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Tuesday, 19 March, 2024
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चुनावी लाभ के लिए प्रयागराज कुंभ का इस्तेमाल कर रही है भाजपा

तीर्थराज प्रयाग में सदियों पुराने कुंभ को लेकर जगह-जगह चस्पा नारे और नेताओं के फोटो लगे पोस्टर आस्था और धर्म में सियासी दखल की कहानी कहते हैं.

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प्रयागराज: इस बार इलाहाबाद का माघ मेला पिछले तमाम मेलों से अलग है. जैसे अब इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज हो गया है, वैसे ही गंगा जमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर लगने वाले कुंभ के लिए तमाम सरकारी नारे चस्पा कर दिए गए हैं.

इलाहाबाद में प्रवेश करते ही सड़कों के किनारे खंभों पर, दीवारों पर, पेड़ों पर टंगी होर्डिंग्स और पोस्टर कुंभ में सियासी दखलंदाज़ी की कहानी कहते हैं.

‘दिव्य कुंभ, भव्य कुंभ’, ‘भव्य कुंभ, स्वच्छ कुंभ’, ‘चलो कुंभ चलें’ आदि नारों के साथ नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की फोटो वाले पोस्टरों ने इस बार के कुंभ को ‘विशेष’ बना दिया है. कुंभ के आयोजन के लिए 16 दिसंबर को प्रधानमंत्री की रैली हुई और इस रैली में जनता को जुटाने के लिए इलाहाबाद समेत आसपास के ज़िलों में जहां तहां बैनर, पोस्टर और बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगाई गईं.

दिल्ली में आईटीओ मेट्रो स्टेशन पर एलईडी स्क्रीन पर कुंभ का प्रचार. (फोटो: दिप्रिंट)

हालांकि, इलाहाबाद का नाम अब बदलकर प्रयागराज भले हो गया हो, लेकिन ‘तीर्थराज’ के रूप में विख्यात प्रयाग को लेकर जनता की आस्था में कोई बदलाव नहीं हुआ है. आम जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ज़िले का नाम क्या है और कौन सा बड़ा आदमी इलाहाबाद में पधार रहा है. 15 दिसंबर को जब 70 देशों के राजनयिकों को केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिलकर कुंभ की भव्य तैयारियों का दर्शन करा रही थीं, तब भी सैकड़ों लोग संगम में डुबकी लगाने पहुंच रहे थे.

उसके अगले दिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर पूजा अर्चना की और झूसी में एक रैली को संबोधित किया, तब भी संगम पर आम श्रद्धालुओं का आना जारी था, उसी तरह जैसे सैकड़ों वर्षों से लोग गंगा में डुबकी लगाने आते होंगे.

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आस्था का अर्द्धकुंभ, सियासत का पूर्ण कुंभ

हर साल माघ महीने में संगम तट पर एक महीने तक साधु संतों के साथ आम लोग यहां पर कल्पवास करते हैं. हर 12 साल पर इलाहाबाद संगम में कुंभ होता है और छह साल पर अर्द्धकुंभ होता है. इसके पहले 2013 में कुंभ हुआ था. इस लिहाज से छह साल बाद इस बार अर्द्धकुंभ है.

लेकिन उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पास करके इसे पूर्ण कुंभ घोषित कर दिया है. आदित्यनाथ खुद योगी भी हैं और गोरखपुर की गोरक्षा पीठ के महंत हैं. उन्होंने सदियों से चली आ रही कुंभ और अर्द्धकुंभ की परंपरा में फेरबदल की कोशिश क्यों की?


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अर्द्धकुंभ को पूर्ण कुंभ घोषित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि इस बार भी कुंभ होगा, क्योंकि हिंदू विश्वास में कुछ भी आधा नहीं होता है, जो होता है वह पूरा होता है. हालांकि, इसके उलट प्रयागराज पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभा को संबोधित करते हुए मंच से कहा, ‘इस बार का अर्द्धकुंभ भव्य और दिव्य होगा.’ अपने संबोधन में उन्होंने बार बार इसे अर्द्धकुंभ कहा.

क्या योगी इस बात से अनजान हैं कि धर्म और आस्था का अपना ढर्रा है और ग्रह नक्षत्रों के संयोग को राजनीति के फायदे और नुकसान के हिसाब से नहीं बदला जा सकता?

