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Friday, 3 May, 2024
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क्या विपक्ष गुजरात में ‘बीजेपी के गढ़’ में सेंध लगा पाएगा? उर्दू प्रेस ने कहा, नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं

उर्दू मीडिया ने पिछले हफ्ते की घटनाओं को कैसे कवर किया और उन पर उसका संपादकीय नजरिया क्या रहा. इस बारे में दिप्रिंट का राउंड-अप.

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नई दिल्ली: गुजरात का तेज होता तीखा चुनावी अभियान और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘प्यार भरी’ यात्रा पूरे हफ्ते उर्दू अखबारों में राजनीतिक कवरेज का केंद्र बिंदु बनी रहीं.

गुजरात में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के भाषणों को महत्वपूर्ण कवरेज दिया गया. इसमें उन्होंने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नोटबंदी से लेकर कोविड महामारी के प्रभाव तक, को लेकर निशाना साधा.

हालांकि, बढ़ता चुनावी पारा भी राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा को उर्दू अखबारों के पहले पन्नों से दूर नहीं रख सका.

इस सप्ताह ध्यान खींचने वाली महत्वपूर्ण खबरों में फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर इज़राइली फिल्म निर्माता नादव लैपिड की तीखी टिप्पणी और उसके बाद हुई कूटनीतिक हलचल, भारत का G-20 की अध्यक्षता करना और न्यायिक नियुक्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही शामिल रही.

दिप्रिंट आपके लिए इस सप्ताह उर्दू अखबारों की सभी खबरों का एक राउंड-अप लेकर आया है.

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गुजरात चुनाव

गुजरात में दो चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले चरण के चुनाव प्रचार और मतदान से जुड़ी खबरों ने उर्दू के तीनों अखबारों इंकलाब, रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा और सियासत के पहले पन्ने पर महत्वपूर्ण जगह बनाई.

26 नवंबर को ‘इंकलाब’ के पहले पन्ने की बड़ी खबर में गृहमंत्री अमित शाह का 2002 के गोधरा दंगों के बाद सीखे गए ‘सबक’ और गुजरात में ‘स्थाई शांति’ को लेकर दिया गया बयान था.

शाह 25 नवंबर को खेड़ा जिले के महुधा में बोल रहे थे.

‘इंकलाब’ में 29 नवंबर के एक संपादकीय में लिखा था, ‘यह संभव है कि गुजरात इस तरह का फैसला ले ले जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की हो, भले ही यह संभावना उन लोगों के लिए बहुत अच्छी न हो जो राज्य को ‘भाजपा का गढ़’ मानते हैं.

संपादकीय में आगे कहा, ‘राज्य एक बार विकास को लेकर मतदान कर चुका है और आर्थिक विकास के दावे सच साबित होते नजर भी आए क्योंकि राज्य में एक बड़ा व्यापारिक समुदाय है. लेकिन अब लोग एक ऐसी राजनीतिक पार्टी चाहते हैं जो सक्रिय रूप से उनके कल्याण के लिए काम करे.’

उसी दिन ‘सियासत’ ने अपने संपादकीय में लिखा कि गुजरात के लोगों को समान नागरिक संहिता जैसे विभाजनकारी मुद्दों से गुमराह किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि इसका राज्य के लोगों या इसकी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि यह सब की जरूरत है. यह केंद्र द्वारा एक विधायी पहल है.

29 नवंबर को ‘सहारा’ ने गुजरात के देदियापाड़ा में खड़गे के बयान को अपने पहले पन्ने की लीड बनाया कि उनके हाथ की चाय कभी किसी ने नहीं पी. खड़गे मोदी की उन बातों पर चुटकी ले रहे थे जिसमें वह बार-बार अपने लड़कपन के दिनों में चाय बेचने और एक दलित नेता के रूप में खुद की वंचित पृष्ठभूमि का जिक्र करते रहते हैं.

