नई दिल्ली: वह 2017 का समय था, जब राष्ट्रीय राइफल्स के लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया ने 33 वर्ष की उम्र में जम्मू-कश्मीर के कुलगाम जिले में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ के दौरान अपनी जान गंवा दी. एक साल बाद, उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित करने का फैसला किया गया जो देश में अशोक चक्र और कीर्ति चक्र के बाद तीसरा सबसे बड़ा शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है.
चार साल का समय बीत जाने के बाद इस हफ्ते के शुरू में यह पदक उनके परिजनों के पास पहुंचा, और वो भी कूरियर के माध्यम से.
अब गोपाल के माता-पिता ने यह सम्मान राष्ट्रपति के हाथों मिलने की मांग करते हुए वीरता पदक लेने से इनकार कर दिया है. सिपाही गोपाल 2008 के मुंबई आतंकी हमले के दौरान आतंकवाद विरोधी अभियानों का भी हिस्सा रहा था.
अहमदाबाद निवासी गोपाल के पिता मुनीम सिंह भदौरिया ने फोन पर दिप्रिंट से कहा, ‘हम डाक से भेजा गया शौर्य चक्र स्वीकार नहीं करेंगे. इसे प्रोटोकॉल के मुताबिक राष्ट्रपति के हाथों प्रदान किया जाना चाहिए.’
यह देरी सैनिक की विधवा जयश्रीबेन (केवल अपने पहले नाम से जानी जाती हैं) और उसके माता-पिता के बीच इस पर कानूनी विवाद की वजह से हुई थी कि शौर्य चक्र के अलावा सेवा लाभ किसे मिलना चाहिए.
शहीद सैनिकों के परिवारों के लिए काम करने वाले एक एक्टिविस्ट विकास मन्हास ने दिप्रिंट को बताया, ‘माता-पिता और शहीद सैनिक की पत्नी के बीच विवाद के कारण मामला कोर्ट में चला गया. एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद दोनों पक्षों ने अदालती आदेश पर समझौता किया.’
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विवाद और समझौता
2017 में लांस नायक गोपाल भदौरिया के माता-पिता की तरफ से दायर एक याचिका, जिसे दिप्रिंट ने हासिल किया है, इस पूरे विवाद का ब्योरा देती है.
याचिका के मुताबिक, सिपाही की 2007 में जयश्रीबेन के साथ शादी हुई थी. लेकिन 2011 में इस जोड़े ने विवाह तोड़ने के लिए समझौता किया. ये समझौता नवंबर 2011 में एक नोटरी के साथ रजिस्टर्ड किया गया. बाद में उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के लिए एक डिक्री दायर की.
हालांकि, याचिका से पता चलता है कि लांस नायक गोपाल के सैन्य सेवा में व्यस्त होने और जयश्रीबेन के ‘विदेश शिफ्ट हो जाने’ के कारण यह मामला आगे बढ़ाने पर जोर नहीं दिया गया. आखिरकार मार्च 2013 में विवाह संबंध विच्छेद का आवेदन खारिज कर दिया गया. याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि सैनिक के माता-पिता और उसकी पत्नी के बीच कई सालों से कोई संपर्क नहीं था.
याचिका में आगे कहा गया है कि जब 2018 में सैनिक को शौर्य चक्र के लिए चुना गया, तब जयश्रीबेन ने सेवा लाभों पर अपनी दावेदारी जताई. इसका गोपाल के माता-पिता ने विरोध किया और उनके बीच कानूनी लड़ाई शुरू हो गई.
सितंबर 2021 में संबंधित पक्षों के बीच आपसी समझौते के बाद अहमदाबाद की सिटी सिविल कोर्ट ने उनके माता-पिता को शौर्य चक्र का असली दावेदार घोषित किया. इसने यह भी कहा कि पेंशन, मुआवजा और केंद्र या राज्य सरकार या सेना की तरफ से मिलने वाली सहायता सहित अन्य सभी सेवा लाभों को दोनों पक्षों के बीच आधा-आधा बांट दिया जाना चाहिए.
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‘राष्ट्रपति के हाथों मिलना चाहिए शौर्य चक्र’
मुनीम ने कहा, ‘हमें 5 सितंबर (सोमवार) को शाम 5 बजे एक पार्सल मिला, जिस पर वीरता पुरस्कार का लेबल लगा हुआ था. मैंने पार्सल नहीं खोला और तुरंत उसे लौटा दिया.’
उन्होंने कहा, ‘हम केवल राष्ट्रपति से शौर्य चक्र प्राप्त करना चाहते हैं. यह प्रोटोकॉल के मुताबिक है. हम इसे डाक के जरिये स्वीकार नहीं करेंगे.’
मुनीम ने जुलाई में रक्षा मंत्रालय को एक पत्र भी लिखा था—जिसे दिप्रिंट ने देखा है. इसमें सरकार से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया गया था कि परिवार को शौर्य चक्र राष्ट्रपति के हाथों ही मिले.
पत्र में कहा गया है, ‘किसी भी अन्य तरह से यह सम्मान प्रदान करना मेरे बेटे की शहादत को उचित सम्मान से वंचित करने जैसा है.’
मुनीम ने कहा, ‘मैं सेना का पूरा सम्मान करता हूं. लेकिन यह सब मेरे बेटे को उसका हक दिलाने और उसके बलिदान का सम्मान सुनिश्चित करने से जुड़ा है.’
लांस नायक गोपाल को मुंबई में 26/11 के आतंकी हमलों के दौरान अपनी सेवाओं के लिए विशिष्ट सेवा पदक से भी सम्मानित किया गया था. आतंकवादियों की भारी गोलीबारी के बीच भदौरिया ने घायल सूबेदार मेजर को ताज होटल से बाहर निकाला था. उन्होंने घायल सिपाही को किसी तरह बचाकर निकाला और उन्हें एंबुलेंस तक पहुंचाया था.
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राष्ट्रपति के हाथों मिलता है पदक
दिप्रिंट से बात करने वाले सेना के सूत्रों ने बताया कि सामान्य परिस्थितियों में चक्र पुरस्कार एक अलंकरण समारोह के दौरान राष्ट्रपति के हाथों ही प्रदान किए जाते हैं. लांस नायक गोपाल के मामले की पूरी जानकारी न रखने वाले इन सूत्रों का कहना है कि यदि चक्र पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति या उसके परिजन अनुपलब्ध होते हैं तो पुरस्कार को डाक से भेजा जाता है.
जुलाई में सैनिक के पिता को सेना की तरफ से एक पत्र (जिसे दिप्रिंट ने एक्सेस किया है) मिला था, जिसमें बताया गया था कि यदि कोई पदक विजेता अलंकरण समारोह के दौरान इसे ग्रहण करने में असमर्थ होता है तो फिर पदक प्रदान करने के लिए कोई समारोह नहीं किया जाता. साथ ही यह भी बताया कि डायरेक्टर जनरल सिग्नल माता-पिता को पदक प्रदान करेंगे और परिवार के लिए सुविधाजनक स्थिति में ‘पुरस्कार समारोह की अध्यक्षता करने में उन्हें खुशी होगी.’
सूत्रों ने यह भी कहा कि सेना की नीति के मुताबिक, यदि पुरस्कार मरणोपरांत दिया जा रहा हो, और यदि इसे पाने वाला विवाहित रहा हो, तो यह उसके पति या पत्नी को भी ही प्रदान किया जाएगा, माता-पिता को नहीं. अगर वे अलग हो गए हैं लेकिन तलाक नहीं हुआ है, तो भी सम्मान ग्रहण करने का अधिकार पति या पत्नी को ही होगा.
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