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Saturday, 21 December, 2024
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रणवीर सिंह के न्यूड फोटो शूट का विवाद नया नहीं, मिलिंद सोमन-मधु सप्रे भी कर चुके हैं ऐसा ऐड

जूतों के इस ब्रांड के लिए 1995 में किये गए एक विज्ञापन द्वारा दो भारतीय सुपर मॉडलों की नग्न तस्वीरों को प्रदर्शित करने के मामले ने उस वक्त बड़ा बखेड़ा खड़ा कर दिया था. इस विज्ञापन अभियान के पीछे का दिमाग विज्ञापन जगत के दिग्गज एल्सी नानजी का था.

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नई दिल्ली: चालाकी से बनाये गए विज्ञापन हमेशा ब्रांडों का ही प्रचार नहीं करते हैं, बल्कि वे शायद ही कभी लोगों की याददास्त से ओझल होते हैं. और जूतों के एक ब्रांड के लिए चलाया गया साल 1995 का वह विज्ञापन अभियान जिसमें सुपर मॉडलस मिलिंद सोमन और मधु सप्रे शामिल थे, इसी बात की याद दिलाता है.

हाल ही में जब ‘पेपर’ नाम की एक पत्रिका के लिए अभिनेता रणवीर सिंह के न्यूड फोटोशूट (नग्नावस्था में फोट खिंचवाना) ने एक तगड़ा विवाद खड़ा कर दिया और उनके खिलाफ एक प्राथमिकी भी दर्ज की गई, तो आम जनता को एकाएक 27 साल पहले किये गए उस विज्ञापन की याद आ गयी, जिसमें सोमन और सप्रे ने केवल स्नीकर्स (एक तरह के जूते) पहने हुए थे और उनके गले में सिर्फ एक अजगर लिपटा हुआ था. ‘टफ्स शूज’ के इस विज्ञापन ने 20वीं सदी के भारत में एक बड़ा बखेड़ा खड़ा कर दिया था.

मुंबई पुलिस की समाज सेवा शाखा द्वारा इस विज्ञापन के लिए एंबिएंस एडवरटाइजिंग के खिलाफ साल 1995 में अश्लीलता का एक मामला दर्ज किया गया था.

फीनिक्स इंटरनेशनल, जिसके पास टफ्स जूतों का ब्रांड था, भारत में एक अपेक्षाकृत अज्ञात ब्रांड था. 1995 के इस धमाकेदार विज्ञापन के पीछे का दिमाग विज्ञापन जगत के दिग्गज एल्सी नानजी थे, जो उस समय ‘एम्बियंस’ के साथ थे.

इस विज्ञापन अभियान के बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए, नानजी ने कहा, ‘इसके पीछे का विचार एथलेटिक (खिलाडियों जैसे) शरीरों के माध्यम से ताकत और मजबूती को दर्शाना था. दोनों मॉडल राष्ट्रीय स्तर के एथलीट थे. मधु राष्ट्रीय स्तर की डिस्कस थ्रोअर (चक्का फेंकने वाली खिलाडी) थीं और मिलिंद एक राष्ट्रीय स्तर की तैराक थे. ये मॉडल इस विज्ञापन के फोटोग्राफर, अब दिवंगत हो चके प्रबुद्ध दासगुप्ता, और उनकी कला से भी प्रेरित थे, और इस बात ने हमें इस ब्रांड के लिए सात से आठ विज्ञापनों की एक श्रृंखला बनाने के लिए प्रेरित किया. इनमें से कई विज्ञापनों स्विमसूट में किये गए थे और कुछ मॉडल बिना कपड़ों के भी थे, लेकिन इस सब में कोई आपत्तिजनक नग्नता नहीं थी.’

यह पूछे जाने पर कि रणवीर सिंह की नग्न तस्वीरों को लेकर बरपे हंगामे के बारे में वह क्या सोचती हैं, नानजी ने कहा, ‘यह सिर्फ समय की बर्बादी है … बहस के लिए और भी महत्वपूर्ण मुद्दे हैं’

दिप्रिंट ने उस विज्ञापन पर एक टिप्पणी के लिए सोमन से भी संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई उनकी तरफ से कोई भी प्रतिक्रिया प्राप्त करने में विफल रहा था.

