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Saturday, 4 May, 2024
होमडिफेंसजैसे ही मोदी और XI BRICS बैठक में पहुंचे, दोनों देश की सेनाओं ने LAC पर तनाव कम करने की बात कही

जैसे ही मोदी और XI BRICS बैठक में पहुंचे, दोनों देश की सेनाओं ने LAC पर तनाव कम करने की बात कही

ऐसा पता चला है कि कमांडरों को सैनिकों और उपकरणों को पीछे हटाने और कब्जे वाली जगह पर संयुक्त रूप से तनाव कम करने के निर्देश दिए गए हैं.

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नई दिल्ली: भारत और चीन के शीर्ष रक्षा और सुरक्षा अधिकारी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जल्द से जल्द तनाव कम करने की आवश्यकता पर सहमत हुए हैं और सामरिक कमांडरों को ‘व्यावहारिक समाधान’ निकालने के निर्देश दिए गए हैं. इसकी जानकारी दिप्रिंट को मिली है.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि अभी दोनों पक्षों का ध्यान डेपसांग मैदानों के पुराने मुद्दों को खत्म करने पर है, जहां दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को अपनी दावा की गई लाइनों और डेमचोक के पास चार्डिंग नाला जंक्शन (सीएनजे) पर गश्त करने से रोक दिया है. इसी इलाके में चीनियों ने नागरिक होने की आड़ में भारत के दावे वाले इलाकों में तंबू गाड़ दिए हैं.

उन्होंने कहा कि 13-14 अगस्त को हुई पहली दो दिवसीय कोर कमांडर स्तर की वार्ता के बाद, पिछले शुक्रवार से मेजर जनरल रैंक और उससे नीचे के स्तर पर तीन दिनों की वार्ता हुई, जिसके दौरान एक व्यावहारिक समाधान निकालने का प्रयास किया गया.

गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो, गोगरा (पीपी-17ए) और हॉट स्प्रिंग्स (पीपी-15) से सैनिकों की वापसी के बावजूद, भारत और चीन की सेनाएं एलएसी पर हजारों सैनिकों और सैन्य उपकरणों को तैनात किए हुए हैं.

कोर कमांडर स्तर की वार्ता के दौरान, दोनों पक्ष “बाकी मुद्दों को जल्द से जल्द हल करने” पर सहमत हुए हैं. जैसा कि दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट किया था, दोनों पक्ष एलएसी पर सैनिकों और सैन्य उपकरणों की अतिरिक्त तैनाती रोकने पर सहमत हुए थे.

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सूत्रों ने कहा कि ऊपर से आदेश है कि दोनों देशों को आगे बढ़ना चाहिए और तनाव को जल्द से जल्द कम करना चाहिए.

इन उपायों में एक निश्चित संख्या में सैनिकों और सैन्य उपकरणों को वापस बुलाना भी है. साथ ही कब्जे वाले स्थानों का दोनों पक्ष मिलकर संयुक्त रूप से सत्यापन/सर्वेक्षण करवा सकते हैं ताकि अशांत क्षेत्रों में दोबारा कोई नई पोस्ट न बन सकें. इसके अलावा गश्त की नई सीमाएं बनाना और कुछ मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) को लागू करना भी इसमें शामिल हो सकता है. किसी भी प्रकार की गश्त शुरू करने से पहले इसका पालन किया जाता है.

ये घटनाक्रम ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (22-24 अगस्त) के लिए पीएम नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की जोहान्सबर्ग यात्रा से पहले हुआ, जहां दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बैठक और खींचतान की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

शी अगले महीने जी-20 शिखर सम्मेलन (9-10 सितंबर) के लिए भारत की यात्रा पर भी आने वाले हैं. हालांकि, शी आएंगे या नहीं, इसकी बीजिंग और नई दिल्ली दोनों ने अबतक पुष्टि नहीं की है.


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मेजर जनरल की बातचीत किस बारे में थी

सूत्रों ने बताया कि बातचीत दो अलग-अलग जगहों पर हुई. मेजर जनरल पी.के. मिश्रा ने डेपसांग मैदानों के करीब दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) में वार्ता का नेतृत्व किया. वह 3 डिवीज़न की कमान संभालते हैं, जिसे त्रिशूल डिवीज़न के नाम से भी जाना जाता है, जो उस इलाके की देखभाल करती है.

पूर्वी लद्दाख के दक्षिणी हिस्से में वार्ता का नेतृत्व मेजर जनरल हरिहरन ने किया, जो यूनिफ़ॉर्म फोर्स के प्रमुख हैं, जो राष्ट्रीय राइफल्स का एक पार्ट है, जिसे जम्मू और कश्मीर से हटाकर एलएसी पर लगाया गया था, जैसा कि दिप्रिंट ने पहले ही आपको बताया था.

