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Tuesday, 7 May, 2024
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‘आधुनिक डोगरी की मां’ — पद्मा सचदेव जिन्होंने अपनी भाषा की मान्यता के लिए वाजपेयी से लड़ी थी लड़ाई

जब डोगरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया, तो वो सचदेव के लिए ‘सबसे खुशी का दिन’ था. भाषा की ‘अपनी पहचान थी और इसे केवल एक बोली के रूप में नहीं लिया जाता था.’

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जम्मू-कश्मीर के अशांत इतिहास के नीचे उसका समृद्ध साहित्य छिपा है जिसके बारे में बहुत कम भारतीय जानते हैं, लेकिन अगर कोई ऐसा व्यक्ति था जिसने स्वतंत्र भारत में जम्मू-कश्मीर साहित्य को पेश करने के लिए कड़ी मेहनत की, तो वे पद्मा सचदेव थीं.

मुख्य रूप से जम्मू में बोली जाने वाली डोगरी भाषा की पहली आधुनिक महिला कवयित्री सचदेव ने देश में सबसे मजबूत क्षेत्रीय साहित्यिक आवाज़ों में से एक बनकर उभरने के लिए स्त्री-द्वेष, रूढ़िवादी समाज, पुरानी बीमारी और एक दुखी वैवाहिक जीवन में बहुत संघर्ष किया.

‘आधुनिक डोगरी की जननी’ के रूप में लोकप्रिय पद्मा सचदेव असल में संस्कृत के विद्वानों के परिवार से थीं. उन्होंने अपनी मूल भाषा को मान्यता दिलाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई से लगातार संघर्ष किया. जब 2003 में डोगरी को अंततः संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया, तो यह उनके लिए “सबसे खुशी का दिन” था, “क्योंकि भाषा की अब अपनी पहचान थी और इसे केवल एक बोली के रूप में नहीं लिया जाने वाला था”.


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खूब प्रशंसा बटोर रहे हैं

सचदेव ने 1971 में ‘मेरी कविता मेरे गीत’ नामक कविता संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता. प्रस्तावना में हिंदी कवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा कि सचदेवा की कविता ने उन्हें पूरी तरह से लिखना बंद करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने किताब की प्रस्तावना में लिखा, “पद्मा की कविताएं पढ़ने के बाद मुझे लगा कि मुझे अपनी कलम फेंक देनी चाहिए — क्योंकि पद्मा जो लिखती है वह सच्ची कविता है”.

पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित सचदेव ने हिंदी और डोगरी भाषा में 60 किताबें लिखी हैं. उनकी आत्मकथा, जिसका शीर्षक ‘चित्त-चेटे’ को 2015 में प्रतिष्ठित सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया था और केके बिड़ला फाउंडेशन, जिसने इस पुरस्कार की स्थापना की थी, ने उनकी बहुत प्रशंसा की थी. एक आधिकारिक बयान में फाउंडेशन ने कहा, “600 से अधिक पन्नों के काम में इस्तेमाल किए गए मुहावरे और वाक्यांश दुग्गर प्रदेश (जम्मू-कश्मीर) की खुशबू लाते हैं और राज्य के इतिहास, कला और संस्कृति की झलक पेश करते हैं. उनकी भाषा की जीवंतता डोगरी भाषा का जीवंत शब्दकोष है.”

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अपने व्यक्तिगत अनुभवों से सचदेव ने डोगरा समाज और इससे भी महत्वपूर्ण बात, महिलाओं को परेशान करने वाले मुद्दों के बारे में लिखा.

उनकी एक कविता का अंग्रेज़ी में अनुवाद जम्मू-कश्मीर के अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह के पुत्र करण सिंह ने किया था, जिन्होंने भाषा को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों की प्रशंसा की थी.

4 अगस्त 2021 को जब सचदेव का निधन हुआ तो कवयित्री निरुपमा दत्त ने लिखा, “डोगरी भाषा के लिए वे वही थीं जो हिंदी के लिए महादेवी वर्मा और पंजाबी के लिए अमृता प्रीतम थीं.”


