नई दिल्ली: नोटबंदी पर अपने फैसले से लेकर उत्तराखंड के हल्द्वानी में 4,000 से अधिक परिवारों को बेदखल करने पर रोक लगाने तक, सुप्रीम कोर्ट उर्दू प्रेस में इस सप्ताह सुर्खियों में रहा.
लेकिन जहां शीर्ष अदालत के फैसलों ने हफ्ते के अधिकांश समय के लिए अखबारों को व्यस्त रखा, वहीं, भारत जोड़ो यात्रा, जो धीरे-धीरे अपने आखिरी पड़ाव की ओर बढ़ रही है, उर्दू के तीन अखबारों में छाई रही. भारत जोड़ो यात्रा जनवरी में श्रीनगर में समाप्त होगी.
दिप्रिंट उर्दू प्रेस साप्ताहिक राउंड-अप में बता रहा है कि कौन-कौन सी खबरें सुर्खियों में रहीं.
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हल्द्वानी बेदखली
हल्द्वानी में रहने वाले लगभग 50,000 निवासियों के बेदखली आदेश पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी अखबारों – रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा, सियासत और इंकलाब में पहले पृष्ठ पर स्थान मिला.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, उर्दू प्रेस ने अतिक्रमण अभियान के आसपास की सभी आशंकाओं के बारे में खबरें दीं. 5 जनवरी को सियासत ने अपने पहले पेज पर 4,000 घरों को गिराने की तैयारी की सूचना दी.
6 जनवरी को सहारा के पहले पेज की हेडलाइन थी, ‘हल्द्वानी में नहीं चलेगा सरकारी बुलडोजर’. यह फैसला SC द्वारा उत्तराखंड HC के 20 दिसंबर के फैसले पर रोक लगाने के बाद आया है, जिसमें 4,000 परिवारों को ज़मीन से बेदखल करने का आदेश दिया गया था. इस ज़मीन पर भारतीय रेलवे अपना दावा पेश कर रहा है.
सहारा की रिपोर्ट में कहा गया है कि शीर्ष अदालत के फैसले के बाद 4,000 परिवारों ने ‘राहत की सांस’ ली है कि ‘50,000 लोगों को रातों-रात नहीं उजाड़ा जा सकता है.’
अदालत का बयान उस दिन सियासत की हेडलाइन में भी था.
उसी दिन एक संपादकीय में इंकलाब ने लिखा कि अगर भारतीय रेलवे को किसी परियोजना के लिए ज़मीन की ज़रूरत है, तो उसे खाली किया जाना चाहिए, लेकिन उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही.
संपादकीय में कहा गया है कि निवासियों को पुनर्वास का वादा किया जाना चाहिए, लेकिन जब तक ऐसा नहीं किया जाता है, तब तक नोटिस के बाद उन पर हमला नहीं किया जा सकता है या किसी भी तरह की धमकी नहीं दी जानी चाहिए.
इसमें यह भी कहा गया है, चूंकि इस तरह का अतिक्रमण सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के बिना नहीं हो सकता था, इसलिए पहले उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए.
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‘भारत जोड़ो यात्रा’
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा विश्राम के बाद दोबारा से बहाल हो गई है.
2 जनवरी को इंकलाब ने शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता संजय राउत के हवाले से कहा कि राहुल गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय राजनीति का चेहरा बदल सकता है.
शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र सामना में अपना साप्ताहिक कॉलम लिखते हुए, राउत ने राहुल के ‘नए अवतार’ का उल्लेख किया और कहा कि अगर कांग्रेस नेता इसे बनाए रखते हैं, तो वह 2024 के आम चुनाव में विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बन सकते हैं.
4 जनवरी को इंकलाब में फ्लायर स्टोरी में घोषणा थी कि यात्रा दिल्ली से उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर चुकी है. इसने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की उत्तर प्रदेश की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी के हवाले से कहा, ‘यहां तक कि अडानी और अंबानी भी राहुल गांधी को नहीं खरीद सकते थे’.
बयान को सियासत में फ्रंट पेज कवरेज भी मिला.
एक छोटी इनसेट खबर में, अखबार ने यह भी बताया कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और रॉ के पूर्व प्रमुख ए.एस. दुलत ने भी यात्रा में हिस्सा लिया था.
4 जनवरी को अपने संपादकीय में सियासत ने लिखा कि राष्ट्रीय राजनीति में उत्तर प्रदेश के महत्व को देखते हुए, कांग्रेस को यात्रा को बाधित करने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की योजनाओं को विफल करने के लिए सक्रिय होने की ज़रूरत है और साथ ही साथ राज्य में विभिन्न सामाजिक समूहों के मूड के प्रति सचेत रहने की जरूरत है.
