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Friday, 14 November, 2025
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लाल किले ब्लास्ट की गूंज 2011 दिल्ली HC बम धमाके जैसी—‘व्हाइट-कॉलर’ टेरर सेल, डॉक्टर और जैश का निशान

10 नवंबर को दिल्ली के लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास एक कार में हुए धमाके में 13 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हुए. अब जांचकर्ताओं को इसमें 2011 दिल्ली HC बम धमाके जैसी समानताएं मिल रही हैं.

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नई दिल्ली: जांचकर्ता, 2011 दिल्ली हाई कोर्ट बम धमाके और सोमवार शाम के लाल किला ब्लास्ट के बीच गहरे समानता वाले पैटर्न देखते हुए, यह मान रहे हैं कि आतंकी सेल की कार्रवाई में कश्मीर के कट्टरपंथी ‘व्हाइट-कॉलर’ नेटवर्क की भूमिका बार-बार सामने आती है.

दोनों घटनाओं में दिल्ली में धमाके ऐसे लोगों ने किए जो पढ़े-लिखे थे और मेडिकल फील्ड से आते थे. और जैसे 2011 में, वैसे ही इस बार भी प्लान राजधानी के हाई-सिक्योरिटी इलाकों को निशाना बनाने का था. हालांकि, लाल किला ब्लास्ट की जगह शायद टारगेट नहीं थी, क्योंकि सोमवार की घटना संभवतः तब हुई जब विस्फोटक ले जाए जा रहे थे.

10 नवंबर की शाम, कश्मीर के पुलवामा से डॉक्टर उमर-उन-नबी एक कार चला रहे थे जिसमें विस्फोटक थे और वह कार लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास फट गई. इस हादसे में 13 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हुए. उनके साथियों में डॉक्टर और प्रोफेसर शामिल थे, जो हरियाणा के फरीदाबाद में अल-फलाह यूनिवर्सिटी और हॉस्पिटल में काम करते थे—जिनमें अदील अहमद राठर, शाहीन सईद और मुझम्मिल शकील शामिल हैं. ये इस सेल के छह से सात मेडिकल प्रोफेशनल्स में से थे.

इसी तरह, 2011 मामले में मुख्य साजिशकर्ता वसीम अकरम मलिक—जो कश्मीर के किश्तवाड़ का रहने वाला था बांग्लादेश में यूनानी मेडिसिन की पढ़ाई कर रहा था.

कई और समानताएं भी हैं. खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक, दोनों मामलों में तबलीगी जमात से जुड़े कश्मीरी मौलानाओं ने आरोपियों को कट्टरपंथी बनाया था. इस्तेमाल किए गए विस्फोटक भी मिलते-जुलते थे, और दोनों धमाकों की कड़ी जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ी हुई है. एक और समानता यह है कि दोनों में पाकिस्तान का लिंक दिखता है—चाहे हैंडलर हों, लॉजिस्टिक्स हो या सीमा पार से निर्देश.

2011 दिल्ली HC हमले के सात में से छह आरोपी अभी ट्रायल फेस कर रहे हैं, जो इस समय प्रॉसिक्यूशन एविडेंस के स्टेज पर है. एक आरोपी का केस—जो नाबालिग था—जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने अलग से संभाला था और उसे तीन साल के लिए स्पेशल होम भेजा गया था. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने 2012 में पहला चार्जशीट दाखिल किया था, जिसमें एक नाबालिग सहित छह लोगों को नामजद किया गया था, और 2013 में दूसरी चार्जशीट दाखिल की, जिसमें सातवें आरोपी का नाम था.

दिल्ली ब्लास्ट: जैश-ए-मोहम्मद का दोहराया हुआ प्लेबुक

दोनों घटनाओं में, जिनके बीच एक दशक से भी ज्यादा का फर्क है, आतंकी सेल ने एक जैसे मकसद से विस्फोटक इकट्ठे किए. 2011 के हमले को जहां आतंकवाद-रोधी ऑपरेशनों और अफज़ल गुरु की लंबित फांसी की सज़ा का जवाब माना गया था, वहीं लाल किले ब्लास्ट को ऑपरेशन सिंदूर के बदले में की गई एक बड़ी आतंकी योजना का हिस्सा बताया गया है. भारत ने मई में किए गए इस ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तान के बहावलपुर में JeM के मुख्यालय पर हमला किया था.

