प्रयागराज: प्रयाग के संगम तट तक जाने वाले रास्तों में सजी तमाम दुकानों में एक दुकान यशोदा की है. वे सिंदूर, रंग, कस्तूरी, हींग, लोहबान आदि बेचती हैं. माघ मेला शुरू होने के दो महीने पहले से वे प्रयाग में हैं. उत्तर प्रदेश के बहराइच की रहने वाली यशोदा चार से पांच महीने के लिए प्रयाग में परिवार सहित प्रवास करती हैं. गंगा नहाने आने वाले तमाम श्रद्धालुओं से वे रह रह कर कहती हैं, ‘हींग लेते जाओ’.
यशोदा के साथ उनकी बहू, बेटा, पति समेत करीब 20 लोग हैं. करोड़ों लोगों के लिए गंगा यमुना का संगम पुण्य कमाने का जरिया है, लेकिन यशोदा के लिए यह रोजगार का जरिया है. वे बताती हैं कि उनका परिवार अलग अलग समय पर दुकान पर बैठता है और दिन भर में दो सौ से तीन सौ रुपये अब भी मिल जाते हैं. जबकि अभी माघ मेला शुरू नहीं हुआ है. चूंकि संगम पर हर दिन श्रद्धालुओं का आना जाना रहता है इसलिए इसलिए वहां पर तमाम दुकाने पूरे साल भर लगी रहती हैं.
यशोदा जैसे हजारों लोग यहां पर रोजगार के लिए आते हैं क्योंकि यहां पर करोड़ों लोगों की आवाजाही लाखों लोगों को रोज़गार मुहैया कराती है. साल 2013 में जब कुंभ हुआ था, एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक, 12,000 करोड़ का राजस्व पैदा हुआ था. इसमें छह लाख लोगों को रोजगार मिला था. इस बार 2013 कुंभ के मुकाबले राज्य सरकार ने कुंभ मेले का बजट तीन गुना रखा है. सरकार की योजना कुंभ को ‘भव्य’ बनाने की है. ऐसे में इस साल और अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा.
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मेला शुरू होने के साथ हजारों दुकानदार यहां पर आते हैं और मेला खत्म होने के साथ धीरे धीरे वापस लौट जाते हैं. यशोदा दो महीने पहले आई थीं और वसंत पंचमी के बाद जब तक श्रद्धालुओं की भीड़ आती रहेगी, यशोदा की दुकान सजी रहेगी. हालांकि, उनको डर है कि इस बार अर्द्धकुंभ है, जब भीड़ बढ़ेगी तो पुलिस उनकी दुकान संगम नोज से हटाकर कहीं दूर भेज देगी. लेकिन असली कमाई तभी होगी, जब भीड़ आएगी.
यशोदा ने बताया कि वे परिवार समेत इलाहाबाद के अलावा हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और अन्य तीर्थस्थलों पर जहां मेला लगता है, वहां वहां जाती हैं. तीर्थस्थलों पर सिंदूर, रंग, हींग आदि बेचकर उनके परिवार की जीविका चलती है. बरसात के चार महीने वे लोग घर पर रहते हैं क्योंकि बरसात में कहीं पर भी झोपड़ी तान कर रहना संभव नहीं होता, न ही बरसात में रंग और सिंदूर को खुले में रखकर बेचा जा सकता है.
एक विशाल अस्थायी शहर
कुंभ में कमाई की गरज से डेरा डालने वाली यशोदा अकेली नहीं हैं. उनके जैसे हजारों हजार लोगों को कुंभ से उम्मीद है. इलाहाबाद में गंगा यमुना और सरस्वती के संगम पर छह साल पर अर्द्धकुंभ और 12 साल पर कुंभ होता है. लेकिन यहां हर साल माघ महीना करोड़ों श्रद्धालुओं के संगम का साक्षी बनता है.
बरसात में उफनती गंगा और यमुना का पानी मौसम के साथ धीरे धीरे सिमटता है और हज़ारों हेक्टेयर जमीन खाली होती जाती है. प्रयागराज का कुंभ मेला पौष की मकर संक्रांति शुरू होकर वसंत पंचमी तक चलता है. यानी लगभग 50 दिनों तक संगम क्षेत्र की हजारों हेक्टेअर जमीन पर एक विशाल अस्थायी शहर का रूप ले लेता है, जिसमें करोड़ों लोग आते जाते हैं.
इस अस्थायी शहर के लिए बिजली, पानी, अनाज, परिवहन, सड़क, पुलिस, सफाई, आवास, बिस्तर आदि सब की जरूरत होती है. इन सब व्यवस्थाओं में कुल मिलाकर कई लाख लोगों को काम मिलता है.
जैसे बांदा जिले के बृंदा सिंह को सफाई का काम मिला है. वे 15 दिन पहले प्रयाग पहुंचे और माघ मेले में सफाई का काम करना शुरू किया है. वे बांदा के एक छोटे किसान हैं जो खेती और मजदूरी से अपनी जीविका चलाते हैं. मेले में उनको हर महीने के दस हजार रुपये मिलते हैं. वे करीब दो महीने यहां सफाई का काम करेंगे. मेले में चलने वाले लंगर रोज के भोजन की व्यवस्था करते हैं. रहने के लिए प्रशासन की तरफ से टेंट मिला है. इस तरह दो महीने की जिंदगी गंगा तट पर गुजरेगी और बृंदा सिंह 20 हजार रुपये बचाकर वापस बांदा लौट जाएंगे.
