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Thursday, 25 April, 2024
होमडिफेंससड़कें, पुल, आवास- लद्दाख़ में सैनिकों को बनाए रखने के लिए कैसे बुनियादी ढांचे पर काम कर रही सेना

सड़कें, पुल, आवास- लद्दाख़ में सैनिकों को बनाए रखने के लिए कैसे बुनियादी ढांचे पर काम कर रही सेना

लॉजिस्टिक्स से जुड़े ख़र्च में अकेले पिछले वर्ष, 2020-2021 के लिए पूरे उत्तरी कमांड क्षेत्र की आवंटित राशि में, 46 प्रतिशत का इज़ाफा हो गया था.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि पूर्वी लद्दाख़ में चीन के साथ जारी गतिरोध के चलते, भारतीय सेना निकट भविष्य में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिकों की संख्या कम नहीं करने जा रही है, और अपने सैनिकों को वहां बनाए रखने के लिए, वो रसद से जुड़े इनफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने पर काम कर रही है.

रक्षा सूत्रों के अनुसार, इस योजना में एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया गया है- जिसमें मौजूदा सड़कों और दूसरे इनफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने से लेकर, क्षेत्र में तैनात हज़ारों अतिरिक्त सैनिकों को बनाए रखना शामिल है, जिनके लिए राशन, आवास, सर्दियों के कपड़े और उपकरण आदि का प्रबंध किया जाना है.

ये विषय परिचालन के उन मुद्दों में था, जिनपर रविवार को चर्चा की गई, जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने, सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे के साथ लद्दाख़ का दौरा किया.

सूत्रों ने बताया कि लॉजिस्टिक्स से जुड़े ख़र्च में अकेले पिछले वर्ष, 2020-2021 के लिए पूरे उत्तरी कमांड क्षेत्र की आवंटित राशि में, 46 प्रतिशत का इज़ाफा हो गया था.

इसमें वो आकस्मिक ख़रीददारियां शामिल नहीं हैं, जो दूसरे देशों से तैयार हालत में ख़रीदी गईं, जिनमें अमेरिका से मंगाए गए ग्लव्ज़ शामिल थे, जो दोनों देशों के बीच लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट के तहत ख़रीदे गए.

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सूत्रों ने आगे कहा कि लद्दाख़ और जम्मू-कश्मीर में, रसद से जुड़े ख़र्चों, जैसे परिवहन, स्टोर्स, वर्क्स, और अन्य मदों में, 2019-20 के अनुमानों से तुलना करने पर, 85 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई.

पिछले साल चीन से सैन्य गतिरोध शुरू होने से पहले, सेना ने पूर्वी लद्दाख़ में 14 कोर के अंतर्गत, क़रीब 15,000 सैनिक तैनात किए हुए थे. 15 जून 2020 को गलवान में हुए टकराव के बाद सेना ने क्षेत्र में अतिरिक्त डिवीज़ंस तैनात कर दीं थीं.

मई में, सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने कहा, कि दोनों देशों ने लद्दाख़ में 50,000-60,000 सैनिक तैनात किए हुए हैं, और पैंगॉन्ग त्सो इलाक़े में पीछे हटने के बावजूद, सैनिकों की तैनाती में कमी नहीं आई है.

दिप्रिंट ने पहले ख़बर दी थी, कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का मुक़ाबला करने के लिए, बल ने ऑर्डर ऑफ बैटल (ऑरबैट) यानी सैन्य रचना में भी कुछ अहम बदलाव किए हैं.

पारगमन सुविधाओं में सुधार

एक वरिष्ठ रक्षा अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, कि दोनों अक्षरेखाओं – जम्मू-श्रीनगर-ज़ोजिला और मनाली-रोहतांग-लेह- पर लेह या लद्दाख़ या फिर ट्रांज़िट कैम्पों तक पहुंचने के लिए, पारगमन सुविधाओं में सुधार किया जा रहा है, ताकि अतिरिक्त सैनिकों और वाहनों को समायोजित किया जा सके.

अधिकारी ने कहा, ‘ज़ोजिला और रोहतांग दोनों दर्रों में दाख़िल होने के रास्तों में सुधार किया जा रहा है, ताकि सड़कों की क्षमता बढ़ सके, जिससे वहां अतिरिक्त वाहनों का आवागमन मुमकिन हो पाएगा’. उन्होंने आगे कहा कि इस साल ये रास्ते ,सामान्य समय से पहले खोल दिए गए हैं, और ये अधिक लंबे समय तक खुले रखे जाएंगे.

सूत्रों ने कहा कि अतिरिक्त सड़कों और पुलों का निर्माण किया जा रहा है. एलएसी के पास सिर्फ अग्रिम चौकियों पर तैनात, हज़ारों सैनिकों की रसद की ज़रूरतें पूरी करने के लिए, अकेले लद्दाख़ में आठ पुल बनाए गए हैं.

