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Sunday, 3 November, 2024
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कलाम से डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम बनने का सफर, नन्हे कलाम ने पंक्षी से कैसे सीखा उड़ान का सबक

शिक्षक का पीरियड समाप्त हुआ तो उन्होंने पूछा, ‘क्या तुम लोग उड़ान के बारे में समझ गए?’

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कलाम को पक्षियों से बेहद लगाव था. पक्षी खुले आकाश में ऊँची उड़ान कैसे भर लेते थे, उन्हें उनका यही गुण विशेष रूप से प्रिय था. वे अकसर सोचा करते कि केवल पंख फड़फड़ाने से ही पक्षी आकाश में ऐसी उड़ान कैसे भर लेते हैं? उन्हें यह भी जानना था कि आसमान में जाने के बाद पक्षी पंख फड़फड़ाए बिना भी उड़ान कैसे भर पाते हैं?

अब वे दस साल के थे. वे अपनी कक्षा में थे और उस दिन पक्षियों के बारे में बताया जा रहा था. जब शिक्षक पक्षी के अंगों की जानकारी देने लगे तो कलाम से पूछे बिना न रहा गया, ‘पक्षी कैसे उड़ते हैं?’

उनके विज्ञान के टीचर शिव सुब्रह्मण्यम ने प्रशंसा भरी निगाहों से उन्हें देखा. वे ब्लैकबोर्ड पर पक्षी का चित्र बना चुके थे. वे बोले, ‘चलो, आज पहले तुम्हें पक्षी की उड़ान के बारे में बताते हैं.’

उन्होंने बहुत सावधानी से बताया कि किस तरह पंख, पूँछ, शरीर और सिर पक्षी को ऊपर-नीचे आने-जाने और उड़ान भरने में मदद करते हैं. साथ ही यह भी बताया कि वे एक साथ मिलकर क्यों उड़ते हैं.
नन्हे कलाम सहित सारे बच्चों को जानकारी रोचक लगी; परंतु वे इसे समझ नहीं पा रहे थे.

शिक्षक का पीरियड समाप्त हुआ तो उन्होंने पूछा, ‘क्या तुम लोग उड़ान के बारे में समझ गए?’

बच्चे एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे. कलाम ने हाथ खड़ा किया और बेहिचक अपने शिक्षक को बता दिया कि वे इस बारे में समझ नहीं पा रहे थे.

शिक्षक ने कहा, ‘कोई बात नहीं, मैं कल आकर इस बारे में फिर से बता दूँगा.’

अगले दिन शिव सुब्रह्मण्यम ने अपने बच्चों को नए सिरे से सब समझाया, पर उनके चेहरे बता रहे थे कि वे समझ नहीं सके. वे बोले, ‘चलो, हम सभी समंदर के किनारे चलते हैं.’

वहाँ उन्होंने बच्चों को बहुत पास से पक्षियों और उनकी उड़ान को देखने का मौका दिया. वे अपनी बात समझाते रहे और मिसाल के लिए वहाँ उड़ रहे पक्षियों को दिखाते रहे. इस तरह बच्चों को बहुत कुछ समझ आ गया. कलाम ने कहा, ‘सर, एक बात समझ नहीं आई, पक्षी अपनी टाँगें पीछे की ओर क्यों मोड़ लेते हैं?’

‘ताकि वे बिना किसी बाधा के हवा में तैर सकें.’

उस दिन की कक्षा मजेदार रही. सारे बच्चे अपना पाठ पढ़ने के बाद बतियाते हुए वापस आए. परंतु कलाम शांत थे. शायद वे पक्षियों की उड़ान से भी आगे की कोई बात सोच रहे थे.

( ‘कलाम का बचपन’ प्रभात प्रकाशन से छपी है. ये किताब पेपर बैक में 125₹ की है.)


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