वाराणसी: शहर के लॉन, मैरिज हॉल और होटलों को अब चमकदार रोशनी से सजाया जा चुका है. पिछले साल की तुलना में सड़कों पर यातायात भी काफी ज्यादा बढ़ा हुआ है. आधी रात को अपने घर वापस जाने के लिए बैंड बाजा के संगीतकार ऑटोरिक्शा के पीछे पड़े हैं. सड़क के किनारे, एक डीजे ग्रुप कार में सवार होने के लिए अपनी टीम के सदस्यों में से एक की प्रतीक्षा कर रहा है. बारात में सौ से ज्यादा मेहमान मौजूद हैं और कुछ ही दूरी पर ‘ढोल जगीरो दा’ और ‘ तेरी आख्या का यो काजल’ जैसे गाने बज रहे हैं. तीन लगातार ऑफ-सीजन के बाद, छोटे शहरों में शादियों का मौसम वापस आ गया है.
लेकिन कोविड के कारण लगे प्रतिबंधों की वजह से घटे हुए बजट से लेकर मेहमानों की छोटी होती सूची तक, सब कुछ पहले से काफी कम हुआ है, यहां तक कि एक परफेक्ट लड़के की उम्मीद भी कम ही की जा रही है.
वाराणसी की रहने वाली महिला रेखा सोनकर कहती हैं, ‘कई लड़कियों की शादी में देरी हो गई है, इसलिए इस सीजन में जो लड़का मिला है, लोग कह रहे हैं की तीसरी लहर आने से पहले शादी कर दो.’
दिप्रिंट ने भारत के छोटे शहरों में शादी उद्योग के हालत के बारे में झांकने के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के जाने-माने शहर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र, वाराणसी की यात्रा की. यह न केवल हजारों लोगों के लिए रोजगार का स्रोत है बल्कि मध्यम वर्ग और उच्च-मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए उनकी हैसियत दिखाने का माध्यम भी है. हमने मैरिज हॉल मालिकों, कैटरर्स, टेंट मालिकों, डीजे, बैंड्स, ब्यूटी पार्लर के कर्मी और फूल बेचनेवालों से बात की.
बजट में कटौती और मेहमानों की छोटी होती सूची
चालीस के दशक के उत्तरार्ध की आयु वाले सुभाष सोनकर वाराणसी में हैं. 17 नवंबर को वे मीरापुर बसही इलाके में रहने वाले एम.के.सोनकर से एक मैरिज लॉन के किराये के बारे में बात करने के लिए गए थे. एम.के. सोनकर 2007 से ही शादी के उद्योग में काम कर रहे हैं और शहर की एक व्यापारिक संस्था का भी प्रतिनिधित्व करते हैं.
सुभाष सोनकर की भतीजी की 27 नवंबर को शादी होने वाली है. यह मध्यवर्गीय परिवार, जिसका प्रिंटिंग का व्यवसाय लगातार दो लॉकडाउन के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ है, अपने आप को एक बड़ी दुविधा में फंसा पा रहा है. सोनकर इस सोच में पड़े हैं कि क्या उन्हें ‘चिरपरिचित अंदाज में होटल में शादी करनी चाहिए या अपनी नई वित्तीय स्थिति के अनुसार कोई अन्य व्यवस्था करनी चाहिए.’
सोनकर, जिनके पास अपनी भतीजी के सबसे महत्वपूर्ण दिन के लिए 700 मेहमानों की सूची थी, ने दिप्रिंट को बताया, ‘पहले, यही सूची 1,000 से अधिक मेहमानों की होती. लेकिन कई अन्य लोगों की तरह, हमने भी मेहमानों की सूची में कांट-छांट कर दी है और किसी नामचीन होटल के बजाय एक वेडिंग लॉन से ही काम चलाना होगा.‘
उनके मुताबिक, 2020 से पहले इस शादी में कम-से-कम 12 लाख रुपये खर्च होते लेकिन अब यही 4 लाख रुपये में होगी.
सुभाष सोनकर की पत्नी रेखा ने एक और बदलाव देखा है – अब जब दूर के रिश्तेदारों की बात आती है तो भलमनसाहत कम कर दी जाती है. वह कहती हैं, ’अब दूर के रिश्ते को व्हाट्सएप पर जानकारी भेज दो. ‘मेन’ लोगों को बुला लो.’
रेखा ने पिछले डेढ़ साल से किसी शादी में भाग नहीं लिया है, लेकिन उनका कहना है कि उनके आस-पास सिर्फ शादी को लेकर ही बातें होती हैं. अपनी भतीजी का जिक्र करते हुए, वह कहती हैं, ‘हमारा परिवार अब सरकारी या निजी नौकरी वाला कोई उपयुक्त दूल्हा खोजने के लिए एक और साल इंतजार नहीं कर सकता था, इसलिए वे एक बेरोजगार लड़के के साथ उसकी शादी कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इस सीज़न में तो शादी के लिए सही साथी की तलाश पिछली बात हो गई है.’
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कम लगन, ज्यादा छूट
एम.के. सोनकर आमतौर पर अनुबंध के आधार पर शादी के लिए चार लॉन किराए पर देते थे. फिर कोविड महामारी ने अपनी दस्तक दी.
