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Wednesday, 18 December, 2024
होमसमाज-संस्कृति‘छोटी सोच को दर्शाता है’- संसद में की गई बिधूड़ी की सांप्रदायिक टिप्पणियों की उर्दू प्रेस ने की आलोचना

‘छोटी सोच को दर्शाता है’- संसद में की गई बिधूड़ी की सांप्रदायिक टिप्पणियों की उर्दू प्रेस ने की आलोचना

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख इख्तियार किया.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद रमेश बिधूड़ी की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के दानिश अली के खिलाफ “असंसदीय” भाषा पर इस सप्ताह उर्दू प्रेस ने नाराजगी जताई.

पांच दिवसीय विशेष संसदीय सत्र के दौरान लोकसभा को संबोधित करते हुए, बिधूड़ी ने उत्तर प्रदेश के अमरोहा से सांसद अली के खिलाफ सांप्रदायिक अपशब्दों का इस्तेमाल किया. हालांकि बाद में शब्दों को हटा दिया गया, लेकिन विपक्षी सांसद दक्षिणी दिल्ली के सांसद को निलंबित करने की मांग कर रहे हैं.

तीनों प्रमुख उर्दू अखबारों – सियासत, इंकलाब और रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा के संपादकीय में टिप्पणियों को निंदनीय बताया गया हैं.

26 सितंबर को, सियासत ने बिधूड़ी के शब्दों को “बेहद घृणित, आपराधिक और बीमार मानसिकता दिखाने वाला” बताया. संपादकीय में कहा गया है कि भाजपा को जनता के गुस्से और आलोचना का सामना करना पड़ा और हालांकि पार्टी ने बिधूड़ी की भाषा पर खेद व्यक्त किया, लेकिन दानिश अली के खिलाफ भी “माहौल” बनाने का पूरा प्रयास किया जा रहा है.

इसमें कहा गया कि ”भाजपा के दो सांसदों ने स्पीकर (ओम बिड़ला) को पत्र भेजकर दानिश अली के खिलाफ जांच की मांग की है.” जिसे परोक्ष रूप से बिधूड़ी के ”गंदे और अश्लील शब्दों” को सही ठहराने का प्रयास बताया गया है.

संसद विवाद के अलावा, उर्दू अखबारों के पहले पन्ने और संपादकीय में सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और मध्य प्रदेश में तेज होते चुनाव अभियान को लेकर भारत और कनाडा के बीच बिगड़ते संबंधों को भी महत्वपूर्ण जगह दी गई.

यहां उन सभी खबरों का सारांश है जो इस सप्ताह उर्दू अखबारों के पहले पन्ने और संपादकीय में शामिल रहें.


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रमेश बनाम दानिश अली

24 सितंबर को अपने संपादकीय में, सियासत ने कहा कि बिधूड़ी के शब्द न केवल भाजपा के लिए बल्कि पूरे देश के लिए शर्म की बात हैं.

इसमें कहा गया कि “यह उनकी बेहद गिरी हुई और निंदनीय सोच को दर्शाता है. इससे पता चलता है कि भाजपा ऐसी मानसिकता वाले लोगों को संसद में लेकर आई है. बिधूड़ी की टिप्पणियां न केवल दानिश अली के खिलाफ हैं बल्कि सभी मुसलमानों के प्रति उनकी (बिधूड़ी) अवमानना को भी दर्शाती हैं.”

24 सितंबर को, सहारा संपादकीय में कहा गया कि दानिश अली के खिलाफ इस्तेमाल किए गए “अशोभनीय, असंसदीय और अपमानजनक शब्दों” या जिस लहजे में उनका इस्तेमाल किया गया था, उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

इसमें कहा गया कि “यह (स्थिति) एक दिन में यहां तक नहीं पहुंची है. इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि यह वही देश है जहां लिंचिंग के आरोपियों का एक मंत्री ने माला पहनाकर स्वागत किया था.” इसमें केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा द्वारा 2018 में झारखंड में एक मुस्लिम व्यक्ति की लिंचिंग के दोषी आठ लोगों को माला पहनाने का जिक्र किया गया था.

संपादकीय में आगे कहा गया, “बिलकिस बानो के आरोपियों को बरी करने का मामला अभी भी अदालत में चल रहा है, लेकिन यह अकल्पनीय था कि मुसलमानों के खिलाफ इस तरह का नफरत भरा भाषण संसद तक पहुंच सकता है.”

27 सितंबर को इंकलाब ने अपने पहले पन्ने पर ख़बर छापी कि बिधूड़ी को दिल्ली राज्य कबड्डी एसोसिएशन के अध्यक्ष पद के लिए निर्विरोध चुना गया है.

भाजपा, राजनीति और एमपी चुनाव

राजनीतिक गतिविधियों के चलते तीनों उर्दू अखबारों के संपादकीयों में हलचल जारी रही, खासकर आगामी विधानसभा और आम चुनावों के मद्देनज़र.

इस साल पांच राज्यों – मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस बीच, आम चुनाव अगले साल होंगे.