सूत्रों ने बताया कि शुक्रवार को बातचीत उन प्रस्तावों पर केंद्रित रही जिन पर कोर कमांडर स्तर की वार्ता के दौरान चर्चा करने का निर्णय लिया गया था.

शनिवार को, मेजर जनरल मुद्दों को सुलझाने के लिए अपने सामरिक आदेशों पर वापस चले गए और रविवार को चर्चा का एक और दौर आयोजित किया.

सूत्रों ने कहा कि डेमचोक एक अपेक्षाकृत छोटा मुद्दा है, लेकिन जब दावा किए गए क्षेत्रों में गश्त की बात आती है तो समस्या डेपसांग और चीनी पारस्परिकता पर जोर देने के साथ है. जैसा कि दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट किया था, एलएसी डेपसांग मैदानों में विवादित है, जो अन्य जगहों की तरह भारत के सब सेक्टर नॉर्थ (एसएसएन) के अंतर्गत आता है.

एसएसएन एक तरफ सियाचिन ग्लेशियर और दूसरी तरफ चीनी-नियंत्रित अक्साई चिन के बीच स्थित है, जो इसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है.

सूत्रों के अनुसार, डेपसांग मैदान में तनाव का कारण 2013 में चीन की 18 किलोमीटर की घुसपैठ, जो रणनीतिक डीबीओ के करीब है, और 2017 के डोकलाम गतिरोध से देखा जा सकता है.

डेपसांग के मैदानी इलाकों में गश्त बिंदु अन्य क्षेत्रों की तरह कथित एलएसी से थोड़ी दूर हैं और इसे गश्त की सीमा कहा जाता है. सैनिक प्वाइंट से आगे नहीं जाते, भले ही एलएसी अभी भी आगे है.

हालांकि, देपसांग में एलएसी की धारणा चीन और भारत के बीच बिल्कुल अलग है. स्थानीय रूप से स्थापित समझौतों के अनुसार, दोनों पक्षों को एलएसी की व्यक्तिगत धारणाओं में आने वाले कुछ क्षेत्रों तक गश्त करने की अनुमति थी, लेकिन सूत्रों ने कहा कि डोकलाम गतिरोध के बाद यह अभ्यास “तनाव की चपेट में आ गया”.

सूत्रों ने कहा कि चीनियों ने डेपसांग में भारत के दावे वाले क्षेत्रों में निर्माण नहीं किया है, लेकिन बोटलनेक क्षेत्र के पीछे 2013 में उनके द्वारा बनाई गई सड़क के कारण कैमरे लगाए हैं और पहुंच को अवरुद्ध कर दिया है, जिसे राकी नाला क्षेत्र के रूप में जाना जाता है.

भारतीय सैनिक बॉटलनेक क्षेत्र से आगे पैदल ही जाते थे. जैसा कि नाम से पता चलता है, वहां कोई वाहन नहीं पहुंच सकता.

बॉटलनेक क्षेत्र से कुछ सौ मीटर की दूरी पर वाई जंक्शन नामक स्थान है. भारतीय सैनिक पीपी 10, 11, 11ए, 12 और 13 पर गश्त करते थे, लेकिन चीनियों ने इस जगह पर पहुंचने के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं.

‘Y’ जंक्शन दो मार्गों का प्रारंभिक बिंदु है. उत्तरी मार्ग, राकी नाला के बाद, पीपी10 की ओर जाता है और दक्षिण-पूर्वी मार्ग पीपी13 की ओर जाता है, जिसे जीवन नाला के नाम से जाना जाता है.

चीनियों के पास चौबीसों घंटे तैनात रहने वाली एक टीम है जो मैदानी इलाकों में भारतीयों की पहुंच को रोक रही है. जब भी कैमरा किसी गतिविधि का पता लगाता है तो वे तुरंत आने और भारतीय सैनिकों को रोकने के लिए सड़क मार्ग का उपयोग करते हैं.

सूत्रों ने कहा, चीनी कह रहे हैं कि उन्हें अपने दावे वाली सीमा तक गश्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए.

समस्या यह है कि चीनी दावा रेखा बॉटलनेक क्षेत्र के बाद भारत के कब्जे वाले क्षेत्र में है, उन्होंने कहा कि यहां चीनी दावा रेखा बर्त्से नामक क्षेत्र में भारतीय सैन्य शिविर से लगभग 1.5 किमी दूर है.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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