीमांकन नहीं हुआ है और चीन पारंपरिक या भौगोलिक सीमाओं को मान्यता नहीं देता. उनका बयान सिर्फ यह बताने के लिए था कि पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर स्थिति कितनी जटिल है. दिप्रिंट की कोशिश है कि कुछ मानचित्रों की मदद से पूरे मामले को आसानी से समझा जा सके.
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देपसांग मैदान
यद्यपि भारतीय क्षेत्र में चीनी घुसपैठ अप्रैल में शुरू हुई थी (ऊपर नक्शा देखें), पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने देपसांग मैदानों में कुछ प्रमुख बिंदुओं पर अतिक्रमण बहुत पहले ही शुरू कर दिया था.
पूर्वी लद्दाख के उत्तरी भाग में स्थित देपसांग मैदान रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण दौलत बेग ओल्डी (काराकोरम दर्रे के पास) के करीब है, जहां भारत की सबसे ऊंची हवाई पट्टी स्थित है. यह मैदानी क्षेत्र भारत के उत्तरी सब-सेक्टर (एसएसएन) में आता है और एक तरफ सियाचिन ग्लेशियर और दूसरी ओर चीन नियंत्रित अक्साई चिन से घिरा है.
महीनों से चीन भारतीय सेनाओं को वाई जंक्शन कहे जाने वाले स्ट्रैटिजिक बॉटलनेक से देपसांग के पेट्रोल प्वाइंट 10 से 13 तक गश्त करने से रोक रहा है.
रक्षा सूत्रों का कहना है कि चीन भारतीय सैनिकों को जमीन के एक बड़े हिस्से तक पहुंचने से रोक रहा है जो करीब 972 वर्ग किलोमीटर तक है.
यद्यपि भारत-चीन के बीच टकराव वाले प्रमुख इलाके दक्षिण की और हैं, जिसमें पैंगोंग त्सो के पास स्थित चोटियां व अन्य क्षेत्र शामिल हैं, सैटेलाइट चित्रों में देपसांग मैदानों में दोनों ओर से सैनिकों की अतिरिक्त तैनाती दिखाई देती है. चीनियों ने यहां अतिरिक्त टैंक और गोला-बारूद पहुंचाए हैं और उन्हें सामान्य तैनाती वाली जगहों से आगे बढ़ाया है, वहीं भारत ने भी इसके जवाब में अतिरिक्त जवानों, टैंकों और अन्य उपकरणों को क्षेत्र में तैनात किया है.
जैसा कि दिप्रिंट ने रिपोर्ट किया था, देपसांग के मैदानों में तनाव की पृष्ठभूमि 2013 में चीन के इस क्षेत्र में 18 किलोमीटर अंदर तक अतिक्रमण से जुड़ी है, इसके बाद 2017 में पूर्व में चीन और भूटान के साथ भारत के ट्राइजंक्शन पर स्थित डोकलाम में गतिरोध उत्पन्न हो गया था.
2013 की वार्ता, जिसमें भारत और चीन दोनों अपनी जगहों से पीछे हटने पर सहमत हुए थे, के बावजूद पीएलए के सैनिक उस जगह से कभी पूरी तरह पीछे नहीं हटे जिसे भारत एलएसी करार देता है.
भारत ने 2013 के बाद एसएसएन की निगरानी के लिए एक अलग ब्रिगेड बनाई है.
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गलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट
15 जून को भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच एक हिंसक झड़प ने गलवान घाटी को केंद्र में ला दिया. इस हिंसा, जिसमें कोई गोलीबारी नहीं हुई, में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए. इसमें 16 बिहार के कमांडिंग अफसर कर्नल संतोष बाबू भी शामिल थे.
सूत्रों ने कहा कि यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से अहम दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (डीएस-डीबीओ) सड़क पर चीन का वर्चस्व कायम कर सकता है. एक रक्षा सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘गलवान में झड़प इस क्षेत्र में हावी होने का चीन का प्रयास था.’
यही वजह है कि सीमा सड़क संगठन ने डीबीओ के लिए एक वैकल्पिक मार्ग पर काम तेज कर दिया है, जो मौजूदा डीएस-डीबीओ सड़क तक जुड़ने से पहले नुब्रा नदी के साथ-साथ सास्सर ला और गैपशन जैसे महत्वपूर्ण स्थानों से गुजरेगा.
झड़प और फिर सैन्य और राजनयिक स्तर की वार्ताओं के दौर के बाद से चीनी सैनिक गलवान घाटी में अपने मोर्चे से पीछे हटे हैं, लेकिन एलएसी के दोनों ओर एक बफर जोन बन गया है. नतीजतन, भारतीय सैनिक पेट्रोल प्वाइंट 14 तक नहीं पहुंच पा रहे हैं.
हालांकि, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट में चीनी सैनिक पूरी तरह से वापस नहीं लौटे हैं, और कुछ न कुछ चीजें पीछे छोड़ गए हैं.
भारत की ओर से इस क्षेत्र की लगातार निगरानी जारी है. डीएस-डीबीओ सड़क के पास अतिरिक्त सैनिकों को तैनात किया गया है, जो गलवान घाटी के करीब से गुजरता है. यह तीव्र आवागमन की सुविधा देता है और ऑपरेशनल जरूरत के समय त्वरित तौर पर काम आ सकता है.
