नई दिल्ली: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के खिलाफ देश भर में की गई छापेमारी और इस के बाद इस संस्था पर लगा प्रतिबंध तथा कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनावों के इर्द-गिर्द चल रहे सियासी नाटक को इस पूरे सप्ताह के दौरान उर्दू प्रेस में प्रमुखता मिली.
28 सितंबर को, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस्लामिक संगठन पीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया – यह एक ऐसा घटनाक्रम था जो एक हफ्ते पहले हुई कई सारी गिरफ्तारियों के बाद हुआ था. एक ओर जहां उर्दू अखबारों ने इस संगठन के खिलाफ की गई सरकार की सख्त कार्रवाई की ख़बरें प्रमुखता से छापीं, वही एक अख़बार में छपे संपादकीय में कहा गया कि हालांकि आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जरूर की जानी चाहिए, मगर यह एक समान होनी चाहिए और इसमें संबद्धता के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए.
पीएफआई पर सरकार द्वारा कसे जा रहे शिकंजे की ख़बरों के बावजूद, इस महीने कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनावों के आसपास चल रहे नाटक ने उर्दू प्रेस का सबसे अधिक ध्यान खींचा. अधिकांश कवरेज उस संकट पर केंद्रित थी जिसने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अगुआई वाली राजस्थान सरकार को लगभग खतरे में डाल दिया था, यहां तक कि कुछ संपादकीय टिप्पणियों में कुछ कांग्रेस नेताओं की उनके ‘स्वार्थीपन’ के लिए आलोचना भी की गयी थी.
पेश है इस सप्ताह उर्दू प्रेस में सुर्खियां बटोर रहे मुद्दों का दिप्रिंट द्वारा आपके लिए तैयार किया गया एक राउंडअप.
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया
24 सितंबर को – पीएफआई मामले के पहले चरण में हुई गिरफ्तारियों के दो दिन बाद – ‘‘इंकलाब’’ के पहले पन्ने पर यह खबर छपी थी कि कैसे इन गिरफ्तारियों के सिलसिले में केरल में बुलाए गए बंद ने सामान्य जनजीवन को बाधित कर दिया है.
25 सितंबर को, ‘रोज़नामा राष्ट्रीय ‘सहारा’ ने अपने पहले पन्ने पर छह कथित पीएफआई सदस्यों की गिरफ्तारी की खबर छापी. 28 सितंबर को, ‘सहारा’ ने बताया कि 150 और लोगों की गिरफ्तारी के साथ पीएफआई के खिलाफ की जा रही कार्रवाई अभी जारी है.
29 सितंबर को ‘इंकलाब’ के पहले पन्ने की प्रमुख खबर में बताया गया कि गृह मंत्रालय ने पीएफआई को पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है.
30 सितंबर को इस प्रतिबंध के बारे में लिखे गए अपने संपादकीय में, ‘‘सियासत’’ ने कहा कि सरकार के पास किसी भी ऐसे संगठन के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का हर औचित्य है जो आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करता है और देश में शांति एवं व्यवस्था को बाधित करने का प्रयास करता है, मगर अभी तक इस प्रतिबंध का समर्थन करने के लिए जांच एजेंसियों के दावों के अलावा कुछ भी नहीं मिला है.
संपादकीय में यह भी कहा गया है कि देश में कई ऐसे संगठन हैं – जिनमें कुछ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े हैं – जिनका आतंकी गतिविधियों और बम विस्फोटों में शामिल होना साबित हो चूका है. संपादकीय में कहा गया है कि ऐसे मामलों में की गई कार्रवाई बिना किसी भेदभाव के और उनकी संबद्धता के प्रति बिना किस पूर्वाग्रह के साथ होनी चाहिए.
कांग्रेस में मची उथल-पुथल
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव, जो बड़ी तेजी के साथ राजस्थान में एक राजनीतिक संकट के रूप में परिवर्तित हो गया है, पूरे सप्ताह उर्दू अख़बारों के पहले पन्ने पर छाया रहा.
25 सितंबर को, ‘सहारा’ ने अपने पहले पन्ने पर एक खबर छापी कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव हेतु नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इस खबर में पार्टी के शीर्ष पद के संभावित दावेदारों के रूप में कांग्रेस नेताओं दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी, अशोक गहलोत और शशि थरूर की तस्वीरें भी थीं.
हालांकि, इसके एक दिन बाद एक अजीबोगरीब शीर्षक के तहत उस संकट के बारे में एलान किया गया जो राजस्थान में कांग्रेस सरकार के लिए खतरा बन गया था. इस शीर्षक में कहा गया था: ‘बैटल रॉयल इन राजस्थान, पायलट’स फ्लाइट हाईजैकड.’
उसी दिन, ‘इंकलाब’ ने अपने पहले पन्ने पर खबर छापी कि राजस्थान में 90 कांग्रेस विधायकों ने गहलोत को मुख्यमंत्री के पद से हटाए जाने पर इस्तीफा देने की धमकी दी है.