सोमवार को, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने क्यूंगम पुल का उदघाटन किया, जो सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा बनाई गईं, 63 इनफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का हिस्सा है, और लेह-लोमा एक्सिस पर सिंधु नदी पर बनाया गया है. ये पुल दक्षिणी लद्दाख से कनेक्टिविटी में सुधार करेगा, और एलएसी पर तैनात सैनिकों को, तेज़ी के साथ अपनी लोकेशंस बदलने के लिए, अचिरिक्त लचीलापन मिल जाएगा.

रक्षा मंत्रालय के अधीन सीमा सड़क संगठन पर, इनमें से कुछ इनफ्रास्ट्रक्टर कार्यों को अंजाम देने का ज़िम्मा है.

अधिकारी ने आगे कहा, ‘स्थायी इनफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने पर भी बल दिया जा रहा है, ताकि जहां संभव हो वहां सैनिकों और उपकरणों को रखा जा सके.


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सर्दियों के लिए पहले से माल संग्रहण

इलाक़े में तैनात हज़ारों सैनिकों के लिए, सर्दियों के लिए पहले से माल संग्रहण का काम शुरू हो चुका है, जो काफी हद तक सड़क यातायात पर निर्भर है.

क़रीब 50,000 एएलएस लोड्स और सीएचटी (सिविल हायर्ड ट्रांसपोर्ट) ट्रक्स, 150 लाख टन राशन, और 1 लाख किलो लीटर केरोसीन तेल की ढुलाई के लिए लगाए गए हैं.

ये रसद पूरी लद्दाख़ रीजन के लिए है, जिसमें सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात सैनिक भी शामिल हैं.

एक दूसरे रक्षा अधिकारी ने, नाम छिपाने की शर्त पर बताया, ‘सैनिकों के लिए पानी के भंडारण की, अतिरिक्त क्षमता तैयार की जा रही है, और दूर-दराज़ की चौकियों के रख-रखाव लिए, हेलिकॉप्टर प्रयास बढ़ाए जाएंगे. क़ुलियों और टट्टुओं के लिए अतिरिक्त राशि आवंटित की जाएगी’.

अधिकारी ने ये भी कहा, ‘ईंधन का स्पेशल तेल और लुब्रिकेंट्स ख़रीदकर रखे जा रहे हैं. बड़ी संख्या में मशीनी वाहनों, तथा वैपन सिस्टम्स के लिए, अतिरिक्त पुर्ज़ों की ख़रीद की जा रही है’.

पिछले हफ्ते, दिप्रिंट ने ख़बर दी थी कि सेना ने अनुमान लगाया है, कि अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के लिए, हर साल 17 तरह के विशेष कपड़ों, और पर्वतारोहण उपकरणों की ज़रूरत बढ़ जाएगी.

सूत्रों के अनुसार, सैनिकों के लिए बड़ी संख्या में आवास- जैसे 300 से 500 फाइबर ग्लास हट्स, 1000-1,200 रहने और भंडारण के शेल्टर्स, और 250-300 तंबुओं- की ख़रीद चल रही है. विशेष कपड़ों और बूट्स के क़रीब 10,000 सेट्स, और अत्यंत ठंडे मौसम के कपड़ों के, 35,000 सेट्स भी ख़रीदे जा रहे हैं.

उन्होंने ये भी बताया, कि उस क्षेत्र में सैनिकों की मौजूदगी बनाए रखने के लिए, रहने के 800-1,000 शेल्टर्स, और अलग अलग आकार की, क़रीब 2,000 फाइबरग्लास हट्स की कुल ज़रूरत होगी, जिनमें से कुछ पिछले साल भेजे गए थे.

बढ़ी तैनाती की ज़रूरतें पूरी करना

एक तीसरे अधिकारी ने, नाम छिपाने की शर्त पर कहा, कि सैनिकों के फेरबदल के लिए भी, बड़ी संख्या में वाहनों की ज़रूरत होती है, जिसे योजना में शामिल करना होता है.

अधिकारी ने समझाया कि क्षेत्र-शांति प्रोफ़ाइल बनाए रखने के लिए, हर साल 14 कोर की कम से कम छह से आठ यूनिटों की अदला-बदली की जाती है. अधिकारी ने कहा, ‘लद्दाख़ में बढ़ी हुई तैनाती के साथ, ये संख्या भी बढ़ जाएगी. हर यूनिट को, हरकत करने के लिए, लगभग 60 एएलएस की ज़रूरत होती है, इसलिए तैनात सैनिकों के फेरबदल के लिए, 500 वाहनों की ज़रूरत पेश आएगी’.

उन्होंने कहा, ‘1 मई से 31 अक्तूबर तक 184 दिन हैं, जिनमें से वाहनों के आने जाने के लिए, 150 से 160 दिन उपलब्ध हैं. एक फेरे में तक़रीबन छह दिन का समय लगता है, इसलिए इस काम में हर दिन क़रीब 300 वाहन लगाए जाने की ज़रूरत है’.

सैनिकों की बढ़ी हुई तैनाती अपने साथ, चिकित्सा से जुड़ी अतिरिक्त चुनौतियां लेकर आती है. अधिकारी ने कहा, ‘इसलिए चिकित्सा सुविधाएं बढ़ाने पर भी काम किया जा रहा है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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