पैंगोंग त्सो का उत्तरी तट और उसका फिंगर्स क्षेत्र
पैंगोंग झील का 134 किलोमीटर लंबा उत्तरी तट वर्तमान गतिरोध में टकराव का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु बन गया है.
उत्तरी किनारा एक हथेली की शक्ल में झील में गिरता है, और पानी के बीच उभरे पहाड़ी क्षेत्रों की पहचान क्षेत्र में सीमांकन के लिए ‘फिंगर्स’ के तौर पर की जाती है.
जहां भारत का कहना है कि एलएसी फिंगर 8 पर स्थित है, वहीं चीन का दावा है कि यह फिंगर 2 से शुरू होती है, जिस पर भारत का नियंत्रण है.
गतिरोध की शुरुआत के बाद से चीन फिंगर 4 और फिंगर 8 के बीच लगभग 8 किमी अंदर तक हावी हो चुका है, जिसके बारे में भारत लगातार दावा करता रहा है कि यह एलएसी पर उसके इलाके में आता है.
रक्षा अधिकारियों ने कहा कि चीन ने दोनों पक्षों के बीच सैन्य-स्तरीय वार्ता के बाद अपने सैनिक वापस बुलाने का वादा किया था लेकिन फिंगर 4 को पूरी तरह से खाली करने से इनकार कर दिया है, हालांकि कुछ सैनिकों को शुरू में वापस बुलाया गया था.
सूत्रों का कहना है कि फिंगर 4 पर काबिज होने से चीनी सैनिकों को पश्चिम की ओर भारतीय फौज के ठिकानों पर अच्छी तरह नजर रखने में मदद मिलती है. नतीजा यह हुआ कि, दोनों पक्षों के बीच बातचीत बाधित हो गई और भारतीय सैनिकों द्वारा स्पैंगुर झील पर चीनी सैन्य जमावड़े से पहले ही पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर कुछ प्रमुख ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिए जाने से पूर्व ही एक असहज गतिरोध की स्थिति बन गई.
सूत्रों ने कहा था कि यह कदम बातचीत के दौरान भारतीय पक्ष को बेहतर सौदेबाजी की क्षमता देता है.
चीनी ठिकानों पर नजर रखने में मददगार पहाड़ियों पर भारतीय सेना के नियंत्रण के बाद से फिंगर 4 पर स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है.
पैंगोंग त्सो का दक्षिणी तट
10 सितंबर को मॉस्को में जयशंकर और वांग यी की बैठक से ठीक पहले फिंगर 3 और 4 की एक-दूसरे को ओवरलैप करने वाली पहाड़ियों पर दोनों पक्षों की तरफ से कई राउंड हवाई फायरिंग हुई थी, जो कि 45 वर्षों में एलएसी पर गोलीबारी की दूसरी ऐसी घटना थी.
तनाव का ताजा घटनाक्रम भारतीय सेना के पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर प्रमुख पहाड़ियों पर कब्जा जमाने का गवाह बना. यही वह जगह है जहां चीनी सैनिकों ने 45 सालों में पहली बार गोलीबारी की है.
सूत्रों ने कहा कि भारतीय और चीनी सेनाएं एक-दूसरे से बमुश्किल 300 मीटर की दूरी पर थीं, जिसमें एक जगह पर 40 चीनी सैनिकों का समूह था.
फायरिंग के अलावा कुछ स्थानों पर चीनी सैनिकों ने क्लब, मैचेस और भाले जैसे अन्य तेज हथियार ले रखे थे, जैसे 15 जून को गलवान घाटी में संघर्ष के दौरान इस्तेमाल किए गए थे. चीनियों ने स्पैंगुर गैप के पास टैंक और तोपें तैनात कर रखी हैं. भारत ने भी चीनी तैनाती का मुकाबला करने के लिए सैनिकों और सैन्य उपकरणों को तैयार रखा है.
सूत्रों ने कहा कि भारतीय सैनिकों द्वारा चीन सैनिकों की गतिविधियों को धता बताकर 29-30 अगस्त को एलएसी के नजदीक स्थित 30 प्रमुख पहाड़ियों पर मैदानी क्षेत्रों, जिसमें रेजांग ला, रेचिन ला और मगर हिल शामिल है, पर अपना नियंत्रण बना लेने से पैंगोंग त्सो का दक्षिणी तट एक नया मोर्चा बन गया है. ब्लैक टॉप नामक एक पहाड़ी पर भी भारत की ओर से कार्रवाई की खबरें थीं, लेकिन भारत के रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने स्पष्ट किया कि सेना ने एलएसी को पार नहीं किया था.
दक्षिणी तट झील के उत्तरी तट पर निगरानी गतिविधियों के संदर्भ में भारतीय सैनिकों के लिए खासी अहमियत रखता है.
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भारतने चीन कब्जेवाले हिस्सेको छीनलेना चाहीये चीनी सेनामे वो दम नही जो भारतीय सेनाके सीमने टिक जाय 1962 वाली एक तर्फा चीन की जीत बहुत कुच सिखाती है जासे भारतकी सेना मजबूत बनी.