अबकी बार चुनावी कुंभ

प्रयाग वासियों में चर्चा है कि अबकी बार का अर्द्धकुंभ दरअसल चुनावी कुंभ है. 70 देशों को राजनयिकों को संगम की तैयारियां दिखाने लाना और फिर कुंभ के उपलक्ष्य में मोदी की विशाल रैली और फिर बड़े नेताओं का बार-बार इलाहाबाद जाना इस चुनावी कुंभ की चर्चा की तस्दीक करता है.

यह पहली बार है कि इलाहाबाद कुंभ स्नान के लिए दिल्ली और अन्य शहरों में होर्डिंग्स और पोस्टर लगे हैं. इसका नारा है ‘चलो कुंभ चलें’. आम तौर पर ऐसा नारा किसी राजनीतिक रैली के लिए दिया जाता है, मसलन- ‘दिल्ली चलो’.

झूसी के अंदावा में प्रधानमंत्री की सभा रखी गई थी. यहां से प्रधानमंत्री ने करीब 4100 करोड़ की परियोजनाओं और विकास कार्यों का लोकार्पण भी किया. इस रैली राज्यपाल राम नाईक, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, मंत्री रीता बहुगुणा जोशी, सिद्धार्थनाथ सिंह आदि मौजूद थे.

पीएम ने किया कुंभ का शुभारंभ

प्रधानमंत्री का हेलीकॉप्टर सभास्थल पर उतरने से ठीक पहले मंच से प्रस्तोता ने कहा कि पहली बार कोई प्रधानमंत्री सनातन परंपरा को गौरव प्रदान करने के लिए कुंभ का शुभारंभ करने आ रहे हैं.

इसी मंच से योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ‘देश के इतिहास में पहली बार किसी पीएम ने कुंभ का शुभारंभ किया है, यह बहुत ही शुभ संकेत है.’ क्या सदियों पुरानी एक धार्मिक परंपरा को राजनीतिक इवेंट बना देना वाकई शुभ संकेत है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 दिसंबर को प्रयाग कुंभ में पूजन करते हुए. (फोटो: ट्विटर)

इतिहास में पहली बार के सवाल पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘1954 के कुंभ में जवाहरलाल नेहरु ने भाग लिया था. तब देश नया-नया आज़ाद हुआ था और नेहरु उस देश को देखना चाह रहे थे जो गंगा में अपनी आस्था व्यक्त करता था- उस गंगा में जिसे वे भारत की शाश्वत नदी कहते थे. हालांकि इस कुंभ में भगदड़ मच गयी थी, और कई लोग मारे गए थे जिस पर हिंदी के कवि त्रिलोचन ने मार्मिक कविताएं लिखी हैं.’

उन्होंने कहा, ‘नेहरु ने और उनके बाद में आने वाले प्रधानमंत्रियों ने कुंभ मेले को सफल बनाने की हमेशा कोशिश की, लेकिन उसे व्यक्तिगत उपलब्धि की तरह प्रचारित नहीं किया. वे जानते थे कि गंगा नदी और भारत में फैले विभिन्न तीर्थ भारत की सामूहिक कल्पना में इतने ज्यादा समाहित हैं और उनकी सामूहिक स्मृति का हिस्सा हैं कि उसे व्यक्तिगत उपलब्धि की तरह पेश करना ओछापन होगा.’

‘सम्राट हर्ष ने अपना सर्वस्व दान दे दिया था लेकिन उनके किसी समकालीन और उनके राजकीय साहित्यकार बाणभट्ट ने भी इसे उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि की तरह पेश नहीं किया है. जबकि इलाहाबाद में आयोजित होने वाले इस अर्धकुंभ को कुंभ बताकर योगी आदित्यनाथ अलग और नरेंद्र मोदी अलग अपनी उपलब्धि बता रहे हैं. देश की जनता को बताने के लिए उनके पास जब कुछ नहीं बचा है तो वे इसे ही सरकारी उपलब्धि बता रहे हैं और इसे हिंदू-सैन्य-राष्ट्रवाद से जोड़ रहे हैं.’

उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए उनके एक सहयोगी अभिमन्यु ने कहा, ‘आप याद कीजिए कि अखिलेश यादव की सरकार (2013) में आज़म खान ने इसे (कुंभ को)उसी तरह से लिया जैसे एक मंत्री को इसे लेना चाहिए. लेकिन इसे अपनी उपलब्धि बताना खतरनाक प्रवृत्ति है. वह दिन दूर नहीं है जब यह सरकार गांव-कस्बों में आयोजित होने वाले राम-विवाह, दुर्गा पूजा और कृष्ण जन्माष्टमी के उत्सवों का राजनीतिकरण कर देगी. यह भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक बात होगी.’

