नई दिल्ली: इंटरनेट एवं मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमआईए) ने बुद्धवार को घोषित किया, कि उसने नेटफ्लिक्स, अमेज़ॉन प्राइम, तथा डिज़्नी+ हॉटस्टार जैसे प्रमुख वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स के लिए, एक इंप्लीमेंटेशन टूलकिट को अपना लिया है.
‘टूलकिट’ की मदद से प्लेटफॉर्म्स को, यूनिवर्सल सेल्फ-रेगुलेटिंग कोड को लागू करने में सहायता मिलेगी, जिसपर पिछले साल सितंबर में, 17 स्ट्रीमिंग खिलाड़ियों ने दस्तख़त किए थे.
नए दस्तावेज़ में कोड के उन मुद्दों पर भी बात की गई है, जिनपर सरकार ने ध्यान आकर्षित कराया था, जैसे किसी स्वतंत्र तीसरे पक्ष की निगरानी, और प्रतिबंधित सामग्री क्या है, इस पर स्पष्टता.
आईएएमएआई की डिजिटल मनोरंजन समिति के अध्यक्ष अमित गोयनका ने, इकाई की ओर से जारी एक बयान में कहा, कि टूलकिट में स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स के स्वनियमन कोड में, सभी अहम बिंदुओं की विस्तार से व्याख्या की गई है, और साथ ही सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से मिले, ख़ासकर शिकायत निवारण तंत्र को, मज़बूत करने से संबंधित फीडबैक को भी, संबोधित करने की कोशिश की जाएगी.
उन्होंने आगे कहा,‘उसके इलावा, इसमें स्पष्ट किया गया है कि ओसीसीपीज़ (ऑनलाइन क्यूरेटेड कंटेट प्रोवाइडर्स) को, लाख़ों-करोड़ों भारतीयों का मनोरंजन करने का साझा लक्ष्य, ज़िम्मेदारी के साथ हासिल करने की ज़रूरत है’.
ये टूलकिट 10 फरवरी से प्रभावी हुई है. आईएंडबी मंत्रालय, जो अब सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स की निगरानी करता है, सामग्री के लिए व्यापक दिशा-निर्देशों का, एक अलग सेट जारी करने जा रहा है.
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इंप्लीमेंटेशन टूलकिट है क्या?
जिन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स ने यूनिवर्सल सेल्फ-रेगुलेशन कोड पर दस्तख़त किए हैं, वो हैं ज़ी5, वायकॉम 18 (वूट), डिज़नी+हॉटस्टार, अमेज़ॉन प्राइम वीडियो, नेटफ्लिक्स, सोनीलिव, एमएक्स प्लेयर, जियो सिनेमा, इरोज़ नाउ, ऑल्ट बालाजी, अरे, होइचोइ, हंगामा, शेमारू, डिस्कवरी प्लस, आहा और लायंसगेट प्ले.
भारत में इस समय लगभग 40 वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स चलाए जा रहे हैं.
आईएएमएआई के बयान में कहा गया, कि नया दस्तावेज़ सहजता के साथ स्वनियमन की ओर जाने में, हस्ताक्षर कर्त्ताओं की मदद करेगा, और प्रासंगिक कानूनों के बारे में उनका मार्गदर्शन करेगा, जिनका सभी हस्ताक्षरकर्त्ता सामग्री के मामले में पालन करेंगे.
ये दस्तावेज़ शिकायत निवारण तंत्र के, निष्पक्ष और पारदर्शी कामकाज को लेकर भी उनका मार्गदर्शन करेगा, जिसमें किसी मुद्दे को एक सलाहकार पैनल में ले जाने का भी प्रावधान होगा, जिसमें स्वतंत्र सदस्य होंगे; और ओसीसीपीज़ की क्रिएटिव तथा क़ानूनी टीमों के लिए, ट्रेनिंग कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, ताकि सामग्री को नियंत्रित करने वाले क़ानूनों की जानकारी, और बारीकियों की समझ बढ़ाई जा सके.
