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Sunday, 3 November, 2024
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लुटियंस वंशवाद की चाबी होने के बावजूद क्यों बौखला रहे हैं करण थापर?

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थापर वंश नेहरू-गांधी और खुशवंत सिंह से सबंधों के साथ अविभाजित पंजाब और बाद में दिल्ली के अभिजात वर्गों में से एक था।

नई दिल्लीः करण थापर की नई किताब ‘डेविल एडवोकेट’ किसी पढने वाले को कई रोचक बातें बताती है,उस चीज़ को नज़र अन्दाज़ करते हुए की अनुभवी पत्रकार के मित्र उच्च पदों पर हैं। किताब, जिसे 20 जुलाई को प्रकाशित किया गया था,उसे मीडिया द्वारा काफी बारीकी से पढ़ा गया इस होड़ में की सबसे असरदार और चटपटा सार कौन निकल पायेगा;कुछ भी कहिए लेकिन थापर की आत्मकथा में उनके दो सबसे विवादास्पद साक्षात्कारों- जे. जयललिता और नरेंद्र मोदी के पीछे के दृश्य शामिल होंगे।

एक बात स्पष्ट है कि पहुँच और पकड़ के मामले में बहुत ही कम लोग और जगह ऐसी हैं जहाँ थापर की पहुँच और पकड़ नहीं है। और तब भी वे शिकायत कर रहे हैं।

थापर ने “दि वायर” द्वारा प्रकाशित एक हालिया उद्धरण,जिसका शीर्षक है- ‘2007 में मोदी क्यों कर गए थे वाकआउट और भाजपा अब मुझे त्याग रही है’,में लिखा है, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि जिनके साथ मैं मित्रवत हूँ वे अनोखे मंत्री हैं,अरुण जेटली इसके मुख्य उदाहरण हैं। लेकिन विशाल बहुमत (भाजपा मंत्रियों का)जिनसे मेरे अछे सम्बन्ध थे, मोदी के प्रधानमंत्री बनने के एक साल के भीतर ही उन्हीने मुझसे अलग होने के कारन ढूंढ लिए।”

इसके साथ ही, दिप्रिंट ने थापर के बचपन के करीबी दोस्त संजय गांधी के साथ  साहसिक कार्यों पर रोशनी डालते हुए एक प्रस्तुति की।

थापर लिखते हैं, “मैं सबसे पहले संजय से मेरी बहन शोभा के दोस्त के रूप में मिला।1960 के दशक की शुरुआत में, पिताजी सेना प्रमुख थे और हम आर्मी हाउस में रह रहे थे जिसे उस समय दिल्ली में किंग जॉर्ज मार्ग (अब राजाजी मार्ग) कहा जाता था। उस समय, संजय प्रधान मंत्री के पोते थे और सेंट कोलंबिया स्कूल में पढ़ रहे थे।”

स्पष्ट रूप से,टीवी एंकर का सभी राजनीतिक पक्षों की तरफ से स्वागत किया जाता था। यह बहस की जा सकती है कि वे लुटियंस की दिल्ली की बुनियाद हैं,और यह उससे बहुत पहले की बात है जबकि वे अपना टीवी एंकर होने का हुनर जान पाए थे।

थापर राजवंश

1855 में जन्मे करण थापर के दादाजी लाहौर के दीवान बहादुर कुंज बिहारी थापर थे।वे पंजाबी अभिजात वर्ग के एक वर्ग से संबंधित थे जो औपनिवेशिक ब्रिटिश भारतीय सेना के लिए कमीशन एजेंट के रूप में अस्तित्व में आया था। कुंज बिहारी थापर भी उमर हयात खान, चौधरी गजजन सिंह और राय बहादुर लाल चंद में से एक थे, जिन्होंने पंजाब के गवर्नरसर माइकल ओडवायर,वह व्यक्ति जिन्होंने जलियाँवाला बाग नरसंहार के दौरान ब्रिगेडियर-जनरल रेजिनाल्ड डायर के कार्यों का समर्थन किया,की निधि में 1.75 लाख रुपये दान किए थे।