इसी अखबार की एक अन्य रिपोर्ट में मोदी के चुनावी अभियान में कही गई बात को छापा कि अगर गुजरात भाजपा को वोट देना जारी रखता है तो वह नई ऊंचाइयों को छू लेगा. प्रधानमंत्री गुजरात के भावनगर जिले के पलिताना में एक रैली को संबोधित कर रहे थे.

खड़गे ने गुजरात में एक भाषण में मोदी की तुलना कई सिर वाले रावण से की थी. 30 नवंबर को ‘इंकलाब’ ने गुजरात में कांग्रेस और भाजपा के बीच इस बयान के बाद होने वाले वाक युद्ध की खबर प्रकाशित की थी.

उसी दिन ‘सियासत’ ने खड़गे के अभियान भाषण पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की. कांग्रेस अध्यक्ष ने दावा किया कि नोटबंदी, जीएसटी के दोषपूर्ण कार्यान्वयन और कोविड महामारी जैसे कई कारणों से गुजरात की औसत आय अब राष्ट्रीय औसत से कम हो गई है.

2 दिसंबर को – पहले चरण के चुनाव के एक दिन बाद – तीनों समाचार पत्रों ने मतदान प्रतिशत को अपनी खबरों में जगह दी.


यह भी पढ़ें: उर्दू प्रेस ने कहा कि BJP का ‘पसंदीदा’ विषय ‘जबरन धर्मांतरण’ गुजरात चुनाव से पहले फिर से खबरों में है


भारत जोड़ो यात्रा

26 नवंबर को एक संपादकीय में इंकलाब ने लिखा, लोग अब समझ गए हैं कि भारत जोड़ो यात्रा समाज को धार्मिक आधार पर विभाजित करने के प्रयासों और समुदायों के बीच नफरत को बढ़ावा देने वाले प्रोपेगेंडा के खिलाफ है.

28 नवंबर को ‘सियासत’ ने यात्रा के दौरान राहुल गांधी की मोटरसाइकिल की सवारी को लेकर पहले पन्ने पर रिपोर्ट छापी थी.

उसी दिन ‘इंकलाब’ ने कांग्रेस को यह दावा करते हुए रिपोर्ट किया कि यात्रा ने देश में राजनीतिक नैरेटिव को बदल दिया है और चालाकी से बीजेपी को पीछे छोड़ दिया है.

29 नवंबर को ‘सियासत’ ने गांधी के इस बयान पर कि उनकी छवि खराब करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं, को अपने पहले पन्ने पर जगह दी थी.

अगले दिन अखबार ने यात्रा से जुड़ी एक तस्वीर छापी जिसमें गांधी और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भीड़ से घिरे हुए नजर आ रहे थे.

2 दिसंबर को इसी अखबार ने अभिनेता स्वरा भास्कर के यात्रा में शामिल होने की खबर छापी थी. अखबार ने गांधी और भास्कर के एक साथ चलने वाली एक तस्वीर को भी अपने पन्ने पर जगह दी थी.

उसी दिन अपने ‘संपादकीय’ में इंकलाब ने लिखा कि यात्रा राजनीति को लेकर नहीं है बल्कि प्यार, भाईचारे, समानता और समाज के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बढ़ावा देने के बारे में है, जिसकी परछाई तले पल कर कई भारतीय बड़े हुए हैं.

संपादकीय में राहुल गांधी के दार्शनिक बयान का भी जिक्र था, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने खुद को और कांग्रेस दोनों को पीछे छोड़ दिया है और हर बीतते दिन के साथ वे ज्यादा से ज्यादा शक्तिशाली महसूस करते जा रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही निश्चित रूप से ऐसा मैटर है, जिस पर आमतौर पर उर्दू अखबार काफी बारीकी से नजर रखते हैं. लेकिन न्यायपालिका और केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू के बीच इस हफ्ते के टकराव को विशेष रूप से बड़ा कवरेज मिला.

