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Thursday, 25 April, 2024
होमडिफेंस'लो-टेक ड्रोन आतंकी खतरे' से निपटना क्यों भारत के लिए बड़ी चुनौती होने वाला है

‘लो-टेक ड्रोन आतंकी खतरे’ से निपटना क्यों भारत के लिए बड़ी चुनौती होने वाला है

एक्सपर्ट्स का कहना है कि जम्मू में इंडियन एयर फोर्स स्टेशन पर हमला आतंकवादी गतिविधियों के तरीकों में आए बदलाव को दिखाता है. इस नए खतरे से निपटने के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत है.

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नई दिल्ली: रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया, ‘जम्मू में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) स्टेशन पर ड्रोन हमला न केवल भारत में आतंकवाद के नए और घातक आयाम को दिखाता है बल्कि जवाबी कार्रवाई को लेकर कमियों को भी दिखाता है.’

सूत्रों ने बताया कि आतंकवादियों ने हमले के समय -27 जून को 1:30 बजे- और ड्रोन को काफी सावधानी से चुना ताकि एयर फोर्स स्टेशन पर मल्टीपल लेबल के सिक्युरिटी को चकमा दिया जा सके जो कि काफी हद तक हवा और जमीन पर पारंपरिक खतरे का मुकाबला करने में सक्षम है.

एक सूत्र ने बताया, ‘हमला 1:30 AM के आसपास हुआ जब चंद्रमा की चमक काफी ज्यादा थी, जिसकी वजह से घटनास्थल पर ड्रोन को पहुंचने में मदद मिली. माना जा रहा है कि इस ड्रोन ने घटनास्थल तक पहुंचने के लिए या तो तवी नदी के किनारे का रास्ता अपनाया क्योंकि इस रास्ते पर बिजली के तारों की संख्या काफी कम है और या तो यह एयर स्टेशन से सटे हुए सिविलियन एरिया से उड़कर आया होगा.

एक अन्य सूत्र ने बताया कि हालांकि एयर फोर्स स्टेशन पर सिक्युरिटी की मल्टीपल लेयर हैं लेकिन जो ड्रोन आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल किया गया वह आकार में काफी छोटा था और विस्फोटकों का एक छोटा पेलोड ले जाने के लिए मॉडीफाई किया गया था.

आरपीए और ड्रोन जो कि आकार में छोटे होते हैं, में अंतर स्पष्ट करते हुए सूत्रों ने बताया कि ‘छोटे ड्रोन का रात में पता लगा पाना काफी मुश्किल होता है क्योंकि उनकी आवाज़ भी काफी धीमी होती है. इसके अलावा ये रिमोटली पायलेटेड एयरक्राफ्ट (आरपीए) का विशेष रूप से पता लगाने के लिए बनाए गए पारंपरिक एयर डिफेंस सिस्टम के लिए इन्फ्रारेड या रडार के लिए सुराग काफी कम छोड़ते हैं.’

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एक तीसरे सूत्र ने कहा, ‘सुरक्षा की मल्टीरल लेयर्स को देखते हुए सैद्धांतिक रूप से हमारे पास एक अच्छा तंत्र होना चाहिए, लेकिन व्यावहारिक रूप से ऐसा नहीं है जो कि इस हमले के जरिए उजागर होता है.

आतंकी हमलों में ‘बड़े बदलाव’

उत्तरी सेना के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा ने दिप्रिंट को बताया कि भारतीय वायुसेना स्टेशन पर ड्रोन हमला आतंकी रणनीति में आमूलचूल बदलाव को दर्शाता है.

लेफ्टिनेंट जनरल हुड्डा ने कहा, ‘हमारे पास पाकिस्तान से ड्रोन के जरिए हथियार और गोला-बारूद गिराए जाने के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं. इसमें तकनीक का इस्तेमाल किया गया. यदि हथियार गिराए जा सकते हैं, तो विस्फोटक भी गिराए जा सकते हैं. खतरा यह है कि व्यावसायिक रूप से उपलब्ध ड्रोन को मॉडीफाई करके घातक हथियार बनाया जा सकता है.’ लेफ्टिनेंट जनरल हुड्डा ने कहा, ‘हमें इस नए खतरे से निपटने के लिए मजबूत जवाबी उपायों की जरूरत है जो कि स्टेशन पर मौजूद सेना के लिए खतरा हो सकता है.’

नौसेना के पूर्व परीक्षण पायलट कमांडर केपी संजीव कुमार ने कहा कि मौजूदा जवाबी कार्रवाई के उपाय वायु रक्षा बड़े मानवरहित एरियल वीकल्स के लिए उपयुक्त हैं.

