scorecardresearch
Saturday, 27 July, 2024
होमडिफेंसचीन के जासूसी गुब्बारे की तरह भारत के पास एयरोस्टैट्स, 16 साल पुराने प्रोजेक्ट के भी मिले-जुले नतीजे

चीन के जासूसी गुब्बारे की तरह भारत के पास एयरोस्टैट्स, 16 साल पुराने प्रोजेक्ट के भी मिले-जुले नतीजे

कारगिल रिव्यु कमिटी द्वारा की गई सिफारिश के बाद, वायु सेना ने साल 2007 में हवाई निगरानी के उद्देश्य से 300 करोड़ रुपये से अधिक के 2 एयरोस्टैट्स खरीदे थे. आईएएफ निगरानी संबंधी कार्यों के लिए अवाक्स को ही तरजीह देती है.

Text Size:

नई दिल्ली: भारतीय वायु सेना (आईएएफ) द्वारा दो एयरोस्टैट्स को पहली बार शामिल किए जाने के 16 साल बाद उसे पाकिस्तान के साथ पश्चिमी सीमाओं पर तैनात किए गए इन एयरोस्टैट्स के प्रयोग से मिले-जुले नतीजे ही मिले हैं. नतीजतन, जैसा कि दिप्रिंट को पता चला है, इन्हें बदला जाना अब आईएएफ की प्राथमिकताओं की सूची में और भी नीचे चला गया है .

एक एयरोस्टेट एक हीलियम से भरा गुब्बारा है जो ज़मीन से बंधा होता है, लेकिन 60,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर उड़ने में सक्षम चीनी जासूसी गुब्बारों के विपरीत यह लगभग 15,000 फीट की ऊंचाई पर ही काम करता है.

एक ओर जहां चीन अपने जासूसी गुब्बारे-जिनके बारे में अमेरिका का कहना है कि इन्हें भारत के खिलाफ भी तैनात किया गया था-को लेकर चर्चा में है, वहीं सूत्रों का कहना है कि मौसम की स्थिति नई दिल्ली को ऐसे गुब्बारों को संचालित करने की अनुमति नहीं देती है, जो वास्तविक रूप से अहम खुफिया जानकारी जुटाने की उनकी उपयोगिता की बजाय कहीं अधिक ‘परेशानी’ पैदा करने के लिए जाने जाते हैं.

हालांकि, द वाशिंगटन पोस्ट में छपी खबर के अनुसार कि पिछले साल जून में हवाई आइलैंड्स में दुर्घटनाग्रस्त हुए चीनी जासूसी गुब्बारे ने बीजिंग द्वारा उनमें उपयोग की जाने वाली तकनीक की प्रकृति के बारे में उपयोगी जानकारी प्रदान की थी. इसके अलावा, उससे यह भी जानकारी मिली थी कि यह वास्तव में कैसे उड़ता है.

इस खबर में कई अधिकारियों के हवाले से कहा गया था कि कुछ गुब्बारों में इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर या डिजिटल कैमरे लगे होते हैं, जो उनके रेजोल्यूशन के आधार पर बेहद सटीक तस्वीरें खींच सकते हैं. वह रेडियो सिग्नल और उपग्रह संचरण (सैटलाइट ट्रांसमिशन) क्षमता से भी लैस होते हैं.

इससे पहले, साल 2019 में, दिप्रिंट ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि चीन ने तिब्बत से लगी भारतीय सीमा पर भारत द्वारा प्रयुक्त एयरोस्टैट्स के समान ही बैलून-आधारित रडार तैनात किए हैं.


यह भी पढ़ेंः Budget 2023 : डिफेंस को पिछले साल के मुकाबले 13% ज्यादा, पेंशन और वेतन पर लगभग आधा हिस्सा खर्च होगा


भारत का एयरोस्टेट प्रोजेक्ट

कारगिल रिव्यु कमिटी द्वारा की गई सिफारिश के बाद, आईएएफ ने साल 2007 में 300 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से निगरानी के उद्देश्य से दो एयरोस्टैट्स खरीदे थे – जिन्हें टेथर्ड एरोस्टेट रडार सिस्टम या टार्स के रूप में भी जाना जाता है.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि हालांकि, इनमें लगे गुब्बारे अमेरिकी थे, मगर इनमें बहुत सारे इजरायली उपकरण भी लगाए गए थे.

इन एरोस्टैट्स में अन्य चीजों के साथ-साथ लंबी दूरी के रडार, सिग्नल इंटेलिजेंस सिस्टम और मौसम संबंधी उपकरण लगे होते हैं. हालांकि, सैन्य रडारों में लंबी दूरी तक संचालित करने की क्षमता होती है, मगर हवा में ऊंचाई पर टंगे होने से उन्हें पृथ्वी की वक्रता और अन्य सतही अवरोधों की सीमाओं से पार पाने की अनुमति मिलती है.