राजनयिकों के दौरे के बाद गंगा तट पर एक साधु अमृतानंद ने सरकार की इस पहल की तारीफ करते हुए कहा, ‘सरकार इस बार कुंभ पर विशेष ध्यान दे रही है. इससे दुनिया भर में भारत की कीर्ति फैलेगी. इससे सनातन धर्म का गौरव वापस आएगा.’

अध्यात्म, आस्था और आधुनिकता की त्रिवेणी

प्रधानमंत्री ने अंदावा की सभा में कहा, ‘…दिव्य और जीवंत प्रयागराज को और जीवंत और आधुनिक बनाने के लिए आज करीब साढ़े चार हजार करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास किया गया है. इसमें रेलवे, सड़क, गंगा की सफाई, स्मार्ट सिटी से जुड़े सैकड़ों कार्यक्रम इसमें शामिल हैं. यह सब स्मार्ट प्रयागराज बनाने में मदद करेगा.’

उन्होंने कहा, ‘सरकार का प्रयास है कि इस बार अर्द्धकुंभ में इसके हर पहलू का अनुभव दुनिया भर के लोगों को मिल सके. तप की भी अनूभूति हो और आधुनिक तकनीक की भी अनुभूति हो. अध्यात्म, आस्था और आधुनिकता की त्रिवेणी कितनी भव्य और बेजोड़ हो सकती है, इसका अनुभव लेकर लोग यहां से जाएं, इसकी पूरी कोशिश की जा रही है…अर्द्धकुंभ का संगम तब तक अधूरा रहेगा जब तक यहां की पूर्ण शक्ति, पूर्ण संगम त्रिवेणी भव्य न हो.’

प्रधानमंत्री ने विस्तार से बताया कि कैसे आस्था के इस संगम में तकनीक और सुविधाओं के ज़रिये इसे ‘भव्य’ और ‘दिव्य’ बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने में जुटी है कि आयोजन दर्शनीय, दार्शनिक और दिव्य बने. सरकार का पूरा प्रयास है कि यहां भारत के गौरवशाली अतीत के दर्शन और गौरवशाली भविष्य की झलक दुनिया को देखने के लिए मिले.’

भव्य कुंभ के लिए रैली और कलंकित कांग्रेस

कुंभ आयोजन को प्रधानमंत्री ने देश की प्रतिष्ठा, गौरव, परंपरा, विविधता, सांस्कृतिक विरासत, अतीत और भविष्य से जोड़ा और इसे दुनिया से परिचित करवाने की बात कही. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार यह प्रयास कर रही है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत का दुनिया में प्रभाव बढ़े.

बीबीसी के वरिष्ठ पत्रकार समीरात्मज मिश्र कहते हैं, ‘कुंभ की तैयारियों के लिए अब 15 दिन से भी कम का समय बचा है, सौंदर्यीकरण के लिए पूरा इलाहाबाद शहर खोद दिया गया है और अभी तक उजड़ा पड़ा है. ऐसे में इलाहाबाद में 70 देशों के राजनयिकों को बुलाना फिर उसके बाद कुंभ के नाम पर एक राजनीतिक रैली करने का कोई औचित्य तो नहीं था. सरकार एक पारंपरिक और धार्मिक आयोजन को अपना आयोजन बनाना चाहती है. वे यह संदेश देना चाहते हैं कि यह सब जो हो रहा है, यह सरकार की तरफ से हो रहा है. जबकि कुंभ तो हमेशा से होता रहा है.’

हालांकि, सरकार ने अपनी तरफ से इस आयोजन का औचित्य बाकायदा मंच से घोषित किया. योगी का कहना है, ‘यह भारत की सनातन आस्था के लिए सबसे बड़ा सम्मान है.’

नामों में बदलाव और मूर्तियां

हाल ही में सरकार ने इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोधछात्र अंकित पाठक इसका ज़िक्र करते हुए कहते हैं, ‘वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी के लगातार ताकतवर होते जाने, विश्व हिंदू परिषद् के कमज़ोर होने, राममंदिर के मुद्दे पर न्यायपालिका के अनुकूल रुख के न होने के कारण योगी आदित्यनाथ की राजनीति हिचकोले खा रही है. राम मंदिर का मुद्दा कोर्ट से सरकार की ओर खिसक गया है. इसलिए सरकार लोगों का ध्यान हटाना चाह रही है. इसी क्रम में इलाहाबाद और अयोध्या का नाम बदला गया. कुंभ को अपना आयोजन बनाकर पेश करना भी इसी कार्यक्रम की अगली कड़ी है.’

