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Thursday, 2 May, 2024
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महाराष्ट्र के एक स्कूल में मूकबधिर बच्ची के प्रति बच्चों ने बदला अपना व्यवहार

करीब तीन हजार की आबादी के इस गांव में अधिकतर बौद्ध समुदाय के परिवार हैं. इनमें से ज्यादातर छोटे किसान और मजदूर हैं. वर्ष 1935 में स्थापित इस गांव के स्कूल में कुल 91 बच्चे हैं.

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महाराष्ट्र में बुलढ़ाना जिले से करीब 25 किलोमीटर दूर चौथी गांव में जिला परिषद उच्च प्राथमिक मराठी स्कूल के बच्चे एक शिक्षिका के प्रयासों के कारण मूक-बधिर बच्ची के प्रति संवदेनशील हो रहे हैं.

मानसी नाईक नाम की यह शिक्षिका शिक्षण की नई पद्धतियों और गतिविधियों का सहारा लेकर बच्चों के व्यवहार में इस तरह का परिवर्तन लाने में सफलता हासिल करती दिख रही हैं. यही वजह है कि यहां के बच्चों ने मूक-बधिर बच्ची को चिढ़ाना बंद कर दिया है. अब वे मूक-बधिर बच्ची को उसके असली नाम से पुकारते हैं. इसका असर रुकमणी नप्ते (परिवर्तित) नाम की मूक-बधिर बच्ची के व्यवहार में भी देखने को मिल रहा है. अब रुकमणी बाकी बच्चों के साथ झगड़ा नहीं करती. वह पढ़ाई से लेकर खेलकूद तक अपने सहपाठियों की कई गतिविधियों में शामिल होने की कोशिश कर रही है. लेकिन, एक साल पहले ऐसा नहीं था.

बता दें कि करीब तीन हजार की आबादी के इस गांव में अधिकतर बौद्ध समुदाय के परिवार हैं. इनमें से ज्यादातर छोटे किसान और मजदूर हैं. वर्ष 1935 में स्थापित इस गांव के स्कूल में कुल 91 बच्चे हैं.

नहीं था स्कूल से लगाव

मानसी एक वर्ष पहले की स्थिति के बारे में बताती हुई कहती हैं कि रुकमणी को सुनाई नहीं देने के कारण उन्हें भी समझ नहीं आता था कि वे उसे कैसे पढ़ाएं. फिर, बच्चों के रुखे बर्ताव से चिढ़कर रुकमणी या तो उनसे अलग रहती थी या फिर अक्सर उनके साथ मारपीट करती थी.

मानसी बताती हैं, ‘उसकी अपनी ख्यालों की एक अलग दुनिया थी. दूसरा, वह जरुरत से ज्यादा ही जिद्दी थी. जैसे, चाकलेट चाहिए तो चाहिए. कई बार बहुत सारी चाकलेट जमा करने के बाद वह उन्हें बच्चों में बांट देती थी. पर, स्कूल के प्रति उसके मन में कोई खास आकर्षण नहीं था, बल्कि वह पांच-सात दिनों तक हमारे बुलाने के बावजूद स्कूल नहीं आती थी.’

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लेकिन, मानसी ने अपनी कक्षा में संवेदनशील माहौल तैयार किया और उसी का परिणाम है कि बच्चों ने अच्छी मित्रता, विनम्रता, शिष्टाचार, दूसरों की भावना का आदर करने और झगड़े रोकने से संबंधित गतिविधियों में भाग लिया और छोटी उम्र में अपनी जिम्मेदारी को पहचाना. यही वजह है कि उन्होंने रुकमणी को अपना दोस्त बना लिया. लिहाजा, रुकमणी ने नियमित स्कूल आना शुरु कर दिया.

वह कक्षा में इशारों के माध्यम से शिक्षिका से सवाल पूछ रही हैं और इस तरह कई सबक सीखने की कोशिश कर रही हैं. उसकी कक्षा में पढ़ने वाले कुछ दूसरे सहपाठी भी यह मानते हैं कि रुकमणी अब शांत और आत्मविश्वास से भरी दिखती हैं.

