कुछ ऐसे पल होते हैं जब किसी लेखक के लिए किसी व्यक्ति के जीवन को शब्दों में बयां करना असंभव सा प्रतीत होता है. ज्यादातर मामलों में, किसी भी उपलब्धि को हासिल करने वाले व्यक्ति के लिए प्रशंसा के शब्द ढूंढना आसान काम होता है. पर बहुत ही विरले मामलों में, यह जानना भी मुश्किल हो जाता है कि शुरू कहां से करें. महेंद्र सिंह धोनी एक ऐसे ही व्यक्ति हैं. ऐसे क्रिकेटर के बारे में बयां करना कोई कहां से शुरू करें!
धोनी एक प्रतिष्ठित क्रिकेटर हैं जो अब एक ‘कल्ट फिगर’ (महानायक) बन चुके हैं. लेकिन ये ‘कल्ट फिगर’ भी अपनी अंदरूनी खामियों के साथ आते हैं. पर हैरानी की बात तो यह है कि महेंद्र सिंह धोनी के पास कोई ऐसी खामी नहीं है.
जब धोनी ने अचानक टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने का फ़ैसला लिया, तो यह सभी के लिए चर्चा का विषय बन गया. क्रिकेट के इस सबसे प्रतिष्ठित प्रारूप से उनके अचानक अलग हो जाने पर काफी जोरदार बहस हुई थी. भला सौ टेस्ट मैचों की दहलीज पर खड़ा और टेस्ट कप्तानी एवं सफल करियर को कौन इस तरह से एक झटके में छोड़ देता है?
पूरी ईमानदारी से आत्म-मूल्यांकन कर लेना धोनी का सबसे उल्लेखनीय गुण है. ऑस्ट्रेलिया में 2014 की बॉर्डर-गावस्कर श्रृंखला के दौरान, उन्होंने अपने उच्च मानकों के अनुसार टीम का उतनी कुशलता से नेतृत्व नहीं किया था और शायद वह नहीं चाहते थे कि टीम उनकी कप्तानी की कला में आई किसी भी कमी की कीमत चुकाए. क्रिकेट इस मामले में एक अनूठा खेल है कि यहां कप्तान की भूमिका किसी भी अन्य टीम वाले खेल की तुलना में कहीं अधिक होती है. इस खेल के अनुयायी के रूप में हम अक्सर एक कप्तान के फॉर्म की अनदेखी कर देते हैं. कप्तानी भी एक तरह से फॉर्म के बारे में ही है.
संभवतः धोनी को इस बात का अहसास हो चला था कि उन्होंने टेस्ट मैचों में कप्तानी का फॉर्म लंबे समय से खो दिया था. उन्होंने कम से कम नाज़ नखरे और बिना किसी धूमधाम के साथ टेस्ट क्रिकेट छोड़ दिया. यह उन सबसे क्रूर फैसलों में से एक था जो किसी भारतीय कप्तान ने कभी भी खुद पर लागू किया हो. ज्यादातर टेस्ट टीम के कप्तानों को या तो बर्खास्त कर दिया जाता है या उन्हें विनम्रता के साथ इस्तीफा दे देने के लिए कहा जाता है. मगर धोनी के मामले में नहीं. वह हमेशा इस खेल से एक कदम आगे रहते थे.
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धोनी ने एक साथ कई ज़िम्मेदारियां निभाईं
2011 के विश्व कप फाइनल में धोनी महान स्पिनर मुथैया मुरलीधरन का सामना करने के लिए बल्लेबाजी क्रम में उपर आ गये. यह एक महान पारी थी. वह अपने घरेलू दर्शकों के सामने विश्व कप की ट्रॉफी उठाने वाले पहले कप्तान बने थे. विश्व कप खिताब जीतने के लिए मेजबान देश की उम्मीदों के दबाव को सफलतापूर्वक वहन कर सकने वाले धोनी पहले कप्तान थे. इस लिहाज से धोनी इन सबके ‘गुरु’ हैं. उनके चेहरे पर एक बार भी कभी दबाव नहीं दिखा. एक बल्लेबाज के रूप में, वह खेल एकदम अंत ले जाते थे और फिर विपक्षी गेंदबाजों पर अंतिम हमला कर देते थे. एक बल्लेबाज के रूप में, और एक कप्तान के रूप में भी, धोनी में फौलाद जैसी नसें थीं, खास कर तब जब वे अपनी चतुराई भरे गेंदबाजी में बदलाव के साथ किसी स्कोर का बचाव कर रहे होते थे. उन्होंने कप्तान के रूप में कई सारे बड़ी बहादुरी वाले गेंदबाजी परिवर्तन किए.
एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के रूप में धोनी में जो एक और विशेषता देखी गई, वह थी उनका भरपूर आत्मविश्वास. 2008 में जब धोनी कप्तान बने तो उस टीम में कई महान खिलाड़ी थे. मगर उनका आत्मविश्वास ऐसा खास था कि उन्होंने बड़ी आसानी के साथ दिग्गजों से भरी अपनी टीम का नेतृत्व किया.
धोनी इस खेल को खेलने वाले अब तक के सबसे बेहतरीन कप्तानों में से एक हैं. एक क्रिकेटर के रूप में उनका स्वभाव अब लोककथाओं का हिस्सा बन चुका है. भविष्य के क्रिकेट इतिहासकारों को इस बात पर आश्चर्य होगा कि किसी ऐसे व्यक्ति ने इतनी सफलता के साथ इतने सारे बड़े आईसीसी टूर्नामेंटों में इतनी निरंतरता के साथ कप्तानी कैसे की! उन्होंने उन सभी प्रमुख आईसीसी टूर्नामेंटस में विजय प्राप्त की जिनमें उन्होंने भारतीय टीम की कप्तानी की थी.