उन्होंने बताया, ‘हमारे गांव के एक जमादार ने हमें यह काम दिलाया है. वह इलाहाबाद में ही सफाईकर्मी है. प्रशासन के कहने पर उन्होंने कई लोगों को बुलाया है. हम लोग मेले तक काम करेंगे, हर महीने दस हजार रुपये मिलेंगे.’
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वे कहते हैं, ‘रोजगार के साथ साथ गंगा जी में नहाने को भी मिलता है. इससे अच्छा कोई काम नहीं मिल सकता.’
इसी तरह राजू और सोनू नाम के दो युवक नाव चलाते हैं. यूं तो प्रयागराज संगम पर गंगा यमुना में पूरे साल नावें चलती हैं, लेकिन मेले के समय मल्लाहों के लिए काम बढ़ जाता है. गंगा में डुबकी लगाने पहुंचे यात्री नावों में बैठकर गंगा यमुना के श्याम-श्वेत जल का अनुभव लेते हैं. प्रयागराज के संगम पर स्थानीय निषादों का ही कब्जा है. वे बाहरी किसी नाविक को नहीं आने देते. अलग अलग घाटों के मुंशी हैं जो हर मल्लाह से आधा पैसा लेते हैं.
राजू और सोनू अभी उम्र में छोटे हैं, इसलिए दोनों मिलकर नाव चलाते हैं. उन्होंने कहा, ‘जितना पैसा दिन भर में मिलता है, उसका आधा मुंशी ले लेता है, आधा हमारे पास बचता है जिसको हम दोनों आधा आधा बांट लेते हैं. हम हर दिन 500 रुपये से लेकर डेढ़-दो हजार तक कमाते हैं.’ वे इसे अंधी कमाई कहते हैं. यानी सवारियां मिल गईं तो अच्छा पैसा, नहीं मिलीं तो कुछ नहीं.
विशिष्ट आयोजन, विशेष रोजगार
इस बार केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर अर्द्धकुंभ को विशिष्ट बनाने का फैसला किया है. सरकार इसे प्राचीन भारतीय परंपरा के गौरव के रूप में पेश करना चाहती है. इसके लिए सरकार ने नारा दिया है- ‘दिव्य कुंभ, भव्य कुंभ’. इसके साथ ही स्वच्छ भारत अभियान को भी मेले में लागू करते हुए ‘स्वच्छ कुंभ’ का भी नारा दिया गया है.
उत्तर प्रदेश सूचना विभाग के मुताबिक, मेला क्षेत्र को विभिन्न सेक्टरों में बांटा गया है और सभी सेक्टरों में कुल मिलाकर एक लाख 22 हज़ार पांच सौ शौचालयों का निर्माण किया जाएगा.
कचरा एकत्र करने के लिए कुल 20,000 डस्टबिन लगाए जाएंगे और मेला क्षेत्र से कचरा हटाने के लिए 120 टिप्पर्स एवं 40 कॉम्पैक्टर्स तैनात किए जाएंगे. कुंभ मेले में सफाई के लिए 1,000 से अधिक सफाई कर्मियों को नियुक्त किया गया है.
कुंभ-2019 की वेबसाइट के मुताबिक, ‘दिव्य कुंभ-भव्य कुंभ का वास्तविक अनुभव कराने के लिये मेला क्षेत्र को 40 हजार से अधिक एलईडी बल्बों से प्रकाशित किया जाएगा. पर्यटकों की सुविधा हेतु पीपीपी मॉडल पर 4200 प्रीमियम टेंटों का एक शहर स्थापित किया जा रहा है, जो सांस्कृतिक कार्यक्रमों का केंद्र होगा. तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिय प्रत्येक सेक्टर में पंड़ाल स्थापित किए जाएंगे. वृहद पैमाने पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करने के लिए गंगा पंडाल स्थापित किया जा रहा है. मेला क्षेत्र में सभागारों का निर्माण किया जा रहा है. कुंभ मेला के नवोन्मेषी नूतन आकर्षणों में परिचायक प्रवेशद्वार, लेजर शो, ‘पेंट माई सिटी’ अभियान और हेलीटूरिज्म हैं.’
कुंभ-2019 में यातायात की विशेष व्यवस्थाएं की जा रही हैं. मेला क्षेत्र में 300 किलोमीटर अस्थाई सड़क निर्माण हुआ है. गंगा के दोनों तरफ बसे इस शहर के लिए 22 पण्टून पुलों का निर्माण किया गया है. संगम तक पहुंचने में मदद करने के लिए जगह जगह 2000 से अधिक डिजिटल बोर्ड लगाए गए हैं.
मेला क्षेत्र में दूरसंचार, बैंकिंग और वाटर एटीएम सेवाएं पूरे मेला क्षेत्र में लगाई जा रही है. संपूर्ण मेला क्षेत्र में बेहतर निगरानी के लिए 1000 सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं.
