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Sunday, 17 November, 2024
होमदेश'मेरी शायरी मेरी जिंदगी से जुदा नहीं': प्रेम से लबरेज़ गीत लिखने वाले रोमांटिक शायर शकील बदायुनी

‘मेरी शायरी मेरी जिंदगी से जुदा नहीं’: प्रेम से लबरेज़ गीत लिखने वाले रोमांटिक शायर शकील बदायुनी

मजरूह सुल्तानपुरी, कैफ़ी आज़मी, साहिर लुधियानवी उस समय राष्ट्रवाद और फासीवाद विरोधी गीत लिख रहे थे, वहीं इसी प्रगतिशील ब्रिगेड के बीच अपनी कलम से एक अलग पहचान बनाने में बदायुनी सफल रहे.

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शकील बदायुनी ने तीन दशकों के अपने लंबे सफर में संवेदनशीलता और प्रेम से लबरेज़ गीत लिखे. जहां एक और उनके साथी गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी, कैफ़ी आज़मी, साहिर लुधियानवी उस समय राष्ट्रवाद और फासीवाद विरोधी गीत लिख रहे थे, वहीं इसी प्रगतिशील ब्रिगेड के बीच अपनी कलम से एक अलग पहचान बनाने में बदायुनी सफल रहे.

3 अगस्त को उनकी 105वीं जयंती पर, बदायुनी के उल्लेखनीय सफर और उनके कुछ चुनिंदा गीतों पर दिप्रिंट एक नज़र डाल रहा है.


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बदायुनी ने स्वयं को इस तरह व्यक्त किया है:

‘मैं शकील दिल का हूं तर्जुमन

कह मोहब्बतों का हूं राजदान

मुझे फख्र है मेरी शायरी

मेरी जिंदगी से जुदा नहीं ‘

यानि कि वो गर्व से कहते हैं कि जो भाव उनके दिल में है, वही उनके गीतों के जरिए उभरकर आता है.

साथी कवि और गज़ल लेखक जिगर मुरादाबादी ने बदायुनी को ‘शायर-ए-फ़ितरत ‘ कहा, मतलब एक सहज कवि- जिनके गीत उनके व्यक्तित्व का विस्तार थे. बदायुनी रोमांटिक कविता में डूबे रहे और अपने गीतों में प्रेम, तृष्णा और समर्पण के सभी रंग डालते रहे.

चाहे वह मुग़ल-ए-आज़म की ‘तेरी महफ़िल में किस्मत आजमाकर ‘ हो या साहिब, बीबी और गुलाम का ‘पिया ऐसो जिया में ‘ – उनके गीतों में श्रृंगार रस प्रमुख है, जो कि नाट्य शास्त्र में भरत मुनि द्वारा प्रतिपादित नौ रसों में से एक है.

चौदहवीं का चांद’, ‘सुहानी रात ढल चुकी’, ‘प्यार किया तो डरना क्या’, ‘हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं’, ‘ना जाओ सैय्यां छुड़ा के बैय्यां ‘ जैसे गीत 50 और 60 के दशक के न केवल बेहतरीन रोमांटिक गानों में से एक हैं, बल्कि इन गीतों का उन फिल्मों की लोकप्रियता में भी बड़ा हाथ रहा है.

एक कवि के रूप में बदायुनी की क्षमता उनके द्वारा लिखी गई गैर-फिल्मी गज़लों में भी झलकती थी- ‘मेरे हमनफ़स, मेरे हमनवा ‘ और ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया ‘, ऐसी ही कुछ बेहतरीन गज़लें हैं जिन्हें गज़लों गायन कि मल्लिका बेगम अख्तर ने गाकर अमर कर दिया.

नीचे कुछ ऐसे ही गीत चुने गए हैं जो एक कवि और गीतकार के रूप में उनकी काबिलियत और बहुमुखी प्रतिभा को प्रदर्शित करते हैं.


