scorecardresearch
Monday, 6 May, 2024
होमसमाज-संस्कृतिहैरानी है अतीक-अशरफ हत्याकांड से जी-20 के लिए भारत आए डेलीगेट्स को क्या संदेश जाएगा: उर्दू प्रेस

हैरानी है अतीक-अशरफ हत्याकांड से जी-20 के लिए भारत आए डेलीगेट्स को क्या संदेश जाएगा: उर्दू प्रेस

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख इख्तियार किया.

Text Size:

नई दिल्ली: गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद की हत्या की खबरें पूरे हफ्ते उर्दू प्रेस के पहले पृष्ठ पर छाई रहीं, तीनों प्रमुख उर्दू अखबारों- रोजनामा, राष्ट्रीय सहारा, इंकलाब और सियासत ने उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठाया.

15 अप्रैल की रात प्रयागराज में अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. झांसी में पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ में अतीक के बेटे असद अहमद के मारे जाने के दो दिन बाद ये हत्याएं हुईं.

उर्दू अखबारों के पहले पृष्ठ पर सुर्खियां बनने वाले अन्य मुद्दों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा समान लिंग विवाह की सुनवाई, सूरत की एक अदालत द्वारा कांग्रेस नेता राहुल गांधी की आपराधिक मानहानि के मामले में अपील को खारिज करना और जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के 2019 में हुए पुलवामा हमले के बारे में सनसनीखेज दावे शामिल थे.

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख इख्तियार किया.

दिप्रिंट आपके लिए लेकर आया है इस पूरे हफ्ते उर्दू प्रेस में सुर्खियां बटोरने वाली सभी खबरों का राउंड-अप.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें


यह भी पढ़ेंः नरोदा गाम से अतीक़ तक खिंचती रेखा ने ‘ठोक दो’ वाली संस्कृति तक पहुंचाया है


अतीक अहमद की हत्या

प्रयागराज के एक अस्पताल में मेडिकल जांच के लिए आए समाजवादी पार्टी (सपा) के पूर्व सांसद अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की परिसर के बाहर पत्रकारों से बातचीत के दौरान हत्या कर दी गई. मामले में तत्काल तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता उमेश पाल की फरवरी में हुई हत्या के मामले में अतीक, अशरफ और असद संदिग्ध थे.

16 अप्रैल को तीनों उर्दू अखबारों ने हत्या की खबर को प्रमुखता से छापा. सहारा ने बताया कि हत्या ‘जय श्री राम’ के नारों के बीच और पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में हुई, जिन्होंने जवाबी फायरिंग भी नहीं की.

खबर में कहा गया है कि अतीक ने कुछ दिन पहले पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की आशंका जताई थी.

इस बीच, इंकलाब ने बताया कि अतीक के बेटे असद को प्रयागराज के धूमनगंज के कसारी मसारी गांव में उसके दादा की कब्र के बगल में दफनाया गया था.

17 अप्रैल को सहारा ने लिखा कि विपक्षी दलों ने इस घटना की निंदा की और कहा कि उत्तर प्रदेश में “जंगल राज” है.

उसी दिन सियासत ने चश्मदीदों के हवाले से बताया कि संदिग्ध पुलिस की गाड़ी में अस्पताल पहुंचे और उन्होंने अपने गले में प्रेस कार्ड पहने हुए थे.

उस दिन एक संपादकीय में सहारा ने कहा कि ये हत्याएं जी20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान हुईं. अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि भारत आ रहे थे और यहां क्या हो रहा है, इस पर ध्यान देते हुए कहा, देश की सुरक्षा के बारे में उन्हें क्या संदेश जाएगा.

सियासत ने अपने संपादकीय में कहा कि अतीक और अशरफ की हत्या उत्तर प्रदेश में अराजकता का सबूत है. स्थिति को एक कड़ी बताते हुए संपादकीय में कहा गया है कि राज्य में किसी भी विपक्ष को कुचलने के लिए बुलडोजर और बंदूकों का इस्तेमाल किया जाता रहा है. इसमें ये भी कहा गया है कि कोर्ट के बाहर फैसले लिए जा रहे हैं और न्यायेतर सजा दी जा रही है और ऐसे सभी मामलों की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की गई.

19 अप्रैल को सहारा ने लिखा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले का संज्ञान लिया और यूपी के पुलिस महानिदेशक, राज्य सरकार और प्रयागराज पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी किया.

उसी दिन अख़बार ने खबर दी कि अतीक के वकीलों में से एक के घर के बाहर कच्चे बम फेंके गए थे.

