अगर भागवत का समावेशिता का आह्वान वास्तविक है, तो उन्हें अपने वैचारिक पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर विघटनकारी तत्वों के खिलाफ निर्णायक रूप से कार्रवाई करनी चाहिए.
उन्हें कड़ाके की सर्दी में कपड़े उतारने, पेट के बल ज़मीन पर लेटने और रात भर बीच-बीच में कोड़े खाने के लिए मजबूर किया जाता. वह रास्तों से बचा हुआ खाना उठाते, यहां तक कि मृतकों की जेबों से भी हाथ साफ करते.