scorecardresearch
Friday, 29 March, 2024
होमसमाज-संस्कृतिनसीरुद्दीन शाह ने ऐक्टिंग देखकर मीरा नायर को की थी मेरे लिए सिफारिश- ऐक्टर रजत कपूर

नसीरुद्दीन शाह ने ऐक्टिंग देखकर मीरा नायर को की थी मेरे लिए सिफारिश- ऐक्टर रजत कपूर

बातचीत में रजत कपूर ने बताया कि उन्हें ऐक्टिंग का कोई शौक नहीं था, उन्हें फिल्में बनानी थीं और डायरेक्टर ही बनना था. ऐक्टिंग तो बाईचांस शुरू हो गई.

Text Size:

‘मैं अपनी फिल्में दोबारा नहीं देखता.’ ये कहना है बॉलीवुड ऐक्टर रजत कपूर का जिनकी हाल ही में 25 नवंबर को एक फिल्म कोरा कागज़ रिलीज होने वाली है. नवनीत रंजन द्वारा निर्देशित इस फिल्म में एक ऐसे किरदार की कहानी दिखाई गई है जो कि अपने पिता की लिगेसी को अपने कंधों पर ढोने को मजबूर है. उसके पिता रंगमंच के बहुत ही बड़े कलाकार रहे होते हैं जो कि हर जगह उस आदमी को ऐसा अहसास कराता है कि वह असफल है. इसी दौरान वह न चाहते हुए भी एक स्कूल में एक नाटक को तैयार करने का जिम्मा ले लेता है और जीवन के कुछ अलग अनुभव होते हैं…

फिल्म में रजत कपूर, स्वातिका मुखर्जी और ऐशानी यादव मुख्य भूमिका में हैं. फिल्म के रिलीज के पहले दिप्रिंट ने रजत कपूर से बात की. बातचीत के दौरान उन्होंने फिल्म की कहानी से लेकर और भी कई चीजों पर बात की.

दिप्रिंट ने रजत कपूर से पूछा कि चूंकि वे एक डायरेक्टर भी हैं तो क्या कभी ऐसा होता है कि ऐक्टिंग के दौरान उनके अंदर का डायरेक्टर बाहर आने लगता है और वे उसे इंप्लीमेंट करने की कोशिश करते हैं. तो इस पर उनका कहना था कि वह ऐसा कभी नहीं करते अगर वह सुझाव भी देते हैं तो एक ऐक्टर के रूप में न कि डायरेक्टर के रूप में. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ऐक्टिंग का काम ‘एफर्टलेस’ होता है और डायरेक्शन में काफी एफर्ट लगता है इसलिए ऐक्टिंग के दौरान वह सिर्फ ऐक्टिंग करते हैं.

आगे उन्होंने कहा कि फिल्म शूटिंग के दौरान एक-दूसरे से नोकझोंक भी होती है. लेकिन ये नोकझोंक झगड़ा नहीं होता बल्कि एक ही लक्ष्य को पाने के लिए ‘कोलैबोरेटिव एफर्ट’ होता है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

संजय मिश्रा, नवाज़ुद्दीन, विनय पाठक हैं पसंदीदा कलाकार

जब उनसे पूछा गया कि उनके पसंदीदा कलाकार कौन हैं तो उन्होंने कहा कि संजय मिश्रा, विनय पाठक, रणबीर शौरी, मनु ऋषि चड्ढा और नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे कलाकार उनके पसंदीदा हैं. नवाजुद्दीन के बारे में उन्होंने कहा कि वह ऐसे कलाकार हैं जो कि आंखों से ही सारी बातें कह देते हैं. उन्होंने कहा कि एक कलाकार को बिल्कुल ‘पारदर्शी’ होना चाहिए. उसे ऐसा होना चाहिए कि वह कैमरे को इजाज़त दे कि वह उसके अंदर झांक कर देख सके ताकि जिस किरदार को वह जी रहा है वह सबके सामने आ सके.

इस पर जब उनसे पूछा गया कि क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी ऐक्ट को या सीन को करने में उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी हो या बहुत एफर्ट डालना पड़ा हो तो उन्होंने कहा कि ऐसा कभी नहीं हुआ. क्योंकि सहजता ही उनके लिए सब कुछ है. उन्होंने कहा कि, ‘जिस ऐक्टिंग में सहजता नहीं होती उसमें परफॉर्मेंस नज़र आने लग जाती है और मेरे लिए वह मोमेंट इंपोर्टेंट है जिसमें आप पूरा सच सामने ला पाते हैं.’