अंग्रेजों के प्रति उनकी वफादारी के लिए, कुंज बिहारी थापर को 1920 में ब्रिटिश साम्राज्य का सबसे उत्कृष्ट सम्मान भी दिया गया था।

कुंज बिहारी थापर के तीन बेटे – दया राम, प्रेम नाथ और प्राण नाथ और पांच बेटियाँ थीं।

दया राम और प्राण नाथ (करण के पिता) ने पारिवारिक संबद्धताओं का एक नेटवर्क तैयार किया जो आगामी वर्षों में थापर वंश को राजनीतिक और सामाजिक रूप प्रासंगिक बनाए रखेगा।

जनरल प्राण नाथ थापर 1962 में चीन के खिलाफ युद्ध हारने वाले एकमात्र भारतीय सेना प्रमुख थे, जिसने उन्हें उस वर्ष 19 नवंबर को अपमानित होकर त्यागपत्र देने के लिए मजबूर कर दिया था।

मार्च 1936 में, थापर ने गौतम सहगल की बहन बिमला बशीराम सहगल से विवाह किया था, जो बाद में नयनतारा सहगल शादी करते।

नयनतारा अंग्रेजी की एक भारतीय लेखिका हैं, विजय लक्ष्मी पंडित से जन्मी तीन बेटियों में से दूसरी, जिनके भाई जवाहरलाल नेहरू थे। मोतीलाल नेहरू की पुत्री विजय लक्ष्मी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की सक्रिय सदस्या थीं।उन्होंने संविधान सभा की सदस्य और सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको, सेंट जेम्स की अदालत में और आयरलैंड के भारत के राजदूत के रूप में कार्य किया। 1953 में, वह संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षता करने वाली पहली महिला बनीं।

बिमला सहगल की बहन, करण की मौसी, का विवाह वीपी मेनन के बेटे से हुआ था– यह वो तथ्य है जिसका करण ने एल. के. अडवाणी के 23 नवम्बर 2013 के ब्लॉग के विरोध में स्वयं उल्लेख किया है और उसका शीर्षक था “ जब वी.पी. मेनन ने एक ब्रिटिश जनरल से किनारा किया” । मेनन ने भारत के विभाजन के बाद होने वाली राजनीतिक एकीकरण मेंअहम् भूमिका निभाई और भारत की पहले उप प्रधान मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के सचिव के रूप में कार्यभी किया ।

प्राण नाथ और बिमला के चार बच्चे थे, जिनमें से सबसे छोटे करण हैं।

दया राम थापर तीनों भाइयों में से सबसे बड़े थे और सेना में डॉक्टर थे, अंत में भारतीय सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं के महानिदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए। उनका एक बेटा – रोनेश थापर और दो बेटियाँ – बिमला और रोमिला थीं।
रोमिला थापर भारत के प्रमुख इतिहासकारों में से एक हैं। अपने ऐतिहासिक विश्लेषणों में उनको वामपंथी माना जाता है, प्राचीन भारत के अध्ययन पर उनका अधिक ध्यान है। 2004 में, संयुक्त राज्य के कांग्रेस पुस्तकालय ने इन्हें दक्षिण के देशों और संस्कृतियों में क्लूजचेयर के पहले धारक के रूप में नियुक्त किया था। 2005 में इन्होंने पद्म विभूषण लेने से भी इंकार कर दिया था।

रोमेश थापर का जन्म 1922 में लाहौर में हुआ था। आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए इनके परिवार ने इन्हें इंग्लैंड भेज दिया था। ब्रिटिश विश्वविद्यालयों में युद्ध के बाद (पोस्ट-वार) के समाजवादी भाषणों का रोमेश पर गहरा असर पड़ा, इस प्रकार इन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) में अपनी अंतिम प्रविष्टि के लिए नींव रखी तथा 1987 में अपनी मृत्यु तक वहीं रहे।

