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Wednesday, 19 November, 2025
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निठारी कांड की सबसे बड़ी गड़बड़: कैसे जांच खुद ही उलझती चली गई

निठारी केस में सालों की जांच, जबरन कबूलनामे और कमज़ोर सबूतों ने पूरी कहानी उलझा दी—आखिरकार अदालतों ने एक-एक कर फैसले पलटे.

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चैप्टर-I

गर्मी की छुट्टियां चल रही थीं. 10 साल की बच्ची घर से दुपट्टा सिलवाने के लिए निकली—टेलर की दुकान घर से बस 300 मीटर दूर थी. यह एक रोज़मर्रा का छोटा सा काम था, लेकिन वह फिर कभी वापस नहीं आई.

वह उन कई बच्चों में से एक थी जो फरवरी 2005 से 2006 के बीच लापता होने लगे थे. दिसंबर 2006 में जब नोएडा के निठारी गांव में डी-5 नंबर घर के बाहर नाले से खोपड़ियां और इंसानी हड्डियां मिले, तब तक दो साल से लापता होने की शिकायतें आ रही थीं, लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की.

जांच आखिरकार पुलिस को डी-5 तक ले गई—घर के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली तक. पंढेर ने यह डुप्लेक्स फरवरी 2004 में खरीदा था और उसी साल जुलाई में कोली को काम पर रखा था.

अदालत के रिकॉर्ड बताते हैं कि पहली गुमशुदगी की रिपोर्ट अगले साल फरवरी में दर्ज हुई. डी-5 के पीछे खेलने वाले बच्चों को एक पॉलिथीन बैग में इंसानी हाथ जैसा कुछ मिला. पुलिस को बुलाया गया. गवाहों का कहना है कि पुलिस आई, उस हाथ पर मिट्टी डाल दी, और लोगों से कहा—“चिंता की कोई बात नहीं है.”

एक और साल गुज़र गया. तब जाकर पहली एफआईआर दर्ज हुई और उसके बाद ऐसा लगा जैसे सारे राज़ खुलने लगे.

नोएडा सेक्टर 31 का घर नंबर डी-5 अब खाली पड़ा है, झाड़ियों से ढका हुआ | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
नोएडा सेक्टर 31 का घर नंबर डी-5 अब खाली पड़ा है, झाड़ियों से ढका हुआ | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

नोएडा निवासी नंदलाल की बेटी नौकरी की तलाश में 7 मई 2006 को घर से निकली. उसे सेक्टर 31 में महेंद्र सिंह नाम के एक व्यक्ति से मिलना था. वही दिन नंदलाल ने अपनी बेटी को आखिरी बार देखा. वह पहले निठारी पुलिस चौकी गया, फिर खुद डी-5 पहुंच गया, जहां उसने कोली से सवाल किए.

नंदलाल ने पुलिस से आग्रह किया कि उनकी बेटी की किडनैपिंग और गलत तरीके से रोककर रखने की धाराओं में एफआईआर दर्ज की जाए, लेकिन पुलिस ने सिर्फ एक ‘मिसिंग’ रिपोर्ट लिखी. बाद में एक स्थानीय अदालत के आदेश पर केस दर्ज हुआ. नोएडा पुलिस को जांच तेज़ करने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट की फटकार भी खानी पड़ी. 29 दिसंबर की सुबह कोली को पहली बार “गिरफ्तार” किया गया.

सुरेंद्र कोली, 12 नवंबर को ग्रेटर नोएडा जेल से रिहा होकर बाहर आते हुए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
सुरेंद्र कोली, 12 नवंबर को ग्रेटर नोएडा जेल से रिहा होकर बाहर आते हुए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

उसके कथित कबूलनामे के आधार पर उसी दिन डी-5 के बाहर नाले से 15 खोपड़ियां, कपड़े और बाकी सामान बरामद हुए. घर के मालिक पंढेर को भी गिरफ्तार किया गया.

जब वंदना सरकार को यह सब पता चला, तो वह तुरंत वहां पहुंचीं. वहीं उन्होंने कपड़े और चप्पल पहचान लिए, जो उनकी 20 साल की बेटी के थे, जो 5 अक्टूबर को लापता हुई थी. उनकी शिकायत पर नोएडा पुलिस ने पंढेर और कोली के खिलाफ एक और केस दर्ज किया.