वे दिप्रिंट को बताते हैं, ‘लॉकडाउन की घोषणा के बाद और केवल 50 मेहमानों को अनुमति मिलने के कारण हमें अग्रिम राशि वापस करने के लिए मजबूर होना पड़ा. अब, मेरे पास केवल दो शादी के लॉन हैं. मैंने बाकी दो लॉन के लिए अनुबंध ख़त्म कर दिया क्योंकि मैं उनके लिए प्रति वर्ष लगभग 12 लाख रुपये की मोटी राशि का भुगतान कर रहा था, और कोई धंधा था ही नहीं.’
उनके मुख्य ग्राहक मध्यमवर्गीय परिवार से ही आते थे.
वे कहते हैं, ’मैं गरीबों या धनाढ्य वर्ग के बारे में नहीं बोल रहा हूं. मध्यम वर्ग ही हमारे व्यवसाय की रीढ़ था क्योंकि यह वर्ग पैसा खर्च करने में विश्वास रखता है. लेकिन अब उनका बजट काफी प्रभावित हुआ है.’
शादी के उद्योग में लगे एक और व्यापारी – 36 साल के अनूप कुमार सिंह – भी सोनकर की बात से सहमत हैं.
वे कहते हैं, ’इससे पहले कि परिवारवाले बातचीत या मोलभाव शुरू करें, मैं उन्हें बुकिंग पर 20 प्रतिशत की छूट की घोषणा कर देता हूं. यह भी अपने व्यवसाय को पटरी पर लाने का एक और तरीका है.’
सिंह, जो आमतौर पर निम्न-मध्यम वर्ग और उच्च-मध्यम वर्ग की मांगों को पूरा करते हैं, का कहना है कि 2019 में उनके पास 70 बुकिंग थी, जो 2020 में 40 से कम हो गयी और 2021 में अब तक उनके पास लगभग 25 बुकिंग हैं.
सिंह बताते हैं, ‘इस साल लगन (शुभदिन) की तिथियां पिछले साल की तुलना में कम हैं.’
सौमित्र अग्रवाल को 14 सितंबर के बाद से अपने ‘मैरिज जॉइंट’ नाम के लॉन के लिए केवल तीन बुकिंग मिली हैं.
वे कहते हैं, ‘जनवरी या फरवरी 2022 में तीसरी लहर के आने के बारे में अनिश्चितता है. मैं अग्रिम भुगतान लेने के प्रति आशंकित हो रहा था क्योंकि मुझे 2020 में सभी अग्रिम राशियां वापस करनी पड़ी थीं.’
और क्या नहीं बदला है
वाराणसी के एक पुजारी हरि नंदन मिश्रा कहते हैं कि कोविड हो न हो, रस्में अपनी जगह बनी रहती हैं.
वे कहते हैं, ‘अभी भी समारोह और अनुष्ठान किए जाने के तरीकों अथवा रिवाजों में कोई बदलाव नहीं आया है. हालांकि, थोड़े समय के लिए, परिवारों को एक ही दिन में तिलक, सगाई, वरेकछा और विवाह की व्यवस्था करनी पड़ी थी.‘
कैंट एरिया में स्थित द अमाया और रिवतास जैसे होटल भी इसी बात से सहमत नजर आते हैं. उनका कहना है कि परिवार अब अलग-अलग तारीखों के लिए संगीत, शादी और रिसेप्शन के लिए होटल बुक करवा रहे हैं और एक ही दिन सभी समारोह आयोजित करने की कोई जल्दबाजी नहीं है.
लाइटिंग, बैंड और कैटरिंग का काम करने वाले लोग, जो यूपी के आसपास के जिलों में अपने घरों को वापस चले गए थे या छोटे-मोटे कामों के लिए इस उद्योग को छोड़कर चले गए थे, वे भी इस साल दिवाली के बाद वापस आ गए हैं.
अपना नाम न बताने की इच्छा रखने वाली ब्यूटी पार्लर की मालिक ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले तीन सीज़न के दौरान, हम केवल उन लोगों के लिए असाइनमेंट पूरा करने में सक्षम हो पाते थे जिन्होंने हमें पहले ही एडवांस में पैसा दे दिया था. लेकिन वह भी एक बुरे सपने जैसा था. सैलून को प्रतिबंधों से छूट वाली सूची में शामिल नहीं किया गया था, इसलिए हमें बंद शटर के पीछे ही मेकअप करना पड़ा. एक व्यक्ति हमेशा पुलिस के गश्ती दल पर नजर रखता था.’ वे आगे बताती हैं कि इस साल नवरात्रि और दिवाली के बाद उनके पार्लर को फिर से बुकिंग मिलने लगी है.
सोनी के पवन कुमार हाल ही में एक शादी के बैंड में फिर से शामिल हुए हैं.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम मजदूर के रूप में भी हर रोज 350 रुपये कमा रहे थे, लेकिन वहां हमारी कोई पहचान नहीं थी. यह बैंड हमें एक पहचान का अहसास कराता है. मेरे जैसे कई लोग वापस आकर खुश हैं.’
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