टूलकिट, उपभोक्ताओं के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने में भी, उनका मार्गदर्शन करेगी, ताकि एज रेटिंग, सामग्री विवरण, और पेरेंटल नियंत्रण की समझ और इस्तेमाल को बढ़ाया जा सके, और एक विस्तृत ऑडिट तथा अनुपालन तंत्र को, लागू करने में मदद की जा सके.
नए दस्तावेज़ में प्रावधान
टूलकिट में विशेष रूप से उपयुक्त क़ानूनों, तथा प्रासंगिक प्रावधानों को सूचिबद्ध किया गया है, जिनका सामग्री के मामले में, प्लेटफॉर्म्स को पालन करना होगा. इसमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, भारतीय दंड संहिता, और स्त्री अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम,1986, आदि शामिल हैं.
महत्वपूर्ण शिकायत निवारण तंत्र के मामले में, इसमें कहा गया है कि हस्ताक्षरकर्त्ता एक दो-स्तरीय ढांचा स्थापित करेंगे, जिसमें एक आंतरिक समिति और एक सलाहकार पैनल शामिल होगा.
प्लेटफॉर्म्स द्वारा स्ट्रीम की गई किसी भी सामग्री के खिलाफ शिकायत, पहले आंतरिक समिति के पास आएगी, जिसके अंदर कंपनी प्रतिनिधि होते हैं.
अगर शिकायतकर्त्ता आंतरिक समिति के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं, और शिकायत को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो फिर वो शिकायत सलाहकार पैनल के पास जाएगी.
सरकार ने एक पिछले प्रावधान का विरोध किया था, जिसमें कहा गया था कि इस पैनल में अधिकतर कंपनी प्रतिनिधि शामिल होंगे. टूलकिट में इस प्रावधान में संशोधन किया गया है, और कहा गया है कि पैनल में, स्वतंत्र सदस्य और कंपनी प्रतिनिधि बराबर संख्या में होंगे. किसी टाई-ब्रेकर की स्थिति में, पैनल के अध्यक्ष का मत, जो एक स्वतंत्र सदस्य होगा, निर्णायक होगा.
टूलकिट में एक आईएएमएआई सचिवालय बनाने का भी प्रावधान है, जो अन्य चीज़ों के अलावा, हस्ताक्षरकर्त्ताओं द्वारा कोड के प्रावधानों के अनुपालन की समीक्षा भी करेगा.
उसमें ये भी कहा गया है, कि आईएएमएआई मीडिया पर उपभोक्ता जागरूकता अभियान भी चलाएगी, और बच्चों के हितों की रक्षा के लिए, सुरक्षा उपायों की उपलब्धता को लेकर, पेरेंट एसोसिएशंस और स्कूलों से जुड़ेगी.
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कुछ इंटरनेट राइट्स एक्सपर्ट्स में संशय
डिजिटल अधिकारों की वकालत के क्षेत्र में काम कर रही एक एनजीओ, इंटरनेट फ्रीडम फाउण्डेशन के कार्यकारी निदेशक अपार गुप्ता, इस क्षेत्र के उन विशेषज्ञों में से हैं, जो इस टूलकिट से ख़ुश नहीं हैं. उन्होंने कहा कि ये उन विवादों और क़ानूनी धमकियों का नतीजा हैं, जो ऑनलाइन वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स को पेश आ रहीं थीं.
गुप्ता ने दिप्रिंट से कहा,‘ये बढ़ती असहनशीलता को शांत करने का नतीजा है, जिसे दुर्भाग्यवश अपराधिक मामले दर्ज होने, और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों तथा राजनीतिज्ञों के बयानों से बल मिला है’.
गुप्ता ने कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है, कि टूलकिट में काफी हद तक, टेलीवीज़न और प्रसारण के क्षेत्र में प्रचलित, सेंसरशिप प्रथाओं की ही नक़ल की गई है.
उन्होंने आगे कहा, ‘इससे भारत में तैयार की जा रही मूल सामग्री की विविधता प्रभावित होगी. साथ ही, समय के साथ साथ, ये स्वयं-सेंसरशिप और सरकारी नियंत्रण के लिए, ज़्यादा गुंजाइश छोड़ती जाएगी. ये रुझान ब्रॉडकास्ट टेलीवीज़न प्रोग्रामिंग में साफ नज़र आ रहे हैं’.
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