यह भी पढ़ेंः मुलायम सिंह यादव का कल सैफई में होगा अंतिम संस्कार, पीएम बोले- उनके सलाह के दो शब्द मेरी अमानत हैं


मैं ऐक्टर बाईचांस बन गया, हमेशा से फिल्में ही बनानी थीं मुझे

बातचीत में रजत कपूर ने बताया कि उन्हें ऐक्टिंग का कोई शौक नहीं था, उन्हें फिल्में बनानी थीं और डायरेक्टर ही बनना था. ऐक्टिंग तो बाईचांस शुरू हो गई. उन्होंने शुरू में तीन साल तक असिस्टेंट के रूप में काम किया और करीब दस साल बाद उन्हें ऐक्टिंग का ऑफर मिला तो उन्होंने ऐक्टिंग भी करनी शुरू कर दी. हालांकि, जब उनसे यह पूछा गया कि ऐक्टिंग उनके लिए क्या है तो उन्होंने कहा कि ऐक्टिंग उनके लिए ‘बेस्ट जॉब इन द वर्ल्ड’ है. ऐक्टिंग को वह इतना एंज्वॉय करते हैं कि वह उन्हें वह काम नहीं लगता.

उन्होंने कहा कि, ‘शुरू में एक ऐड करने का ऑफर मिला तो उसे कर लिया. बाकी इसके पहले मैं थियेटर में डायरेक्शन के साथ-साथ ऐक्टिंग भी किया करता था. एक बार नसीरुद्दीन शाह ने स्टेज पर मेरी ऐक्टिंग देखी और मीरा नायर को मेरे बारे में सिफारिश की.’

थियेटर और सिनेमा ऐक्टिंग पर तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि थियेटर की ऐक्टिंग काफी मुश्किल होती है. साथ ही यह भी कहा कि यह भी जरूरी नहीं है कि जो रंगमंच का अच्छा कलाकार है वह सिनेमा में अच्छी ऐक्टिंग करता हो या जो सिनेमा में अच्छी ऐक्टिंग कर रहा है वह रंगमंच का अच्छा कलाकार हो. दोनों बहुत अलग मीडियम हैं इसलिए दोनों की तुलना नहीं की जा सकती.

किस तरह की फिल्मों के लिए करते है क्राउड फंडिंग

कुछ स्क्रिप्ट्स ऐसी हैं जो रजत कपूर को लगती हैं कि बननी ही चाहिए चाहे उन्हें क्राउड फंडिंग से बनाना पड़े. साल 2003 में उनकी एक फिल्म रघु रोमियो आई थी जो कि क्राउड फंडिंग से बनी थी और हाल ही में उनकी फिल्म आरके/आरके आई थी उसे भी उन्होंने ऐसे ही बनाया था. उन्होंने कहा कि अभी उनके पास चार स्क्रिप्ट्स तैयार हैं जिस वह फिल्में बनाना चाहते हैं लेकिन उनमें से दो अगर नहीं भी बन पाती हैं तो भी दो तो ऐसी हैं जो बनानी ही हैं किसी भी तरह से.

उन्होंने मूवीज़ और ओटीटी प्लेटफॉर्म को लेकर भी बात की. उन्होंने कहा कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को लेकर यह अच्छी बात है कि यहां पर तमाम ऐसे कलाकारों को भी मौके मिलते हैं जिनको कि शायद अन्यथा वे रोल नहीं मिल पाते लेकिन जहां तक बात कटेंट की है तो उसके बारे में फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता. उन्होंने कहा जो बैरियर्स बॉलीवुड में काम कर रहे हैं वे बैरियर्स यहां पर भी मौजूद हैं.

नेपोटिज़म एक प्रिविलेज है जो हर जगह है

बॉलीवुड में नेपोटिज़म पर खुल के बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक प्रिविलेज जैसा है जो कि हर जगह है. रजत कपूर ने कहा कि किसी का बेटा होने की वजह से किसी को एक चांस तो मिलता है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उसे आगे भी काम मिलता रहेगा और न ही इसका यह मतलब है कि बाहर के लोगों को काम नहीं मिलता है.

जब उनसे पूछा गया कि क्या कोई ऐसा किरदार है जो उन्हें लगता है कि अदा करना चाहिए तो उन्होंने कहा कि ऐसा कोई किरदार नहीं है लेकिन डायरेक्टर के रूप में ऐसी कई फिल्में हैं जो वह बनाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि वे हर साल एक फिल्म बनाना चाहते हैं. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वह अपनी पुरानी फिल्में कभी भी नहीं देखते हैं.


यह भी पढ़ेंः ‘AAP का होगा कांग्रेस जैसा हाल’; PM को ‘नीच’ कहे जाने पर संबित पात्रा का पलटवार, कहा- यह देश का अपमान


 

share & View comments