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Monday, 6 May, 2024
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‘एक मौत त्रासदी है जबकि लाखों मौतें एक आंकड़ा’: पाकिस्तानी जेल में बंद कैदी की दास्तां

आनंद दुश्मन के कब्जे में था और उसकी जान को बेहद खतरा था. उसे अंदाजा नहीं था कि भारत में क्या कुछ हो रहा है. उनके पास मौजूद ‘संवेदनशील जानकारी’ दोनों देशों के संबंधों के बीच एक ‘अस्थिरता’ पैदा कर सकती थी.

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बदबूदार हवा से भरा हुआ एक बिना खिड़की वाला कमरा, उस कमरे के बीचो-बीच पड़ी हुई एक कुरसी, कोने में मद्धम रोशनी देकर अपनी मौजूदगी का अहसास करवाता हुआ एक बल्ब और कुरसी पर बैठा हुआ एक व्यक्ति. उसके हाथ कुरसी से बड़े ध्यान से बांधे गए थे; और उसकी आंखों पर भी पट्टी बंधी हुई थी. उस व्यक्ति का भारी सिर उसके दाहिने कंधे पर बिल्कुल बेजान-सा पड़ा है और ऐसा प्रतीत होता है कि वो सांस भी बड़ी मुश्किल से ले पा रहा है.

आनंद दुश्मन के कब्जे में था और उसकी जान को बेहद खतरा था. निश्चित रूप से उसे इस बात की जरा भी जानकारी नहीं थी कि भारत में क्या कुछ हो रहा है, हालांकि, आनंद ने भारतीय सरकार के क्रियाकलापों की परवाह की, लेकिन उन्होंने ऐसा बचाव को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाने के लिए नहीं किया, बल्कि इसलिए किया, क्योंकि उनके पास मौजूद ‘संवेदनशील जानकारी’ दोनों देशों के संबंधों के बीच एक ‘अस्थिरता’ पैदा कर सकती थी.


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युद्ध में सभी का नुकसान

युद्ध को लेकर आनंद के अपने विचार और राय थी. जब वे घायल अवस्था में थे तो वे विचार एक बार फिर उनके मस्तिष्क में उमड़ने लगे. उनका ऐसा मानना था कि युद्ध की स्थिति में दोनों ही पक्षों के सैन्य सदस्य मारे जाएंगे, जो परिवार वाले पेशेवर सैनिक हैं. युद्ध के परिणाम स्वरूप हजारों लोग मौत के मुंह में समा सकते हैं, जिसका मतलब होगा हजारों परिवार मातम मना रहे होंगे.

जीवन के इतने नुकसान के साथ युद्ध का क्या परिणाम होगा? शायद कुछ भी नहीं.

एक बात को लेकर आनंद हमेशा ही जिज्ञासु रहे, यह जानने को लेकर कि सदियों के दौरान युद्ध या लड़ाई करने के तरीके में क्या बदलाव आए हैं, कई हजार सालों तक युद्ध का मतलब होता था आमने-सामने की शारीरिक लड़ाई; आपको अपने हाथों से अपने दुश्मन की जान लेनी होती थी, वो भी अधिकांशतः या तो तलवार से या फिर भाले के वार से.घुड़सवार सेना को हम कहते तो हैं कि उस दौर की ‘सर्वश्रेष्ठ’ होती थी.

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आनंद ने अपने दर्द को संभालते हुए हलकी सी मुसकान के साथ याद किया.

इसके बाद बारूद और डायनामाइट का आविष्कार हुआ और उसका उपयोग किया जाने लगा. आखिरकार विमान का आविष्कार हुआ और बहुत ही जल्द उसका उपयोग युद्ध क्षेत्र में होने लगा. आप कई किलोमीटर दूर से ही सैनिकों और नागरिकों पर बम गिरा सकते हैं. आप हवा में कई किलोमीटर ऊपर उड़ते हुए अंधाधुंध तरीके से असंख्य नागरिकों को अपंग बना सकते हैं या फिर उनकी जान ले सकते हैं, शायद इसी वजह के चलते द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बमवर्षक विमानों की कमान संभालने वालों को कम सदमे से गुज़रना पड़ा, क्योंकि उन्हें तमाम महिलाओं और बच्चों को अपने हाथों में हथियार लेकर उनकी जान नहीं लेनी पड़ी.


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तरीका कोई भी परिणाम हमेशा बुरे

हालांकि, उसके प्रभाव और परिणाम समान ही थे और इस पूरी कवायद का अंतिम परिणाम क्या निकला? जो देश पहले से अस्तित्व में थे, वो देश अभी भी मौजूद थे, सिर्फ एक बदलाव हुआ और वह यह था कि विजेताओं को परमाणु हथियारों को बनाने और उन्हें रखने का अधिकार मिल गया, जबकि पराजित होनेवालों को परमाणु हथियारों से वंचित रखा गया.

हवा से गिराए गए पारंपरिक बमों के जरिए जर्मनी और जापान के शहरों को सरसरी तौर पर तबाह कर दिया गया और बड़े पैमाने पर सामान्य नागरिक हताहत हुए. इस बात का कोई लेखा-जोखा मौजूद नहीं है कि उस बमबारी में कितने मासूम बच्चों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, हालांकि माना यह जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान करीब 50 मिलियन से लेकर 100 मिलियन के बीच लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

एक मौत त्रासदी है; जबकि लाखों मौतें एक आंकड़ा है.