इस सियासी नाटक के उतार-चढाव पर बड़ी बारीकी से नजर रखने के बाद, 30 सितंबर को ‘सहारा’ ने बताया कि गहलोत अब अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर हो गए हैं.
इस खबर में यह भी कहा गया था कि इस पद के लिए अब दो ही दावेदार बचे हैं – मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर. साथ में लगाई गई एक तस्वीर में इन दो तथाकथित दावेदारों को आपस में गले लगते हुए दिखाया गया था.
‘सियासत’ और ‘इंकलाब’ दोनों, जो दोनों इस सारे नाटक का बड़ी बारीकी से नजर रख रहे थे, ने भी अपने पहले पन्ने पर थरूर और सिंह की तस्वीर के साथ गहलोत के इस दौड़ से बाहर चले जाने के फैसले की सूचना दी.
‘इंकलाब’ ने गहलोत के हवाले से दावा किया कि उनके राज्य की कांग्रेस इकाई में हुई ‘बगावत’ से उनका कोई लेना-देना नहीं है और यह कांग्रेस अध्यक्ष ही तय करेंगे कि राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन होगा.
इस बीच इन तीनों अख़बारों के संपादकीय राजस्थान में कांग्रेस सरकार के भविष्य पर ही केंद्रित रहे जो उन केवल दो राज्यों में से एक है जहां कांग्रेस पार्टी सत्ता में है. इन में से कइयों ने तो कांग्रेस नेता और राजस्थान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट की आलोचना भी की.
29 सितंबर को लिखे गए एक संपादकीय में, ‘इंकलाब’ ने लिखा कि हालांकि पायलट – जिनके साथ गहलोत का काफी समय से झगड़ा चल रहा है – राज्य में फिलहाल सामने आये नाटक के अभिनेता नहीं है, मगर सारी कहानी घूमफिरकर उनके ही पास वापस आती रहती है. संपादकीय में कहा गया था कि कांग्रेस पार्टी के इस ‘युवा सेनानायक’ की समस्या यह है कि वह बड़ी जल्दबाजी में है.
30 सितंबर को, इसी अखबार में छापे गए एक और संपादकीय – जिसका शीर्षक था: ‘राजस्थान में गाठ खुलना अभी बाकी है’ – में कहा गया था कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव का मुद्दा फिलहाल के लिए हल हो गया लगता है, पर सवाल यह है कि क्या कांग्रेस आलाकमान पायलट पर लगाम लगा सकता है और क्या वह इंतजार करने के लिए राजी होंगें?
इस संपादकीय में यह भी कहा गया था कि राजस्थान गोवा (जहां पार्टी ने 2018 में सरकार बनाने का असफल दावा पेश किया था) से अलग है तथा यह मध्य प्रदेश, और उत्तराखंड (वे दोनों राज्य जहां कांग्रेस के भीतरी संकट के कारण उसकी सरकारें गिर गईं थीं) के जैसा भी नहीं है, लेकिन पार्टी को सतर्क रहना होगा और पायलट को एक और पालाबदल करने से रोकना होगा.
अपने 27 सितंबर के संपादकीय में, ‘सियासत’ ने कहा कि इस सारे मामले में कोई भी टिप्पणी करने से बचते हुए और अपनी बगावती टोपी पहनने से परहेज करते हुए, पायलट ने ‘परिपक्व व्यवहार’ दिखाया है और गहलोत को भी सिर्फ व्यक्तिगत लाभ की बजाये पुरे देश, पार्टी और अपने राज्य की भलाई की तरफ देखना चाहिए.
इस बीच, जहां एक तरफ यह संकट सामने आता रहा, वही राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को भी उर्दू अखबारों के पहले पन्नों पर कवरेज मिलती रही . 24 सितंबर को, ‘इंकलाब’ ने कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा हाल ही में दिल्ली में एक मस्जिद में जाने को इस यात्रा के साथ जोड़कर देखते हुए उद्धृत किया. अखबार के मुताबिक खेड़ा ने कहा है कि इस यात्रा के महज 15 दिनों के भीतर आरएसएस प्रमुख को एक मस्जिद जाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
27 सितंबर को, ‘सियासत’ ने केरल में राहुल गांधी की पैदल चलते हुए एक तस्वीर छापी. इसके तीन दिन बाद यह बताया गया कि यात्रा ने अपना केरल चरण पूरा कर लिया है और अब यह कर्नाटक में प्रवेश करने के लिए पूरी तरह तैयार है.
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विपक्षी एकता
26 सितंबर को ‘सहारा’ ने अपने पहले पन्ने पर खबर दी कि पूर्व उपप्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी देवीलाल की 109वीं जयंती पर इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) ने हरियाणा के फतेहाबाद में ‘सम्मान दिवस’ रैली का आयोजन किया.
विपक्ष के कई वरिष्ठ नेताओं – जैसे कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता सीताराम येचुरी और जनता दल (यूनाइटेड) के महासचिव के.सी. त्यागी आदि – ने इस कार्यक्रम में शिरकत की और एकसाथ मंच भी साझा किया.