एक अन्य शोध छात्र अनुराग मौर्या ने बताया कि रोज़गार के मुद्दे पर और सरकारी नौकरियों में व्याप्त भ्रष्टाचार के मोर्चे पर प्रदेश सरकार फेल हो गयी है. इससे उबरने के लिए वह एक बार फिर कुंभ मेले में हिंदू संतों का समर्थन चाह रही है. उन्हें मंदिर देने में विफल प्रदेश सरकार केवल एक नाम ‘प्रयाग’ भर दे पा रही है.’

स्थानीय पत्रकार अक्षय का कहना है कि ‘वास्तव में यह भाजपा और संघ के बीच की अंदरूनी लड़ाई भी है. इस बार कुंभ में चार खिलाड़ी होंगे- योगी आदित्यनाथ और उनके अधिकारी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और प्रधानमंत्री मोदी. सब एक दूसरे को पटखनी देने की कोशिश करेंगे और खुद आगे निकल जाना चाहेंगे.’

विहिप की दिल्ली में राम मंदिर के लिए हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस और फिर विराट धर्मसभा में यह चेतावनी दी गई है कि वह मंदिर के मुद्दे पर कुंभ में होने वाली धर्म संसद में भाजपा की खबर लेगी.


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इस बार के कुंभ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद मंदिर का मुद्दा उठाने की घोषणा कर चुके हैं.
जीबी पंत संस्थान के एक शोधछात्र ने कहा, ‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में प्रधानमंत्री पद की लालसा अंगड़ाई ले रही है. मीडिया में भी गाहे ब गाहे यह चर्चा चलती रहती है. कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हार से संकट में आई भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटें महत्वपूर्ण हैं. ऐसे में योगी आदित्यनाथ को लगता है कि यदि वे उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन करेंगे तो वे हिंदू हृदय सम्राट हो जाएंगे. उनके बेहतर प्रदर्शन का पैमाना यही है कि वे हिंदुओं को ज्यादा से ज्यादा संख्या में भाजपा के साथ लाएं. इसके लिए भाजपा के पास सबसे बड़ा हथियार धर्म और आस्था का है.’

उन्होंने कहा, उत्तर प्रदेश में भाजपाई सवर्ण अब योगी को अपना पोस्टर ब्वाय मानने लगे हैं. और इसी बीच प्रदेश के ठाकुर उन्हें अब पीएम मैटेरियल मानने लगे हैं. तो कुछ भी कर पाने में असफल प्रदेश सरकार नाम बदल रही है.

सरकार के इस आयोजन की सिर्फ आलोचना ही नहीं हैं. एक हिंदी दैनिक के संपादक नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘सरकार एक तरफ राजनीति और दूसरी ओर हिंदुत्व के एजेंडे को ध्यान में रखकर यह आयोजन कर रही है. हालांकि, इससे प्रयाग और उत्तर प्रदेश को पर्यटन के लिहाज बहुत फायदा होगा. इसके अलावा इस बार कुंभ में जो भी आएगा, यहां से कुछ न ​कुछ सीख कर भी जाएगा.’

दो बड़े राजनीतिक कार्यक्रमों के बीत जाने के बाद गंगा नहाने आए इलाहाबाद के निवासी शैलेंद्र मिश्र ने अनौपचारिक बातचीत में कहा, ‘किसी सरकार को यह दिखाने की जरूरत नहीं होती है कि वह हिंदुओं की समर्थक है या मुसलमानों की विरोधी. जनता सरकार के कामकाज से सब समझती है. हमने जीवन भर गंगा में स्नान किया, मरेंगे तो भी शायद इसी गंगा में दाह होगा. सरकार का कुंभ मेले का श्रेय लेने का प्रयास अनुचित है. लेकिन सरकार तो सरकार है, उसे कौन रोक सकता है?

