scorecardresearch
Friday, 3 May, 2024
होमसमाज-संस्कृति‘मोदी में मुझे चाणक्य दिखते हैं’, पीयूष मिश्रा का नया फोकस राजनीति नहीं, केवल म्यूज़िक है

‘मोदी में मुझे चाणक्य दिखते हैं’, पीयूष मिश्रा का नया फोकस राजनीति नहीं, केवल म्यूज़िक है

मिश्रा अपने ‘लिरिक्स-ओरिएंटेड’ बैंड के साथ दौरे पर हैं. इसका नाम, बल्लीमारान, मिर्ज़ा ग़ालिब के घर से प्रेरित था — जो दिल्ली और थिएटर के प्रति उनके प्रेम का संकेत है.

Text Size:

नई दिल्ली: क्या पीयूष मिश्रा बीजेपी नेता/उम्मीदवार हैं? गूगल में उनका नाम टाइप करने पर सर्च इंजन यही सवाल पूछता है, जो उनकी राजनीतिक संबद्धता, या सोमरस के बारे में रुचि में नई वृद्धि का संकेत देता है. हाल ही में उनकी राजनीतिक विचारधारा और साम्यवाद से उनके मोहभंग ने सोशल मीडिया को मुद्दा दे दिया है, लेकिन 60-वर्षीय बहुसंभावित व्यक्ति इन दिनों इस बात को लेकर जुनूनी नहीं हैं. पिछले सात साल से जब से सभी राजनीतिक अटकलें शुरू हुईं, वो अपने “लिरिक्स-ओरिएंटेड” बैंड बल्लीमारान के साथ भारत भर का दौरा कर रहे हैं.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) या राजनीति के साथ काम करने की किसी भी इच्छा या संभावना को खारिज करते हुए मिश्रा ने कहा, “जो लोग यह मानकर निराश हैं कि मैं बीजेपी का समर्थन करता हूं, वे मूर्ख हैं. एक राजनेता और प्रधानमंत्री के रूप में मैं नरेंद्र मोदी को पसंद करता हूं. मैं उनमें ‘चाणक्य’ को देखता हूं.”

अभिनेता, गायक, गीतकार, नाटककार, पटकथा लेखक और संगीतकार की स्थायी विरासत में लिरिक्स लिखना अभी भी सबसे अहम है. उनके गीत अक्सर राजनीतिक होते हैं, चंचल होते हैं, लेकिन उनमें ज्यादातर उदासी का स्पर्श होता है. जब से अनुराग कश्यप की ‘गुलाल’ (2009) का ‘आरंभ है प्रचंड’ (2014) में बीजेपी की रैलियों सहित क्रोध, आकांक्षा और चिंता से भरी सार्वजनिक बैठकों के लिए एक प्रकार का गीत बन गया है, तब से उनकी संगीत यात्रा बाकी सभी चीज़ों से पहले हो गई है. हाल ही में दिल्ली थिएटर फेस्टिवल के दौरान 1,865 सीटों वाले सिरी फोर्ट में बैंड की परफॉर्मेंस को स्टैंडिंग ओवेशन मिला और दर्शकों ने इसे रिपीट करने की मांग की. दिल्ली को अपना “घर” कहने वाले मिश्रा ने बाध्य होकर फिर से ‘आरंभ है प्रचंड’ गाया. जैसे ही अनुभवी कलाकार ने मंच पर जादू बिखेरा, भीड़ ताल पर थिरकते फोन कैमरों की चमक से जगमगा उठी.

यह ब्लॉकबस्टर गाना अभी भी उनके बैंड के संगीत समारोहों के दौरान सबसे अधिक अनुरोधित गीतों में से एक है. उन्होंने ‘हुस्ना’ और ‘घर’ गाने को कोक स्टूडियो के साथ गाया, दोनों को यूट्यूब पर लाखों बार देखा गया है और जब भी उन्हें लाइव शो में सुनाया जाता है, दर्शक दीर्घा से तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठती है.

पुराने दिन और दबी चवन्नी जैसे गानों के बारे में मिश्रा बताते हैं, “मैंने अधिकांश गाने (कॉन्सर्ट्स) 90 के दशक की शुरुआत में लिखे थे. उन्हें फिल्म जगत ने अस्वीकार कर दिया था और अब देखिए, वो कमाल कर रहे हैं.”

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

इस साल की शुरुआत में उन्होंने अपनी पहले से ही सजी हुई टोपी में एक पंख और जोड़ लिया. जब वो अपनी आत्मकथा तुम्हारी औकात क्या है से किताब के लेखक भी बने, जो उनके संघर्षों और सफलताओं को छूती है.


यह भी पढ़ें: भारत के डिस्को किंग बप्पी लाहिड़ी, जिनके गोल्ड पर माइकल जैक्सन भी हो गए थे फिदा


‘क्रांतिकारी कलाकार’

मिश्रा द्वारा संचालित विभिन्न परियोजनाओं में क्रांति सबसे आगे रही है.

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर-2’ (2012) में आबरू में राजनीतिक गुटबाजी से लेकर ‘उठ जा भाऊ’ में नवउदारवाद या ‘हुस्ना’ में विभाजन की यादें तक, मिश्रा अपनी राजनीति या विचारधाराओं के बारे में मुखर होने से नहीं कतराते हैं.

