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Saturday, 21 December, 2024
होमडिफेंसजल, थल, नभ: भारत ने आक्रामक और रक्षात्मक दोनों रणनीतियों के साथ चीन के खिलाफ खुद को मजबूत किया

जल, थल, नभ: भारत ने आक्रामक और रक्षात्मक दोनों रणनीतियों के साथ चीन के खिलाफ खुद को मजबूत किया

भारत ने एलएसी के साथ-साथ इंटीग्रेटेड डिफ़ेन्डेड लोकेशंस की एक पूरी श्रृंखला स्थापित की है, जिसके तहत बहुस्तरीय भूमिगत बंकरों, बारूदी सुरंग वाले क्षेत्रों और अन्य उपकरणों के मिश्रण के माध्यम से दुश्मन के किसी भी आक्रमण को तत्काल निष्क्रिय करने पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है.

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बूम ला (अरुणाचल प्रदेश): चीन के खिलाफ अपनी रक्षात्मक और आक्रामक क्षमताओं में वृद्धि के उद्देश्य के साथ भारत ने अपनी अपग्रेडेड (उन्नतिकृत) उन्नत एल-70 वायु रक्षा तोपों (एयर डिफेंस गन्स) को एलएसी के पूर्वी मोर्चे पर तैनात किया है. साथ ही 155 मिमी बोफोर्स और एम-777 लाइट हॉवित्जर तोपों की कई इकाइयों (यूनिट्स) को भी मोर्चे पर लगाया गया है.

भारत ने एलएसी के साथ-साथ इंटीग्रेटेड डिफेंडेड लोकेशन की एक पूरी श्रृंखला भी स्थापित की है, जो एक बहु-स्तरीय रक्षात्मक प्रणाली है, जिसमें थल सेना की पैदल सैनिक टुकड़ियां, तोपखाने, विमानन सेवाएं, वायु रक्षा प्रणालियां, मशीनीकृत और बख्तरबंद वाहन दस्ते, एक ही इकाई के रूप में काम करते हैं जिसे भारतीय वायु सेना के उपकरणों का भी समर्थन प्राप्त है.

इसके अलावा, भारतीय सेना ने अपनी आक्रामक क्षमताओं की मजबूती पर भी खासा ध्यान दिया है, जिसके तहत वायु मार्ग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर उपकरणों और सैनिकों की तेजी से आवाजाही, ऊंची ऊंचाई (हाई अलटीटुडे) वाले हेलीबोर्न ऑपरेशन (हेलीकाप्टर की सहायता चलाये जाने वाले अभियान) और विभिन्न प्रकार की मिसाइलों के नवीनतम संस्करणों की तैनाती पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है.

बहुत सारे नए सुदृढ़ (फोर्टीफ़ाइड) भूमिगत बंकर बनाए गए हैं और पैदल सेना के सैनिकों को आम तौर पर दी जाने वाली बंदूकों (राइफल्स) के प्रकार को भी उन्नत बनाया गया है. एलएसी के साथ लगे सभी अग्रिम क्षेत्रों में तैनात पैदल सेना के सभी जवानों को सिग सॉयर 716 राइफलों से लैस किया गया है.

हालांकि लाइट मशीन गनों सहित नए-नए शामिल किया गए उपकरणों का एक बड़ा हिस्सा लद्दाख सेक्टर में भेजा गया है, जहां भारतीय और चीनी सैनिक आमने-सामने वाली स्थिति में हैं, पूर्वी कमान में भी काफी सारे नए अपकरणों की तैनाती हुई है, जिसके कारण इस इलाके में पड़ने वाली एलएसी सबसे अधिक प्रतिरक्षित इलाकों से एक हो गई है.

एलएसी के पूर्वी क्षेत्र में भारत ने अपनी रक्षात्मक और आक्रामक दोनों क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित किया है और यहां एक नई विमानन (एविएशन) ब्रिगेड की स्थापना के साथ-साथ सभी निगरानी ड्रोन को आर्टिलरी (तोपखाने) कमांड से हटाकर सेना के एविएशन विंग में स्थानांतरित कर दिया गया है.

जैसे कि दिप्रिंट ने पहले हीं अपनी एक रिपोर्ट में बताया था, चीन के आक्रामक रवैये का मुकाबला करने के लिए पूर्वी कमान ने और अधिक सैनिकों की तैनाती के बजाये अपना ध्यान अधिक तकनीक प्राप्त करने पर रखा है.


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भारत ने बढ़ाई अपने हथियारों की मारक क्षमता

हाल ही में भारतीय सेना ने दिन और रात में पूरी तरह से देखने की क्षमताओं (डे एंड नाईट विज़न कैपेबिलिटीज) और स्वचालित लक्ष्य प्राप्ति (आटोमेटिक टारगेट एक्वीजीशन) मोड के साथ अपग्रेड की गई (उन्नतिकृत) एल -70 वायु रक्षा तोपों को भी शामिल किया हैं.