29 नवंबर को ‘ इंकलाब’ ने अपने पहले पन्ने पर रिपोर्ट किया, ‘न्यायिक नियुक्तियों पर ‘सरकार फाइलों पर बैठी है’ रिजिजू के इस बयान पर सुप्रीम कोर्ट में ‘गहरी नाराजगी’ है.

30 नवंबर को ‘सहारा’ ने खबर दी कि केंद्र सरकार ने जज की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित दो नामों को मंजूरी दे दी है.

उच्चतम न्यायालय की अन्य कार्यवाहियों को भी प्रमुखता से कवरेज मिली. 29 नवंबर को ‘सियासत’ के पहले पन्ने पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार के रुख के बारे में एक स्टोरी प्रकाशित की थी, जिसमें लिखा था कि धार्मिक मौलिक अधिकार में दूसरे लोगों को धर्म विशेष में धर्मांतरित कराने का अधिकार शामिल नहीं है.

केंद्र सरकार का यह रुख तब आया जब अदालत भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें ‘जबरन धर्मांतरण’ के खिलाफ कदम उठाने की मांग की गई थी.

एक दिसंबर को ‘सहारा’ ने बताया कि 2002 गैंगरेप पीड़िता बिलकिस बानो ने मामले में बलात्कारियों की रिहाई को चुनौती देते हुए एक समीक्षा याचिका दायर की है. यह खबर इंकलाब के पहले पन्ने पर भी थी.

द कश्मीर फाइल्स

इजराइली फिल्म निर्माता नादव लैपिड ने कश्मीर फाइल्स को भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में ‘एक प्रोपेगेंडा, वल्गर’ फिल्म बताया था. उर्दू प्रेस में इसे लेकर काफी कुछ छापा गया.

लैपिड गोवा में चल रहे ‘आईएफएफआई’ फिल्म फेस्टिवल के जूरी प्रमुख हैं और उन्होंने केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर सहित कई जाने-माने व्यक्तियों के सामने यह टिप्पणी की थी.

30 नवंबर को ‘इंकलाब’ ने लैपिड के बयान को अपनी प्रमुख रिपोर्ट के रूप में आगे बढ़ाया. उसी दिन ‘सियासत’ ने बताया कि भारत में इस्राइल के राजदूत नौर गिलोन ने उनके बयान की निंदा की है.

1 दिसंबर को ‘इंकलाब’ ने लैपिड के उस बयान को छापा जिसमें उन्होंने कहा था कि वह अपने बयान पर कायम है. सहारा ने भी अपने पहले पन्ने पर इस बयान को प्रमुखता से छापा. खबर का शीर्षक लैपिड के कहे गए शब्दों का दोहराव था- ‘किसी को तो सच बोलना ही था’

‘सियासत’ ने 2 दिसंबर को ‘प्रोपेगेंडा फिल्म पर हंगामा’ शीर्षक से अपने संपादकीय में लिखा कि जीवन के हर क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप या सभी चीजों को एक रंग में रंगने के लालच से बचना जरूरी है. अखबार ने हर मुद्दे को सांप्रदायिक चश्मे से देखने के खिलाफ भी चेतावनी दी.

भारत की G-20 अध्यक्षता

28 नवंबर को सहारा के पहले पन्ने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर महीने प्रसारित होने वाली ‘मन की बात’ के नए संस्करण से जुड़ी खबर थी. अखबार ने बताया कि ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री ने भारत द्वारा G-20 की अध्यक्षता करने के बारे में बात की. उन्होंने अपने प्रसारण में यह भी दावा किया कि भारत ने वाद्य यंत्रों के निर्यात में तेजी देखी है.

सियासत ने भी अपने पहले पन्ने पर मोदी की ‘मन की बात’ को लेकर एक रिपोर्ट छापी जिसका शीर्षक था- ‘जी-20 की अध्यक्षता भारत के लिए एक बड़ा अवसर: मोदी’.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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