अपनी पत्नी राज के साथ, रोमेश ने 1959 में सेनिमार नामक एक मासिक पत्रिका की शुरूआत की, जिससे नेहरू की समाजवादी व्यवस्था में स्थिर राजस्व स्थापित हुआ और देशभक्त तथा शक्तिशाली पाठक एक साथ आए। 60 के दशक के अंत में रोमेश और राज बौद्धिक अभिजात वर्ग का हिस्सा थे जो केन्द्र में राजनीतिक अंतर्भाव के लिए गुप्त जानकारियों से संबंधित थे। इनको ‘आंतरिक कैबिनेट’ के सदस्य होने के लिए जाना जाता था, इनकी इंदिरा गाँधी से काफी गहरी दोस्ती थी, यह दोस्ती नेहरू के स्वर्गावास के बाद मजबूत हुई थी।

राम और रोमेश के दो बच्चे थे, मालविका (माला) सिंह और वाल्मीकि थापर।

वाल्मीक थापर ने अभिनेता शशि कपूर की बेटी संजना कपूर से शादी की थी।वाल्मीक थापर आज भारत के सबसे सम्मानित वन्यजीव संरक्षण विशेषज्ञों में से एक हैं।वाल्मिक ने बीबीसी, एनिमल प्लैनेट, डिस्कवरी और नेशनल ज्योग्राफिक के लिए डॉक्यूमेन्ट्रियाँ तैयार की हैं।

मालविका थापर ने नई दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित परिवारों (नीचे देखें) में से एक के बेटे तेजबीर ‘जुगनू सिंह से शादी की थी, जिसने कोलकाता से यहाँ स्थानांतरित होने पर नई राजधानी का निर्माण किया था। माता-पिता की मृत्यु के बाद मालविका और तेजबीर ने एक साथ सेमिनार का संचालन किया। मालविका वर्तमान में राजस्थान सरकार की संस्कृति और पर्यटन सलाहकार भी है।

मालविका और वाल्मीकि ने 2016 में राजस्थान के रेलवे स्टेशनों के सुंदरीकरण के लिए एक सरकारी परियोजना की भी शुरूआत की थी।

सिंह राजवंश

तेजबीर सिंह 8 अप्रैल 1929 को संसद में बम विस्फोट के एक प्रमुख गवाह सर सोभा सिंह के पोते हैं। सिंह की यह गवाही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की पहचान थी। बाद में उनकी गवाही के आधार पर ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सजा दी गई थी।

तेजबीर और मालविक के वंश ने एक-दूसरे को प्रतिबिंबित किया– कुँज बिहारी थापर की तरह सोभा सिंह की अंग्रेजों के प्रति वफादारी ने उन्हें बहुत सारा धन और प्रतिष्ठा प्रदान की। भारत के वाइसराय लॉर्ड हार्डिंग ने ब्रिटिश भारतीय राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली जाने की योजना की घोषणा की (जैसा कि तब कहा जाता था), जिसके बाद तेजबीर और सुजान सिंह को लुटियंस दिल्ली बनाने के लिए अनुबंध दिया गया।

सर सोभा सिंह के छोटे भाई सरदार उज्जल सिंह संसद के सदस्य बनने के साथ-साथ पंजाब के गवर्नर और बाद में तमिलनाडु के गवर्नर बन गए थे।

सर सोभा सिंह के चार बेटे – भगवंत, खुशवंत, गुरबख्श और दलजीत और एक बेटी मोहिंदर कौर थी।

खुशवंत सिंह एक प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक और राजनेता थे, जिन्होंने 1980 से 1986 तक राज्यसभा के सदस्य के रूप में अपनी सेवा प्रदान की थी। इंदिरा गांधी की आपातकाल की ओर एक नरम रूख रखने के लिए सिंह की अक्सर आलोचना की जाती थी। वह कांग्रेस के एक मुखर समर्थक थे जिन्होंने 1974 में पद्म भूषण प्राप्त किया था और 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार पर अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए इसको वापस कर दिया था। 2007 में उनको दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। मार्च 2014 में उनका देहान्त हो गया था।

Read in English: Why is Karan Thapar complaining? His dynasty holds a key to Lutyens’ Delhi

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