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Monday, 6 May, 2024
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उर्दू प्रेस ने द्रौपदी मुर्मू की जीत को सराहा, विपक्षी एकता की नाकाम कोशिश पर उठाए सवाल

दिप्रिंट का राउंड-अप कि उर्दू मीडिया ने पिछले हफ्ते की घटनाओं को कैसे कवर किया और उनमें से कुछ ने क्या संपादकीय रुख इख़्तियार किया.

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नई दिल्ली: द्रौपदी मुर्मू न सिर्फ राष्ट्रपति भवन पहुंचने वाली दूसरी महिला हैं, बल्कि ऐसा करने वाली पहली आदिवासी भी हैं- एक ऐसी उपलब्धि जिसका उर्दू प्रेस ने भी जश्न मनाया. हालांकि उसके संपादकीयों ने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की हार के बड़े राजनीतिक निहितार्थों पर चर्चा की.

दूसरी खबर जिसने उर्दू अखबारों को पूरे हफ्ते व्यस्त रखा, वो थी ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मौहम्मद ज़ुबैर का भाग्य और संसद का मॉनसून सत्र.

दिप्रिंट आपके लिए लाया है उन खबरों और संपादकीयों का जायज़ा, जो इस पूरे हफ्ते उर्दू अखबारों की सुर्खियां बने रहे.


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मुर्मू की जीत और विपक्ष की नाकाम एकता

देश की 15वीं राष्ट्रपति के रूप में मुर्मू का चुनाव शुक्रवार को सभी अखबारों की सुर्खायां बना, जिसमें रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने इस पर रोशनी डाली कि उन्होंने रिकॉर्ड अंतर से जीत हासिल की है.

इनकलाब की लीड हेडलाइन में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि इस पद पर चुनी जाने वाली वो पहली अदिवासी महिला हैं.

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18 जुलाई को सहारा ने अपने पहले पन्ने पर ऐलान किया था कि अगले राष्ट्रपति के चुनाव के लिए वोट डाले जाने हैं, जिसमें दोनों उम्मीदवारों के मुस्कुराते हुए फोटो लगे होंगे. अगले दिन उसने अपने पहले पन्ने पर खबर दी कि राष्ट्रपति चुनाव का मतदान प्रतिशत 99 प्रतिशत पहुंच गया था.

19 जुलाई को राष्ट्रपति चुनावों के बारे में इनकलाब की लीड खबर में- जिसके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की वोट डालते हुए तस्वीरें छपीं थीं- कहा गया कि कुछ जगहों पर क्रॉस-वोटिंग के दावे किए गए थे. उसने ये भी लिखा कि स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह व्हीलचेयर में बैठकर अपने वोट डालने आए थे.

सियासत में 22 जुलाई को एक संपादकीय में कहा गया कि मुर्मू की जीत ने विपक्षी एकता की एक और नाकाम कोशिश की ओर ध्यान खींचा है और अपने उम्मीदवार को आगे बढ़ाकर बीजेपी एक बार फिर अपने विरोधियों को मात देने में कामयाब हो गई.

पीस में आगे कहा गया कि राष्ट्रपति चुनावों के संपन्न हो जाने और 6 अगस्त को एनडीए के उप-राष्ट्रपति उम्मीदवार जगदीप धनखड़ की जीत लगभग पूर्व निश्चित होने के साथ अब जरूरत किसी ऐसे विपक्षी नेता की है जो अधिकतर मतदाताओं को स्वीकार्य हो.

उसने आगे कहा कि एक आमराय बनाने में विपक्षी पार्टियों की नाकामी, अगले संसदीय चुनावों में बीजेपी को फिर से एक मज़बूत स्थिति में ले आएगी.

20 जुलाई को ‘मुर्मू बनाम (यशवंत) सिन्हा’ शीर्षक से एक संपादकीय में इनक़लाब ने कहा कि ‘अंतरात्मा के वोट’ की धारणा अब लगभग खत्म हो गई है और राष्ट्रपति चुनावों में कोई व्हिप न होने के बावजूद अधिकतर कानून बनाने वाले पार्टी लाइन पर ही चले.

इनकलाब के एक संपादकीय में, जो असली मतदान से एक दिन पहले छपा था, किसी भविष्य ज्ञानी की तरह कहा गया, कि अगर कुछ विधायक अपनी पार्टी लाइन से हटते हैं तो भी संभावना यही है कि वो उसी दिशा में जाएंगे, जिधर सत्ता का संतुलन झुका होगा. उसने कहा कि यही कारण है कि सिन्हा के पक्ष में क्रॉस-वोटिंग की संभावनाएं कम हैं.