23 सितंबर को एक संपादकीय में, सियासत ने आम चुनाव के लिए भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथ जनता दल (सेक्युलर) के गठबंधन पर ध्यान केंद्रित किया.

इस सप्ताह की शुरुआत में घोषित गठबंधन, कर्नाटक में कांग्रेस के 135 सीटों के साथ सत्ता में आने के चार महीने बाद आया. जहां भाजपा 66 सीटें जीतने में सफल रही, वहीं JD(S) केवल 19 सीटों पर सिमट गई.

अपने संपादकीय में, सियासत ने कहा कि BJP और JD(S) के बीच गठबंधन इस तथ्य के बावजूद था कि दोनों दलों ने कर्नाटक में एक-दूसरे के खिलाफ कड़ी लड़ाई लड़ी थी.

संपादकीय विशेष रूप से मध्य प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव पर केंद्रित थे. 27 सितंबर को, सियासत ने उस पहेली के बारे में लिखा जिसका सामना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कर रहे थे. संपादकीय में कहा गया है कि चुनाव भाजपा के लिए एक चुनौती है, एक ऐसी पार्टी जो हर दिन अधिक समस्याओं का सामना कर रही है. यह विशेष रूप से इसलिए है क्योंकि कई असंतुष्ट नेता कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं, इसमें कहा गया है कि इसमें कुछ ऐसे नेता भी शामिल हैं जो 2020 में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल होने के लिए चले गए थे.

गौरतलब है कि बीजेपी नेता प्रमोद टंडन, रामकिशोर शुक्ला और दिनेश मल्हार इस हफ्ते की शुरुआत में कांग्रेस में शामिल हुए थे. सिंधिया के करीबी माने जाने वाले नेता टंडन उन 22 विधायकों में से थे, जो 2020 में भाजपा में शामिल हो गए थे.

अपने 28 सितंबर के संपादकीय में, इंकलाब ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में एक रैली को संबोधित करते हुए शिवराज चौहान की लाडली बहना योजना 2023 जैसी कल्याणकारी योजनाओं का कोई उल्लेख नहीं किया. संपादकीय में कहा गया है कि सीएम ने उस पर कोई आपत्ति नहीं जताई जिसे उनके जैसे वरिष्ठ भाजपा नेता के लिए ‘अपमान’ के रूप में देखा जा सकता है, और यह कुछ लोगों के लिए आश्चर्य की बात हो सकती है. इंकलाब ने कहा, लेकिन सच्चाई यह है कि चौहान, जिन्हें राज्य में अक्सर ‘मामा’ कहा जाता है, इस बारे में ज्यादा कुछ करने में असमर्थ हैं क्योंकि वह पार्टी की दया पर निर्भर हैं.

29 सितंबर को एक संपादकीय में, सहारा ने कहा कि भाजपा को डर है कि कांग्रेस खुद को “कट्टर हिंदुत्व” पार्टी के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है. संपादकीय के अनुसार, भाजपा को डर है कि यह रणनीति राज्य में उसे नुकसान पहुंचा सकती है.

इसमें कहा गया है कि भाजपा मध्य प्रदेश में अपने सत्ता की रक्षा करना चाहती है, लेकिन उसकी रणनीतिक क्षमताएं कम होती जा रही हैं. उन्होंने कहा कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व राज्य में वरिष्ठ नेताओं पर फैसले थोप रहा है.

उर्दू अखबारों ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में 12 साल की बच्ची के साथ बलात्कार के बाद हुए आक्रोश को भी अपनी ख़बरों में जगह दी. लड़की मदद की गुहार लगाते हुए 8 किमी चलने के बाद बेहोश हो गई थी, लेकिन कोई उसे बचाने नहीं आया.

भारत-कनाडा संबंध

खालिस्तान टाइगर फोर्स के प्रमुख और भारत में नामित आतंकवादी निज्जर की हत्या पर भारत और कनाडा के बीच विवाद भी उर्दू प्रेस में नज़र आया. सभी तीन उर्दू अखबारों ने इस ख़बर को कवरेज दी कि यह फाइव आईज साझेदारों – अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड – के बीच खुफिया जानकारी साझा करने का मामला था, जिसके कारण कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारतीय एजेंटों के शामिल होने की संभावना का आरोप लगाया.

अखबारों ने “खालिस्तानी अलगाववादियों” पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी की कार्रवाई को भी कवर किया, जिसमें पंजाब और चंडीगढ़ में प्रतिबंधित सिख्स फॉर जस्टिस (एसएफजे) के गैरकानूनी प्रवक्ता गुरपतवंत सिंह पन्नून की संपत्तियों को जब्त करना भी शामिल है.

28 सितंबर को, इंकलाब की प्रमुख रिपोर्ट पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, दिल्ली और चंडीगढ़ में 53 स्थानों पर एनआईए के छापे पर थी. रिपोर्ट के अनुसार, यह “चरमपंथी आतंकवादियों, गैंगस्टरों और ड्रग तस्करों के बीच सांठगांठ” पर एक बड़ी कार्रवाई थी.

(संपादन: अलमिना खातून)
(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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