An upgraded L-70 air defence gun deployed near the LAC in Arunachal Pradesh. | Photo: Snehesh Alex Philip | ThePrint
अरुणाचल प्रदेश में LAC के पास तैनात एक उन्नत L-70 वायु रक्षा बंदूक। | फोटो: स्नेहेश एलेक्स फिलिप | दिप्रिंट

हालांकि ये तोपें पहले-पहल 1960 के दशक में खरीदी गई थीं, मगर उनमें से 200 तोपों को सरकारी कंपनी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड के साथ 2017 में हुए एक अनुबंध के बाद अपग्रेड किया गया है.

इनमें से पहली कुछ तोपों, जो 3.5 किलोमीटर की सीमा के भीतर सभी उड़ने वाले लक्ष्यों को मार गिराने की क्षमता रखती हैं, को कुछ महीने पहले ही शामिल किया गया था और अब वे अरुणाचल के पहाड़ी इलाकों में छिपाकर तैनात अवस्था में हैं.

थल सेना की वायु रक्षा इकाई के कैप्टन सरिया अब्बासी ने बुम ला सेक्टर, जो 15,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर है, के तहत आने वाले अरुणाचल प्रदेश में स्थित एक अग्रिम स्थान (मोर्चे) पर पत्रकारों के एक समूह से बातचीत करते हुए कहा, ‘इन उन्नत तोपों की काफी बेहतर रेंज और सटीकता है.‘

सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस क्षेत्र विशेष में मुख्य खतरा हवाई मार्ग से ही है और ये उन्नत तोपें, जो फायर कैचर रडार और नए इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सिस्टम के साथ एकीकृत हैं, वायु रक्षा प्रणाली को और सुदृढ़ बनाती हैं.

इनके अलावा, पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव आरम्भ होने के बाद, सेना ने पिछले साल पूर्वी कमान के तहत बोफोर्स तोपों को भी शामिल किया था.

एम-777 तोपों के साथ इन बोफोर्स गन्स को 12,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर तैनात किया गया है.

ब्रिगेडियर संजीव कुमार कहते हैं, ‘इन तोपों ने हमारी मारक क्षमता को काफी हद तक बढ़ाया है.’

हालांकि एम-777 तोपों की सामान्य मारक सीमा 32 किमी है, ये तोपें – जिन्हें भारतीय वायुसेना के चिनूक हेलीकाप्टर वाले परिवहन बेड़े के साथ कहीं भी उठा के ले जाया और तैनात किया जा सकता है – हवा के पतली (रारिफ़िएड एयर- ऐसी हवा जिसमे ऑक्सीजन की मात्रा कम हो) होने के कारण एलएसी पर 40 किलोमीटर से अधिक की दूरी तक मार करने में सक्षम हैं.

सेना के सूत्रों ने बताया कि एम-777 तोपें वहां भी पहुंच सकती हैं जहां बोफोर्स तोपें नहीं पहुंच पाती है और इसलिए पहाड़ों के मामले में हमारी क्षमता में एक बड़ी छलांग जैसी हैं.

साथ ही उनका कहना है कि जब आने वाले भविष्य में जब ट्रैक्ड के-9 वज्र तोप प्रणाली – उन्नत टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस) के साथ – शामिल की जाएगी, तो वह हमारी आग्नेय मारक शक्ति को अगले स्तर तक ले जाएगी.


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कई स्तरों वाली रक्षा प्रणाली तैनात की गई है

पूर्वी कमान एलएसी के साथ लगे इलाकों में इंटीग्रेटेड डिफेंडेड लोकेशन पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है, और यह एक ऐसी रणनीति जिसे अब लद्दाख सेक्टर में भी दोहराया जा रहा है.

इस रणनीति, जिसे कुछ साल पहले तैयार किया गया था लेकिन जिसे लगातार अपडेट किया गया है, के तहत कई स्तरों वाले भूमिगत बंकरों, बारूदी सुरंगो (माइनफील्ड्स) और अन्य उपकरणों के मिश्रण के माध्यम से दुश्मन के आक्रामक को निष्क्रिय करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

दिप्रिंट ने इस तरह की रणनीति के एक जीवंत प्रदर्शन को असम हिल्स नामक स्थान पर देखा, जो एलएसी के बहुत करीब और 14,700 फीट की ऊंचाई पर स्थित है.

इसके तहत दुश्मन सेना द्वारा एक बख्तरबंद और मशीनीकृत कॉलम के द्वारा हमले के प्रतिउत्तर को दिखाया गया था.

इस प्रदर्शन में यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न रणनीतियां, युद्ध अभ्यास और अन्य युद्धनीतियां शामिल की गयी थीं कि दुश्मन इस विशेष स्थल से उस तरह आगे बढ़ने में सक्षम नहीं हो सके जैसा कि उसने 1962 के युद्ध के दौरान किया था.

सेना के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हालांकि यह एक रक्षात्मक व्यवस्था के तहत आता है, लेकिन एक घाटी से दूसरी घाटी में जाने और वहां सैनिकों और उपकरणों को कैसे भेजा/उतारा जाए, इस बारे में आक्रामक योजनाएं भी तैयार हैं.

सशस्त्र सेनाएं अपनी रक्षात्मक और आक्रामक रणनीतियों के लिए नियमित आधार पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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