कुंभ से पहले वैचारिक कुंभ

प्रयाग में जनवरी में होने वाले अर्द्धकुंभ से पहले योगी सरकार कुंभ शब्द को जमकर भुनाना चाह रही है. सरकार इसके लिए पांच पांच वैचारिक कुंभ आयोजित कर रही है. इनमें से तीन वैचारिक कुंभ आयोजित किए जा चुके हैं. पर्यावरण कुंभ काशी मातृ शक्ति, कुंभ वृंदावन और अयोध्या में सामाजिक समरसता कुंभ का आयोजन संपन्न हो चुका है. चौथा कुंभ युवा कुंभ के नाम से 22 और 23 दिसंबर को लखनऊ में होगा.

22 दिसंबर का कार्यक्रम लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में होगा जिसमें आरएसएस के पदाधिकारियों समेत अनेक प्रबुद्ध जन शामिल होंगे, जबकि 23 दिसंबर का कार्यक्रम आशियाना स्थित कांशीराम उपवन स्थल पर होगा. इसमें भी कई जानी मानी हस्तियों के शामिल होने की संभावना है.

एबीवीपी के अखिल भारतीय विश्वविद्यालय प्रमुख श्रीहरि बोरिकर के मुताबिक, 22 व 23 दिसंबर को होने वाले वैचारिक कुंभ में केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन राठौर, स्मृति ईरानी, बाबा रामदेव, क्रिकेट गौतम गंभीर समेत तमाम हस्तियां अपने विचार रखेंगी. यह कार्यक्रम आयोजित करने की जिम्मेदारी लखनऊ विश्वविद्यालय को दी गई है. योगी आदित्यनाथ इसके मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल होंगे.

राम और निषाद की प्रतिमा

कुंभ के अलावा उत्तर प्रदेश में मूर्तियों की भी राजनीति जोर पकड़ चुकी है. अयोध्या में राम की सबसे ऊंची प्रतिमा लगाने की योजना के बीच योगी सरकार इलाहाबाद के शृंगवेरपुर में भगवान राम और निषाद राज की प्रतिमा लगवाने की योजना बनाई है. इस प्रतिमा में राम निषाद राज को गले लगाए हुए दिखेंगे. हालांकि, इसके साथ सबरी की भी मूर्ति लगवाने की मांग उठ रही है.

रामचरित मानस में निषाद राज का जिक्र है जिन्होंने वनगमन के समय राम के पांव धोए थे और उन्हें गंगा के पार उतारा था. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य निषाद और राम की गले मिलते हुए मूर्ति की स्थापना की घोषणा कर चुके हैं. सबरी को भी रामचरित मानस में नीची जाति का बताया गया है. दूसरी तरफ अयोध्या में राम की मूर्ति के साथ सीता को भी उचित सम्मान देने की चर्चा गरम है.


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विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा धर्म और आस्था को राजनीतिक वोट बैंक के लिहाज से देखती है. यूपी में निषादों का वोट 14 फीसदी है, जबकि अनुसूचित जातियों का वोट भी 21 फीसदी है. यह मूर्तियां लगवाकर भाजपा इन वर्गों को अपने साथ लाने की कवायद कर रही है. निषाद की मूर्ति के लिए प्रशासन को ज़मीन अधिग्रहण का आदेश दिया जा चुका है.

दरअसल भाजपा की रणनीति है कि उत्तर प्रदेश में गैर यादव ओबीसी वोटर को अपने तरफ किया जाए. इसमें कुशवाहा, कुर्मी और निषाद आते हैं. गंगा किनारे बसे ज़िलों में निषादों की आबादी काफी तादाद में है. इलाहाबाद के अलावा भदोही, मिर्ज़ापुर, सोनभद्र, वाराणसी, कानपुर, फतेहपुर, उन्नाव, गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज आदि ज़िलों में निषाद काफी संख्या में हैं.

इन्हीं निषाद वोटों को लुभाने के लिए कभी मुलायम सिंह डाकू फूलन देवी को सांसद बना चुके हैं. अब भाजपा कुंभ से लेकर मूर्तियों तक की राजनीति के जरिये अलग अलग हिंदू जातीय समूहों को अपने पाले में लाने की कोशिश में दिख रही है.

चुनावी राजनीति की इस खींचतान के बीच विश्वविद्यालय के एमए के छात्र गौरव उपाध्याय की बात गौरतलब है कि ‘हम अब तक जिस कुंभ को जनता की आस्था में सना हुआ देखते थे, इस बार उस कुंभ को नेताओं के पोस्टर-बैनरों से पटा देख रहे हैं. यह अच्छा है या बुरा, यह जनता को तय करना है.’

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