18 जुलाई को सियासत में छपे एक संपादकीय के अनुसार, हालांकि यशवंत सिन्हा ने कई राज्यों का दौरा किया था और बीजेपी सहयोगियों का भी समर्थन पाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन सत्ताधारी उनके पक्ष में नहीं थे और पार्टियों की सियासी मजबूरियां हैं कि वो बीजेपी के खिलाफ नहीं जा पाएंगी.

17 जुलाई को इनक़लाब और सहारा ने ये खबर अपने पहले पन्नों पर चलाई कि पूर्व पश्चिम बंगाल गवर्नर जगदीप धनखड़ उप-राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार बनाए गए हैं.

एक दिन बाद दोनों अखबारों ने मार्ग्रेट अल्वा के विपक्षी उम्मीदवार बनाए जाने की खबर को भी अपने पहले पन्नों पर जगह दी.


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जीएसटी रुपया और अर्थव्यवस्था

17 जुलाई को सहारा ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से जुड़े कुछ लेखों को अपने पहले पन्ने पर प्रमुखता से जगह दी, जिनमें ज़ोर देकर कहा गया कि बहुत सी जरूरी चीज़ों की कीमतें महंगी होने जा रही हैं.

जून में 47वीं जीएसटी काउंसिल की बैठक की सिफारिशों के अनुसार, ग्राहकों को पहले से पैक की गई वस्तुओं तथा लेबल लगे हुए खाद्य पदार्थों जैसे आटा, पनीर, दही और चावल तथा गेहूं जैसे अनाज पर 5 प्रतिशत जीएसटी देना होगा.

19 जुलाई को सियासत और इनकलाब ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के उस ट्वीट की खबर दी, जिसमें उन्होंने कहा कि बीजेपी ने दुनिया की एक सबसे तेज़ी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है.

इनकलाब ने ये भी लिखा कि डिब्बा-बंद और पैक की हुई बहुत सी चीज़ों पर- जैसे मछली, दही, शहद, चीज़, सूखा मक्खन, सूखे सोयाबीन्स, मटर, गेहूं और अन्य अनाज- 5 प्रतिशत जीएसटी लगा दिया गया है, जिससे न सिर्फ लोगों पर बोझ बढ़ेगा बल्कि उनका भोजन कड़वा भी हो जाएगा.

सहारा ने कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और बीजेपी नेता वरुण गांधी की ओर से महंगाई को लेकर मोदी सरकार की आलोचना को भी अपने पहले पन्ने पर जगह दी.

खड़गे ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वो विपक्ष की बात नहीं सुन रही है, जबकि गांधी ने- जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपनी ही पार्टी बीजेपी के एक नेता हैं- कहा कि लोगों को राहत पहुंचाने की बजाय, सरकार उन्हें और ज़्यादा नुकसान पहुंचा रही है.

19 जुलाई को सहारा ने जीएसटी और महंगाई पर एक संपादकीय लिखा. उसने कहा कि भारत का बढ़ता आयात, गिरता रुपया और घटता विदेशी मुद्रा भंडार, अर्थव्यवस्था के लिए चिंता के विषय हैं. उसने कहा कि ऐसे हालात में, जहां सरकार को अपनी आय बढ़ाने के लिए कदम उठाने चाहिए, वहीं उसे इसका भी ध्यान रखना चाहिए कि उसके फैसले लोगों पर कैसा असर डालते हैं.

डॉलर के मुकाबले रुपए के गिरते मूल्य पर अपने संपादकीय में इनकलाब ने कहा कि रुपए को स्थिर करने का एक तरीका ये हो सकता है कि ब्याज दरों को बढ़ा दिया जाए, जिससे बचत में इज़ाफा हो और बाज़ार में नकदी के चलन में कमी आए.

संपादकीय में ये भी सुझाव दिया गया कि ईंधन की कीमतों को नीचे रखा जाना चाहिए, जिससे महंगाई को कम करने में सहायता मिल सके.

संपादकीय में कहा गया कि जब चीज़ों के लिए ज़्यादा पैसा अदा किया जाता है, तो ज़्यादा नकदी चलन में आ जाती है जिससे रुपए की कीमत कम हो जाती है. अखबार में आगे कहा गया कि तीसरा रास्ता है, आयात को कम करना और निर्यात को बढ़ाना.

20 जुलाई को सियासत के एक संपादकीय में कहा गया कि पहले जब भी रुपए का अवमूल्यन होता था, तो बीजेपी हिंसक प्रदर्शनों पर उतर आती थी और सरकार पर कमज़ोर और अक्षम होने का आरोप लगाती थी. उसने आगे कहा कि वही बीजेपी अब समझा नहीं पा रही है कि रुपया क्यों गिर रहा है, ईंधन और गैस के दाम क्यों बढ़ रहे हैं और विदेशी कंपनियां भारत क्यों छोड़ रही हैं.