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‘मन तड़पत हरि दर्शन को आज’ (बैजू बावरा, 1952)

शकील बदायुनी की नौशाद के साथ साझेदारी, जिसे हिंदी सिनेमा में सबसे प्रतिष्ठित संगीतकार-गीतकार जोड़ी में से एक माना जाता है, ने कई यादगार और हिट गानों को बनाया. उनके गीत में चार चांद लगाए मोहम्मद रफी की मखमली आवाज़ ने. इन्हीं में से एक है राग मालकौंस में रचित भजन, ‘मन तड़पत हरि दर्शन ‘.

इसी राग में फिल्म का एक और गाना ‘ओ दुनिया के रखवाले ‘ भी बना था. यह भारत के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का प्रमाण है कि मुसलमानों की एक गायक-लेखक-संगीतकार जोड़ी ने अक्सर हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित भक्ति भजन और गीत बनाये.

कहीं दीप जले कहीं दिल (बीस साल बाद, 1962)

गायक-निर्माता हेमंत कुमार द्वारा रचित, यह शकील बदायुनी के उत्कृष्ट गीतों में से एक है. सर आर्थर कॉनन डॉयल के उपन्यास, हाउंड ऑफ द बास्करविल्स पर आधारित, यह केवल एक रहस्य का गीत नहीं है बल्कि गाने के बोल इसमें उदासी की परतों को जोड़ते चले जाते हैं.

इस गीत के लिए बदायुनी को सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ गायिका के लिए लता मंगेशकर को सम्मानित किया गया था.

पिया ऐसो जिया में (साहिब बीबी और गुलाम, 1962)

यह बदायुनी और नौशाद कि जोड़ी का एक और सफल प्रयोग है. बदायूंनी ने इस फिल्म के सभी गीतों के बोल लिखे हैं. इस गीत को मीना कुमारी पर चित्रित किया गया है, जो एक जमींदार की उपेक्षित पत्नी की भूमिका निभाती है, जो एक शाम अपने पति का बेसब्री से इंतजार कर रही है.

गीता दत्त की आवाज में चंचलता का स्पर्श और प्रतीक्षा की भावना है जो इस गाने को एक अलग ही स्तर पर ले जाती है. बदायुनी बहुत आसानी से गियर शिफ्ट कर सकते थे- शुद्ध उर्दू से हिंदी या खड़ी बोली या ब्रज भाषा में और यह गीत इसका एक अच्छा उदाहरण है.

‘पिया ऐसो जिया में, समाय गयो रे

कि मैं तन मन की सुध बुध गंवा बैठी,

हर आहट पे समझी वो आय गयो रे

झट घूंघट में मुखड़ा छुपा बैठी ‘


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जिंदगी तू झूम ले जरा (कैसे कहूं, 1964)

बदायुनी के शब्द और रफी की जादुई आवाज ने मिलकर इस गीत को यादगार बना दिया. अभिनेता बिस्वजीत चटर्जी, जो नायक की भूमिका निभाते हैं, एक आशावादी भविष्य के लिए तरस रहे हैं और कहीं न कहीं अपनी प्रेयसी का भी इस गीत के ज़रिये आह्वान कर रहे हैं.

‘वो दुनिया वो मंजिल,

कल जो थी ख्वाबो में,

चुपके से आज वही,

आन बसी आंखों में,

हमने उसे देख लिया, सामना उसी से हो गया ‘

तेरी महफिल में किस्मत आजमाकर (मुगल-ए-आज़म, 1960)

शकील बदायुनी की कलम की प्रतिभा का ज़िक्र के आसिफ की उत्कृष्ट कृति मुगल-ए-आज़म  के बगैर पूरी नहीं हो सकती, जिसकी सफलता का एक कारण यह भी है कि इसके सभी गीत आज भी खासे लोकप्रिय हैं. इस गीत से बदायुनी ने साबित किया कि वह कव्वाली लिखने में माहिर हैं. मसलन इन पंक्तियों में फिल्म का संदेश साफ-साफ झलकता है- इश्क और गम एक सिक्के के दो पहलू हैं.

‘अगर दिल गम से खाली हो तो जीने का मजा क्या है,

ना हो खून-ए-जिगर तो अश्क़ पीने का मजा क्या है

मोहब्बत में जरा आंसू बहा कर हम भी देखेंगे ‘

(इसे अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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