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Sunday, 22 December, 2024
होमडिफेंसLOC पर घुसपैठ का मौसम करीब आने के साथ ही कश्मीर में सैन्य बलों की तैनाती में फेरबदल पर विचार कर रही है सेना

LOC पर घुसपैठ का मौसम करीब आने के साथ ही कश्मीर में सैन्य बलों की तैनाती में फेरबदल पर विचार कर रही है सेना

सुरक्षा बलों को अधिक शांतिपूर्ण जिलों से हटाकर एलओसी पर भेजा जा सकता है. एलएसी पर बढे सैन्य जमावड़े और नै भर्ती पर लगी रोक की वजह से बहुत कम सैनिक उपलब्ध हैं.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार बर्फ के पिघलने के साथ ही वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर घुसपैठ का मौसम शुरू हो रहा है और वहां तैनाती के लिए और अधिक जवानों को अपने अन्य दायित्वों से मुक्त करने के मद्देनजर भारतीय सेना कश्मीर के भीतरी इलाकों में सैनिकों की तैनाती में संभावित फेरबदल पर विचार कर रही है.

रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कश्मीर के कुछ जिले दूसरों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक शांतिपूर्ण हैं और ऐसे में वहां सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की जरूरत नहीं है, जैसा कि उन इलाकों में है जहां आतंकवादी संगठन ज्यादा सक्रिय हैं.

हालांकि इस बात की संभावना नहीं है कि घाटी में तैनात कई बटालियनों को एलओसी पर ले जाया जाएगा, मगर सूत्रों ने यह संकेत दिया कि कुछ विशिष्ट कंपनियों की जिम्मेदारी के क्षेत्र (एरिया ऑफ़ रिस्पांसिबिलिटी – एओआर) का विस्तार किया जा सकता है.

इसका मतलब यह होगा कि एक विशेष एओआर की देखरेख करने वाली चार कंपनियों के बजाय, यही काम दो या तीन कंपनियों में विभाजित किया जा सकता है, और अन्य को फिर से तैनाती (रेडेप्लॉयमेंट) के लिए मुक्त किया जा सकता है.

एक बटालियन में आमतौर पर चार कंपनियां होती हैं, जिनमें से प्रत्येक का नेतृत्व एक मेजर रैंक का अधिकारी होता है, जिनका एक निर्दिष्ट एओआर होता है. प्रत्येक कंपनी में 100 से 150 सैनिक होते हैं.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में किये गए व्यापक निवेश और एलओसी पर तैनात की गईं विशेष निगरानी प्रणालियों के बावजूद, मानवीय शक्ति पर सेना की निर्भरता अभी भी महत्वपूर्ण है.


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सीमाएं अभी भी सेना का प्राथमिक फोकस एरिया है

सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘अभी सारा ध्यान (फोकस) एलओसी पर केंद्रित है. भीतरी इलाकों में जो भी आतंकवादी हैं, वे तो वहीं रहेंगे. अभी प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि एलओसी पर घुसपैठ रोधी ग्रिड को और सख्त किया जाए. हालांकि, संघर्ष विराम समझौता अभी भी अमल में हैं मगर बर्फ पिघलने के साथ ही घुसपैठ का मौसम शुरू हो जाएगा.’

एक अन्य सूत्र ने बताया कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बने हुए सैन्य जमावड़े और नई भर्तियों पर अभी भी लगी रोक की वजह से अतिरिक्त सैनिकों की उपलब्धता में कमी आई है और सेना द्वारा तैनाती के पैटर्न में बदलाव पर विचार करने का यह एक और कारण है.

दूसरे सूत्र ने कहा, ’इसके पीछे का पूरा विचार यह है कि कोई भी इंफिल्ट्रेशन (घुसपैठ) या एक्सफिल्ट्रेशन (सीमा पार जाना) नहीं होना चाहिए. एलओसी से न कोई अंदर आ पाए और न ही कोई बाहर जाए. घाटी के भीतर जो भी आतंकवादी छिपे हैं, उनका तो वैसे भी मुकाबला किया जाएगा, क्योंकि वहां अभियान लगातार जारी है.‘

एक तीसरे सूत्र ने बताया कि पुनर्नियुक्ति (रेडेप्लॉयमेंट) यह सुनिश्चित करने के लिए भी की जा रही है कि उन क्षेत्रों में जहां हिंसा में कमी देखी गई है, सुरक्षा उपाय पहले की तरह के ही न हों.

इस फेरबदल के परिणामस्वरूप प्रभावित होने वाले क्षेत्रों के बारे में विस्तार से बताने से इनकार करते हुए, सूत्रों ने इस बात को रेखांकित किया कि पूरी कश्मीर घाटी में सुरक्षा के हालात (सिक्योरिटी डायनामिक्स) एक समान नहीं है. सूत्रों ने कहा कि यही कारण है कि आतंकवाद निरोधी इकाइयों की सभी जिलों में एक समान उपस्थिति नहीं हो सकती है,

इस सूत्रों ने समझाया कि सीमाओं की सुरक्षा अभी भी सेना का प्राथमिक ध्यान बिंदु है. साथ ही, उनका यह भी कहना था कि आतंकवाद का मुकाबला एक ऐसी भूमिका थी जिसे सेना ने विशेष परिस्थितियों की वजह से अपनाया है.

एक चौथे सूत्र ने कहा, ‘हालांकि आतंकवाद विरोधी अभियान इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि शांति बनी रहे, हमारी पारंपरिक भूमिका पर ध्यान दिया जाना जारी है और वह है मातृभूमि को बाहरी आक्रमण से बचाना.’

कश्मीर में आतंकियों द्वारा की जाने वाली भर्ती में आयी कमी

जैसा कि दिप्रिंट द्वारा फरवरी में प्रकाशित एक खबर में बताया गया था, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में 2016 के बाद से पहली बार आतंकी संगठनों द्वारा स्थानीय लोगों की भर्ती में कमी देखी जा रही है.

सेना के रिकॉर्डस बताते हैं कि भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं के बीच संघर्ष विराम समझौता होने के बावजूद साल 2021 में एलओसी के माध्यम से 31 आतंकवादी कश्मीर सेक्टर में घुसपैठ करने में सक्षम रहे थे. यह संख्या 2020 में 36, 2019 में 130 और 2018 में 143 थी.

लेकिन कुछ सूत्रों का कहना है कि आतंकवादियों ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने के लिए जम्मू की ओर से लगी नियंत्रण रेखा के साथ-साथ पंजाब सेक्टर की अंतर्राष्ट्रीय सीमा का उपयोग करना भी शुरू कर दिया है.

इस बीच, साल 2021 में कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए आतंकी गुर्गों की संख्या 171 थी. इस आंकड़े में 149 स्थानीय आतंकवादी और 22 पाकिस्तानी आतंकवादी शामिल थे.

इस साल कश्मीर घाटी में 62 आतंकवादी मारे गए हैं, जिनमें 39 लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) से जुड़े थे और 15 का जुड़ाव जैश-ए-मोहम्मद (जेएम) के साथ था. साथ ही, हिज्बुल मुजाहिदीन (एचएम) के छह और अल-बद्र के दो आतंकवादी भी मारे गए थे. 2022 में मारे गए आतंकी गुर्गों में से 47 स्थानीय थे और 15 के पास विदेशी पहचान के निशान थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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