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Saturday, 21 December, 2024
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युवाओं के सो-कॉल्ड COOL भुवन बाम के बावजूद, पर्दे पर क्यों बासी रही यह ‘ताज़ा खबर’

इस सीरीज को देखते हुए कुछ खाने-पीने की मत सोचिएगा, न जाने किस सीन में आपको शौचालय का सीन दिखाई दे जाए.

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इस कहानी का ‘हीरो’ मुंबई के एक सार्वजनिक शौचालय में बतौर मैनेजर काम करता है. वे एक वेश्या पर दिल लुटाता है और जल्द अमीर होने का सपना देख रहा है. एक दिन एक बूढ़ी औरत इस लड़के को एक वरदान देती है. अब भविष्य में होने वाली घटनाओं की खबर उसे पहले ही अपने मोबाइल पर मिलने लगती है. इस वरदान का फायदा उठा कर नायक करोड़पति बन जाता है, लेकिन क्या यह इस वरदान को झेल पाया या उसने इसे श्राप बना दिया?

हाल ही में डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर आई इस वेब-सीरिज के नायक वसंत गावड़े यानी वस्या का किरदार निभाया है जाने माने यूट्यूबर भुवन बाम ने, जिन्होंने अपने कॉमेडी चैनल ‘बीबी की वाइन्स’ से खूब नाम कमाया है. अश्लील संदर्भों और गालियों के बावजूद उनके वीडियो युवा पीढ़ी में खासे पॉपुलर हैं. या कहें कि शायद युवा पीढ़ी ने इस अश्लीलता और गालियों को ही सो-कॉल्ड ‘कूल’ होना समझ लिया है.

भुवन इस सीरीज के निर्माताओं में भी शामिल है. चूंकि, ओवर दि टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म पर कोई बंदिश नहीं है, तो इस सीरीज में भी इन्होंने जम कर अश्लीलता, गंदगी और गालियां परोसी हैं.


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निर्देशकों को लानी होगी नई कहानी

इसकी कहानी वही घिसी-पिटी, पुरानी-बासी है. वेश्या पर दिल लुटाने वाला गरीब युवक. उसी वेश्या पर मरने वाला कोई ताकतवर नेता, गुंडा टाइप आदमी. लेकिन गरीब का कहना है कि एक दिन इसको इधर से लेकर जाऊंगा. वह ले भी गया और ताकतवर नेता, गुंडा दांत पीसते रह गए. आप चाहें तो इस ताकतवर नेता, गुंडे पर हंस सकते हैं या चाहें तो तरस खा सकते हैं.

जब गरीब को वरदान मिला तो लगा कि यह कुछ बढ़िया करेगा, हट के करेगा लेकिन बहुत जल्दी लेखकों की कल्पनाशक्ति जवाब दे गई और उनकी कलम की स्याही बस क्रिकेट के सट्टे के इर्द-गिर्द ही सूख कर रह गई. लेखक मंडली न तो कुछ अच्छा लिख सकी, न ही अनोखा, ऊपर से स्क्रिप्ट में ढेरों झोल. डायलॉग के नाम पर भी बस अश्लीलता और गालियां.

यहां एक बड़ी कमी यह भी रही कि लेखक किरदारों को करीने से कस नहीं पाए. निर्देशक हिमांक गौड़ भी कोई खास जलवा नहीं दिखा पाए. एक्टिंग की बात करें, तो भुवन बाम पहले से ही सधे हुए खिलाड़ी हैं. काम तो श्रिया पिलगांवकर, शिल्पा शुक्ला, देवेन भोजानी, प्रथमेश परब, जे.डी. चक्रवर्ती, महेश मांजरेकर, मिथिलेश चतुर्वेदी वगैरह का भी सही रहा, लेकिन किसी को दमदार भूमिका नहीं मिली.

कभी ‘सत्या’ में सत्या बन कर आए चक्रवर्ती को बहुत ही निरीह किस्म का रोल दिया गया. वहीं, देवेन और महेश जैसे बड़े कद के अभिनेता भी लाचार दिखाई दिए. कहानी में गाने बेकार ही डाले गए जो कहानी को लय में चलने से रोक रहे थे. लोकेशन, कैमरा आदि ठीक रहे. पर हां, इसे देखते हुए कुछ खाने-पीने की मत सोचिएगा, न जाने किस सीन में मूत्रालय-शौचालय दिख जाए.

जब कहानी कुछ ‘कह’ न पा रही हो, जब आधे-आधे घंटे के सिर्फ छह एपिसोड हों और बार-बार मन करे कि फॉरवर्ड किया जाए, तो समझ लीजिए कि कहानी का नाम भले ही आप ‘ताज़ा खबर’ रख दें, लेकिन अंदर से वह बासी ही है.


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