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Friday, 29 March, 2024
होमडिफेंस‘भारत एक भंवर में फंस जाएगा’- दिल्ली से ‘हवाई मदद की अफगानिस्तान की मांग’ पर विचार की संभावना क्यों नहीं

‘भारत एक भंवर में फंस जाएगा’- दिल्ली से ‘हवाई मदद की अफगानिस्तान की मांग’ पर विचार की संभावना क्यों नहीं

यद्यपि किसी भी सक्रिय सैन्य सहयोग पर चर्चा नहीं की जा रही, भारत और अफगानिस्तान के बीच सैन्य उपकरणों के रखरखाव, प्रशिक्षण और स्पेयर पार्ट्स मुहैया कराने जैसे ‘सामान्य सहयोग’ पर चर्चा होती रहती है.

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नई दिल्ली: अफगानिस्तान में तालिबान के तेजी से कई इलाकों को अपने कब्जे में लेते जाने के बीच अफगान सरकार के सक्रिय सैन्य सहयोग के किसी भी अनुरोध पर भारत की तरफ से ध्यान दिए जाने की संभावना नहीं है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

सरकारी सूत्रों ने कहा कि अफगानिस्तान में किसी भी सक्रिय भारतीय सैन्य दखल पर किसी भी स्तर पर विचार नहीं किया जा रहा है. साथ ही इस पर जोर दिया कि अभी सारा ध्यान बातचीत के माध्यम से शांति बहाली सुनिश्चित करने पर केंद्रित है.

हालांकि, सूत्रों ने कहा, ‘सामान्य समर्थन’, जैसे सैन्य उपकरणों का रखरखाव, प्रशिक्षण और स्पेयर पार्ट्स मुहैया कराना ऐसा मुद्दा है जिस पर चर्चा होती रहती है.

सरकार के साथ-साथ सुरक्षा और रक्षा प्रतिष्ठानों से जुड़े सूत्रों ने भी कहा कि युद्धग्रस्त देश में कोई भी सैन्य भागीदारी ‘भारत को एक भंवर में फंसा देगी.’

यह टिप्पणियां ऐसे समय पर आई हैं जबकि अफगान सरकार की तरफ से देश में बिगड़ते सुरक्षा हालात पर काबू पाने के लिए भारत से ‘हवाई हमलों में सशक्त सहयोग’ का अनुरोध किया गया है—तालिबान के खिलाफ जंग में वायु क्षमता को एक अहम फैक्टर माना जाता है.

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अफगान अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को पूर्व में बताया था कि काबुल इस चिंता में यह मांग ‘काफी तेजी से आगे बढ़ा’ रहा है कि 31 अगस्त को एक बार अंतरराष्ट्रीय सेनाओं के पूरी तरह यहां से हटने के बाद तालिबान हिंसा का स्तर और बढ़ा देगा.

भारत सरकार के सूत्रों ने इस सवाल का तो कोई जवाब नहीं दिया कि क्या काबुल की तरफ से ऐसा कोई अनुरोध किया गया है. हालांकि, उन्होंने कहा कि आधिकारिक रुख यही है कि अफगानिस्तान में जमीनी स्तर पर कोई भारतीय सैनिक नहीं उतारा जाना है.

2017 में तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने अफगानिस्तान की सुरक्षा स्थिति मजबूत करने में भारतीय भागीदारी के अमेरिकी आह्वान के बीच यही बयान दिया था.

इस साल के शुरू में सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे ने भी यही बात दोहराई.


यह भी पढ़ें: तालिबान के साथ बातचीत से शांति समझौता तुरंत बंद करो, यह अभी भी एक आतंकवादी समूह है


‘सामान्य समर्थन बनाम सक्रिय समर्थन’

सूत्रों ने कहा कि भारत, जिसने तालिबान के साथ बातचीत भी शुरू कर दी है, अफगानिस्तान में ‘खुले तौर पर कुछ भी करते’ हुए नहीं दिखना चाहेगा. एक सूत्र ने कहा, ‘अभी, सबसे बातचीत करने और घटनाक्रम पर पूरी सक्रियता से नजर रखने का रुख अपनाया जा रहा है.’

पिछले महीने तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि भारत को मौजूदा अफगान सरकार को कोई सैन्य समर्थन नहीं देना चाहिए.

सरकारी सूत्रों ने पहले ही साफ कर दिया था कि नई दिल्ली अफगान बलों को भारत की तरफ से पूर्व में मुहैया कराए गए उपकरणों के रखरखाव के लिए जरूरी किसी भी तरह की तकनीकी मदद देने पर विचार कर सकती है, लेकिन कोई नई सैन्य प्रणाली भेजने की कोई योजना नहीं है.

पिछले कुछ सालों में भारत ने अफगान वायु सेना को चार एमआई-24वी लड़ाकू हेलीकॉप्टर, तीन हल्के उपयोग वाले चीता हेलीकॉप्टर के अलावा कुछ अन्य सैन्य उपकरण भी उपहार में दिए हैं.

आने वाले समय में अफगानिस्तान में भारत की संभावित भूमिका पर चर्चा करते हुए सूत्रों ने कहा कि प्रशिक्षण और मेंटिनेंस जैसे कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन पर गौर किया जा सकता है. अफगान सैन्य अधिकारी भारत के विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों में ट्रेनिंग लेते हैं.

सूत्रों ने कहा कि भारत की तरफ से अफगानिस्तान को हवाई हमले में किसी भी तरह की मदद मुहैया कराए जाने से कोई समाधान नहीं निकलने वाला है. एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘अमेरिका पिछले 20 वर्षों से बमबारी कर रहा है. भारत इसकी जगह क्यों लेना चाहेगा.’

एक तीसरे सूत्र ने कहा, अफगानिस्तान को जिस चीज की जरूरत है, वह है ‘शांति और जंग का खात्मा.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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