नंदलाल और सरकार अकेले नहीं थे. एक और दंपत्ति ने अपनी 14 साल की बेटी के लापता होने की रिपोर्ट 20 जुलाई 2005 को दर्ज कराई थी. डीएनए टेस्ट में बाद में पुष्टि हुई कि उनकी बेटी भी पीड़ितों में शामिल थी.

नाले से इंसानी हड्डियां और “सबूत” मिलने के एक महीने से भी कम समय बाद, यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. इसके साथ ही पंढेर और कोली की हिरासत भी सीबीआई को दे दी गई.

चैप्टर-II

CBI का केस दो बातों पर टिका था: पहली — कोली का माना गया कुबूलनामा, जो उसने जनवरी 2007 में सीबीआई के एक अफसर को दिया था और फिर उसी साल मार्च में दिल्ली के एक ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को दिया.

दूसरी — यूपी पुलिस की कस्टडी में रहते हुए उसके द्वारा की गई वे “जानकारियां” जिनकी वजह से इंसानी अवशेष और दूसरी चीज़ें बरामद हुईं.

सीबीआई ने कहा कि कोली ने माना कि उसने कई पीड़ितों के साथ रेप और हत्या की और उनके शरीर को नष्ट किया. सीबीआई का कहना था कि पंढेर “सेक्स वर्करों” के साथ वक्त बिताता था, जो डी-5 में आती थीं. उन्हें देखकर कोली में एक “ऑटोमेटॉन स्टेट” (बिना सोचे-समझे करने वाली मानसिक स्थिति) ट्रिगर हो जाती थी. फिर कोली “किसी न किसी बहाने” से पीड़ितों को अंदर बुलाता, उनके साथ रेप करता या कोशिश करता और फिर उनकी हत्या कर देता.

मनिंदर सिंह पंढेर (बाएं) और सुरेंद्र कोली (दाएं) की फाइल फोटो | एएनआई
मनिंदर सिंह पंढेर (बाएं) और सुरेंद्र कोली (दाएं) की फाइल फोटो | एएनआई

सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में कहा: “फिर वह उनकी लाशों को डी-5 के ऊपर वाले फ्लोर पर नौकर के बाथरूम में ले जाता था, शरीर के हिस्से काटता था, धड़ के कुछ हिस्से खाता था (sic) और खोपड़ी, कपड़े घर के पीछे की गैलरी/खाली जगह में फेंक देता था और बाकी अंग सामने वाले नाले में बहा देता था.”

ट्रायल कोर्ट ने इन “डिस्क्लोज़र” के आधार पर कोली को सज़ा दी, यह कहते हुए कि यह सब “सबूतों और हालात” से मेल खाता है.

लेकिन जब केस इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा, तो सीबीआई का पूरा मामला ढह गया.

इलाहाबाद हाई कोर्ट को सिर्फ कुबूलनामों पर शक नहीं था, बल्कि सीबीआई द्वारा उन्हें रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया पर भी सवाल थे. उसने कोली की गिरफ्तारी की तारीख को लेकर बचाव पक्ष की दलीलों को भी गंभीरता से लिया.

सबसे पहले, हाई कोर्ट ने यह देखा कि कोली का कुबूलनामा रिकॉर्ड करने में बिना वजह देर हुई, जबकि शुरुआती “खुलासों” के बाद तुरंत बरामदगी हुई थी. कोर्ट ने ध्यान दिया कि अभियोजन के अनुसार, कोली ने 29 दिसंबर को पहली बार “कबूला”, जिसके बाद डी-5 के बाहर नाले से बरामदगी हुई. फिर जनवरी 2007 में उसने 3, 11, 13 और 18 तारीख को अलग-अलग बार फिर “कबूला”.

डी-5 के बाहर का नाला, जहां से पुलिस ने इंसानी अवशेष बरामद किए | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
डी-5 के बाहर का नाला, जहां से पुलिस ने इंसानी अवशेष बरामद किए | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सीबीआई 18 जनवरी से 1 मार्च के बीच की प्रोग्रेस रिपोर्ट नहीं दे पाई, जबकि 1 मार्च को ही कोली ने मजिस्ट्रेट के सामने “कुबूल” किया था.

