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Thursday, 25 April, 2024
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भारत 1947 में जम्मू-कश्मीर पर हमले में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करने के लिए 22 अक्टूबर को ‘काला दिवस’ मनाएगा

कश्मीर में ‘22 अक्टूबर 1947 की स्मृतियां’ विषय पर दो दिन की संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है जिसमें यह रूपरेखा तैयार करने पर जोर दिया जाएगा कि प्रस्तावित थीम पर भावी प्रदर्शनी/संग्रहालय कैसे आकार लेगा.

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नई दिल्ली : नरेंद्र मोदी सरकार 1947 में जम्मू-कश्मीर पर बर्बर हमले में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करने के लिए 22 अक्टूबर को ‘काला दिवस’ के तौर पर मनाएगी.

सरकार ने इस दिन को याद करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में कई कार्यक्रमों की योजना बनाई है, इसके अलावा वर्चुअल आयोजन भी किए जाएंगे.

भारत की आजादी के दो महीने बाद ही 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया और सामूहिक लूट और बर्बरता की रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानियों को अंजाम दिया. हजारों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को मौत के घाट उतार दिया गया और हमलावरों ने उस समय के एक आबाद शहर बारामूला पर कब्जा जमा लिया.

कश्मीर में ‘22 अक्टूबर 1947 की स्मृतियां’ विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन नेशनल म्यूजियम इंस्टीट्यूट की तरफ से किया जा रहा है जो उस दिन की ऐतिहासिक दास्तानों को सामने लाएगी.

सरकारी सूत्रों ने बताया कि संगोष्ठी में प्रस्तावित थीम पर भावी प्रदर्शनी/संग्रहालय के आकार-प्रकार को रेखांकित करने का प्रस्ताव है.

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पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से आए शरणार्थियों द्वारा हर साल मनाए जाने वाले काला दिवस के पोस्टर श्रीनगर के विभिन्न हिस्सों में पहले से ही नजर आने लगे हैं.

सूत्रों ने कहा कि 22 अक्टूबर 1947 को स्वतंत्र भारत के इतिहास के पहले युद्ध की शुरुआत भी हुई थी क्योंकि पाकिस्तानी हमलावरों ने जम्मू और कश्मीर की तत्कालीन रियासत पर एक दुस्साहसिक और भीषण हमला किया था.

26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर राज्य के भारत में विलय पर मुहर लगाई थी लेकिन हमलावर तब तक तबाही और खूनखराबे का एक भयावह मंजर छोड़ चुके थे.

‘जागरूकता की पहल’

पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल अकबर खान की एक किताब रेडर्स इन कश्मीर को भी फिर से प्रकाशित किया जा रहा है जिसमें इस आक्रामकता के पीछे पाकिस्तान का हाथ बताया गया है.


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‘इस ऐतिहासिक घटना के नतीजे आज भी देश को प्रभावित कर रहे हैं. लोगों के बीच संवाद के लिए इस तरह के ऐतिहासिक आख्यानों को चित्रित करने की जरूरत है. ऐसी पहल का उद्देश्य लोगों को हमारे इतिहास के इस चरण के बारे में जागरूक करना होगा.’

संगोष्ठी के लिए तैयार कांसेप्ट नोट के मुताबिक, ‘इससे यह बात याद रखने में मदद मिलेगी कि (आजाद) भारत ने अपने ऊपर हुए सबसे पहले आक्रमण का किस तरह मुकाबला किया था.’

जिन जगहों की तस्वीरें और वीडियो प्रदर्शनी का हिस्सा बनाए जाएंगे उनमें बारामूला का मिशन अस्पताल भी शामिल है जहां बड़ी संख्या में लोगों ने शरण ली थी.

इस प्रोजेक्ट में शामिल एक अधिकारी ने बताया, ‘धर्म और उम्र सब बातों को दरकिनार करके नन, नर्स और महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और उनके शव कुएं में फेंक दिए गए. हमलावर उन तक पहुंचें इससे पहले ही तमाम युवा लड़कियों को खुद उनके परिजनों ने मार दिया.

राज्य के भारत में विलय के बाद कबायली हमलावरों पर काबू पाने के लिए भारतीय सेनाओं को हवाई मार्ग से राजधानी श्रीनगर पहुंचाया गया.

उस समय 16 सिख रेजीमेंट का नेतृत्व कर रहे लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय हमलावरों से लड़ते हुए मारे गए थे जिन्होंने तब तक श्रीनगर का रुख कर लिया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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