आकाश में बादल छाए हुए हैं और हल्की बारिश के कारण गीला-गीला सा हो गया है, कराची शहर. सिंध प्रोविंशियल लेजिस्लेटिव असेंबली के उस हॉल में पाकिस्तान की संविधान सभा की पहली संक्षिप्त बैठक शुरू हुई है. वैसे तो आज कोई खास काम-काज नहीं है. मुख्य कार्य जो भी होना है, वह तो कल ही होगा, क्योंकि कल ‘कायदे आजम’ जिन्ना, स्वतः असेंबली को संबोधित करनेवाले हैं.
ठीक 11 बजे असेंबली का काम-काज आरंभ हुआ. कुल 72 सदस्यों में से 52 सदस्य उपस्थित थे. पश्चिम पंजाब के दो सिख सदस्यों ने इस असेंबली का बहिष्कार किया हुआ है, तो जाहिर है कि वे भी उपस्थित नहीं हैं. पहली पंक्ति में बैठे पाकिस्तान के गवर्नर जनरल घोषित किए गए, बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना, जब अपनी सीट से उठकर मंच पर जाने लगे तो सभी सदस्यों ने सम्मानपूर्वक, तालियों की गड़गड़ाहट और मेजें थपथपाकर उनका स्वागत किया. जिन्ना ने पाकिस्तान की संसदीय कार्रवाई के रजिस्टर पर सबसे पहले हस्ताक्षर किए. पाकिस्तान की संविधान सभा के अध्यक्ष पद हेतु उन्होंने बंगाल के जोगेंद्रनाथ मंडल का नाम प्रस्तावित किया और वह तत्काल मंजूर भी हो गया.
अखंड भारत की अंतरिम सरकार में कानून मंत्री रहे, दलितों के नेता जोगेंद्रनाथ मंडल ही पाकिस्तान की पहली Constituent Assembly के पहले अध्यक्ष बने. जोगेंद्रनाथ मंडल सन् 1940 में कांग्रेस से निष्कासित किए जाने के बाद मुस्लिम लीग में शामिल हुए थे. बंगाल के सुहरावर्दी मंत्रिमंडल में वे मंत्री भी थे. सन् 1946 में हिंदुओं के खिलाफ बंगाल के कुख्यात ‘डायरेक्ट ऐक्शन डे’ की भीषण हिंसा के समय मंडल साहब पूरे बंगाल में प्रवास करते हुए दलितों को मुसलमानों के खिलाफ नहीं होने के लिए मनाते रहे.
मुस्लिम लीग और जिन्ना ने जोगेंद्रनाथ मंडल के इस कार्य की सराहना की, और उन्हें पुरस्कारस्वरूप असेंबली का अध्यक्ष बनाया. असेंबली की आज की कार्रवाई केवल एक घंटा दस मिनट चली. बाहर कोई खास भीड़ नहीं थी और न ही लोगों में कोई उत्साह दिखाई दिया.
रविवार दोपहर का समय. पुरानी दिल्ली के मुस्लिम लीग कार्यालय के बाहर अनेक मुसलमान क्रोध में हैं और आपस में विवाद कर रहे हैं. दिल्ली के मुस्लिम व्यापारियों का आरोप है कि मुस्लिम लीग के नेता हमें मुसीबत में छोड़कर पाकिस्तान भाग रहे हैं. प्रतिदिन निकलनेवाली ‘पाकिस्तान स्पेशल ट्रेन’ में मुस्लिम लीग का कोई-न-कोई नेता पाकिस्तान जा रहा है. इन्हीं नेताओं के विरोध में आक्रोशित मुस्लिम व्यापारियों ने दरियागंज बाजार बंद का आह्वान किया हुआ है. दिल्ली के मुसलमानों को ऐसा लग रहा है कि वे नेतृत्व विहीन हो गए हैं.
दिल्ली की म्युनिसिपल कमेटी ने बैठकों एवं छोटे-मोटे कार्यक्रमों के लिए एक सुंदर हॉल का निर्माण किया है. दोपहर के भोजन के बाद नेहरू ने इस नवनिर्मित हॉल का निरीक्षण किया.
शाम को 17, यॉर्क रोड के अपने विशाल बँगले में नेहरू अपने सेक्रेटरी को एक पत्र का डिक्टेशन दे रहे हैं
यानी जिस ध्वज को खत्म करने, नीचे गिराने के लिए अनेक क्रांतिकारियों, अनेक सत्याग्रहियों ने गोलियाँ खाईं, अत्याचार सहे, वही यूनियन जैक स्वतंत्रता दिवस के साथ ही और 12 प्रमुख दिनों में भारत की सभी शासकीय इमारतों पर फहरनेवाला है!