हाई कोर्ट ने सीबीआई से यह भी पूछा कि आखिर उसे कोली की लंबी कस्टडी क्यों चाहिए थी, खासकर तब, जब 16 और मामलों में अलग-अलग जांच अधिकारी तैनात थे और कोली उन सभी में आरोपी था.

दिल्ली में मजिस्ट्रेट के सामने कुबूलनामा रिकॉर्ड करने की ज़रूरत पर भी कोर्ट ने सवाल उठाए. सीबीआई ने कहा कि गाजियाबाद कोर्ट में वकीलों ने कोली पर हमला किया था, लेकिन हाई कोर्ट ने बताया कि इस हमले के बाद भी सीबीआई ने कोली को कम से कम दो बार गाजियाबाद की अदालत में पेश किया था.

हाई कोर्ट ने यह भी पूछा कि कोली जिसने दिल्ली में मजिस्ट्रेट के सामने लिखकर सहमति दी, कैसे जानता था कि उसके बयान दिल्ली में रिकॉर्ड होंगे, गाजियाबाद में नहीं?

कोली की पढ़ाई सिर्फ सातवीं क्लास तक है यह भी हाई कोर्ट ने नोट की और कहा कि सीबीआई का तरीका सही नहीं था.

कोर्ट ने यह भी कहा कि सीबीआई ने कोली को ज़रूरी मेडिकल सहायता नहीं दी और यूपी पुलिस ने भी उसकी कस्टडी के दौरान उसका मेडिकल टेस्ट नहीं कराया.

मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयान के समय कोली पर “नई चोटें नहीं” होने की मेडिकल रिपोर्ट को भी हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट में पुरानी चोटों की प्रकृति, समय और अवधि का ज़िक्र होना चाहिए था, ताकि यह पता लग सके कि कोली को कस्टडी में प्रताड़ित किया गया या नहीं.

कोली के वकीलों की टीम—जिसमें युग मोहित चौधरी भी थे, उन्होंने उसकी गिरफ्तारी की तारीख पर भी सवाल उठाए. उनका कहना था कि कोली को 27 दिसंबर 2006 को ही पहली बार गिरफ्तार किया गया था. हाई कोर्ट ने कहा कि अभियोजन यह साबित करने में नाकाम रहा कि गिरफ्तारी 29 दिसंबर को हुई थी.

निठारी की वह महिला, जिनकी बच्ची लापता हुई थी, अपने नोएडा सेक्टर 31 के घर के पास | फोटो: बिस्मी टासकिन/दिप्रिंट
निठारी की वह महिला, जिनकी बच्ची लापता हुई थी, अपने नोएडा सेक्टर 31 के घर के पास | फोटो: बिस्मी टासकिन/दिप्रिंट

हाई कोर्ट ने अभियोजन द्वारा 11 जनवरी को रसोई का चाकू और 18 जनवरी को कुल्हाड़ी बरामद करने के दावे को भी खारिज कर दिया. उसने कहा, जब जांच एजेंसियों की कस्टडी में घर था, तो ऐसी “बरामदगी” मान्य नहीं हो सकती.

कोर्ट ने कहा कि डी-5 की “चार बार” पूरी तलाशी ली गई — दो बार चाकू मिलने से पहले और तीन बार कुल्हाड़ी मिलने से पहले. यह भी रिकॉर्ड पर था कि एक पुलिस अफसर ने गवाही दी कि ठीक उसी जगह तलाशी हुई थी जहां बाद में 18 जनवरी को कुल्हाड़ी मिली.

फरवरी 2005 वाली घटना — जब डी-5 के पास इंसानी हाथ जैसी चीज़ मिली थी और पुलिस ने उसे नज़रअंदाज़ कर दिया — भी अभियोजन को भारी पड़ी. बचाव पक्ष ने इसे सबूत के रूप में पेश किया कि पुलिस इलाके में पहले से इंसानी अवशेषों की जानकारी रखती थी और यह सब कोली के “कुबूलनामे” से पहले का है.

हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट ने कोली का कुबूलनामा रिकॉर्ड करते समय यह जानते हुए भी रिकॉर्डिंग जारी रखी कि कोली ने बताया था कि उसे 2-3 पीड़ितों की फोटो दिखाकर प्रताड़ित किया गया. कोर्ट ने कहा कि उसे मेडिकल टेस्ट के लिए भेजना चाहिए था—ताकि सच सामने आ सके.

कोर्ट ने कहा कि जबरन या प्रताड़ित कराए गए कुबूलनामे को सबूत नहीं माना जा सकता — सबूत अधिनियम की धारा 24 के हिसाब से यह “अविश्वसनीय” हो जाता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट ने बयान रिकॉर्ड करने से ठीक पहले वाले दो दिनों में कोली को फिर से पुलिस कस्टडी में भेजा, जिससे प्रताड़ना या दबाव की संभावना और बढ़ जाती है.

इन सब कारणों से कोर्ट ने माना कि कुबूलनामा “भरोसे लायक नहीं” है.

चैप्टर-III

कुल मिलाकर, निठारी हत्याकांड में सुरेंद्र कोली पर 16 केस दर्ज हुए. इनमें से 13 मामलों में उसे दोषी ठहराकर फांसी की सज़ा दी गई थी और बाकी तीन मामलों में गाज़ियाबाद की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने उसे बरी कर दिया था.

पंढेर को इन मामलों में से 10 में बरी किया गया. दो में उम्रकैद दी गई और एक केस में उसे अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 के तहत दोषी ठहराया गया. आखिरकार, पंढेर आखिरी केस में बरी होने के बाद 20 अक्टूबर 2023 को जेल से बाहर आ गया.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 12 मामलों में कोली को बरी करते हुए, उसके मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयानों का हिस्सा भी अपने फैसले में लिखा:
“ये मतलब जब यूपी पुलिस ने जब मेरे को पकड़ा था उस टाइम में मतलब कि इन्होंने मेरे को ये सारे फोटो देख देख कर सब का इनका नाम वगैरह इन्होंने ही है मतलब कि इसका ये नाम है, अच्छा! ये टाइम वगैरह का और इस तरह का लेकिन टाइम का तो मेरे को अभी पता अभी भी नहीं है पता, ये बताया था मैं भूल गया.”

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नोट किया कि कोली ने कम से कम 18 बार कहा कि उसे सही समय और बाकी महत्वपूर्ण बातें याद नहीं हैं.

पहली गिरफ्तारी के 19 साल बाद, पिछले हफ्ते कोली ग्रेटर नोएडा की लुक्सर जेल से एक आज़ाद आदमी की तरह बाहर निकला.

सुरेंद्र कोली, 12 नवंबर 2025 को जेल से रिहा होने के बाद गाड़ी में बैठते हुए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
सुरेंद्र कोली, 12 नवंबर 2025 को जेल से रिहा होने के बाद गाड़ी में बैठते हुए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

एक आखिरी केस ही ऐसा था जिसकी वजह से, बाकी 12 मामलों में बरी होने के बाद भी, कोली जेल में था. यह मामला 14 साल की एक लड़की के गायब होने से जुड़ा था, जिसे आखिरी बार 8 फरवरी 2005 को देखा गया था. परिवार ने पुलिस से शिकायत की, लेकिन पुलिस ने इसे हल्के में लेते हुए कहा कि शायद वह भाग गई होगी.

उसकी गुमशुदगी के छह महीने बाद जाकर केस दर्ज हुआ. एक साल से भी ज़्यादा बाद, जब घर से इंसानी अवशेष मिलने की खबर आई, तब परिवार को पहली बार कोई कड़ी मिली.

इस केस में पंढेर और कोली दोनों को फांसी की सज़ा मिली थी, जिसे सितंबर 2009 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरकरार रखा—हालांकि, पंढेर को “परिस्थितिजन्य सबूत” कमज़ोर होने की वजह से बरी कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2011 में इस केस में कोली की उम्रकैद बरकरार रखी थी, लेकिन 11 नवंबर 2025 को उसे आखिरकार इस केस में भी बरी कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2011 की उम्रकैद को बरकरार रखना “न्याय की स्पष्ट असफलता” होगा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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