किसी भी एयरोस्टेट में इसके अंदर लगाए गए उपकरणों के प्रकार और मौसम की स्थिति के आधार पर 100-600 किमी की सीमा के भीतर सभी तरह के टेक-ऑफ (विमानों के उड़ान भरने) और लैंडिंग या बड़े पैमाने पर होने वाले सैन्य हलचल की टोह लेने की क्षमता है.

एक सूत्र ने बताया, ‘‘एयरोस्टेट का संचालन किया जाना मौसम की स्थिति के अनुसार सीमित होता है. उदाहरण के लिए, यदि मौसम खराब है, तो इसे नीचे लाना होता है. अगर बादल या धुंध वाली स्थिति हो तो रडार प्रभावी ढंग से काम नहीं करते हैं. एरोस्टैट्स से मिली प्रतिक्रिया मिश्रित रही है.’’

सूत्रों ने बताया कि भारतीय वायुसेना और अधिक एयरोस्टैट खरीदना चाहती थी, लेकिन अंततः उसने यह विचार छोड़ दिया और अब यह मुद्दा उसकी प्राथमिकताओं की सूची में बहुत नीचे चला गया है.

सूत्र ने कहा, ‘‘जब भारतीय वायुसेना को यह पहली बार मिला था, तो यह निगरानी के लिए एक उत्कृष्ट प्रणाली थी.’’

आईएएफ को अब लगता है कि निरंतर निगरानी का हल एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट (अवाक्स) में छिपा है.

एक दूसरे सूत्र ने कहा,‘‘अवाक्स मौसम पर निर्भर नहीं है और उन्हें किसी भी समय तैनात किया जा सकता है. यह एक स्थान पर स्थिर रहने के बजाय आगे बढ़ने में भी सक्षम होते है.’’

सूत्रों ने यह भी कहा कि भारतीय वायुसेना समय-समय पर एयरोस्टेट में लगे उपकरणों को अपग्रेड करती रही है और इसके लिए स्वदेशी प्रणालियों की ताक में हैं.

भारत के खिलाफ काम करते हैं हवा से जुड़े कारक

एक सूत्र ने कहा कि भारत द्वारा जासूसी गुब्बारे तैनात करने के लिए हवा की स्थिति उसके अनुकूल नहीं है. उन्होंने इसे और बेहतर तरीके से समझते हुए कहा कि इस इलाके में हवा पश्चिम से पूर्व की ओर चलती है, यानी पाकिस्तान से भारत की ओर. इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान तो इस तरह के गुब्बारे को तैनात कर सकता है, लेकिन भारत के लिए यह माकूल नहीं है.

इसी तरह, चीन भी भारत को निशाना बनाते हुए ऐसे जासूसी गुब्बारों को तब तक तैनात नहीं कर सकता, जब तक कि वह पाकिस्तान से संचालित न हों.

हालांकि, चीन के तमाम दावों के बावजूद कि यह हवा ही थी जो उसके गुब्बारे को अमेरिकी क्षेत्र में ले गई, ‘फोर्ब्स’ पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार एटमोस्फियरिक (वायुमंडलीय) मॉडलिंग और स्मार्ट एल्गोरिदम एक गुब्बारे को किसी भी वांछित दिशा में हवा की राह पकड़ने के लिए अपनी ऊंचाई बदलने की और यहां तक कि ज़मीन पर किसी निश्चित बिंदु के चारों ओर घूमने की भी अनुमति देते हैं.

अमेरिकी सेना पिछले कई वर्षों से इसी तरह के गुब्बारों का परीक्षण कर रही है. साल 2018 तक एल्गोरिदम ने न केवल एक गुब्बारे को 30 मील के दायरे में सीमित रहने की सुविधा प्रदान की थी, बल्कि तबसे इसमें लगातार सुधार भी हुआ है.

अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल) के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा है कि चीनी गुब्बारा न केवल हवा में तैर रहा था, बल्कि इसमें इसे नियंत्रित करने के लिए प्रोपेलर और स्टीयरिंग भी लगे थे. यह बात दीगर है कि काफी अधिक ऊंचाई वाली जेट स्ट्रीम हवाओं में बह गया हो. इस तरह से इन गुब्बारों में बहुत सारी तकनीक लगी होती है और यह अपने नेविगेशन के लिए सिर्फ हवा के रुख के अलावा बहुत सारी अन्य चीजों पर भी निर्भर करते हैं.

(अनुवाद: रामलाल खन्ना | संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः तेजस और भारी लड़ाकू विमानों के बीच फिट – लॉकहीड क्यों चाहता है कि भारत F-21 एयरक्राफ्ट खरीदे


 

share & View comments