अबकी बार 75 पार का नारा लेकर चुनावी मैदान में उतरी बीजेपी हरियाणा में बहुमत के आंकड़े पाने के लिए संघर्ष कर रही है. वह 47 सीट भी हासिल नहीं कर पाई है. पांच महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव के समय बीजेपी की हरियाणा विधानसभा की 79 सीटों पर बढ़त थी. जो घटकर नतीजों में 40 के आस-पास सिमट गई है. अब बीजेपी अगर हरियाणा में सरकार बनाती है तो उसे जोड़-तोड़ का सहारा लेना होगा.
महाराष्ट्र की कहानी बेहतर है पर असाधारण नहीं. महाराष्ट्र में बीजेपी शिवसेना गठबंधन ने बहुमत का 145 सीटों का आंकड़ा तो छू लिया है और बीजेपी शिवसेना गठबंधन की सरकार बन जाएगी पर इस जनादेश की उम्मीद बीजेपी हाईकमान कतई नहीं कर रहा था. महाराष्ट्र में बीजेपी 2014 में अकेले दम पर 122 सीटें जीती थी और पार्टी नतीजों से एक दिन पहले तक अकेले 140 सीटें जितने का दावा कर रही थी. अब बीजेपी तकरीबन 100 सीटें जीतती दिख रही है. पहले के आंकड़े से 22 सीटों का नुकसान दिख रहा है तो सवाल है आखिर बीजेपी से गलती कहां हो गई? प्रचंड बहुमत के साथ बम्पर जीत की उम्मीद कर रही बीजेपी के लिए दो राज्यों के जनादेश क्या संदेश देते हैं?
राष्ट्रीय चुनाव और स्थानीय चुनाव का अंतर जनता समझती है
दोनों राज्यों के जनादेश में जनता ने एक बात बड़े साफ तौर पर समझाया है कि वो स्थानीय चुनाव और प्रधानमंत्री के चुनाव के अंतर को समझती है. लोकसभा चुनाव में जनता ने पीएम मोदी को जमकर वोट दिया लेकिन विधानसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर, स्थानीय मुद्दों का समाधान नहीं ढूंढ़ने पर जनता की चुनावी उदासीनता बीजेपी पर भारी पड़ती दिख रही है. जनता ने जनादेश में बीजेपी को सत्ता से बाहर नहीं किया पर जमकर उस उत्साह से वोट भी नहीं डाला.
अर्थव्यवस्था की पतली हालत और रोजगार का संकट
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक अर्थव्यवस्था की जो हालात है वो किसी से छुपी नहीं है और जनता उससे प्रभावित नहीं हो यह भी नहीं माना जा सकता है. नोटबंदी, जीएसटी से छोटे कारोबारी दुकानदार उबर रहे थे कि मंदी के हालात ने व्यापार के सेंटिमेंट को एक तरह से खत्म कर दिया. इस नेता के मुताबिक इस मुद्दे का भी नतीजों पर असर पड़ा है.
हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर पर पांच साल में भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे और हर सभाओं में बीजेपी 18 हजार ग्रुप डी की भर्तियों को एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश करती रही है. यह बेहतर प्रशासन का नमूना हो सकता है पर उपलब्धि नहीं. जिस राज्य में बेरोज़गारी 25 प्रतिशत हो वहां 18 हजार नौकरियां उपलब्धि नहीं हैं. नीतीश सरकार ने दो लाख से ज्यादा शिक्षकों की भर्ती की थी और डॉक्टर, इंजीनियर की संख्या जोड़ दी जाए तो यह आंकड़ा तीन लाख तक पहुंचता है तो निष्कर्ष है कि बालाकोट, धारा 370 जैसे राष्ट्रीयता के मुद्दे बीजेपी को एक बफर ज़ोन में पहुंचा सकते हैं लेकिन असली मुद्दों का समाधान भी राज्य सरकारों को देना होगा.
चुनावी रणनीति ठीक है पर कैंपेन के फाल्टलाइन को पाटना होगा
बिहार विधानसभा में हार से बीजेपी ने एक चीज सीखी पर दूसरी सीख को भुला दिया. जिसे बीजेपी ने सीखा वह था कि स्थानीय चुनाव में स्थानीय नेतृत्व की उपेक्षा भारी पड़ती है. बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सुशील मोदी सहित स्थानीय नेतृत्व की उपेक्षा की थी, पोस्टर बैनर पर केवल पीएम मोदी और अमित शाह थे और फैसले दिल्ली में बैठकर लिए गए थे. बाद के सभी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने स्थानीय नेतृत्व को फैसले और कैंपेन में भरपूर जगह दी पर एक चीज जो बीजेपी ने नहीं सीखी वह थी विधानसभा चुनाव को राष्ट्रीय चुनाव बनाना भारी पड़ता है. बिहार में अमित शाह ने अपने कैंपेन में ध्रुवीकरण के लिए पाकिस्तान का जमकर इस्तेमाल किया था जो जमकर भारी पड़ा था. महाराष्ट्र, हरियाणा में अमित शाह और पीएम मोदी ने अपनी रैलियों में धारा 370 और राष्ट्रीयता का जमकर इस्तेमाल किया लेकिन जनता सूखे, बेरोज़गारी, कृषि, अर्थव्यवस्था पर केन्द्र और राज्य सरकारों से समाधान चाहती थी.
जातियों के फाल्टलाइन का फायदा ले सकते हैं तो नुकसान के लिए भी तैयार रहना होगा
बीजेपी का मराठावाड़ों की अगुवाई वाले राज्य में ब्राह्मण मुख्यमंत्री का प्रयोग चल गया क्योंकि बीजेपी ने वहां प्रभावशाली मराठा समुदाय को आरक्षण का लाभ देकर समझाने की कोशिश की. बीजेपी ने जाटों के प्रभुत्व वाले राज्य में पंजाबी मुख्यमंत्री देकर बाकी जातियों के सहारे सरकार तो बना ली लेकिन जाटों के घावों पर मरहम नहीं लगाया. 30 से ज्यादा जाट मारे गए. 3000 लोग जेलों में डाले गए लेकिन असुरक्षित होते जाट समुदाय के लिए कुछ ख़ास नहीं किया.
बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्याम जाजू के मुताबिक जाटलैंड में जाटों की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ी है और इसलिए खट्टर मंत्रिमंडल के जाट मंत्री हारते दिख रहे हैं. झारखंड में भी गैरआदिवासी को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने प्रयोग तो किया है पर प्रयोग उलट सकता है अगर आदिवासी समुदाय दूसरे पक्ष में जाने लगे तो.