उस दिन एक संपादकीय में सहारा ने कहा था कि हत्यारों का महिमामंडन करना इस देश की परंपरा का हिस्सा नहीं है. यहां संविधान और कानून का शासन सर्वोच्च है. इसलिए यह विडंबना है कि इस तरह के देश में कानून के रक्षक ऐसी असाधारण हत्याओं के लिए अपनी पीठ भी थपथपा रहे थे और इसे उचित ठहरा रहे थे.

20 अप्रैल को सहारा ने लिखा कि प्रयागराज के शाहगंज पुलिस स्टेशन के पांच पुलिसकर्मियों को विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच के बाद चूक के लिए निलंबित कर दिया गया था.


यह भी पढ़ेंः ‘लव इज लव’ vs ‘परिवार पर हमला’- समलैंगिक विवाह पर आज दलीलें सुनेगी संविधान पीठ


सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से लेकर सूरत की अदालत द्वारा राहुल गांधी की आपराधिक मानहानि की सजा के खिलाफ अपील की सुनवाई तक अदालती कवरेज ने इस हफ्ते मुख्य पृष्ठ के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया.

18 अप्रैल को सियासत ने लिखा कि कथित शराब नीति घोटाले के सिलसिले में फरवरी में गिरफ्तार किए गए दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की हिरासत 1 मई तक बढ़ा दी गई है.

इसी दिन सहारा ने बताया कि केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि समलैंगिक विवाह एक “शहरी अभिजात्य” वर्ग की धारणा है जो कि आम नागरिकों के हितों के खिलाफ है.

19 अप्रैल को अखबार ने लिखा कि गुजरात में मोदी सरकार और भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वे शीर्ष अदालत के 27 मार्च के आदेश के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर करने पर विचार कर रहे थे, जिसमें 2002 के बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में 11 दोषियों की सजा को कम करने वाली फाइलों की मांग की गई थी. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी कर अपराध की गंभीरता पर प्रकाश डाला और दोनों (राज्य और केंद्र) सरकारों को निर्देश दिया कि वे फाइलें उसके सामने रखें.

इसके अलावा 19 अप्रैल को अखबार ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्याओं की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है.

21 अप्रैल को उर्दू के तीनों अख़बारों ने बताया कि सूरत की एक सत्र अदालत ने 2019 के मानहानि मामले में दो साल की सजा के खिलाफ राहुल गांधी की अपील को खारिज कर दिया.

बता दें कि राहुल को कर्नाटक में एक चुनावी रैली के दौरान की गई उनकी टिप्पणी के लिए दो साल की जेल की सजा सुनाई गई थी, जहां उन्होंने कहा था- “सभी चोरों के सरनेम में मोदी क्यों है, चाहे वे नीरव मोदी, ललित मोदी और नरेंद्र मोदी हों?”

21 अप्रैल को एक संपादकीय में सियासत ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान नरोदा गाम नरसंहार में गुजरात की एक अदालत द्वारा सभी 69 संदिग्धों को बरी किए जाने को राज्य की पुलिस और कानून विभागों की विफलता से जोड़ा.

संपादकीय में कहा गया है कि इस तथ्य के बावजूद कि निर्दोष मुसलमानों का खून बहाया गया, आरोपियों को अदालतों ने रिहा कर दिया. इस बीच पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट 2002 के दंगों में एक उच्च-स्तरीय साजिश के बारे में संदेह व्यक्त करने और सच्चाई को सामने लाने के लिए लड़ने के लिए जेल में हैं. संपादकीय में कहा गया है कि गुजरात प्रशासन मामले में न्याय से इनकार कर रहा है.

पुलवामा हमला

द वायर के साथ सत्यपाल मलिक का इंटरव्यू कि पुलवामा हमला हुआ क्योंकि गृह मंत्रालय (एमएचए) ने अपने सैनिकों को स्थानांतरित करने के लिए एक विमान के लिए सीआरपीएफ की मांगों पर ध्यान देने से इनकार कर दिया था, सहारा और इंकलाब दोनों ने इसे प्रमुखता से कवर किया था.

मलिक ने अपने इंटरव्यू में दावा किया था कि पीएम नरेंद्र मोदी ने उनसे इस मुद्दे पर चुप रहने को कहा था.

अखबारों ने कांग्रेस के इस आरोप को भी छापा कि मोदी सरकार मलिक की आवाज़ दबाने की कोशिश कर रही है.

18 अप्रैल को एक संपादकीय में सियासत ने कहा कि इस तरह के आरोपों को नज़रअंदाज़ करने के बजाय दावों की जांच करने और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की ज़रूरत है.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः अतीक अहमद को मुस्लिमों का हीरो बनाना बंद करिए, वह हमारे लिए ‘रॉबिन हुड’ नहीं थे


 

share & View comments