2011 की घटना में शुरू में इंडियन मुजाहिदीन और हिज्ब-उल-मुजाहिदीन का नाम सामने आया था, लेकिन गहरी जांच में जैश-ए-मोहम्मद की मुख्य भूमिका साबित हुई.

श्रीनगर के बाहरी इलाकों में लगे पोस्टरों से शुरू हुई लाल किला ब्लास्ट की जांच भी इसी तरह है. बाद में गहरी जांच ने राजधानी में 1993 के बाद होने वाले सबसे बड़े आतंकवादी हमलों में से एक को नाकाम कर दिया.

29 अक्टूबर को लगे पोस्टरों में JeM के समर्थन के संदेश थे, जिसके बाद शुरू में डॉक्टरों की गिरफ्तारी हुई. बाद में और गहरी जांच के बाद हरियाणा के फरीदाबाद में पुलिस ने छापे मारे, जहां ये डॉक्टर काम करते थे. इन छापों के दौरान पुलिस को 2,900 किलो IED (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) बनाने की सामग्री मिली, जिसमें से 2,000 किलो अमोनियम नाइट्रेट था.

2011 दिल्ली हाई कोर्ट हमले के पीछे रहने वाले आरोपी JeM से जुड़े हुए थे, जो कश्मीर आधारित नेटवर्क के जरिए काम कर रहा था. हमलावरों को अल-कायदा की विचारधारा से भी प्रेरणा मिली थी.

इसी तरह, लाल किला ब्लास्ट भी जांचकर्ताओं के अनुसार JeM द्वारा कराया गया था. इस ग्रुप ने “व्हाइट-कॉलर टेरर नेटवर्क” का इस्तेमाल किया, जिसमें टेलीग्राम और अन्य सोशल मीडिया ऐप का उपयोग हुआ और जो अंसार गज़वत-उल-हिंद—अल-कायदा के कश्मीर विंग—से निष्ठा रखता था.

इसके अलावा, डॉक्टर उमर-उन-नबी के बारे में भी कहा गया है कि वो अंसार गज़वत-उल-हिंद से जुड़ा था, जो अल-कायदा का कश्मीर विंग है.

खुफिया एजेंसी के सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, 2011 और 2025 दोनों घटनाओं में “पढ़े-लिखे प्रोफेशनल (डॉक्टर और मेडिकल स्टूडेंट), जो कवर, फंडिंग और ऑपरेशनल सीक्रेसी देते थे, शामिल थे, यह एक उभरता हुआ पैटर्न है, जिसे अब जम्मू-कश्मीर के टेरर नेटवर्क में ‘डॉक्टर मॉड्यूल’ कहा जाने लगा है.”

सूत्र ने कहा, “हम एक ऐसे पैटर्न को ट्रैक कर रहे हैं, जिसमें मेडिकल प्रोफेशनल हाई-वैल्यू प्लॉट को अंजाम देने के लिए रेडिकलाइज़ होते दिख रहे हैं.”

जांचकर्ताओं के अनुसार, दोनों घटनाओं—जिनके बीच 14 साल का अंतर है—में आरोपियों ने अमोनियम नाइट्रेट आधारित आईइडी जमा किए थे. 2011 के हमले में एक ब्रीफकेस में आरडीएक्स (रॉयल डिमोलिशन एक्सप्लोसिव, जिसे हेक्सोजन/साइक्लोनाइट भी कहते हैं) और अमोनियम नाइट्रेट का मिश्रण इस्तेमाल किया गया था. लाल किला ब्लास्ट में, वाहन में लगे आईइडी में ANFO—अमोनियम नाइट्रेट और फ्यूल ऑयल—का इस्तेमाल हुआ था, ऐसा जांचकर्ताओं का शक है.

दोनों घटनाओं में आईइडी भी भीड़भाड़ वाली, सार्वजनिक जगह पर रखा गया था. 2011 में ब्रीफकेस दिल्ली हाई कोर्ट के गेट पर पीक ऑवर में रखा गया था. लाल किला ब्लास्ट में, ANFO से भरी सफेद i20 कार मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 1 के पास शाम के समय फट गई.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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