अयोध्या : अयोध्या के ऐतिहासिक रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद की बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. गोगोई अगले महीने 18 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि उससे पहले इस ऐतिहासिक मामले में फैसला आ सकता है. ऐसे में सबकी निगाहें अब अयोध्या पर हैं.
सरयू नदी के किनारे बसी अयोध्या की दूरी दिल्ली से लगभग 700 किलोमीटर और लखनऊ से 135 किलोमीटर है लेकिन दिल्ली और लखनऊ की सत्ता की गद्दी की लड़ाई में पिछले 29 साल में आए दिन अयोध्या का जिक्र होता रहा है. 1990 में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के लिए देशव्यापी रथयात्रा की शुरुआत की. 1991 में रथयात्रा की लहर से बीजेपी यूपी की सत्ता में आई. 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या पहुंचकर हजारों की संख्या में कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया. इसके बाद से लेकर आज तक ये देश का सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अब सुनवाई खत्म करने का फैसला किया है और अब सबको फैसले का इंतजार है.
इस फैसले से पहले अयोध्या के माहौल को लेकर जो कयास लगाए जा रहे हैं अयोध्या उससे काफी अलग है. इसे कुछ ऐसे समझिए- अयोध्या के हनुमान गढ़ी मंदिर के पास चाइनीज मोबाइल कंपनी का स्टोर है. इस स्टोर में दो साथी काम करते हैं. एक का हर्ष श्रीवास्तव और दूसरे का नाम सरफराज अली. सरफराज का घर अयोध्या में ही है तो हर्ष पिछले 6 साल से यहां रह रहे हैं. दोनों के बीच 4 साल से दोस्ती है. दोनों 1992 के बाद पैदा हुए हैं लेकिन इस मुद्दे से पूरी तरह वाकिफ हैं. हर्ष मंदिर के पक्ष में हैं तो सरफराज मस्जिद के. लेकिन दोनों फैसले के बाद भी मिल-जुलकर साथ में ही काम करने पर यकीन रखते हैं. दोनों का वादा है जो भी फैसला होगा मंजूर होगा.
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यही विवादास्पद स्थल के पास रहने वाले घनश्याम यादव और इश्तियाक अहमद का कहना है. घनश्याम भाजपा से जुड़े हैं. मंदिर आंदोलन के वक्त भी सक्रिय थे. वहीं 78 साल के इश्तियाक बचपन से यहां रह रहे हैं. उन्होंने बताया कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा में उनके कई रिश्तेदारों के मकान फूंक दिए गए लेकिन वह अमन चैन चाहते हैं. वह कहते हैं कि मंदिर से भी कोई गुरेज़ नहीं लेकिन ये मुद्दा खत्म हो. उनका आधा जीवन इसी तनाव को देखते हुए बीत गया.
इसी तरह ऐसे तमाम अयोध्यावासी हैं जो इस मुद्दे पर जल्द से जल्द फैसला चाहते हैं. श्रृंगार हाट के पास भगवान की तस्वीरों की दुकान लगाने वाले महबूब अली भी चाहते हैं कि फैसला जल्द आए. वह कहते हैं कि मंदिर बनने से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और उनकी बनाई तस्वीरों की बिक्री भी काफी होगी और अयोध्या का विकास भी. वह बताते हैं कि यहां लोग मिल-जुलकर रहते हैं. हमें तो पता भी नहीं था कि यहां धारा 144 लगी है, यह बात हमारे ससुराल वालों ने फोन करके हमें बताई. इस फैसले को जल्दी से जल्दी निपटा दिया जाना चाहिए. इससे हमारी रोजी-रोटी पर फर्क पड़ता है.
विकास की बात यहां के युवा भी कहते हैं. वह ये भी मानते हैं अच्छे स्कूल व कोचिंग अयोध्या में नहीं हैं जिस कारण उन्हें बाहर पढ़ने जाना पड़ता है. 12वीं में पढ़ने वाले सूरज पांडे का कहना है कि इस मामले में जल्द फैसला आए ताकि सरकारों का ध्यान दूसरे मुद्दों पर भी केंद्रित हो. वह चाहते हैं अयोध्या में नए रोजगार के माध्यम पैदा हों.
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27 साल में अब तक क्या हुआ
6 दिसंबर, 1992: अयोध्या पहुंचकर हजारों की संख्या में कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया था. इसके बाद कई स्थानों पर सांप्रदायिक दंगे हुए.
1994: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित केस चलना शुरू हुआ.
4 मई, 2001: स्पेशल जज एसके शुक्ला ने बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित 13 नेताओं से साजिश का आरोप हटा दिया.
1 अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहबाद हाई कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी.
5 मार्च 2003: इलाहबाद हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को अयोध्या में खुदाई का निर्देश दिया, ताकि मंदिर या मस्जिद का प्रमाण मिल सके.
22 अगस्त, 2003: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई के बाद इलाहबाद हाई कोर्ट में रिपोर्ट पेश की. इसमें कहा गया कि मस्जिद के नीचे 10वीं सदी के मंदिर के अवशेष प्रमाण मिले हैं. मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे. इस रिपोर्ट को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने चुनौती दी.
सितंबर 2003: अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए.
26 जुलाई, 2010: इस मामले की सुनवाई कर रही इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया और सभी पक्षों को आपस में इसका हल निकाले की सलाह दी. लेकिन कोई आगे नहीं आया.
30 सितंबर 2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. इसके तहत विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा दिया गया. इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़े को मिला.
9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी.
21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही.
19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया.
16 नवंबर 2017: आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की कोशिश की, उन्होंने कई पक्षों से मुलाकात की.
5 दिसंबर 2017: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने 8 फरवरी तक सभी दस्तावेजों को पूरा करने के लिए कहा.
25 जनवरी 2019: चीफ जस्टिस गोगोई ने इस मामले की सुनवाई के लिए 5 सदस्यीय नई बेंच का गठन किया. इसमें जस्टिस गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.
अगस्त 2019: चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि मध्यस्थता के सारे रास्ते खत्म हो गए हैं और अब 6 अगस्त से रोजाना सुनवाई होगी.
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फैसले की आहट के बीच कई हिंदूवादी संगठन भी अयोध्या में काफी एक्टिव हो गए हैं. यहां के कारसेवकपुरम के वह खूब चक्कर लगा रहे हैं और मीडिया की डिबेट्स का हिस्सा बन रहे हैं और मामले के कोर्ट में अब तक लटकने का कारण विपक्षी दलों को बता रहे हैं.
टीवी डिबेट्स और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर ये मुद्दा गरम है लेकिन अयोध्या शांत है. यहां भले ही सुरक्षा के मद्देनजर धारा 144 लागू कर दी गई हो लेकिन अयोध्यावासियों में इसका भय नहीं है. वह तो इस मामले के जल्द निपटने के इंतजार में है ताकि उन्हें एक ‘न्यू अयोध्या’ मिल सके जो अब तक केवल राजनीति के चक्रव्यूह में ही फंसती रही है. इस पर सियासी रोटियां सेंकने वाले नेता कहां से कहां पहुंच गए लेकिन अयोध्या महज़ पाॅलिटिकल टूल बनकर रह गई है. अब इस अयोध्या को नई सुबह का इंतजार है..