कुमार-जिन्होंने जीपीएस सेटिंग और रेडियो फ्रीक्वेंसी को जैम करने, नेवीगेशन लिंक की स्पूफिंग जैसी सॉफ्ट किल टेक्निक के साथ साथ डायरेक्टेड एनर्जी वीपन जैसे हार्ड किल्स विकल्प जैसे उपायों की वकालत की – ने कहा कि समस्या यह है कि ‘हम हाई-टेक होते जाएंगे और वे सिस्टम को मात देने के लिए लो-टेक होते जाएंगे.’

पारंपरिक खतरे के लिए भारत की जवाबी कार्रवाई के उपाय

सूत्रों ने कहा कि वाणिज्यिक रूप से बड़ी संख्या में उपलब्ध छोटे ड्रोन को मॉडीफाई किया जा सकता है जिसकी वजह से छोटे आतंकी समूहों के हाथ में भी काफी युद्धक शक्ति आ जाती है जो कि पहले मॉडर्न एयर फोर्स के ही हाथों में थी.

कई सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इस छोटे ड्रोन जिसके पास रडार क्रॉस सेक्शन (आरसीएस) है, को काउंटर करने की टेक्नॉलजी नहीं है. आरसीएस के जरिए चिड़िया या उससे छोटे ऑब्जेक्ट का पता लगाया जाता है.

ऊपर के ही एक सूत्र ने बताया, ‘यदि पारंपरिक वायु रक्षा प्रणाली को छोटे ऑब्जेक्ट का पता लगाने के लिए सेट कर दिया जाए तो यह स्क्रीन पर काफी रेड फ्लैग्स दिखाने लगेगा यानी कि बहुत सारे ऑब्जेक्ट को दिखाने लगेगा, जिसकी वजह से काफी कन्फ्यूजन पैदा होगी. इसके अलावा छोटे ड्रोन रडार ऑपरेटिंग हाइट से नीचे उड़ते हैं.’

एक अन्य सूत्र ने यह भी कहा कि अगर कोई सोचता है कि इजरायली स्पाइडर या रूसी ओएसए-एके जैसी पारंपरिक वायु रक्षा प्रणालियां ऐसे छोटे ड्रोन का पता लगा लेती हैं, तो जितनी उनकी कीमत है उस हिसाब से इनका प्रयोग कितना जायज़ होगा, इस पर विचार करना होगा.

सूत्रों ने कहा, ‘स्पाइडर डर्बी मिसाइलों का उपयोग करता है जिसकी कीमत एक बार प्रयोग करने की 20 लाख अमेरिकी डॉलर हैं. सूत्र ने कहा, ‘ओएसए-एके की लागत एक तिहाई है लेकिन अभी भी क्वाडकॉपटर्स और छोटे ड्रोन की तुलना में यह बहुत महंगा है जो कि व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं.

सूत्रों ने कहा कि नौसेना द्वारा खरीदा गया स्मैश 2000 प्लस एंटी-ड्रोन सिस्टम ह्यूमन आई कॉन्टैक्ट प्रणाली पर काम करता है न कि दूसरे रडार, रेडियो या आईआर फ्रीक्वेंसी पर के आधार पर. आर्मी और एयरफोर्स भी इसे खरीदने पर विचार कर रही है.

सूत्रों ने बताया कि सभी एमआई-17वी5 और पुराने एमआई-17 हेलिकॉप्टरों को एंटी-आरपीए रोल के लिए मंजूरी दे दी गई है. लेकिन यह मुख्य रूप से ड्रोन को गोली मार के नीचे लाने के लिए है जिसके कार्गो डिब्बे में हल्की मशीन गन होती है.

इसी तरह अपाश अटैक हेलिकॉप्टर्स का इस्तेमाल एंटी-आरपीए ऐक्टीविटी के लिए जा सकता है. वायु रक्षा प्रणालियों में, स्पाडर सबसे शक्तिशाली एंटी-आरपीए हथियार है.

यह पूछे जाने पर कि छोटे ड्रोन या क्वाडकॉप्टर्स के मामले में क्या होता है, जो कि सैन्य ग्रेड के आरपीए से काफी कम हैं, ऊपर के ही एक सूत्र ने बताया कि ओएसए-एके का इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन, इसके लिए सबसे पहले आने वाले ड्रोन को वायु रक्षा प्रणाली के सीसीटीवी के माध्यम से पता लगाना होगा. उन्होंने कहा, ‘इसके बावजूद इसके प्रयोग में कुछ प्रतिबंध होंगे जो कि इस बात पर निर्भर करता है कि इसे किस टाइम यूज़ किया जा रहा है.’

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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