जिसने भी पिछले तीन दशकों से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कवर किया है, वह जानता है कि वह अपना आपा कभी नहीं खोते हैं, कम से कम जनता के बीच में तो कभी नहीं और निश्चित रूप से तब तो बिलकुल ही नहीं जब वह मीडिया के आसपास होते हैं.
जब भी कोई विवाद हुआ है या मीडिया ने उन पर उंगलियां उठाई हैं, तो उन्होंने इसे नज़रअंदाज कर दिया है और कहा है कि ‘आप जो चाहें लिख सकते हैं या दिखा सकते हैं.’
लेकिन इस हफ्ते, जब बाढ़ प्रभावित राज्य में राहत शिविरों के निरीक्षण के दौरान पत्रकारों ने उन पर सवाल दागे तो नीतीश कुमार अशांत हो गए. ‘देश और दुनिया के कितने हिस्सों में बाढ़ आई है? क्या पटना के कुछ हिस्सों में पानी ही एकमात्र समस्या है?’ बिहार के सीएम ने एक महिला पत्रकार को वापस बुलाया और पूछा कि क्या मुंबई और अमेरिका में बाढ़ के दौरान भी इसी तरह के सवाल उठाए गए थे.
आमतौर पर शांत रहने वाले नीतीश कुमार की इस अप्रत्याशित प्रतिक्रिया ने तुरंत सुर्खियां बटोर लीं. और यही कारण है कि वह इस सप्ताह दिप्रिंट के न्यूज़मेकर हैं.
किसे दोष दें?
यह एक साल में दूसरी बार है जब नीतीश कुमार मीडिया के सवालों से घिरे हैं. इस साल जून में, उनपर बिहार के मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौतों पर सवाल उठाए गए, इन मौतों का कारण एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) था.
अब, बिहार को बड़े पैमाने पर बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें 40 से अधिक लोगों की पहले ही मौत हो चुकी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तैयारी और कुप्रबंधन के लिए सहयोगी भाजपा सहित सभी तरफ से आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. इन दिनों राज्य की राजधानी पटना जल-जमाव का सामना कर रही है.
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नीतीश कुमार ने यह स्वीकार करते हुए कहा कि शहर के पानी के पंप काम नहीं कर रहे हैं जो कि भाजपा के सुरेश कुमार शर्मा के अधीन शहरी विकास मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है.
वास्तव में, जद (यू) के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि नीतीश का गुस्सा मीडिया पर ही नहीं बल्कि सहयोगी भाजपा पर भी है. वे कहते हैं कि बिहार के सीएम नाराज हैं क्योंकि उनका मानना है कि उन्हें उन समस्याओं के लिए परेशान किया जा रहा है जिन्हें आदर्श रूप से भाजपा द्वारा संचालित विभागों द्वारा संबोधित किया जाना चाहिए था. वे कहते हैं बिहार के मुजफ्फरपुर में हुए बच्चों की मौतों के दौरान नीतीश ने सभी आरोपों का सामना किया था जबकि स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा नेता मंगल पांडे को कुछ भी नहीं सुनना पड़ा.
लेकिन गुरुवार शाम, बिहार के शहरी विकास मंत्री ने भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ एक बैठक में कहा कि उनके विभाग के अधिकारियों ने उनके आदेशों का पालन नहीं किया है, जिससे यह पता चलता है कि उनके विभाग पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है.
गठबंधन में दरार
बिहार में बीजेपी-जेडी (यू) गठबंधन में नीतीश का कम होता दबदबा शायद उनके गुस्से और हताशा का एक और कारण है.
जब जनता दल (युनाइटेड) के प्रमुख 2017 में महागठबंधन से बाहर हो गए, तो वह नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा के लिए सबसे बेशकीमती लोगों में से एक थे. दोनों दलों ने 2019 के लोकसभा चुनावों में बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा था.
हालांकि, भाजपा को अपने दम पर जनादेश मिलने के साथ ही केंद्र में जदयू की ओर से अधिक मंत्री पद की मांग को नहीं माना गया. नीतीश के जख्मों पर नमक छिड़कते हुए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव ने हाल ही में उन्हें भाजपा के लिए राज्यसभा में सीट देने के लिए कहा था. हालांकि, नीतीश ने सीट दे दी थी.
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पिछले कुछ महीनों में गठबंधन में दरारें दिखाई देने लगी हैं, दोनों साथी राष्ट्रीय मुद्दों पर विपरीत रुख अपना रहे हैं – चाहे वह ट्रिपल तालाक या अनुच्छेद 370 या एनआरसी का मुद्दा हो.
यह संकेत अशुभ है. मोदी-शाह की भाजपा को अब नीतीश कुमार की जद (यू) की जरूरत नहीं है और 2017 में महागठबंधन से बाहर निकलकर, उन्होंने विपक्ष (राजद और कांग्रेस) के साथ को ख़त्म कर दिया है. बिहार में अगले साल चुनाव होने हैं, नीतीश कुमार अब राजनीति में अपने करो या मरो वाले पल का सामना कर रहे हैं.
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