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Friday, 22 November, 2024
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छत्तीसगढ़ में आईपीएस अधिकारी के फोन टैपिंग पर सुप्रीम कोर्ट नाराज़

शीर्ष अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार से जानना चाहा कि क्या इस तरह से किसी भी व्यक्ति के निजता के अधिकार का हनन किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार की कार्रवाई पर सोमवार को कड़ा रूख अपनाया और कहा, ‘किसी के लिये भी निजता नहीं बची है.’

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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और उनके परिवार के सदस्यों के फोन टैप कराने की छत्तीसगढ़ सरकार की कार्रवाई पर सोमवार को कड़ा रूख अपनाया और कहा, ‘किसी के लिये भी निजता नहीं बची है.’

शीर्ष अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार से जानना चाहा कि क्या इस तरह से किसी भी व्यक्ति के निजता के अधिकार का हनन किया जा सकता है.

न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने राज्य सरकार को सारे मामले में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है. इस हलफनामे में यह भी स्पष्ट करना होगा कि फोन की टैपिंग का आदेश किसने दिया और किन कारणों से दिया ?

पीठ ने सख्त लहजे में कहा, ‘इस तरह से करने की क्या आवश्यकता है? किसी के लिये कोई निजती बची ही नहीं है. इस देश में आखिर क्या हो रहा है? क्या किसी व्यक्ति की निजता का इस तरह हनन किया जा सकता है? किसने यह आदेश दिया? विस्तृत हलफनामा दाखिल किया जाये.’

पीठ ने शीर्ष अदालत में आईपीएस अधिकारी का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता के खिलाफ अलग से प्राथमिकी दायर किये जाने पर भी नाराजगी व्यक्त की और अधिवक्ता के खिलाफ जांच पर रोक लगा दी.

पीठ ने कहा कि इस मामले में अगले आदेश तक कोई दण्डात्मक कदम नहीं उठाया जायेगा.

पीठ ने आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी से कहा कि इस मामले में छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम घसीट कर इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाये.

न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिका में पक्षकारों की सूची से मुख्यमंत्री का नाम हटा दिया जाये.

वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने अपनी याचिका में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को भी एक प्रतिवादी बनाया है.

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