आनंद अपने मन और शरीर को उसके लिए समझाने की कोशिश कर रहे थे, जो उन्हें अपने साथ होने की उम्मीद थी.

वे जिस कुरसी पर बंधे हुए थे, वो उनके लिए मौत की कुरसी से कम नहीं थी. उन्हें उस खतरे का बहुत अच्छे से अंदाजा था, जिसमें वे फंसे हुए थे. पाकिस्तानी जेलों में बंद युद्धबंदियों की तमाम कहानियां किसी को भी पाकिस्तानी सेना की कैद में आने और अपने साथ होनेवाली क्रूरता से बचाने के लिए एक आसान मौत को चुनने के लिए मजबूर कर सकती थीं.

ऐसे में, आनंद ने कुछ वर्ष पूर्व के अपने ‘यातना’ प्रशिक्षण को याद किया, जो उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय संयुक्त सैन्य अभ्यास के दौरान पाया था.

“यह बिल्कुल नर्क के जैसा होने वाला है, लेकिन वास्तविक, बिल्कुल सच.” अमेरिकी मरीन के कर्नल ब्रूक ने भारतीय और अमरीकी दिग्गज पायलटों के एक समूह को समझाया. “नरम देश जिनेवा समझौते का पालन करते हैं. कट्टरपंथी और चरमपंथी देश नहीं करते,” उन्होंने अपनी बात जारी रखी.

“अगर कोई चरमपंथी देश आपको जिंदा पकड़ लेता है और बचाव की कोई उम्मीद न हो तो आपके सामने सिर्फ दो ही रास्ते होते हैं. पहला, बचाव का एक रास्ता तलाशें. आपको बिना एक भी क्षण गंवाए ऐसा करना चाहिए. सोचने में तेज और काररवाई करने में उससे भी तेज. दूसरा, अपनी जान ले लो. कोई भी आपको आत्महत्या कर लेने का दोषी नहीं ठहराएगा. ऐसा करना उस जानलेवा दर्द को झेलने और दुश्मन के बेरहम कब्जे में मरने से कहीं बेहतर रहेगा.” कर्नल ब्रूक्स की आंखें गुस्से से चमक उठीं.


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‘दुश्मन पकड़े तो आत्महत्या करें’

“मैंने दुश्मन को कैदियों के साथ बिना किसी हिचकिचाहट के अमानवीय और बेहद क्रूर व्यवहार करते हुए देखा है. गरम चिमटों से त्वचा को जलाना, जांघों की भीतरी खाल को खुरदरे ब्लेड से खुरचकर उतारना, बागवानी में काम आने वाले औजारों से जीभ को काटना, व्यक्ति के जीवित होते हुए भी उसकी आंखें निकाल लेना, बिजली के झटके देना, नाखूनों को उखाड़ देना, घुटनों की कटोरियों को हथौड़ी से चकना चूर करना, बलात्कार, पानी में डुबो देना या फिर भूखे कुत्तों के सामने छोड़ देना.” ब्रूक्स द्वारा वास्तव में दी जानेवाली यातनाओं के बारे में सुनकर वहां मौजूद प्रत्येक व्यक्ति भीतर तक सिहर उठा.

“बहरहाल, यह सब दूर हो जाता है. दर्द, डर और दुश्मन की पकड़ में आने की चिंता. एक बार आप इस बात को स्वीकार कर लेते हैं तो आप दुश्मन के दुःखद पक्ष से आसानी से निबटने में सक्षम हो जाते हैं. आपके अस्तित्व को बनाए और बचाए रखने में आपका मस्तिष्क ही सबसे महत्त्वपूर्ण कारक होता है, यहां तक कि सबसे बुरी स्थितियों में भी, भगवान न करे कि दुश्मन आपको पकड़ ले तो भी मैं आपको अपनी जान न लेने की ही सलाह दूंगा.

मैं आपसे सिर्फ एक तरफदारी चाहता हूं. आप अपने आप को, खुद को पहचानें, अपनी कुछ कर दिखाने की प्रवृत्ति को. आपका मस्तिष्क एक बार उस माहौल में बस जाता है तो आप मेरा भरोसा कीजिए, आप हजारों दुश्मनों के बीच भी वापसी का अपना रास्ता खोज सकते हैं.”

वे शब्द, वो प्रशिक्षण, कर्नल ब्रूक्स का चेहरा, सभी आनंद के मन-मस्तिष्क में घुमड़ रहे थे. उन्होंने खुद को सबसे बुरे के लिए मानसिक तौर पर तैयार कर लिया, हालांकि डर ने उन्हें पंगु नहीं बनाया और उनके मस्तिष्क ने वहां से बच निकलने के रास्तों को तलाशना प्रारंभ कर दिया.

लोहे के उस भारी दरवाजे में हलचल हुई, धातु के टुकड़े अलग हुए और चरमराहट की आवाजें आईं. आनंद की सेल के बाहर तैनात दो सुरक्षाकर्मी किसी को रास्ता दिखाते हुए भीतर ला रहे थे. आनंद को पता था कि अब समय आ गया है. वो समय जब दुश्मन उनसे सवाल पूछेगा और उन्हें उनका जवाब देना ही होगा.

(‘पुलवामा अटैक सच्ची घटनाओं पर आधारित उपन्यास’ प्रभात प्रकाशन से छपा है. ये किताब हार्डकवर में 350₹ की है.)


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