5 जनवरी को अपने पहले पन्ने पर, सियासत ने लिखा कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को अयोध्या में राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास से समर्थन मिला है.
अखबार ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के बयान को छापा- जिसमें लिखा था, ‘यह सराहनीय है कि एक ‘युवा’ देश की भलाई के लिए इस सर्दी में पैदल चल रहा है. सत्येंद्र दास के बयान का जिक्र करते हुए खबर में कहा गया है कि यात्रा को साधुओं का भी समर्थन मिल रहा है.
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र मोदी सरकार द्वारा 2020 में राम मंदिर के निर्माण और प्रबंधन की देखरेख के लिए स्थापित एक ट्रस्ट है.
6 जनवरी को सहारा के पहले पृष्ठ पर राहुल के हवाले से लिखा गया था कि विपक्ष को संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा है. उन्होंने यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश के शामली में यह टिप्पणी की.
उसी दिन, सहारा ने लिखा कि सोनिया गांधी के अस्पताल में भर्ती होने के बाद, राहुल 5 जनवरी को दिन के यात्रा के अंत में उनसे मिलने के लिए दिल्ली लौट आए.
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विधानसभा चुनाव
5 जनवरी को, सहारा के संपादकीय में कहा गया था कि इस साल विधानसभा चुनाव में कई दलों – जैसे कर्नाटक और मध्य प्रदेश में भाजपा, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस, और तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति – की किस्मत दांव पर होगी.
त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम अन्य राज्य हैं जो इस वर्ष मतदान करेंगे.
सहारा के संपादकीय में कहा गया है कि यह इन राज्यों में राजनीतिक दलों के लिए एक अवसर होगा – विशेष रूप से मेघालय की सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी, पूर्वोत्तर क्षेत्र में एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी – अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए.
विधानसभा चुनाव की तैयारी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की रिहर्सल होगी, इसमें कहा गया है कि जैसे ही विधानसभा चुनाव समाप्त होंगे, राजनीतिक दल 2024 के संसदीय चुनाव के लिए मैदान में कूद पड़ेंगे.
नोटबंदी
मोदी सरकार के 2016 में 500 और 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को सही ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के 4:1 के फैसले की तीनों उर्दू अखबारों में बड़े पैमाने पर खबरें छापीं गईं.
3 जनवरी को उर्दू अखबारों ने अपने पहले पृष्ठ पर लिखा कि केंद्र सरकार को अपने फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिल गई है.
अखबारों ने बताया कि एक संविधान पीठ ने सरकार के फैसले को बरकरार रखा था, उन्होंने न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना के असहमतिपूर्ण फैसले को भी प्रमुखता से छापा.
अपने अल्पमत के फैसले में, सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि यह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा प्रस्तुत रिकॉर्ड से स्पष्ट था कि उसने स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं लिया था, लेकिन केंद्र सरकार की इच्छाओं का पालन कर रहा था.
उसी दिन अपने संपादकीय में सहारा ने लिखा कि अब जब शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने नोटबंदी को बरकरार रखने का फैसला सुना दिया है, तो सवाल यह था कि क्या इस फैसले के पक्ष और विपक्ष पर बहस भी इसी तरह खत्म हो जाएगी.
संपादकीय में कहा गया है कि इस सवाल का निश्चित जवाब देना मुश्किल है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मतलब है कि अगर 2016 का फैसला इस साल के विधानसभा चुनाव या अगले साल के आम चुनाव के दौरान आता, तो यह सत्तारूढ़ बीजेपी पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता.
राष्ट्रीय सुरक्षा
4 जनवरी को, इंकलाब की एक खबर थी कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, भारत अपने पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखना चाहता है और भविष्य में उन्हें बनाए रखना चाहता है, यह राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर नहीं किया जाएगा.
अखबार ने ZIB2 के साथ विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साक्षात्कार पर एक कहानी भी चलाई, जो ऑस्ट्रिया के राष्ट्रीय प्रसारण ORF पर एक पॉडकास्ट है. पाकिस्तान को अक्सर आतंकवाद का केंद्र बताने वाले जयशंकर ने अपने साक्षात्कार में कहा कि वह पड़ोसी देश के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, ‘यह देखते हुए कि हमारे साथ क्या हो रहा है, मुझे लगता है कि एपिसेंटर बहुत ही कूटनीतिक शब्द है.’
(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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