27 सितंबर को, ‘सहारा’ के पहले पन्ने पर कांग्रेस के पूर्व नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद द्वारा एक नई पार्टी – डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी – का गठन करने की एक खबर छपी थी.
उसी दिन, ‘इंकलाब’ ने नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के हरियाणा दौरे के बारे में एक खबर छापी. अखबार में जद (यू) नेता के सी त्यागी का एक साक्षात्कार भी छपा था, जिसमें उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि उनकी यह यात्रा सफल रही और जद (यू) के एनडीए का साथ छोड़ने के साथ, विपक्ष की ‘मायूसी खत्म हो गई’ है.
26 सितंबर को छापे गए अपने एक संपादकीय में, ‘सहारा’ ने कहा कि कांग्रेस की वर्तमान स्थिति ही एकमात्र ऐसी समस्या नहीं है जिसका विपक्ष सामना कर रहा है: तथ्य तो यह है कि प्रधान मंत्री पद के लिए विपक्ष की ओर से किसी एक स्पष्ट दावेदार का मौजूद ना होना भी एक चुनौती बनी हुई है.
अखबार ने कहा कि एक मजबूत और लोकप्रिय चेहरे के बिना भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हारने की बात सोची भी नहीं जा सकती. संपादकीय में कहा गया है कि हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, और अब बिहार के सीएम नीतीश को भी, विपक्ष के संभावित उम्मीदवार के रूप में पेश किया जा रहा है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या विपक्ष उन नामों पर एकमत हो पाएगा.
साथ ही, इसमें यह भी कहा गया कि अगले संसदीय चुनावों में भाजपा को हराने के लिए केवल विपक्षी दलों का आपस में मिलना-जुलना और एक ही मंच साझा करना पर्याप्त नहीं है – वास्तव में उसे ‘भारत जोड़ो यात्रा’ जैसे किसी बड़े आंदोलन की जरूरत है.
29 सितंबर को, ‘इंकलाब’ और ‘सियासत’ दोनों ने लालू प्रसाद यादव के नौवीं बार राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में चुने जाने की खबर छापी. उनका कार्यकाल 10 अक्टूबर 2002 से शुरू होकर 2025 तक चलेगा.
ज्ञानवापी मामला
ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद में चल रही मौजूदा सुनवाई सप्ताह में कई बार उर्दू अखबरों के पहले पन्ने की खबर बनी. 27 सितंबर को ‘इंकलाब’ ने अपने पहले पन्ने पर खबर छापी कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है और याचिकाकर्ताओं को इसके बजाय उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा है. एक इनसेट वाली खबर में, इस अखबार ने बताया कि अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति, जो मस्जिद का प्रबंधन करती है, ने परिसर के अंदर मोबाइल फोन ले जाने की अनुमति देने के फैसले पर आपत्ति जताई है.
27 सितंबर को, ‘सियासत’ ने खबर दी कि इस विवाद के हिंदू पक्ष में शामिल दो समूहों में इस बात पर मतभेद है कि क्या मस्जिद परिसर में पाए गए कथित ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग की जानी चाहिए या नहीं
30 सितंबर को ‘सहारा’ ने अपने पहले पन्ने पर लिखा कि मामले में सुनवाई पूरी हो चुकी है और 7 अक्टूबर को फैसला सुनाया जाएगा.
नामों में बदलाव
26 सितंबर को, ‘सहारा’ ने अपने पहले पन्ने पर खबर छापी कि लखनऊ नगर निगम, जो फिलहाल भाजपा द्वारा शासित है, ने शहर के कई इलाकों का नाम स्वतंत्रता सेनानियों और दक्षिणपंथी विचारकों के नाम पर रखने का फैसला किया है – यह एक ऐसा घटनाक्रम है जो इस साल के अंत में होने वाले नगरपालिका चुनावों से पहले हुआ है.
अखबार का कहना था कि विपक्ष ने इस कदम को राजनीति से प्रेरित बताया है.
इस बीच, इसी खबर में कहा गया है कि लखनऊ की मेयर संयुक्ता भाटिया ने इसे भारत के औपनिवेशिक अतीत के संकेतों को मिटाने और स्वतंत्र भारत के लिए लड़ने वालों को सम्मानित करने का एक प्रयास बताया है.
मन की बात
26 सितंबर को, ‘सहारा’ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मासिक ‘मन की बात’ कार्रक्रम के प्रसारण के 93 वें संस्करण पर एक पहले पन्ने वाली खबर छापी. अखबार ने बताया कि मोदी ने बेंगलुरु स्थित ‘यूथ फॉर परिवर्तन’ और मेरठ स्थित ‘कबाड़ से जुगड़’ नाम के दो गैर-सरकारी संगठनों की साफ़-सफाई और कचरे के निष्पादन से जुड़े उनके काम के लिए सराहना की.
इस खबर में मोदी के हवाले से कहा गया है कि देश पर्यावरण से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है और इससे निपटने के लिए गंभीर और सतत प्रयासों की जरूरत है.
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