नई दिल्ली : महाराष्ट्र में लंबे राजनीतिक उठापटक के बाद मंगलवार को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. इसी बीच राजनीतिक दलों का एक दूसरे पर हमला जारी है. वहीं शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में भाजपा पर एक बार फिर जमकर हमला बोला है. बुधवार को सामना के संपादकीय में लिखा है, ‘महाराष्ट्र में भले ही अभी घोड़ा बाजार (हॉर्स ट्रेडिंग) शुरू न हो, लेकिन कदम उसी दिशा में चल पड़े हैं. राष्ट्रपति शासन की सिफारिश इसी का उदारहण है. हम नहीं तो कोई नहीं, चुनावी नतीजों को बाद जो यह अहंकारी दर्प चढ़ा है ये राज्य के हित में नहीं है.’
हमने नीलकंठ की तरह विष पिया
सामना में लिखा है, ‘भाजपा के साथ अमृत पात्र से निकले विष को महाराष्ट्र की अस्थिरता को मिटाने के लिए हम ‘नीलकंठ’ बनने के लिए भी तैयार हैं. यदि हिंदुत्व की भाषा में कहा जाए तो जिस ‘हलाहल’ का प्राशन भगवान शंकर ने किया, उसी शिव की भक्ति शिवराय ने की और शिवराय की पूजा शिवसेना ने की है.’
‘समर्थन के लिए आवश्यक कागजात समय पर नहीं पहुंचे सके.105 वालों को सफलता नहीं मिल सकी तो अगला कदम उठाने वालों को ये समझना ही चाहिए. इसका मलतब सिर्फ 105 वाले ही जल्लोष मनाएं. ऐसा नहीं है. मेरा चंदन मैंने ही पोछा लेकिन दूसरे का सौभाग्य मिटने की खुशी मनाने वालों की विकृति महाराष्ट्र के सामने है.’
कश्मीर में महबूबा और बिहार में नीतीश कुमार का ‘घरौंदा’ बसाते समय तत्व और विचारों का क्या हुआ? बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव को जनादेश था. उस जनादेश को तोड़-मरोड़कर भाजपा और नीतीश कुमार में बन ही गई न. हमें नीतीश कुमार की चिंता है.’
राजभवन के पेड़ के नीचे बैठकर पत्ते पीसते खेल जनता देख रही है
भाजपा पर हमला बोलते हुए सामना में लिखा है, ‘महाराष्ट्र की जनता द्वारा दिए गए आदेश का पालन नहीं हो रहा है. यह जनादेश का अपमान है. आदि तत्वचिंतन का विचार देने वालों को एक बात समझ लेनी चाहिए कि जो ये जनादेश मिला है, ये ‘दोनों’ को मिला है.दोनों ने मिलकर जिस नीति पर मुहर लगाई उसे यह जनादेश मिला है. इस बात को वे मानने के लिए तैयार नहीं थे. इसीलिए महाराष्ट्र की माटी का स्वाभिमान बनाए रखने के लिए हमें यह कदम उठाना पड़ा.’
सामना के लेख में कहा गया है, ‘कहा जाता है कि भाजपा तत्ववादी, नैतिकता और संस्कारों से युक्त पार्टी है तो महाराष्ट्र के संदर्भ में भी उन्हें तत्व और संस्कार का पालन करना चाहिए था. भाजपा विरोधी पक्ष में बैठने को तैयार है. इसका मतलब कांग्रेस और एनसीपी का साथ देने के लिए तैयार है. ऐसा कहा जाए तो उन्हें मिर्ची नहीं लगनी चाहिए. दिए गए वचनों पर भाजपा कायम रहती तो परिस्थिति महाराष्ट्र में इतनी विकट नहीं होती. शिवसेना से जो भी तय हुआ है, वो नहीं देंगे भले हमें विरोधी पक्ष में बैठना पड़े, ये दांव-पेच नहीं बल्कि शिवसेना को नीचा दिखाने का षडयंत्र है. किसी भी परिस्थिति में महाराष्ट्र में सत्ता स्थापना नहीं होने देना और राजभवन के पेड़ के नीचे बैठकर पत्ते पीसते बैठने का खेल को महाराष्ट्र की जनता देख रही है. कांग्रेस या एनसीपी के साथ हमें क्या करना है. ये हम देख लेंगे.’
राज्यपाल को तो खुले मन से व्यवहार करना चाहिए
आगे लिखा है, ‘राज्यपाल सत्ताधारी पार्टी के होते हैं, लेकिन कम से कम उन्हें तो खुले मन से व्यवहार करना चाहिए. संविधान के उद्देश्यों का पालन करने और कानून का पालन करने का वचन नहीं भूलना चाहिए. ऐसी अपेक्षा होती है.’
‘महाराष्ट्र जैसे राज्य में जो खेल शुरू है उससे किसी की खुजली ठीक हो रही हो तो खुजाते बैठे. शिवसेना किस दिशा में कदम बढ़ा रही है, इस पर टीका टिप्पणी होने दो.