scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमडिफेंसलद्दाख से पीछे हटने, सैन्य वापसी पर रहा NSA डोभाल का जोर- वांग यी ने साफ नहीं किया रुख

लद्दाख से पीछे हटने, सैन्य वापसी पर रहा NSA डोभाल का जोर- वांग यी ने साफ नहीं किया रुख

भारत यात्रा पर आए चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने बैठक के दौरान दोनों देशों के लिए तीन-सूत्रीय प्रस्ताव रखा—लांग टर्म विजन, एक-दूसरे के प्रति जीत वाली मानसिकता और परस्पर सहयोग वाली मुद्रा अपनाना.

Text Size:

नई दिल्ली: भारत यात्रा पर आए चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ शुक्रवार को हुई बातचीत के दौरान नई दिल्ली का पूरा फोकस पिछले दो साल से गतिरोध का सामना कर रहे पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव घटाने और सैन्य वापसी पर रहा.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि वांग यी ने खासकर रूस-यूक्रेन संकट के मद्देनजर चीन-भारत रिश्तों में नजदीकी बढ़ाने का आह्वान किया, साथ ही इस पर भी जोर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसी साल के अंत में चीन द्वारा आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेना चाहिए. वहीं, भारत एलएसी पर तनाव घटाने की अपनी मांग पर अड़ा रहा.

सूत्रों ने बताया कि एनएसए अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वांग यी के सामने साफ कर दिया कि संबंधों को सामान्य बनाने के लिए सबसे पहले एलएसी पर शांति कायम करनी होगी.

हालांकि, एलएसी की स्थिति पर अभी तक चीन की ओर से कुछ नहीं कहा गया है.

डोभाल के साथ वांग की बैठक के बारे में जानकारी देते हुए चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ ने बताया कि विदेश मंत्री ने दीर्घकालिक नजरिया अपनाने का आह्वान किया.

एलएसी की स्थिति के बारे में कुछ भी उल्लेख किए बिना रिपोर्ट में कहा गया है, ‘चीन और भारत को अपने खुद के विकास के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए क्षेत्रीय और वैश्विक दोनों ही स्तरों पर शांति और स्थिरता की रक्षा के लिए हाथ मिला लेना चाहिए.’

इसमें बताया गया कि वांग ने इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए तीन सूत्रीय प्रस्ताव रखा है, ‘पहला, दोनों देशों को द्विपक्षीय संबंधों में दीर्घकालिक नजरिया अपनाना चाहिए. दूसरा, उन्हें एक-दूसरे के विकास को सहज मानसिकता के साथ देखना चाहिए. तीसरा, दोनों देशों को परस्पर सहयोग की भावना के साथ बहुपक्षीय प्रक्रिया में हिस्सा लेना चाहिए.

इस बीच, सूत्रों ने बताया कि बैठक के दौरान वांग ने सीमा मसले पर विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता आगे बढ़ाने के लिए एनएसए डोभाल को चीन आने का न्यौता दिया, लेकिन डोभाल ने स्पष्ट तौर पर कहा कि यह तभी संभव है जब ‘तात्कालिक मुद्दों को सफलतापूर्वक सुलझा लिया जाए.’

सूत्रों ने बताया कि डोभाल जिस तात्कालिक मुद्दे की बात कर रहे थे, वह एलएसी पर तनाव घटाने और सैन्य वापसी पर केंद्रित है.

सूत्रों के मुताबिक, मई 2020 के बाद से गतिरोध का केंद्र बने पांच बिंदुओं—गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो, कैलाश रेंज, गोगरा, हॉट स्प्रिंग्स (पेट्रोल प्वाइंट 15)—में से चार में सैन्य वापसी हो चुकी है.

सूत्रों ने बताया कि केवल पीपी-15 पर गतिरोध अभी कायम है जबकि इसे भी आसानी से सुलझाया जा सकता है क्योंकि केवल कुछ ही सैनिकों के आमने-सामने होने की स्थिति बनी हुई है. गलवान में टकराव के कुछ ही समय बाद जुलाई 2020 में सैन्य वापसी पर सहमत होने के बावजूद चीन इससे झिझक रहा है.


यह भी पढ़ें: हॉट स्प्रिंग्स अगली लद्दाख बैठक के टॉप एजेंडे में, देपसांग और गश्त के अधिकार पर गतिरोध दूर होने के आसार कम


सैन्य वापसी का मतलब सैनिकों का केवल पीछे हटना नहीं

सूत्रों ने कहा कि डोभाल जिस तात्कालिक मुद्दे पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, उसमें सिर्फ पीपी-15 से सैनिकों की वापसी नहीं बल्कि सैन्य क्षमता घटाना भी शामिल है. ऐसा इसलिए है क्योंकि सैनिक अब पहले की तरह गतिरोध वाले प्वाइंट्स पर आमने-सामने तो नहीं हैं, लेकिन दोनों तरफ से बड़े पैमाने पर तैनाती जारी है.

हालांकि, सभी जगहों पर विवाद वाले बिंदुओं पर एक बफर जोन बनाया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सैनिक एक-दूसरे से दूर ही रहें. हालांकि, इसका नतीजा यह हुआ है कि सैनिक पीछे तो हट गए, लेकिन गतिरोध वाले बिंदुओं से सिर्फ दो-तीन किलोमीटर दूर ही उनका जमावड़ा बना रहा.

सूत्रों ने बताया कि इसका उद्देश्य यह है कि पीपी-15 में एक बार तनाव घटने के बाद दोनों पक्ष धीरे-धीरे सैन्य वापसी शुरू करें. इसका मतलब यह होगा कि गतिरोध शुरू होने के बाद बढ़ाए गए 50,000 से ज्यादा अतिरिक्त सैनिकों को अपने उपकरणों के साथ अप्रैल 2020 से पहले वाली स्थिति मे लौटना होगा.

सूत्रों ने कहा कि एक बार स्थिति स्थिर हो जाने के बाद ही यह माना जाएगा कि हम सामान्य स्तर पर पहुंच गए हैं और लंबित मुद्दों पर आगे विस्तार से चर्चा की जा सकती है.

जैसा दिप्रिंट ने पूर्व में बताया था, देपसांग मैदानी इलाकों में दोनों देशों के बीच तनाव को ‘तात्कालिक मुद्दे’ की श्रेणी में नहीं माना जा रहा है, क्योंकि यह विवाद 2020 में मौजूदा गतिरोध से पहले से ही जारी है.

सूत्रों ने बताया कि देपसांग मैदान के मुद्दे पर सैन्य और राजनयिक दोनों स्तरों पर लंबे समय से चर्चा चलती रही है और यह गंभीर महत्व का मसला है. चीन की तरफ से भारतीयों को पैदल गश्त को रोका जा रहा है जो कि देपसांग में बॉटलनेक क्षेत्र या वाई जंक्शन नामक क्षेत्र से आगे निकल जाते हैं.

हालांकि, यह भारत की उस मांग का हिस्सा नहीं है जिसमें उसकी तरफ से अप्रैल 2020 से पूर्व की स्थिति में लौटने की बात कही जाती है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: चीन के पास सबसे बड़ी सेना, तो रूस के पास है न्यूक्लियर हथियारों का जखीरा, ये हैं दुनिया की बड़ी सैन्य ताकतें


 

share & View comments