एक विकेटकीपर के तौर पर धोनी ने कोई भी बड़ी ग़लती नही की. उनसे कुछ ही स्टंपिंगस छूटीं और कुछ ही कैच नीचे गिरे. धोनी के उस ‘रिवर्स थ्रो’ को भला कौन भूल सकता है, जो उनके देखे बिना ही सीधे स्टंप्स पर लग जाता था? मज़े की बात तो यह है की ऐसा करते समय उनकी पीठ विकेटों की तरफ होती थी. एक विकेटकीपर के रूप में वह उतने ही सुरक्षित थे जितना कि उच्चतम स्तर पर खेलने वाला कोई भी अन्य कीपर. साथ ही, एक कीपर के रूप में, बल्लेबाज के स्वीप करने के बारे में उनका पूर्वानुमान एकदम से त्रुटिहीन था
एक और बात जो शायद अक्सर भुला दी जाती है वह है उनका एक और ऐसा दुर्लभ क्रिकेट कौशल है जो बहुत कम लोगों के पास होता है. वह इस खेल के इतिहास में विकेटों के बीच सबसे तेज दौड़ लगाने वालों में से एक हैं. 1980 के बाद से जिन 150 के लगभग टेस्ट मैचों को मैदान पर देखने का मुझे सौभाग्य मिला है, उनके दौरान मैंने शायद ही कभी किसी को विकेटों के बीच इतनी तेजी से दौड़ते देखा हो. धोनी जब विकेटों के बीच दौड़ेते थे तो वह बिजली की तरह लगते थे. एक बल्लेबाज के रूप में धोनी एक ‘विचारक’ जैसे थे. इंग्लैंड में साल 2007 की श्रृंखला के पहले टेस्ट की दूसरी पारी में उनके धैर्य और दृढ़ संकल्प ने उनकी टीम के लिए मैच बचा लिया. उसके बाद ही भारत ने इंग्लैंड की धरती पर वह टेस्ट श्रृंखला जीती.
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धोनी हैं कौन
फिर हमें जो सवाल पूछने की जरूरत है वह यह है कि धोनी आख़िर हैं कौन? क्या वह एक खुल कर आक्रमण करने वाले बल्लेबाज हैं जो एक यॉर्कर पर भी छक्का लगा सकते हैं? क्या वह दृढ़ संकल्पित बल्लेबाज हैं जो एक टेस्ट मैच बचा सकते हैं? क्या वह फौलाद सी नसों वाले चतुर कप्तान है? एक सुरक्षित विकेटकीपर हैं जिन्होने शायद ही कभी कोई गलती की हो? विकेटों के बीच सुपर फास्ट धावक हैं? सच तो यह है कि महेंद्र सिंह धोनी भारतीय क्रिकेट के इंद्रधनुष हैं.
वह एक मानसिकतौर पर भी महामानव हैं, एक ऐसा आइकन जो अपने समय की कल्ट फिगर हैं. युवा नवोदित क्रिकेटरों से लिए यह अच्छा होगा कि वे धोनी को अपना आदर्श बनाए रखें. यह एमएस धोनी की बदौलत ही है कि भारत के किसी भी दूरस्थ कोने में कोई भी क्रिकेटर न केवल भारत के लिए खेलने का बल्कि भारत की कप्तानी करने का भी सपना नहीं देख सकता. उनका आचरण, उनका शांत स्वभाव और उनकी विनम्रता उन्हें एक महान क्रिकेटर बनाती है.
एक और बात, सभी कल्ट फिगर्स विनम्र नहीं होते हैं. धोनी वह दुर्लभ कल्ट फिगर हैं जो वास्तव में विनम्र हैं. उन्होंने क्रिकेट के मैदान पर कभी भी घबराहट का संकेत नहीं दर्शाया. यह बहुत अधिक उल्लेखनीय है क्योंकि उनके पास किसी बड़े शहर के लड़के की तरह का पालन-पोषण नहीं था. यह कुछ ऐसा था मानो प्रकृति ने स्वयं उन्हें संसार की सारी शांति प्रदान कर दी हो. आज ही के दिन, यानी की 7 जुलाई को, भारत के इस महान खेल सपूत का जन्म हुआ था. हम भाग्यशाली हैं कि एमएस धोनी अभी भी किसी न किसी स्वरूप में क्रिकेट खेल रहे हैं. धोनी ने भारतीय क्रिकेट के लिए जो कुछ भी किया है उसके लिए आज उनका शुक्रिया अदा करने का मौका है. और फिर भी, वह इतने सरल हैं की कि अपने कल्ट स्टेटस को भी गंभीरता से लेने के लिए तैयार नहीं है.
एक लेखक के रूप में, धोनी के कल्ट फिगर को समझाना बहुत मुश्किल है. यह सभी तर्कों को धता बताता हुआ है. उन्हें पसंद नहीं करना लगभग असंभव सा है. भारत के पूर्वी भाग के एक व्यक्ति को भारत के दक्षिण में अर्ध-देवता (डेमिगॉड) का दर्जा प्राप्त है. ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने सही मायने में भारतीय क्रिकेट को आगे बढ़ाया है. उन्होंने देश के कोने-कोने में क्रिकेट की लौ को प्रज्वलित किया है.
(कुश सिंह @singhkb ‘द क्रिकेट करी टूर कंपनी’ के संस्थापक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
(इस लेख को रामलाल ने अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद किया है. अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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