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Tuesday, 11 November, 2025
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केंद्र दिल्ली रिज प्रबंधन बोर्ड को वैधानिक दर्जा दे, अतिक्रमण हटाया जाए: उच्चतम न्यायालय

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नयी दिल्ली, 11 नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय राजधानी के ‘हरित फेफड़ों’ की रक्षा के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण फैसले में उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र को दिल्ली रिज प्रबंधन बोर्ड (डीआरएमबी) को वैधानिक दर्जा देने और इसे रिज और ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ से संबंधित सभी मामलों के लिए एकल-खिड़की प्राधिकरण बनाने का निर्देश दिया।

प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने लंबे समय से चले आ रहे पर्यावरण मामले (टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ) में फैसला सुनाया और इस बात पर जोर दिया कि कानूनी संरक्षण और प्रभावी शासन के बिना, रिज की पारिस्थितिक अखंडता गंभीर रूप से प्रभावित होगी।

पीठ के लिए फैसला लिखते हुए, प्रधान न्यायाधीश ने तीन मुद्दों पर विचार किया, जिनमें वन अधिनियम के तहत दिल्ली रिज की अंतिम अधिसूचना जारी करना और दिल्ली रिज और ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ से अतिक्रमण को हटाना शामिल है। तीसरा मुद्दा ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ की पहचान का था।

मोर्फोलॉजिकल रिज, एक ऐसा क्षेत्र जिसे अभी तक आधिकारिक रूप से वन भूमि के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है, परंतु इसकी पारिस्थितिक और भूगर्भीय विशेषताएं मूल रिज जैसी ही हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना ​​है कि रिज की उचित पहचान या संरक्षण के बिना, संपूर्ण पारिस्थितिकी की अखंडता से समझौता होगा। रिज शहर के ‘हरित फेफड़ों’ के रूप में कार्य करता है, खासकर बढ़ते प्रदूषण की वर्तमान परिस्थितियों में। इसलिए, हमारा मानना ​​है कि डीआरएमबी को इसकी उचित पहचान के बाद दिल्ली रिज की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सक्रिय रूप से काम करने की आवश्यकता है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘रिज को आरक्षित वन के रूप में अधिसूचित न करने का प्रभाव उक्त क्षेत्र को किसी भी प्रकार के संरक्षण से वंचित करता है।’’

अदालत ने कहा, ‘‘हमारा मानना ​​है कि उचित वैधानिक संरक्षण के बिना, रिज की अखंडता को उचित रूप से संरक्षित करना संभव नहीं होगा।’’

अदालत ने पिछले तीन दशकों में बार-बार न्यायिक निर्देशों के बावजूद रिज की सुरक्षा में ‘तेजी की कमी’ के लिए दिल्ली सरकार की कड़ी आलोचना की।

अदालत ने कहा, ‘‘इस अदालत ने मई 1996 में ही यह टिप्पणी की थी कि सरकार ने रिज के संरक्षण के लिए उचित कदम नहीं उठाए हैं, लेकिन लगभग तीन दशक बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कुछ खास नहीं किया गया है।’’

रिपोर्टों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि उन्हें पता चला है कि रिज क्षेत्र पर अब बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हो रहा है।

डीडीए की इस दलील को खारिज करते हुए कि मॉर्फोलॉजिकल रिज का ‘कोई कानूनी आधार नहीं है’, पीठ ने कहा कि यह क्षेत्र ‘समान रूप से महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे संरक्षित करने की आवश्यकता है’।

अदालत ने निर्देश दिया कि उसके फरवरी 2023 के आदेश के तहत शुरू की गई ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ की पहचान और सीमांकन की चल रही प्रक्रिया पूरी की जाए और अदालत को सूचित किया जाए।

भाषा संतोष प्रशांत

प्रशांत

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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