दोपहर की परछाइयाँ अब धीरे-धीरे लंबी होती जा रही हैं. लाहौर के ‘बारूदखाना’ नामक इलाके में मुसलमानों की गंभीर हलचल, अत्यधिक जोश और उत्साह से जारी हैं. यह वही इलाका है, जहाँ हिंदुओं और सिखों की दिन-दहाड़े भी जाने की हिम्मत नहीं होती. इस इलाके में मियाँ परिवार का एकछत्र साम्राज्य है. लाहौर के प्रथम नागरिक (मेयर) का यह क्षेत्र है. इस क्षेत्र में नियमित रूप से एक भटियारखाना चलता रहता है. हिंदू-सिख परिवारों को पाकिस्तान से भगाने और उनकी लड़कियाँ उठानेवाले मुस्लिम गुंडों के लिए यहाँ दिन भर खाने-पीने की व्यवस्था रहती है.
आज ‘मियाँ की हवेली’ में षड्यंत्र रचा जा रहा है. 14 अगस्त के बारे में. एकमत से यह तय किया होता है कि 14 अगस्त के बाद लाहौर में एक भी हिंदू-सिख को नहीं रहने दिया जाएगा. यह योजना इसी संदर्भ में बन रही है.
अब केवल अगले चार दिन ही अखंड रहनेवाले इस भारत में, शाम की विभिन्न छटाएँ देखने को मिल रही हैं. जहाँ सुदूर पूर्व, अर्थात् असम और कलकत्ता में दीया-बाती जलाने का समय हो चुका है, वहीं पूर्व में पेशावर और माउंटगोमरी में अभी भी धूप अपने हाथ-पैर लंबे कर, अलसाई हुई मुद्रा में शाम ढलने का इंतजार कर रही है.
इसी पृष्ठभूमि में अलवर, हापुड़, लायलपुर, अमृतसर जैसे शहरों से भयंकर दंगों की खबरें लगातार आती जा रही हैं. अनेक हिंदुओं के मकानों पर आग लगाए हुए कपड़े के गोले फेंके जा रहे हैं. अनेक हिंदू बस्तियों में व्यापारियों की दुकानें लूटकर उन्हें खाली कर दिया गया है.
लाहौर स्थित जेल रोड पर रहनेवाले वीरभान. असिस्टेंट डायरेक्टर ऑफ इंडस्ट्रीज जैसे बड़े पद पर आसीन, एकदम जिंदादिल, परोपकारी व्यक्ति. लाहौर शहर की अस्थिर और खतरनाक स्थिति को देखते हुए, उन्होंने रविवार की छुट्टी का फायदा उठाते हुए यह शहर छोड़ने का निर्णय लिया. इस काम के लिए उन्होंने दो ट्रक बुक किए. अनेक वर्षों तक उनकी सेवा करनेवाला और उन्हें भरोसेमंद लगनेवाला उनका ड्राइवर मुसलमान ही है. वीरभान ने उसी को ट्रक में भरने के लिए कुछ कुली लाने भेजा. उनका वह कथित भरोसेमंद मुस्लिम ड्राइवर, लाहौर के मोझंग इलाके के कुछ मुस्लिम गुंडों को कुली के रूप में ले आया.
शाम तक उन सभी ने वीरभान का सारा सामान दोनों ट्रकों में भर लिया. जब वीरभान महोदय कुलियों को पैसा देने पहुँचे, तो उन सभी ने आपस में मिलकर वीरभान पर आक्रमण कर दिया. चाकुओं के लगातार कई वार किए. अपने पति को तड़पते हुए, रक्त में डूबा देखकर उनकी पत्नी को चक्कर आ गए. गुंडों ने उन्हें भी ट्रक में डाला और रात के अँधेरे में दोनों ही ट्रक उनके इच्छित स्थान की तरफ रवाना हो गए. सौभाग्य केवल इतना ही रहा कि वीरभान की दोनों किशोरवयीन लड़कियाँ यह घटना देखकर पिछले दरवाजे से निकल भागीं और सीधे हिंदू बहुल मोहल्ले किशन नगर में ही रुकीं, इसीलिए वे बच गईं.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी की, पंजाब की राजधानी में, एक भरी-पूरी बस्ती के बीचोबीच, 10 अगस्त की शाम को हत्या और लूटपाट कर दी गई, लेकिन कोई हलचल नहीं हुई.
(‘वे पंद्रह दिन’ प्रभात प्रकाशन से छपी है. ये किताब पेपर बैक में 350₹ की है.)
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