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एक बार्ड और एक नारीवादी

सचदेव का जन्म 17 अप्रैल 1940 को जम्मू के पुरमंडल इलाके में हुआ था. उनके पिता, जय देव बडू, विभाजन के दौरान मारे गए थे. महज़ 16 साल की उम्र में उन्होंने जम्मू में एक मुशायरे में अपनी पहली कविता पढ़ी थी. मुख्यमंत्री सहित दर्शक इस बात से बेहद प्रभावित हुए कि एक अन्य डोगरी कवि और संपादक, वेद पाल दीप ने अगले दिन अपने स्थानीय समाचार पत्र में सचदेव की कविता प्रकाशित की. सचदेव की लेखन क्षमता बढ़ी और दीप के साथ उनका रिश्ता भी — दोनों ने 1956 में शादी कर ली जब वे क्रमशः 16 और 27 वर्ष के थे. इसके चलते रूढ़िवादी डोगरा समुदाय ने विवाहित जोड़े से दूरी बना ली. और उसके बाद त्रासदियों का एक दौर चल पड़ा.

शादी के कुछ दिनों बाद सचदेव को टीबी की बीमारी के बारे में पता चला और उन्हें इलाज के लिए एक अस्पताल में भेज दिया गया. वे अपनी बीमारी से उबर गई, लेकिन एक दुखी विवाह के साथ घर लौट आईं — जोड़े ने जल्द ही तलाक के लिए दायर किया और एक बार फिर रूढ़िवादी समाज का गुस्सा झेला.

सचदेव ने 1961 में एक सार्वजनिक उद्घोषक के रूप में ऑल इंडिया रेडियो, जम्मू में काम किया, जहां उनकी मुलाकात सिंह बंधु संगीत जोड़ी के हिंदुस्तानी गायक सुरिंदर सिंह से हुई, जो उस समय एक ड्यूटी अधिकारी थे. पांच साल बाद दोनों ने शादी कर ली.

विरासत को सहेज कर रखना

अपनी लघु कहानियों में सचदेव असमानता, समाज में महिलाओं की भूमिका और घरेलू बोझ पर टिप्पणी करती रही हैं. उनकी कविता मातृभाषा अपनी जड़ों और भाषा को पकड़कर रखने के महत्व की पड़ताल करती है. उनकी एक कविता के बोल कुछ ऐसे हैं — “नहीं, मैं किसी शाह के लिए काम नहीं करती, मैंने कहा, लेकिन एक शाहनी के लिए काम करती हूं, बहुत दयालु. वो शाहनी मेरी मातृभाषा डोगरी है.”

‘द नाइटिंगेल ऑफ डोगरी’ नामक अपने मेमोयर में लेखिका अनीता कंवल सलाथिया बताती हैं कि सचदेवा के लिए डोगरी संस्कृति का संरक्षण कितना महत्वपूर्ण था. उन्होंने कवयित्रि को उद्धृत करते हुए लिखा, “जम्मू के लोगों को डोगरी भाषा और संस्कृति की विरासत को अपनी भावी पीढ़ियों के हाथों में अक्षुण्ण और सुरक्षित रखना चाहिए.”

सचदेव की गायिका लता मंगेशकर से भी गहरी दोस्ती हो गई, जिन्होंने ‘प्रेम पर्वत’ (1973) जैसी बॉलीवुड फिल्मों में उनके लिखे गाने गाए थे. उन्होंने 1978 की हिंदी फिल्म ‘आंखों देखी’ के लिए दो गीतों के लिरिक्स भी लिखे, जिसमें मोहम्मद रफी और सुलक्षणा पंडित का प्रसिद्ध युगल गीत ‘सोना रे तुझे कैसे मिलूं’ भी शामिल है.

हिंदी कवि अनामिका ने 2021 में द टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, “वे डोगरी के लिए एक बार्ड थीं. उन्होंने डोगरी के मौखिक साहित्य को रूपांतरित किया, संहिताबद्ध किया और फिर से लिखा, इसकी शास्त्रीय भव्यता को अंतर-पाठीय तरीके से सामने लाया.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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