सरकारी स्कूल के एक प्रधानाध्यापक बच्चों को कचरे से कई वस्तुएं के पुनर्निर्माण और उन्हें दुबारा उपयोग में लाने के तरीके सिखा रहे हैं. शिक्षक द्वारा किए गए कुछ प्रयासों का परिणाम है कि ज्यादातर बच्चे हस्तकला में दक्ष तो हो ही रहे हैं, उनमें सौंदर्यबोध भी विकसित हो रहा है और वे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बन रहे हैं.
बच्चों को इस तरह का प्रशिक्षण दे रहे प्रधानाध्यापक संतोष नागे रायगढ़ जिला परिषद प्राथमिक मराठी स्कूल, तलेगाव तर्फे में पदस्थ हैं. संतोष के मुताबिक ऐसा संभव हुआ उनके द्वारा आयोजित उन गतिविधियों के कारण जो ‘पर्यावरण’, ‘अपशिष्ट प्लास्टिक’, ‘स्वच्छता’, ‘कचरा प्रबंधन’ और ‘रद्दी कागजों के फिर से उपयोग’ आदि से संबंधित हैं. इससे उन्हें बच्चों के बीच अपनी विशेष पहल शुरु करने के लिए निश्चित समय तो मिला ही, एक व्यवस्थित रूपरेखा बनाने का मौका भी मिला. इसलिए, ज्यादातर बच्चे उनके कार्य में भागीदार बन सके.
वर्ष 1948 में स्थापित इस स्कूल में प्रधानाध्यापक सहित दो शिक्षक और कुल 47 बच्चों में 27 लड़के व 20 लड़कियां हैं. करीब एक हजार की जनसंख्या वाला तलेगाव तर्फे कुनबी और आदिवासी बहुल गांव है. इनमें ज्यादातर धान उत्पादक छोटे किसान और मजदूर परिवार हैं.
बदला नजर आता है स्कूल
कई सत्रों में इन बच्चों ने अपनी-अपनी कक्षाओं को सजाने के लिए कई सामान तैयार किए हैं. जैसे कि इन्होंने रद्दी कागज और कबाड़ की अन्य बेकार चीजों से सावित्री बाई फुले की फोटो रखने के लिए एक सुंदर मंदिर बनाया है. इन्होंने प्लास्टिक की बोतलों से फूल और फूलदानियां तैयार की हैं. इसके अलावा, इन बच्चों ने बक्से के मौटे कागज से पोस्ट-ऑफिस का मॉडल तैयार किया है. साथ ही, कागज की टोकरियां व कलश तथा प्लास्टिक के मटके और पर्स आदि भी तैयार किए गए हैं.
यह भी पढ़ें : महाराष्ट्र के एक स्कूल में मूकबधिर बच्ची के प्रति बच्चों ने बदला अपना व्यवहार
आखिर यह विचार आया कैसे? संतोष बताते हैं कि इसकी शुरुआत हुई कक्षा पहली की विद्यार्थी गतिविधि पुस्तिका में शामिल ‘चूहे की टोपी’ नामक एक गतिविधि से. इस गतिविधि में बच्चों को टोपी बनाने और उसमें रंग भरने का अभ्यास कराना था. संतोष ने बच्चों को पुराने समाचार-पत्रों से विधिपूर्वक टोपी बनाना सिखाया. इसी तरह, उन्होंने जब बच्चों को कागज से नाव और फूल बनाना सिखाया तो ऐसी गतिविधियों में बच्चों की रुचि बढ़ गई.
इसके बाद, ‘कचरा प्रबंधन’ से जुड़ी गतिविधि के दौरान बच्चों ने कचरा वर्गीकरण के तहत इस प्रश्न पर चर्चा की कि कचरे में से कौन-सी चीजों को दुबारा इस्तेमाल में लाया जा सकता है. इसी तरह, ‘अपशिष्ट प्लास्टिक’ की गतिविधि में बच्चों ने इस प्रश्न पर चर्चा की कि प्लास्टिक की समस्या को कम करने के लिए क्या-क्या प्रयास किए जा सकते हैं और अपशिष्ट प्लास्टिक का निदान कैसे संभव है.
इस कड़ी में प्रधानाध्यापक ने इंटरनेट पर यूट्यूब के जरिए बच्चों को कचरे में पड़ी वस्तुओं से अनेक नई और उपयोगी चीजें बनाने के तरीके सिखाए.
ऐसी बनी हस्तकला की प्रयोगशाला
संतोष बताते हैं कि शुरुआत में जब उन्होंने कुछ सत्रों में कई चीजें तैयार करके बच्चों को बताईं तो उन्होंने कोई खास रुचि नहीं दिखाई थी. लेकिन, चर्चा के दौरान कुछ बच्चे यह जरुर कहने लगे थे कि यदि बेकार चीजों को फिर से तैयार किया गया तो वे सुंदर लगेंगी.
अक्सर प्रधानाध्यापक बच्चों को स्कूल परिसर या उसके आस-पास से प्लास्टिक की बेकार पड़ी बोतलों को लाने के लिए कहते. फिर वे बच्चों के सामने ही बोतलों से फूल आदि बनाते. इससे बच्चों में यह जिज्ञासा पैदा होती कि कोई चीज तैयार कैसे हुई. तब प्रधानाध्यापक उनसे कहते कि ऐसी चीजें बनाना आसान है. फिर जिन बच्चों की इसमें रुचि होती वे प्रधानाध्यापक के साथ ऐसी चीजें बनाना सीखने लगते. धीरे-धीरे इस तरह की गतिविधियों में शामिल होने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती चली गई.
यह भी पढ़ें : यातायात सुरक्षा के लिए शहर की सड़कों पर आए महाराष्ट्र के बुलढ़ाना जिले के गांव के बच्चे
इस दौरान प्रधानाध्यापक सभी बच्चों को एक बात का ध्यान रखने के लिए कहते कि पेपर कटर और कैंची जैसी कई घातक चीजों का इस्तेमाल व्यस्क व्यक्ति की मदद से करें.
ऐसे निखर रहा बच्चों का व्यक्तित्व
कक्षा दूसरी का चेतन शिंदे बताता है कि अब वह पानी की बोतल, पुरानी नोटबुक या किताब, बक्से का मोटा कागज और रद्दी कागज संभालकर रखने लगा है और सोचता है कि इनसे अन्य उपयोग की चीजें कैसे तैयार हो सकती हैं. इसके अलावा, ज्यादातर बच्चों में कला के प्रति आर्कषण पैदा हो रहा है और वे पुनर्निर्माण की इस प्रक्रिया में खुद बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं.
कक्षा दूसरी की साक्षी बाघमारे बताती है कि कचरे में से सामान बीनने से अब स्कूल परिसर अपनेआप साफ हो जाता है. साथ ही, कई बच्चे अपनी कक्षा की वस्तुओं को संभालकर रखना सीख रहे हैं.
संतोष बताते हैं कि कई बच्चों ने रद्दी कगज और अपशिष्ट प्लास्टिक से कुछ चीजें इतनी अच्छी तरह से तैयार की हैं कि बहुत सारे लोगों को यकीन नहीं होता कि उन्हें छोटे बच्चों ने बनाया है. इससे संतोष को बहुत अधिक खुशी मिलती है.
अंत में, संतोष कहते हैं कि वे अब नारियल से बच्चों को कछुआ और बर्तन जैसी चीजें बनाना सिखाएंगे.
(शिरीष खरे शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं और लेखक हैं)