RSS चाहे चिर विद्रोही की भूमिका में रहा हो या सत्ता में, वह ‘अब्राहमवादी’ या साफ कहें तो मुस्लिम दुविधा से अभी तक उबर नहीं पाया है. क्या इस मामले में वह प्रगति कर सकता है? हम सरसंघचालक के अगले उद्बोधन या इंटरव्यू का इंतज़ार करेंगे.
न्यूज़रूम की गरिमा बनाए रखने, तथ्यों के प्रति सम्मान बरतने और खबर को उसकी मूल अहमियत से ज्यादा न उछालने में कामयाबी से बड़ा संतोषप्रद शायद ही कुछ हो सकता है. इसी संतोष के साथ रॉय दंपती एनडीटीवी को नये हाथों में सौंपकर इससे विदाई ले सकता है.
उनकी पार्टी के नेता सत्ता चाहते हैं, जिसे राहुल जहर बता चुके हैं लेकिन अगर उन्होंने अपना विचार बदल लिया है तो उनकी पार्टी को यह नहीं मालूम. अगर राहुल प्रत्यक्ष सत्ता नहीं चाहते, तो यह उन्हें साफ कहना होगा और वे अपनी पार्टी से यह मांग नहीं कर सकते.
चीन की किसी कार्रवाई, उसके बाद तनाव कम करने के उसके तरीके, किसी से यह संकेत नहीं मिलता कि वह जमीन कब्जा करने के फेर में है. दरअसल वह जिस जमीन कर कब्जा करना चाहता है वह है हमारे सोच की जमीन
हिमाचल प्रदेश में मोदी का चेहरा नहीं चला और राष्ट्रवाद-हिंदुत्ववाद भी मुद्दे नहीं बन पाए इसलिए वह एक सामान्य चुनाव बन गया, वहां 2014 से ऐसा ही चल रहा है
मैं इस विचार से सहमत नहीं हूं कि राहुल गाधी अपनी सारी ऊर्जा 2024 के लिए बचाकर रखना चाहते हैं. ज्यादा मुमकिन है, कांग्रेस ऐसा मान रही हो कि गुजरात जहां बेहद चुनौतीपूर्ण है, वहीं गुजरात के आकार के ही एक अन्य राज्य कर्नाटक में जीत के आसार ज्यादा प्रबल होंगे.
भारत के आर्थिक व रणनीतिक हितों में संतुलन बनाकर, रूस और अमेरिका के साथ रिश्ता निभाते हुए और चीन को अपने ऊपर हावी न होने देकर मोदी कुशलता से आगे बढ़ते रहे हैं. अब जी-20 की अध्यक्षता के एक साल का बेशक वे भारत के फायदे के लिए उपयोग करेंगे.
हममें से हर एक ने पाया है कि इमरान ख़ान एक अनूठी शख्सियत हैं, इस उपमहादेश के आम क्रिकेट सितारों से अलग. उनमें लापरवाही की हद तक जोखिम मोल लेने का जज्बा रहा है