रोहणी की सहेली जयश्री बताती है कि जब रोहणी इशारों से कुछ कहने की कोशिश करती है तो कक्षा के कई बच्चे उसकी बातों को समझने की कोशिश करते हैं.

इन कोशिशों से मिली सफलता

एक अन्य शिक्षिका स्वाती तांबेकर के मुताबिक शिक्षण की नई पद्धति और जोड़ी, समूह और गोला बनाकर गतिविधियां कराने से बच्चों के बीच आपसी भावना को बढ़ावा मिलता है. इसमें चित्रों और वीडियो के जरिए सीखने की कोशिश की जाती है. इसलिए, ऐसी गतिविधियां रुकमणी के सीखने के अनुकूल हैं. हालांकि, वे मानती हैं कि रुकमणी की पढ़ाई में जितना सुधार होना चाहिए, उतना सुधार नहीं हो पा रहा है.

दूसरी तरफ, मानसी रुकमणी से संबंधित हर घटना और कोशिश को सकारात्मक तरीके से ले रही हैं. वे बताती हैं कि उन्होंने छोटे बच्चों को यह समझाने में सफलता पाई है कि रुकमणी यदि बोल और सुन नहीं सकती तो इसमें उसकी गलती नहीं है. ज्यादातर बच्चों ने भी यह महसूस किया है कि रुकमणी की जगह यदि वे होते और कोई उन्हें चिढ़ाता तो उन्हें भी बुरा लगता. दरअसल, मानसी ने स्कूल के बच्चों के साथ एक गतिविधि कराई थी, जिसमें बच्चों को मौन रहकर अपनी बात कहने और कान बंद करके दूसरों की बातों को सुनना था.

इसके बाद, मानसी ने रुकमणी को दूसरे बच्चों के साथ जोड़ी व समूह चर्चा तथा सहयोगी खेलों में शामिल कराना शुरु किया. इस दौरान, रुकमणी को समझने में समय जरुर लगता, लेकिन दूसरे बच्चे उसे समझाने में मदद करते, इससे रुकमणी कई गतिविधियों में सक्रिय दिखाई देने लगी.

रुकमणी एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार की बेटी है. उसके पिता गणेश नप्ते (परिवर्तित) रुकमणी के व्यवहार में आ रहे सुधार से उत्साहित हैं. उनके मुताबिक पहले वे इस बात को लेकर परेशान रहते थे कि स्कूल में कहीं कोई बच्चा उनकी बच्ची को तंग तो नहीं कर रहा है. लेकिन, अब वे बेफ्रिक हो गए हैं.

चुनौती खत्म नहीं हुई

शिक्षक शैलेन्द्र गोरे रुकमणी के बारे में एक खास बात बताते हैं. वे कहते हैं कि बाकी बच्चों के मुकाबले रुकमणी में निरीक्षण करने की क्षमता अधिक है. वह बहुत सारी छोटी लेकिन महत्त्वपूर्ण भावनाओं को शिक्षक और शिक्षिकाओं के साथ साझा करती है.


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वहीं, मानसी का मानना है कि उनकी चुनौती अब भी खत्म नहीं हुई है. वजह, पढ़ाई के दौरान रुकमणी के साथ संवाद स्थापित करना और उसे अच्छी तरीके से समझा पाना अब भी मुश्किल है. वे कहती हैं कि रुकमणी एक विशेष श्रेणी की छात्रा है. इसलिए, उसकी पढ़ाई का स्तर सुधारने के मामले में बतौर शिक्षिका उनमें कौशल की कमी है. लेकिन, अंत में वे यह भी कहती हैं कि उन्होंने कोशिशों में कोई कमी नहीं छोड़ी है. वे हर हाल में कोशिश करती रहें.

(शिरीष खरे शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं और लेखक हैं)

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