अपने दौरे की शुरुआत से पहले अपने बैंड आरंभ के बारे में पीयूष ने कहा, “चाहे वो सेक्स पर हमारे विचार हों या जलवायु परिवर्तन पर, हम हर चीज़ के बारे में गाते हैं.” मिश्रा का बैंड भारत भर के 25 से 30 शहरों में लोगों के बीच झूमने के लिए तैयार है.

वे मुद्दों, खासकर अपनी विचारधारा के बारे में खुलकर बोलने से कभी नहीं कतराते हैं.

फिल्म निर्माता इम्तियाज़ अली, जिन्होंने अपने थिएटर के दिनों में और ‘रॉकस्टार’, ‘तमाशा’ जैसी फिल्मों में मिश्रा के साथ काम किया है उनके बारे में कहते हैं, “इसके मूल में वे एक सत्ता-विरोधी प्रकार के कलाकार हैं. उन्होंने 90 और 2000 के दशक में थिएटर में जो किया, वही अब वो फिल्म इंडस्ट्री में कर रहे हैं.”

यह समझना कठिन है कि मिश्रा को क्या अद्भुत बनाता है. उनके सहकर्मियों का कहना है कि उनका जादू, नग्न आंखों से अनभिज्ञ, कुछ ही मिनटों में सामने आ जाता है.

इंडियन ओशन के राहुल राम बताते हैं, “बंदे (ब्लैक फ्राइडे से) गाने को बनाने के दौरान, हमने कुछ धुन बजाई और उन्होंने (मिश्रा) हमें इंतज़ार करने के लिए कहा और बालकनी में चले गए. कुछ ही मिनटों में वो गाने के बोल के साथ वापस लौटे.” राम का कहना है कि “मिश्रा शानदार तरीके से पागल हैं”.

‘हैप्पी भाग जाएगी’ (2016) और ‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’ (2018) जैसी फिल्मों में एक साथ काम करने वाले जिम्मी शेरगिल पीयूष जैसा गुनगुनाने की चाह रखते हैं. वे कहते हैं, “काश मैं भी उनकी तरह लिख पाता. काश मैं भी उनके जैसा जादू पैदा कर पाता. काश मैं उनकी तरह गा पाता.”

मिश्रा की बेशर्मी हमेशा उनके दोस्तों सहित अन्य लोगों को रास नहीं आती, लेकिन विचारधारा में अंतर शायद ही कभी लंबे समय के दोस्तों, खासकर अनुराग कश्यप के साथ उनके समीकरणों को प्रभावित करता है. दोनों ने ‘गुलाल और गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के दोनों हिस्सों सहित कई प्रॉजेक्ट्स पर एक साथ काम किया है और कश्यप की आगामी परियोजना पर भी मिश्रा सहयोग कर रहे हैं.

मिश्रा ने बताया, “हम किसी भी संभावित तरीके से एक साथ नहीं हैं, चाहे वह राजनीति हो, नैतिकता हो, या जिस तरह से वो फिल्में बनाते हैं. मैं उनसे तभी बात करता हूं जब कोई ज़रूरत होती है, लेकिन अंदर से प्यार है जो हमें बार-बार एक साथ लाता है. कश्यप के लिए भी यह वैसा ही है.”


यह भी पढ़ें: ‘संगीत इंडस्ट्री के बादशाह’, कैसेट किंग गुलशन कुमार ने टी-सीरीज़ के जरिए नई आवाजों को दी पहचान


रंगमंच और दिल्ली — दो महान प्रेम

70 से अधिक गीत क्रेडिट (एक गीतकार, संगीतकार और गायक के रूप में) और लगभग 50 फीचर फिल्मों, एक दर्जन वेब सीरीज़ और कई मंच प्रस्तुतियों में अभिनय करने के बाद, मिश्रा का दिल दिल्ली और उसके थिएटर में बसता है.

उनका “लिरिक्स-ओरिएंटेड” बैंड 2016 में बना था और इसका नाम उर्दू कवि मिर्ज़ा ग़ालिब के निवास के नाम पर बल्लीमारान रखा गया था, क्योंकि वो अपने काम के जरिए से दिल्ली को याद रखना चाहते थे.

मिश्रा बताते हैं, “हम बैंड के लिए ‘इंकलाब’ नाम पर विचार कर रहे थे, लेकिन दिल्ली को याद करते समय ग़ालिब से बेहतर क्या हो सकता है.”

जबकि उन्होंने वह काम करते हुए दो दशक बिताए जो उन्हें सबसे ज्यादा पसंद था, वो महत्वाकांक्षी थिएटर अभिनेताओं को ऐसा न करने की सलाह देते हैं.

मिश्रा ने कहा, “सिर्फ एक थिएटर अभिनेता बने रहना टिकाऊ नहीं है. ऐसा न कभी था, न आज है. मुझे नहीं पता कि मैंने यह कैसे किया, लेकिन इस प्रक्रिया में मैंने बहुत कुछ खोया.” हालांकि, उन्हें यह भी लगता है कि “अभिनय के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण” जैसा कि उस समय उनके समकालीन इरफ़ान खान, आलोक चटर्जी और मनोज बाजपेयी में ज़िंदा था, आज की पीढ़ी में गायब है.

अच्छे पुराने दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं, “सांस लेना दोबारा हो जाया करता था अगर अभिनय नहीं करते तो सांस लेना असंभव हो जाता था.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: तात्या टोपे: 1857 के विद्रोह के करिश्माई नेता, जिनकी मृत्यु आज भी रहस्य बनी हुई है


 

share & View comments