नई दिल्ली: लगभग छह वर्षों तक एक स्वीडिश कॉमेडियन, फेलिक्स केजेलबर्ग, जिसे PewDiePie के नाम से जाना जाता है, ने यूट्यूब पर ‘दुनिया का सबसे ज्यादा सब्सक्राइबर्स वाला चैनल’ होस्ट करने का रिकॉर्ड बनाया था. यह एक भारतीय संगीत चैनल था जिसने उन्हें – टी-सीरीज़ से अलग कर दिया. भारत के ‘कैसेट किंग’ गुलशन कुमार द्वारा स्थापित 241 मिलियन ग्राहकों के साथ, टी-सीरीज़ यूट्यूब पर अब तक का सबसे ज्यादा सब्सक्राइब किया गया चैनल है.
90 के दशक के बॉम्बे में अंडरवर्ल्ड द्वारा दिन के उजाले में गोली मारे जाने से पहले, फ्रूट जूस बेचने से लेकर ‘संगीत के बादशाह’ तक का गुलशन कुमार का जीवन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है.
दीप्तकीर्ति चौधरी ने अपनी किताब द बॉलीवुड पॉकेटबुक ऑफ आइकॉनिक थिंग्स में लिखा है कि टी-सीरीज़ ने 90 के दशक के बॉलीवुड संगीत के परिदृश्य को बदल दिया है.
उन्होंने अपनी किताब में आगे लिखा कि “1980 के दशक की एक्शन से भरपूर फिल्मों के बाद, आशिकी फिल्म और टी-सीरीज़ ने संगीत की दुनिया को एक अलग तरह का बिज़नेस बना दिया था.
कुमार शानू से लेकर सोनू निगम तक, अधिकांश बॉलीवुड गायकों की खोज उन्होंने ही की थी. गुलशन कुमार के नेतृत्व में टी-सीरीज़ ने सबसे पहले भारत में ऑडियो कैसेट की शुरुआत की, जिसने प्रभावी रूप से भारत के ‘ग्रैंड ओल्ड म्यूजिक लेबल’ एचएमवी के शासन को समाप्त कर दिया था. कुमार ने कम कीमत पर कैसेट बेचे और ‘संगीत को व्यवसाय में बदल दिया था.
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गरीबी से सफलता का सफर
गुलशन कुमार दुआ का जन्म 1956 में दिल्ली के दरियागंज में एक हिंदू पंजाबी परिवार में हुआ था. उनके पिता फ्रूट जूस बेचते थे. विभाजन के दंगों के दौरान उनके परिवार को पाकिस्तान में पश्चिम पंजाब के झंग राज्य से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
कुमार ने छोटी उम्र में ही अपने पिता के व्यवसाय में मदद करना शुरू कर दिया था. गुलशन खुद एक धार्मिक प्रकार के व्यक्ति थे और उन्होंने हिंदू भगवान शिव और देवी वैष्णो देवी के भजन गाना शुरू कर दिया था.
जब उनके परिवार ने एक दुकान खरीदी थी, जहां रिकॉर्ड और सस्ते ऑडियो कैसेट बेचे जाते थे. तब उन्होंने अपना रास्ता बदलने और एक बड़ा संगीत साम्राज्य स्थापित करने का सोचा. 1983 में, उन्होंने एक ऑडियो कैसेट निर्माण कंपनी सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज की स्थापना की. यह बाद में वह बन गया जिसे आज हम ‘टी-सीरीज़’ के नाम से जानते हैं.
1990 के दशक की शुरुआत में भारत के संगीत व्यवसाय को पुनर्जीवित करने में टी-सीरीज़ की प्रमुख भूमिका थी. एक तरफ जहां म्यूजिक इंडस्ट्री में मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, किशोर कुमार, और आशा भोसले जैसे बड़े कलाकारों का दबदबा था और जिनके कारण प्रतिभाशाली गायकों की एक पूरी पीढ़ी महत्वपूर्ण प्रगति करने में असमर्थ थी, वहां टी-सीरीज़ ने इन नए गायकों की मदद की. कुमार ने इसका फायदा उठाया और अनुराधा पौडवाल, मोहम्मद अज़ीज़, कुमार शानू और अलका याग्निक जैसे गायकों से पुराने गीतों को नए तरीके से गवाया जिस कारण पहले से मौजूद गायकों के बीच अब नए गायक भी दिखने लगे.
कुमार ने वितरण नेटवर्क पर भी ध्यान केंद्रित किया, जिसमें पहले संपन्न और पॉश इलाकों में ही कैसेट के बड़े स्टोर होते थे लेकिन इसके विपरीत, टी-सीरीज़ के कैसेट ‘पानवाले’ और पड़ोस के किराना के दुकानों में बेचे जाते थे.
जबकि कंपनी कॉपीराइट अधिनियम छूट के माध्यम से पायरेटेड संगीत बेचने के लिए प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही थी, उनकी पहली वैध सफलता 1988 में कयामत से कयामत तक एल्बम के साथ आई. फिल्म के साउंडट्रैक की सफलता ने कंपनी की दिशा बदल दी. और मेगा हिट आशिकी (1990) के साथ टी-सीरीज़ बहुत हिट हुई. हालांकि दिल है कि मानता नहीं फिल्म भी एक बड़ी सफलता थी, लेकिन उन्होंने एल्बम निर्माण पर अधिक ध्यान केंद्रित किया.
हालांकि टी-सीरीज़ एल्बम बेहद सफल रहे, लेकिन कुमार ने प्रोडक्शन में कदम रखा और इस व्यवसाय के वितरण और बिक्री पर भी जोर दिया, जिससे उनका रिकॉर्ड लेबल देश में सबसे बड़ा संगीत लेबल बन गया.
गुलशन कुमार संगीत पर ही नहीं रुके. 1990 के दशक में, उन्होंने साबुन और डिटर्जेंट उद्योग से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स और कई अन्य उद्यमों में कई छोटे उपक्रमों में अपना हाथ आजमाया.
सफलता की ऊंचाई पर मौत
1997 तक टी-सीरीज मुंबई म्यूजिक इंडस्ट्री की दुनिया में सबसे ऊपर थी और कुमार की बिज़नेस के तरीको से लगातार प्रतिद्वंद्वी घाटे का सामना कर रहे थे. उनका पूरा उद्यम पायरेटेड संगीत पर बनाया गया था. इसे सिर्फ रिकॉर्ड लेबल को ही घाटा नहीं हो रहा था बल्कि फिल्म निर्माताओं ने भी देखा कि इन अवैध कैसेटों ने संगीत की बिक्री से उनके संभावित लाभ को कम कर दिया.
बॉलीवुड में माफिया की ओर से काम करने वाले कॉन्ट्रैक्ट किलर ने अगस्त 1997 में उन्हें गोली मार दी थी. अब्दुल रऊफ उर्फ दाउद मर्चेंट, हमलावरों में से एक, जिसने अगस्त 1997 में उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन पर उन्हें 16 बार गोली मारी थी, उसे 2001 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. पुलिस ने प्रसिद्ध नदीम-श्रवण जोड़ी के संगीतकार नदीम अख्तर सैफी को भी सह-साजिशकर्ता के रूप में नामित किया था.
कुमार अपने धार्मिक परोपकार के लिए भी जाने जाते थे. कुमार के गुजर जाने के वर्षों बाद, उनके पुत्र भूषण कुमार ने वैष्णो देवी मंदिर में स्थापित लंगर का संचालन जारी रखा है. जब कुमार की हत्या हुई थी तो वह मुंबई के एक मंदिर में आशीर्वाद लेने गए थे.
(संपादन: अलमिना खातून)
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