हिंदुस्तान टाइम्स के साथ किये गए पहले के एक साक्षात्कार में, सोमन ने नग्नता के विषय पर अपने विचार व्यक्त किए थे. उन्होंने तब कहा था, ‘यह एक व्यक्ति के बारे में सबसे सामान्य बात है. मेरा मानना है कि अगर किसी चीज को एस्थेटिकल्ली (खूबसूरती के साथ) पेश किया जाए तो वह हमेशा खूबसूरत ही दिखती है. यह बात नग्नता पर भी लागू होता है – चाहे वह विज्ञापन में हो, या फिर फिल्म, पेंटिंग या फैशन में हो.‘

खूब हंगामा मचा था

अगस्त 1995 में मुंबई ग्राहक पंचायत और स्वयंसेवी ग्राहक संगठन द्वारा दायर एक शिकायत के बाद इस विज्ञापन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और इन दोनों दो मॉडलों पर इंडीसेंट रिप्रजेंटेशन ऑफ़ वीमेन एक्ट (स्त्री अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम) 1986, और भारतीय दंड संहिता की धारा 292 (ए) (अश्लील पुस्तकों की बिक्री, आदि) का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था.

बाद में, एंबिएंस एडवरटाइजिंग के खिलाफ इस विज्ञापन में एक अजगर के अवैध उपयोग के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत एक और मामला दर्ज किया गया था. इस विज्ञापन एजेंसी के प्रबंध निदेशक अशोक कुरियन को गिरफ्तार कर लिया गया थे और उन्हें सालों तक यह मुक़दमा लड़ना पड़ा था. इस मामले में दायर किये गए आरोप पत्र में टफ्स जूतों के विज्ञापनों की श्रृंखला को छापने वाली दो पत्रिकाओं के प्रकाशकों और वितरकों के नाम भी शामिल थे. इसके बाद एक 14 साल की लंबी कानूनी लड़ाई हुई और आखिरकार 2009 में इस मामले को खारिज कर दिया गया. पीठासीन न्यायाधीश एमजे मिर्जा द्वारा दिए गया अंतिम फैसले में कहा गया था, ‘समाज के एक समूह के लिए जो अश्लील हो सकता है वही किसी दूसरे समूह के लिए अश्लील नहीं भी हो सकता है’

हालांकि, इस विज्ञापन ने लोगों की खूब दिलचस्पी हासिल की, मगर वास्तव में यह ब्रांड कभी भी बड़ा नहीं बन पाया.

मुंबई स्थित विज्ञापन एजेंसी ओबेरॉय आईबीसी के संस्थापक आनंद स्वरूप ओबेरॉय ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस विज्ञापन ने देश में बड़ा शोर शराबा मचाया, लेकिन यह जिस ब्रांड के लिए बनाया गया था वह तो मुझे याद भी नहीं है. जब उस विज्ञापन की बात आती है तो इससे जुड़ा कोई ब्रांड याद नहीं आता, लेकिन यह आज भी काफी अधिक इमेज वैल्यू रखता है.’

इसी उद्योग के एक अन्य दिग्गज और ‘द कन्वर्सेशन कंपनी’ के संस्थापक सुरेश मनियन ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह निश्चित रूप से उत्तेजक था और इसने हमारा ध्यान भी खींचा लेकिन यह सबसे बेहतरीन (क्लास्सिएस्ट) विज्ञापनों में नहीं था. जब यह विज्ञापन बना था, तो यह एक ऐसा छोटा ब्रांड था जो बड़ी बात कह रहा था, और यही चीज निकल कर आई.’

पूजा बेदी का कामसूत्र वाला विज्ञापन

जिन अन्य विज्ञापनों में अश्लीलता को लेकर हंगामा मचा है, उन्हीं में से एक अभिनेत्री पूजा बेदी द्वारा अभिनीत साल 1991 का ‘कामसूत्र’ कंडोम के लिए किया गया विज्ञापन भी है. इसे विज्ञापन जगत के प्रसिद्ध पेशेवर एलिक पदमसी के मार्गदर्शन में शूट किया गया था.

किसी कंडोम के विज्ञापन अभियान ने एक महिला को दिखाने वाले इस विज्ञापन ने उस समय पूरे भारत को हिला कर रख दिया था. दिप्रिंट के साथ पहले की एक बातचीत में बेदी ने पदमसी की किताब ‘ए डबल लाइफ’ का एक अंश सुनाया था, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया था कि कैसे इस विज्ञापन ने बहुत अधिक अंग प्रदर्शन नहीं किये जाने के बाद भी पुरे देश में तूफान ला दिया था, क्योंकि यह एक सेक्स से जुड़े उत्पाद के बारे में बात करता था. (लोगों के लिए) इससे भी बुरी बात यह थी कि यह पहला मौका था जब किसी महिला अभिनेत्री ने इस तरह के उत्पाद का विज्ञापन करने के लिए खुद को पेश किया था.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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