संपादकीय में आगे कहा गया कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार इसलिए कम हो रहे हैं, क्योंकि विदेशी कंपनियां भारत छोड़कर जा रही हैं. इसके अलावा, उसने आगे कहा कि भारत में विदेशी निवेश आकर्षित करने के भारत सरकार के प्रयास विफल हो रहे हैं.


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मोहम्मद ज़ुबैर की जमानत

उर्दू प्रेस में ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर के मामले में आ रहे घुमावों और मोड़ों पर नज़दीकी नज़र बनाए रखी.

19 जुलाई को सहारा के पहले पन्ने पर ज़ुबैर को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत मिलने की खबर छापी गई- जिसे एक ट्वीट के लिए 27 जून को गिरफ्तार किया गया था. कोर्ट ने उन आठ एफआईआर की कार्रवाई पर रोक लगा दी, जो उत्तर प्रदेश पुलिस ने ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज की थी.

पेपर ने ये भी खबर दी कि निलंबित बीजेपी प्रवक्ता नुपूर शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डालकर अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने की गुज़ारिश की थी.

21 जुलाई को ज़ुबैर के आखिरकार जेल से बाहर आने की खबर सहारा और इनकलाब दोनों के पहले पन्नों पर थी, जिसमें इनकलाब ने ज़ुबैर का एक फोटो छापा था, जिसमें वो अपने वकील सौतिक बनर्जी के साथ मुस्कुराते हुए जीत का साइन दिखा रहे थे. दोनों अखबारों ने इस बात पर भी रोशनी डाली कि शीर्ष अदालत ने उसे उन तमाम मामलों में जमानत दे दी, जो उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए थे.

16 जुलाई को इनकलाब के पहले पन्ने की लीड हेडलाइन में दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत के एक जज का ये कहते हुए हवाला दिया गया था कि बोलने की आज़ादी के बिना लोकतंत्र बरकरार नहीं रह सकता. अदालत ज़ुबैर के खिलाफ कुछ कानूनी प्रावधान इस्तेमाल किए जाने पर अपनी चिंताएं व्यक्त कर रही थी.

अखबार ने ये भी खबर दी कि कोर्ट ने कहा कि ज़ुबैर के ट्वीट ने सिर्फ एक व्यक्ति को परेशान किया था, जिसकी पुलिस अभी तक पहचान नहीं कर पाई है.


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मॉनसून सत्र की शुरुआत हंगामे भरी

संसद के मनसून सत्र की अपेक्षित हंगामे भरी शुरुआत तकरीबन हर दिन पहले पन्नों पर बनी रही. 20 जुलाई को इनकलाब की लीड खबर, बढ़ती कीमतों जैसे मुद्दों को लेकर विपक्षी दलों के विरोध प्रदर्शन पर थी. विपक्षी दलों ने संसद परिसर में गांधी प्रतिमा के सामने बढ़ती महंगाई और जीएसटी में वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन किया था.

19 जुलाई को सहारा ने अपने पहले पन्ने पर प्रधानमंत्री की अपील छापी, जिन्होंने सांसदों से आग्रह किया था कि संसद के समय का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल देश हित में किया जाना चाहिए.

18 जुलाई को सहारा ने संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी का ये कहते हुए हवाला दिया कि सरकार किसी भी विषय पर बहस के लिए तैयार है लेकिन उसे विपक्ष के सहयोग की जरूरत है.

अख़बार ने एक छोटी सी खबर भी छापी कि एक सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति को लेकर कांग्रेस में नाराज़गी है.


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लूलू मॉल विवाद

17 जुलाई को इनकलाब ने उस विवाद की खबर दी, जिसमें चंद लोगों ने कथित रूप से लखनऊ में नए खुले लूलू मॉल के अंदर नमाज़ पढ़ ली थी. रिपोर्ट में कहा गया कि कट्टर हिंदू संगठन वहां हनुमान चालीसा का पाठ करने पर ज़ोर दे रहे हैं और पुलिस का मानना है कि वो नमाज़ एक बड़ी ‘साज़िश’ का हिस्सा थी. अखबार ने लखनऊ पुलिस आयुक्त का ये कहते हुए हवाला दिया कि मामले की जांच की जा रही है.

19 जुलाई को इनकलाब ने अपने पहले पन्ने पर लखनऊ आयुक्तालय के स्पष्टीकरण की खबर दी कि नमाज़ पढ़ने वालों की गिरफ्तारी की खबर जो सोशल मीडिया पर चल रही थी, वो झूठी है.

रिपोर्ट में आयुक्तालय का ये कहते हुए भी हवाला दिया गया कि तीन लोगों को मॉल में हनुमान चालीसा का पाठ करने और एक व्यक्ति को नमाज़ पढ़ने पर गिरफ्तार किया गया है. रिपोर्ट में आयुक्तालय का ये कहते हुए भी हवाला दिया गया कि गिरफ्तार किए गए लोगों का वायरल वीडियो से कोई संबंध नहीं है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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