प्रयागराज में सूचना विभाग के अधिकारी कर्मवीर ने बताया, ‘प्रयागराज का माघ मेला आस्था के साथ रोजगार का भी बहुत बड़ा केंद्र है. इस बार मेले में 4,200 प्रिमियम टेंट्स निर्मित किए जाएंगे. ये टेंट पीपीपी मॉडल पर होंगे जिनमें कुल 20,000 बिस्तरों की क्षमता के साथ जन परिसर होगा. 10,000 लोगों की क्षमता वाला गंगा पंडाल बनेगा. आधुनिक साज-सज्जा युक्त 4 सभागार होंगे. आध्यात्मिक कार्यक्रमों के लिए 2000 लोगों की क्षमता का प्रवचन सभागार का निर्माण किया जाएगा.’
पूरे मेला क्षेत्र में 1030 किलोमीटर की लो टेंशन लाइन और 105 किलोमीटर हाइपर टेंशन लाइन बिछाई गई है. बिजली के लिए 54 अस्थायी उपकेंद्र बनाए गए हैं और 2,80,000 शिविरों में विद्युत कनेक्शन पहुंचाया गया है.
पेयजल के लिए 800 किलोमीटर पाइप लाइन बिछाई गई है. 200 वाटर एटीएम, 150 वाटर टैंकर्स और 100 हैंडपंप होंगे. इन सभी कार्यक्रमों और सुविधाओं के चलते हजारों हजार लागों को रोजगार मिलता है.
शहर का सौंदर्यीकरण
कुंभ-2019 को ‘अद्वितीय भव्यता का उत्सव’ बनाने के लिए राज्य सरकार ने प्रयागराज के विकास के लिए खजाना खोल दिया है. इसके लिए शहर में इंफ्रस्ट्रक्चर पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. पूरे प्रयागराज शहर में फ्लाईओवर, पुल के निर्माण के अलावा 34 सड़कों का चौड़ीकरण और 32 मुख्य चौराहों का सौंदर्यीकरण प्रस्तावित है. इसके अलावा लगभग सभी छोटी बड़ी सड़कों की मरम्मत का काम चल रहा है. शहर को स्वच्छ और सुंदर बनाने के लिए प्रयागराज आने वाले सभी राजमार्गों का उन्नयन किया जा रहा है.
प्रधानमंत्री ने प्रयागराज में एक नये एयरपोर्ट टर्मिनल का भी उद्घाटन किया. इसके अलावा लोक निर्माण विभाग की ओर से 116 सड़कों का निर्माण एवं चौड़ीकरण कार्य किया जा रहा है. संगम के आस पास के क्षेत्रों में लगभग 3200 हेक्टेयर क्षेत्र में 84 पार्किंग स्थलों का निर्माण किया जा रहा है. 524 से अधिक शटल बसें एवं बड़ी संख्या में सीएनजी आटो चलाए जाएंगे ताकि यात्रियों के लिए आवागमन आसान हो सके. मेला क्षेत्र के अलावा शहर के अलग अलग स्थानों पर लगभग 54 ठहराव क्षेत्रों का विकास किया जा रहा है.
कुंभ के लिए 4200 करोड़ का बजट
भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार कुंभ के बहाने हिंदू वोटबैंक को भी अपनी ओर खींचना चाहती है. इसी क्रम में योगी सरकार ने छह साल में होने वाले अर्द्धकुंभ को कुंभ नाम दे दिया है. सरकार का कहना है कि हर 12 साल पर होने वाले कुंभ को महाकुंभ नाम दिया जाएगा. योगी सरकार ने कुंभ के लिए अपना खजाना भी खोल दिया है.
प्रदेश सरकार ने कुंभ-2019 के लिए अनुमानित 4200 करोड़ का बजट रखा था. इसके पहले 2013 में पूर्ण कुंभ था. 2013 के कुंभ आयोजन के लिए प्रदेश सरकार का बजट 1300 करोड़ था. यानी इस बार सरकार ने पिछले कुंभ का तीन गुना बजट रखा है.
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बीती जुलाई तक केंद्र सरकार ने कुंभ के लिए 1200 करोड़ मंजूर किया था, जबकि राज्य सरकार ने 2200 करोड़ की मांग की है. हालांकि, 16 दिसंबर की रैली में प्रधानमंत्री ने गंगा सफाई, सड़क, पुलिस, यातायात आदि से जुड़ी करीब 4100 करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास किया. इनमें मेला बजट से बाहर की भी परियोजनाएं हैं.
योगी सरकार ने 19 दिसंबर को चालू वित्त वर्ष के दूसरे अनुपूरक बजट में कुंभ के लिए 100 करोड़ रुपये आवंटित किए. इसके पहले अगस्त में आए अनुपूरक बजट में भी योगी सरकार ने कुंभ आयोजन के लिए 800 करोड़ रुपये दिए थे. फरवरी में पेश अपने मुख्य बजट में राज्य सरकार ने कुंभ के लिए 1500 करोड़ रुपये आवंटित किए थे.